< מִשְׁלֵי 21 >

פַּלְגֵי־מַ֣יִם לֶב־מֶ֭לֶךְ בְּיַד־יְהוָ֑ה עַֽל־כָּל־אֲשֶׁ֖ר יַחְפֹּ֣ץ יַטֶּֽנּוּ׃ 1
याहवेह के हाथों में राजा का हृदय जलप्रवाह-समान है; वही इसे ईच्छित दिशा में मोड़ देते हैं.
כָּֽל־דֶּרֶךְ־אִ֭ישׁ יָשָׁ֣ר בְּעֵינָ֑יו וְתֹכֵ֖ן לִבּ֣וֹת יְהוָֽה׃ 2
मनुष्य की दृष्टि में उसका हर एक कदम सही ही होता है, किंतु याहवेह उसके हृदय को जांचते रहते हैं.
עֲ֭שֹׂה צְדָקָ֣ה וּמִשְׁפָּ֑ט נִבְחָ֖ר לַיהוָ֣ה מִזָּֽבַח׃ 3
याहवेह के लिए सच्चाई तथा न्याय्यता कहीं अधिक स्वीकार्य है.
רוּם־עֵ֭ינַיִם וּרְחַב־לֵ֑ב נִ֖ר רְשָׁעִ֣ים חַטָּֽאת׃ 4
घमंडी आंखें, दंभी हृदय तथा दुष्ट का दीप पाप हैं.
מַחְשְׁב֣וֹת חָ֭רוּץ אַךְ־לְמוֹתָ֑ר וְכָל־אָ֝֗ץ אַךְ־לְמַחְסֽוֹר׃ 5
यह सुनिश्चित होता है कि परिश्रमी व्यक्ति की योजनाएं लाभ में निष्पन्‍न होती हैं, किंतु हर एक उतावला व्यक्ति निर्धन ही हो जाता है.
פֹּ֣עַל א֭וֹצָרוֹת בִּלְשׁ֣וֹן שָׁ֑קֶר הֶ֥בֶל נִ֝דָּ֗ף מְבַקְשֵׁי־מָֽוֶת׃ 6
झूठ बोलने के द्वारा पाया गया धन इधर-उधर लहराती वाष्प होती है, यह मृत्यु का फंदा है.
שֹׁד־רְשָׁעִ֥ים יְגוֹרֵ֑ם כִּ֥י מֵ֝אֲנ֗וּ לַעֲשׂ֥וֹת מִשְׁפָּֽט׃ 7
दुष्ट अपने ही हिंसक कार्यों में उलझ कर विनष्ट हो जाएंगे, क्योंकि वे उपयुक्त और सुसंगत विकल्प को ठुकरा देते हैं.
הֲפַכְפַּ֬ךְ דֶּ֣רֶךְ אִ֣ישׁ וָזָ֑ר וְ֝זַ֗ךְ יָשָׁ֥ר פָּעֳלֽוֹ׃ 8
दोषी व्यक्ति कुटिल मार्ग को चुनता है, किंतु सात्विक का चालचलन धार्मिकतापूर्ण होता है.
ט֗וֹב לָשֶׁ֥בֶת עַל־פִּנַּת־גָּ֑ג מֵאֵ֥שֶׁת מִ֝דְיָנִ֗ים וּבֵ֥ית חָֽבֶר׃ 9
विवादी पत्नी के साथ घर में निवास करने से कहीं अधिक श्रेष्ठ है छत के एक कोने में रह लेना.
נֶ֣פֶשׁ רָ֭שָׁע אִוְּתָה־רָ֑ע לֹא־יֻחַ֖ן בְּעֵינָ֣יו רֵעֵֽהוּ׃ 10
दुष्ट के मन की लालसा ही बुराई की होती है; उसके पड़ोसी तक भी उसकी आंखों में कृपा की झलक नहीं देख पाते.
בַּעְנָשׁ־לֵ֭ץ יֶחְכַּם־פֶּ֑תִי וּבְהַשְׂכִּ֥יל לְ֝חָכָ֗ם יִקַּח־דָּֽעַת׃ 11
जब ज्ञान के ठट्ठा करनेवालों को दंड दिया जाता है, बुद्धिहीनों में ज्ञानोदय हो जाता है; जब बुद्धिमान को शिक्षा दी जाती है, उसमें ज्ञानवर्धन होता जाता है.
מַשְׂכִּ֣יל צַ֭דִּיק לְבֵ֣ית רָשָׁ֑ע מְסַלֵּ֖ף רְשָׁעִ֣ים לָרָֽע׃ 12
धर्मी दुष्ट के घर पर दृष्टि बनाए रखता है, और वह दुष्ट को विनाश गर्त में डाल देता है.
אֹטֵ֣ם אָ֭זְנוֹ מִזַּעֲקַת־דָּ֑ל גַּֽם־ה֥וּא יִ֝קְרָ֗א וְלֹ֣א יֵעָנֶֽה׃ 13
जो कोई निर्धन की पुकार की अनसुनी करता है, उसकी पुकार के अवसर पर उसकी भी अनसुनी की जाएगी.
מַתָּ֣ן בַּ֭סֵּתֶר יִכְפֶּה־אָ֑ף וְשֹׁ֥חַד בַּ֝חֵ֗ק חֵמָ֥ה עַזָּֽה׃ 14
गुप्‍त रूप से दिया गया उपहार और चुपचाप दी गई घूस कोप शांत कर देती है.
שִׂמְחָ֣ה לַ֭צַּדִּיק עֲשׂ֣וֹת מִשְׁפָּ֑ט וּ֝מְחִתָּ֗ה לְפֹ֣עֲלֵי אָֽוֶן׃ 15
बिना पक्षपात न्याय को देख धर्मी हर्षित होते हैं, किंतु यही दुष्टों के लिए आतंक प्रमाणित होता है.
אָדָ֗ם תּ֭וֹעֶה מִדֶּ֣רֶךְ הַשְׂכֵּ֑ל בִּקְהַ֖ל רְפָאִ֣ים יָנֽוּחַ׃ 16
जो ज्ञान का मार्ग छोड़ देता है, उसका विश्रान्ति स्थल मृतकों के साथ निर्धारित है.
אִ֣ישׁ מַ֭חְסוֹר אֹהֵ֣ב שִׂמְחָ֑ה אֹהֵ֥ב יַֽיִן־וָ֝שֶׁ֗מֶן לֹ֣א יַעֲשִֽׁיר׃ 17
यह निश्चित है कि विलास प्रिय व्यक्ति निर्धन हो जाएगा तथा वह; जिसे दाखमधु तथा शारीरिक सुखों का मोह है, निर्धन होता जाएगा.
כֹּ֣פֶר לַצַּדִּ֣יק רָשָׁ֑ע וְתַ֖חַת יְשָׁרִ֣ים בּוֹגֵֽד׃ 18
धर्मी के लिए दुष्ट फिरौती हो जाता है, तथा विश्वासघाती खराई के लिए.
ט֗וֹב שֶׁ֥בֶת בְּאֶֽרֶץ־מִדְבָּ֑ר מֵאֵ֖שֶׁת מִדְיָנִ֣ים וָכָֽעַס׃ 19
क्रोधी, विवादी और चिड़चिड़ी स्त्री के साथ निवास करने से उत्तम होगा बंजर भूमि में निवास करना.
אוֹצָ֤ר ׀ נֶחְמָ֣ד וָ֭שֶׁמֶן בִּנְוֵ֣ה חָכָ֑ם וּכְסִ֖יל אָדָ֣ם יְבַלְּעֶֽנּוּ׃ 20
अमूल्य निधि और उत्कृष्ट भोजन बुद्धिमान के घर में ही पाए जाते हैं, किंतु मूर्ख इन्हें नष्ट करता चला जाता है.
רֹ֭דֵף צְדָקָ֣ה וָחָ֑סֶד יִמְצָ֥א חַ֝יִּ֗ים צְדָקָ֥ה וְכָבֽוֹד׃ 21
धर्म तथा कृपा के अनुयायी को प्राप्‍त होता है जीवन, धार्मिकता और महिमा.
עִ֣יר גִּ֭בֹּרִים עָלָ֣ה חָכָ֑ם וַ֝יֹּ֗רֶד עֹ֣ז מִבְטֶחָֽה׃ 22
बुद्धिमान व्यक्ति ही योद्धाओं के नगर पर आक्रमण करके उस सुरक्षा को ध्वस्त कर देता है, जिस पर उन्होंने भरोसा किया था.
שֹׁמֵ֣ר פִּ֭יו וּלְשׁוֹנ֑וֹ שֹׁמֵ֖ר מִצָּר֣וֹת נַפְשֽׁוֹ׃ 23
जो कोई अपने मुख और जीभ को वश में रखता है, स्वयं को विपत्ति से बचा लेता है.
זֵ֣ד יָ֭הִיר לֵ֣ץ שְׁמ֑וֹ ע֝וֹשֶׂ֗ה בְּעֶבְרַ֥ת זָדֽוֹן׃ 24
अहंकारी तथा दुष्ट व्यक्ति, जो ठट्ठा करनेवाले के रूप में कुख्यात हो चुका है, गर्व और क्रोध के भाव में ही कार्य करता है.
תַּאֲוַ֣ת עָצֵ֣ל תְּמִיתֶ֑נּוּ כִּֽי־מֵאֲנ֖וּ יָדָ֣יו לַעֲשֽׂוֹת׃ 25
आलसी की अभिलाषा ही उसकी मृत्यु का कारण हो जाती है, क्योंकि उसके हाथ कार्य करना ही नहीं चाहते.
כָּל־הַ֭יּוֹם הִתְאַוָּ֣ה תַאֲוָ֑ה וְצַדִּ֥יק יִ֝תֵּ֗ן וְלֹ֣א יַחְשֹֽׂךְ׃ 26
सारे दिन वह लालसा ही लालसा करता रहता है, किंतु धर्मी उदारतापूर्वक दान करता जाता है.
זֶ֣בַח רְ֭שָׁעִים תּוֹעֵבָ֑ה אַ֝֗ף כִּֽי־בְזִמָּ֥ה יְבִיאֶֽנּוּ׃ 27
याहवेह के लिए दुष्ट द्वारा अर्पित बलि घृणास्पद है और उससे भी कहीं अधिक उस स्थिति में, जब यह बलि कुटिल अभिप्राय से अर्पित की जाती है.
עֵד־כְּזָבִ֥ים יֹאבֵ֑ד וְאִ֥ישׁ שׁ֝וֹמֵ֗עַ לָנֶ֥צַח יְדַבֵּֽר׃ 28
झूठा साक्षी तो नष्ट होगा ही, किंतु वह, जो सच्चा है, सदैव सुना जाएगा.
הֵעֵ֬ז אִ֣ישׁ רָשָׁ֣ע בְּפָנָ֑יו וְ֝יָשָׁ֗ר ה֤וּא ׀ יָבִ֬ין דַּרְכּֽוֹ׃ 29
दुष्ट व्यक्ति अपने मुख पर निर्भयता का भाव ले आता है, किंतु धर्मी अपने चालचलन के प्रति अत्यंत सावधान रहता है.
אֵ֣ין חָ֭כְמָה וְאֵ֣ין תְּבוּנָ֑ה וְאֵ֥ין עֵ֝צָ֗ה לְנֶ֣גֶד יְהוָֽה׃ פ 30
याहवेह के समक्ष न तो कोई ज्ञान, न कोई समझ और न कोई परामर्श ठहर सकता है.
ס֗וּס מ֭וּכָן לְי֣וֹם מִלְחָמָ֑ה וְ֝לַֽיהוָ֗ה הַתְּשׁוּעָֽה׃ 31
युद्ध के दिन के लिए घोड़े को सुसज्जित अवश्य किया जाता है, किंतु जय याहवेह के ही अधिकार में रहती है.

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