< אֵיכָה 4 >
אֵיכָה֙ יוּעַ֣ם זָהָ֔ב יִשְׁנֶ֖א הַכֶּ֣תֶם הַטּ֑וֹב תִּשְׁתַּפֵּ֙כְנָה֙ אַבְנֵי־קֹ֔דֶשׁ בְּרֹ֖אשׁ כָּל־חוּצֽוֹת׃ ס | 1 |
सोना कैसा बेआब हो गया! कुन्दन कैसा बदल गया! मक़्दिस के पत्थर तमाम गली कूचों में पड़े हैं!
בְּנֵ֤י צִיּוֹן֙ הַיְקָרִ֔ים הַמְסֻלָּאִ֖ים בַּפָּ֑ז אֵיכָ֤ה נֶחְשְׁבוּ֙ לְנִבְלֵי־חֶ֔רֶשׂ מַעֲשֵׂ֖ה יְדֵ֥י יוֹצֵֽר׃ ס | 2 |
सिय्यून के 'अज़ीज़ फ़र्ज़न्द, जो ख़ालिस सोने की तरह थे, कैसे कुम्हार के बनाए हुए बर्तनों के बराबर ठहरे!
גַּם־תַּנִּים֙ חָ֣לְצוּ שַׁ֔ד הֵינִ֖יקוּ גּוּרֵיהֶ֑ן בַּת־עַמִּ֣י לְאַכְזָ֔ר כִּי כַּיְעֵנִ֖ים בַּמִּדְבָּֽר׃ ס | 3 |
गीदड़ भी अपनी छातियों से अपने बच्चों को दूध पिलाते हैं; लेकिन मेरी दुख़्तर — ए — क़ौम वीरानी शुतरमुर्ग़ की तरह बे — रहम है।
דָּבַ֨ק לְשׁ֥וֹן יוֹנֵ֛ק אֶל־חכּ֖וֹ בַּצָּמָ֑א עֽוֹלָלִים֙ שָׁ֣אֲלוּ לֶ֔חֶם פֹּרֵ֖שׂ אֵ֥ין לָהֶֽם׃ ס | 4 |
दूध पीते बच्चों की ज़बान प्यास के मारे तालू से जा लगी; बच्चे रोटी मांगते हैं लेकिन उनको कोई नहीं देता।
הָאֹֽכְלִים֙ לְמַ֣עֲדַנִּ֔ים נָשַׁ֖מּוּ בַּחוּצ֑וֹת הָאֱמֻנִים֙ עֲלֵ֣י תוֹלָ֔ע חִבְּק֖וּ אַשְׁפַּתּֽוֹת׃ ס | 5 |
जो नाज़ पर्वरदा थे, गलियों में तबाह हाल हैं; जो बचपन से अर्ग़वानपोश थे, मज़बलों पर पड़े हैं।
וַיִּגְדַּל֙ עֲוֹ֣ן בַּת־עַמִּ֔י מֵֽחַטַּ֖את סְדֹ֑ם הַֽהֲפוּכָ֣ה כְמוֹ־רָ֔גַע וְלֹא־חָ֥לוּ בָ֖הּ יָדָֽיִם׃ ס | 6 |
क्यूँकि मेरी दुख़्तर — ए — क़ौम की बदकिरदारी सदूम के गुनाह से बढ़कर है, जो एक लम्हे में बर्बाद हुआ, और किसी के हाथ उस पर दराज़ न हुए।
זַכּ֤וּ נְזִירֶ֙יהָ֙ מִשֶּׁ֔לֶג צַח֖וּ מֵחָלָ֑ב אָ֤דְמוּ עֶ֙צֶם֙ מִפְּנִינִ֔ים סַפִּ֖יר גִּזְרָתָֽם׃ ס | 7 |
उसके शुर्फ़ा बर्फ़ से ज़्यादा साफ़ और दूध से सफ़ेद थे, उनके बदन मूंगे से ज़्यादा सुर्ख थे, उन की झलक नीलम की सी थी;
חָשַׁ֤ךְ מִשְּׁחוֹר֙ תָּֽאֳרָ֔ם לֹ֥א נִכְּר֖וּ בַּחוּצ֑וֹת צָפַ֤ד עוֹרָם֙ עַל־עַצְמָ֔ם יָבֵ֖שׁ הָיָ֥ה כָעֵֽץ׃ ס | 8 |
अब उनके चेहरे सियाही से भी काले हैं; वह बाज़ार में पहचाने नहीं जाते; उनका चमड़ा हड्डियों से सटा है; वह सूख कर लकड़ी सा हो गया।
טוֹבִ֤ים הָיוּ֙ חַלְלֵי־חֶ֔רֶב מֵֽחַלְלֵ֖י רָעָ֑ב שֶׁ֣הֵ֤ם יָז֙וּבוּ֙ מְדֻקָּרִ֔ים מִתְּנוּבֹ֖ת שָׂדָֽי׃ ס | 9 |
तलवार से क़त्ल होने वाले, भूकों मरने वालों से बहतर हैं; क्यूँकि ये खेत का हासिल न मिलने से कुढ़कर हलाक होते हैं।
יְדֵ֗י נָשִׁים֙ רַחֲמָ֣נִיּ֔וֹת בִּשְּׁל֖וּ יַלְדֵיהֶ֑ן הָי֤וּ לְבָרוֹת֙ לָ֔מוֹ בְּשֶׁ֖בֶר בַּת־עַמִּֽי׃ ס | 10 |
रहमदिल 'औरतों के हाथों ने अपने बच्चों को पकाया; मेरी दुख़्तर — ए — क़ौम की तबाही में वही उनकी खू़राक हुए।
כִּלָּ֤ה יְהוָה֙ אֶת־חֲמָת֔וֹ שָׁפַ֖ךְ חֲר֣וֹן אַפּ֑וֹ וַיַּצֶּת־אֵ֣שׁ בְּצִיּ֔וֹן וַתֹּ֖אכַל יְסוֹדֹתֶֽיהָ׃ ס | 11 |
ख़ुदावन्द ने अपने ग़ज़ब को अन्जाम दिया; उसने अपने क़हर — ए — शदीद को नाज़िल किया। और उसने सिय्यून में आग भड़काई जो उसकी बुनियाद को चट कर गई।
לֹ֤א הֶאֱמִ֙ינוּ֙ מַלְכֵי־אֶ֔רֶץ כֹּ֖ל יֹשְׁבֵ֣י תֵבֵ֑ל כִּ֤י יָבֹא֙ צַ֣ר וְאוֹיֵ֔ב בְּשַׁעֲרֵ֖י יְרוּשָׁלִָֽם׃ ס | 12 |
रू — ए — ज़मीन के बादशाह और दुनिया के बाशिन्दे बावर नहीं करते थे, कि मुख़ालिफ़ और दुश्मन येरूशलेम के फाटकों से घुस आएँगे।
מֵֽחַטֹּ֣את נְבִיאֶ֔יהָ עֲוֹנ֖וֹת כֹּהֲנֶ֑יהָ הַשֹּׁפְכִ֥ים בְּקִרְבָּ֖הּ דַּ֥ם צַדִּיקִֽים׃ ס | 13 |
ये उसके नबियों के गुनाहों और काहिनों की बदकिरदारी की वजह से हुआ, जिन्होंने उसमें सच्चों का खू़न बहाया।
נָע֤וּ עִוְרִים֙ בַּֽחוּצ֔וֹת נְגֹֽאֲל֖וּ בַּדָּ֑ם בְּלֹ֣א יֽוּכְל֔וּ יִגְּע֖וּ בִּלְבֻשֵׁיהֶֽם׃ ס | 14 |
वह अन्धों की तरह गलियों में भटकते, और खू़न से आलूदा होते हैं, ऐसा कि कोई उनके लिबास को भी छू नहीं सकता।
ס֣וּרוּ טָמֵ֞א קָ֣רְאוּ לָ֗מוֹ ס֤וּרוּ ס֙וּרוּ֙ אַל־תִּגָּ֔עוּ כִּ֥י נָצ֖וּ גַּם־נָ֑עוּ אָֽמְרוּ֙ בַּגּוֹיִ֔ם לֹ֥א יוֹסִ֖יפוּ לָגֽוּר׃ ס | 15 |
वह उनको पुकार कर कहते थे, दूर रहो! नापाक, दूर रहो! दूर रहो, छूना मत! “जब वह भाग जाते और आवारा फिरते, तो लोग कहते थे, 'अब ये यहाँ न रहेंगे।”
פְּנֵ֤י יְהוָה֙ חִלְּקָ֔ם לֹ֥א יוֹסִ֖יף לְהַבִּיטָ֑ם פְּנֵ֤י כֹהֲנִים֙ לֹ֣א נָשָׂ֔אוּ וּזְקֵנִ֖ים לֹ֥א חָנָֽנוּ׃ ס | 16 |
ख़ुदावन्द के क़हर ने उनको पस्त किया, अब वह उन पर नज़र नहीं करेगा; उन्होंने काहिनों की 'इज़्ज़त न की, और बुज़ुगों का लिहाज़ न किया।
עוֹדֵ֙ינוּ֙ תִּכְלֶ֣ינָה עֵינֵ֔ינוּ אֶל־עֶזְרָתֵ֖נוּ הָ֑בֶל בְּצִפִּיָּתֵ֣נוּ צִפִּ֔ינוּ אֶל־גּ֖וֹי לֹ֥א יוֹשִֽׁעַ׃ ס | 17 |
हमारी आँखें बातिल मदद के इन्तिज़ार में थक गईं, हम उस क़ौम का इन्तिज़ार करते रहे जो बचा नहीं सकती थी।
צָד֣וּ צְעָדֵ֔ינוּ מִלֶּ֖כֶת בִּרְחֹבֹתֵ֑ינוּ קָרַ֥ב קִצֵּ֛ינוּ מָלְא֥וּ יָמֵ֖ינוּ כִּי־בָ֥א קִצֵּֽינוּ׃ ס | 18 |
उन्होंने हमारे पाँव ऐसे बाँध रख्खे हैं, कि हम बाहर नहीं निकल सकते; हमारा अन्जाम नज़दीक है, हमारे दिन पूरे हो गए; हमारा वक़्त आ पहुँचा।
קַלִּ֤ים הָיוּ֙ רֹדְפֵ֔ינוּ מִנִּשְׁרֵ֖י שָׁמָ֑יִם עַל־הֶהָרִ֣ים דְּלָקֻ֔נוּ בַּמִּדְבָּ֖ר אָ֥רְבוּ לָֽנוּ׃ ס | 19 |
हम को दौड़ाने वाले आसमान के उक़ाबों से भी तेज़ हैं; उन्होंने पहाड़ों पर हमारा पीछा किया; वह वीराने में हमारी घात में बैठे।
ר֤וּחַ אַפֵּ֙ינוּ֙ מְשִׁ֣יחַ יְהוָ֔ה נִלְכַּ֖ד בִּשְׁחִיתוֹתָ֑ם אֲשֶׁ֣ר אָמַ֔רְנוּ בְּצִלּ֖וֹ נִֽחְיֶ֥ה בַגּוֹיִֽם׃ ס | 20 |
हमारी ज़िन्दगी का दम ख़ुदावन्द का मम्सूह, उनके गढ़ों में गिरफ़्तार हो गया; जिसकी वजह हम कहते थे, कि उसके साये तले हम क़ौमों के बीच ज़िन्दगी बसर करेंगे।
שִׂ֤ישִׂי וְשִׂמְחִי֙ בַּת־אֱד֔וֹם יוֹשֶׁ֖בֶת בְּאֶ֣רֶץ ע֑וּץ גַּם־עָלַ֙יִךְ֙ תַּעֲבָר־כּ֔וֹס תִּשְׁכְּרִ֖י וְתִתְעָרִֽי׃ ס | 21 |
ऐ दुख़्तर — ए — अदोम, जो 'ऊज़ की सरज़मीन में बसती है, ख़ुश — और — ख़ुर्रम हो; ये प्याला तुझ तक भी पहुँचेगा; तू मस्त और बरहना हो जाएगी।
תַּם־עֲוֹנֵךְ֙ בַּת־צִיּ֔וֹן לֹ֥א יוֹסִ֖יף לְהַגְלוֹתֵ֑ךְ פָּקַ֤ד עֲוֹנֵךְ֙ בַּת־אֱד֔וֹם גִּלָּ֖ה עַל־חַטֹּאתָֽיִךְ׃ פ | 22 |
ऐ दुख़्तर — ए — सिय्यून, तेरी बदकिरदारी की सज़ा तमाम हुई; वह मुझे फिर ग़ुलाम करके नहीं ले जाएगा; ऐ दुख़्तर — ए — अदोम, वह तेरी बदकिरदारी की सज़ा देगा; वह तेरे गुनाह वाश करेगा।