< אֵיכָה 2 >
אֵיכָה֩ יָעִ֨יב בְּאַפּ֤וֹ ׀ אֲדֹנָי֙ אֶת־בַּת־צִיּ֔וֹן הִשְׁלִ֤יךְ מִשָּׁמַ֙יִם֙ אֶ֔רֶץ תִּפְאֶ֖רֶת יִשְׂרָאֵ֑ל וְלֹא־זָכַ֥ר הֲדֹם־רַגְלָ֖יו בְּי֥וֹם אַפּֽוֹ׃ ס | 1 |
ख़ुदावन्द ने अपने क़हर में सिय्यून की बेटी को कैसे बादल से छिपा दिया! उसने इस्राईल की खू़बसूरती को आसमान से ज़मीन पर गिरा दिया, और अपने ग़ज़ब के दिन भी अपने पैरों की चौकी को याद न किया।
בִּלַּ֨ע אֲדֹנָ֜י וְלֹ֣א חָמַ֗ל אֵ֚ת כָּל־נְא֣וֹת יַעֲקֹ֔ב הָרַ֧ס בְּעֶבְרָת֛וֹ מִבְצְרֵ֥י בַת־יְהוּדָ֖ה הִגִּ֣יעַ לָאָ֑רֶץ חִלֵּ֥ל מַמְלָכָ֖ה וְשָׂרֶֽיהָ׃ ס | 2 |
ख़ुदावन्द ने या'क़ूब के तमाम घर हलाक किए, और रहम न किया; उसने अपने क़हर में यहूदाह की बेटी के तमाम क़िले' गिराकर ख़ाक में मिला दिए उसने मुल्कों और उसके हाकिमों को नापाक ठहराया।
גָּדַ֣ע בָּֽחֳרִי אַ֗ף כֹּ֚ל קֶ֣רֶן יִשְׂרָאֵ֔ל הֵשִׁ֥יב אָח֛וֹר יְמִינ֖וֹ מִפְּנֵ֣י אוֹיֵ֑ב וַיִּבְעַ֤ר בְּיַעֲקֹב֙ כְּאֵ֣שׁ לֶֽהָבָ֔ה אָכְלָ֖ה סָבִֽיב׃ ס | 3 |
उसने बड़े ग़ज़ब में इस्राईल का सींग बिल्कुल काट डाला; उसने दुश्मन के सामने से दहना हाथ खींच लिया; और उसने जलाने वाली आग की तरह, जो चारों तरफ़ ख़ाक करती है, या'कू़ब को जला दिया।
דָּרַ֨ךְ קַשְׁתּ֜וֹ כְּאוֹיֵ֗ב נִצָּ֤ב יְמִינוֹ֙ כְּצָ֔ר וַֽיַּהֲרֹ֔ג כֹּ֖ל מַחֲמַדֵּי־עָ֑יִן בְּאֹ֙הֶל֙ בַּת־צִיּ֔וֹן שָׁפַ֥ךְ כָּאֵ֖שׁ חֲמָתֽוֹ׃ ס | 4 |
उसने दुश्मन की तरह कमान खींची, मुख़ालिफ़ की तरह दहना हाथ बढ़ाया, और सिय्यून की बेटी के खे़में में सब हसीनों को क़त्ल किया! उसने अपने क़हर की आग को उँडेल दिया।
הָיָ֨ה אֲדֹנָ֤י ׀ כְּאוֹיֵב֙ בִּלַּ֣ע יִשְׂרָאֵ֔ל בִּלַּע֙ כָּל־אַרְמְנוֹתֶ֔יהָ שִׁחֵ֖ת מִבְצָרָ֑יו וַיֶּ֙רֶב֙ בְּבַת־יְהוּדָ֔ה תַּאֲנִיָּ֖ה וַאֲנִיָּֽה׃ ס | 5 |
ख़ुदावन्द दुश्मन की तरह हो गया, वह इस्राईल को निगल गया, वह उसके तमाम महलों को निगल गया, उसने उसके क़िले' मिस्मार कर दिए, और उसने दुख़्तर — ए — यहूदाह में मातम — ओ नौहा बहुतायत से कर दिया।
וַיַּחְמֹ֤ס כַּגַּן֙ שֻׂכּ֔וֹ שִׁחֵ֖ת מוֹעֲד֑וֹ שִׁכַּ֨ח יְהוָ֤ה ׀ בְּצִיּוֹן֙ מוֹעֵ֣ד וְשַׁבָּ֔ת וַיִּנְאַ֥ץ בְּזַֽעַם־אַפּ֖וֹ מֶ֥לֶךְ וְכֹהֵֽן׃ ס | 6 |
और उसने अपने घर को एक बार में ही बर्बाद कर दिया, गोया ख़ैमा — ए — बाग़ था; और अपने मजमे' के मकान को बर्बाद कर दिया; ख़ुदावन्द ने मुक़द्दस 'ईदों और सबतों को सिय्यून से फ़रामोश करा दिया, और अपने क़हर के जोश में बादशाह और काहिन को ज़लील किया।
זָנַ֨ח אֲדֹנָ֤י ׀ מִזְבְּחוֹ֙ נִאֵ֣ר מִקְדָּשׁ֔וֹ הִסְגִּיר֙ בְּיַד־אוֹיֵ֔ב חוֹמֹ֖ת אַרְמְנוֹתֶ֑יהָ ק֛וֹל נָתְנ֥וּ בְּבֵית־יְהוָ֖ה כְּי֥וֹם מוֹעֵֽד׃ ס | 7 |
ख़ुदावन्द ने अपने मज़बह को रद्द किया, उसने अपने मक़दिस से नफ़रत की, उसके महलों की दीवारों को दुश्मन के हवाले कर दिया; उन्होंने ख़ुदावन्द के घर में ऐसा शोर मचाया, जैसा 'ईद के दिन।
חָשַׁ֨ב יְהוָ֤ה ׀ לְהַשְׁחִית֙ חוֹמַ֣ת בַּת־צִיּ֔וֹן נָ֣טָה קָ֔ו לֹא־הֵשִׁ֥יב יָד֖וֹ מִבַּלֵּ֑עַ וַיַּֽאֲבֶל־חֵ֥ל וְחוֹמָ֖ה יַחְדָּ֥ו אֻמְלָֽלוּ׃ ס | 8 |
ख़ुदावन्द ने दुख़्तर — ए — सिय्यून की दीवार गिराने का इरादा किया है; उसने डोरी डाली है, और बर्बाद करने से दस्तबरदार नहीं हुआ; उसने फ़सील और दीवार को मग़मूम किया; वह एक साथ मातम करती हैं।
טָבְע֤וּ בָאָ֙רֶץ֙ שְׁעָרֶ֔יהָ אִבַּ֥ד וְשִׁבַּ֖ר בְּרִיחֶ֑יהָ מַלְכָּ֨הּ וְשָׂרֶ֤יהָ בַגּוֹיִם֙ אֵ֣ין תּוֹרָ֔ה גַּם־נְבִיאֶ֕יהָ לֹא־מָצְא֥וּ חָז֖וֹן מֵיְהוָֽה׃ ס | 9 |
उसके दरवाज़े ज़मीन में गर्क़ हो गए; उसने उसके बेन्डों को तोड़कर बर्बाद कर दिया; उसके बादशाह और उमरा बे — शरी'अत क़ौमों में हैं; उसके नबी भी ख़ुदावन्द की तरफ़ से कोई ख़्वाब नहीं देखते।
יֵשְׁב֨וּ לָאָ֤רֶץ יִדְּמוּ֙ זִקְנֵ֣י בַת־צִיּ֔וֹן הֶֽעֱל֤וּ עָפָר֙ עַל־רֹאשָׁ֔ם חָגְר֖וּ שַׂקִּ֑ים הוֹרִ֤ידוּ לָאָ֙רֶץ֙ רֹאשָׁ֔ן בְּתוּלֹ֖ת יְרוּשָׁלִָֽם׃ ס | 10 |
दुख़्तर — ए — सिय्यून के बुज़ुर्ग ख़ाक नशीन और ख़ामोश हैं; वह अपने सिरों पर ख़ाक डालते और टाट ओढ़ते हैं; येरूशलेम की कुँवारियाँ ज़मीन पर सिर झुकाए हैं।
כָּל֨וּ בַדְּמָע֤וֹת עֵינַי֙ חֳמַרְמְר֣וּ מֵעַ֔י נִשְׁפַּ֤ךְ לָאָ֙רֶץ֙ כְּבֵדִ֔י עַל־שֶׁ֖בֶר בַּת־עַמִּ֑י בֵּֽעָטֵ֤ף עוֹלֵל֙ וְיוֹנֵ֔ק בִּרְחֹב֖וֹת קִרְיָֽה׃ ס | 11 |
मेरी आँखें रोते — रोते धुंदला गईं, मेरे अन्दर पेच — ओ — ताब है, मेरी दुख़्तर — ए — क़ौम की बर्बादी के ज़रिए' मेरा कलेजा निकल आया; क्यूँकि छोटे बच्चे और दूध पीने वाले शहर की गलियों में बेहोश हैं।
לְאִמֹּתָם֙ יֹֽאמְר֔וּ אַיֵּ֖ה דָּגָ֣ן וָיָ֑יִן בְּהִֽתְעַטְּפָ֤ם כֶּֽחָלָל֙ בִּרְחֹב֣וֹת עִ֔יר בְּהִשְׁתַּפֵּ֣ךְ נַפְשָׁ֔ם אֶל־חֵ֖יק אִמֹּתָֽם׃ ס | 12 |
जब वह शहर की गलियों में के ज़ख्मियों की तरह ग़श खाते, और जब अपनी माँओं की गोद में जाँ बलब होते हैं; तो उनसे कहते हैं, कि ग़ल्ला और मय कहाँ है?
מָֽה־אֲעִידֵ֞ךְ מָ֣ה אֲדַמֶּה־לָּ֗ךְ הַבַּת֙ יְר֣וּשָׁלִַ֔ם מָ֤ה אַשְׁוֶה־לָּךְ֙ וַאֲנַֽחֲמֵ֔ךְ בְּתוּלַ֖ת בַּת־צִיּ֑וֹן כִּֽי־גָד֥וֹל כַּיָּ֛ם שִׁבְרֵ֖ךְ מִ֥י יִרְפָּא־לָֽךְ׃ ס | 13 |
ऐ दुख़्तर — ए — येरूशलेम, मैं तुझे क्या नसीहत करूँ, और किससे मिसाल दूँ? ऐ कुँवारी दुख्त़र — ए — सिय्यून, तुझे किस की तरह जान कर तसल्ली दूँ? क्यूँकि तेरा ज़ख़्म समुन्दर सा बड़ा है; तुझे कौन शिफ़ा देगा?
נְבִיאַ֗יִךְ חָ֤זוּ לָךְ֙ שָׁ֣וְא וְתָפֵ֔ל וְלֹֽא־גִלּ֥וּ עַל־עֲוֹנֵ֖ךְ לְהָשִׁ֣יב שְׁבוּתֵ֑ךְ וַיֶּ֣חֱזוּ לָ֔ךְ מַשְׂא֥וֹת שָׁ֖וְא וּמַדּוּחִֽים׃ ס | 14 |
तेरे नबियों ने तेरे लिए, बातिल और बेहूदा ख़्वाब देखे: और तेरी बदकिरदारी ज़ाहिर न की, ताकि तुझे ग़ुलामी से वापस लाते: बल्कि तेरे लिए झूटे पैग़ाम और जिलावतनी के सामान देखे।
סָֽפְק֨וּ עָלַ֤יִךְ כַּפַּ֙יִם֙ כָּל־עֹ֣בְרֵי דֶ֔רֶךְ שָֽׁרְקוּ֙ וַיָּנִ֣עוּ רֹאשָׁ֔ם עַל־בַּ֖ת יְרוּשָׁלִָ֑ם הֲזֹ֣את הָעִ֗יר שֶׁיֹּֽאמְרוּ֙ כְּלִ֣ילַת יֹ֔פִי מָשׂ֖וֹשׂ לְכָל־הָאָֽרֶץ׃ ס | 15 |
सब आने जानेवाले तुझ पर तालियाँ बजाते हैं; वह दुख़्तर — ए — येरूशलेम पर सुसकारते और सिर हिलाते हैं, के क्या, ये वही शहर है, जिसे लोग कमाल — ए — हुस्न और फ़रहत — ए — जहाँ कहते थे?
פָּצ֨וּ עָלַ֤יִךְ פִּיהֶם֙ כָּל־א֣וֹיְבַ֔יִךְ שָֽׁרְקוּ֙ וַיַּֽחַרְקוּ־שֵׁ֔ן אָמְר֖וּ בִּלָּ֑עְנוּ אַ֣ךְ זֶ֥ה הַיּ֛וֹם שֶׁקִּוִּינֻ֖הוּ מָצָ֥אנוּ רָאִֽינוּ׃ ס | 16 |
तेरे सब दुश्मनों ने तुझ पर मुँह पसारा है; वह सुसकारते और दाँत पीसते हैं; वो कहते हैं, हम उसे निगल गए; बेशक हम इसी दिन के मुन्तज़िर थे; इसलिए आ पहुँचा, और हम ने देख लिया
עָשָׂ֨ה יְהוָ֜ה אֲשֶׁ֣ר זָמָ֗ם בִּצַּ֤ע אֶמְרָתוֹ֙ אֲשֶׁ֣ר צִוָּ֣ה מִֽימֵי־קֶ֔דֶם הָרַ֖ס וְלֹ֣א חָמָ֑ל וַיְשַׂמַּ֤ח עָלַ֙יִךְ֙ אוֹיֵ֔ב הֵרִ֖ים קֶ֥רֶן צָרָֽיִךְ׃ ס | 17 |
ख़ुदावन्द ने जो तय किया वही किया; उसने अपने कलाम को, जो पुराने दिनों में फ़रमाया था, पूरा किया; उसने गिरा दिया, और रहम न किया; और उसने दुश्मन को तुझ पर शादमान किया, उसने तेरे मुख़ालिफ़ों का सींग बलन्द किया।
צָעַ֥ק לִבָּ֖ם אֶל־אֲדֹנָ֑י חוֹמַ֣ת בַּת־צִ֠יּוֹן הוֹרִ֨ידִי כַנַּ֤חַל דִּמְעָה֙ יוֹמָ֣ם וָלַ֔יְלָה אַֽל־תִּתְּנִ֤י פוּגַת֙ לָ֔ךְ אַל־תִּדֹּ֖ם בַּת־עֵינֵֽךְ׃ ס | 18 |
उनके दिलों ने ख़ुदावन्द से फ़रियाद की, ऐ दुख़्तर — ए — सिय्यून की फ़सील, शब — ओ — रोज़ ऑसू नहर की तरह जारी रहें; तू बिल्कुल आराम न ले; तेरी आँख की पुतली आराम न करे।
ק֣וּמִי ׀ רֹ֣נִּי בַלַּ֗יְלָה לְרֹאשׁ֙ אַשְׁמֻר֔וֹת שִׁפְכִ֤י כַמַּ֙יִם֙ לִבֵּ֔ךְ נֹ֖כַח פְּנֵ֣י אֲדֹנָ֑י שְׂאִ֧י אֵלָ֣יו כַּפַּ֗יִךְ עַל־נֶ֙פֶשׁ֙ עֽוֹלָלַ֔יִךְ הָעֲטוּפִ֥ים בְּרָעָ֖ב בְּרֹ֥אשׁ כָּל־חוּצֽוֹת׃ ס | 19 |
उठ रात को पहरों के शुरू' में फ़रियाद कर; ख़ुदावन्द के हुजू़र अपना दिल पानी की तरह उँडेल दे; अपने बच्चों की ज़िन्दगी के लिए, जो सब गलियों में भूक से बेहोश पड़े हैं, उसके सामने में दस्त — ए — दु'आ बलन्द कर।
רְאֵ֤ה יְהוָה֙ וְֽהַבִּ֔יטָה לְמִ֖י עוֹלַ֣לְתָּ כֹּ֑ה אִם־תֹּאכַ֨לְנָה נָשִׁ֤ים פִּרְיָם֙ עֹלֲלֵ֣י טִפֻּחִ֔ים אִם־יֵהָרֵ֛ג בְּמִקְדַּ֥שׁ אֲדֹנָ֖י כֹּהֵ֥ן וְנָבִֽיא׃ ס | 20 |
ऐ ख़ुदावन्द, नज़र कर, और देख, कि तू ने किससे ये किया! क्या 'औरतें अपने फल या'नी अपने लाडले बच्चों को खाएँ? क्या काहिन और नबी ख़ुदावन्द के मक़्दिस में क़त्ल किए जाएँ?
שָׁכְב֨וּ לָאָ֤רֶץ חוּצוֹת֙ נַ֣עַר וְזָקֵ֔ן בְּתוּלֹתַ֥י וּבַחוּרַ֖י נָפְל֣וּ בֶחָ֑רֶב הָרַ֙גְתָּ֙ בְּי֣וֹם אַפֶּ֔ךָ טָבַ֖חְתָּ לֹ֥א חָמָֽלְתָּ׃ ס | 21 |
बुज़ुर्ग — ओ — जवान गलियों में ख़ाक पर पड़े हैं; मेरी कुँवारियाँ और मेरे जवान तलवार से क़त्ल हुए; तू ने अपने क़हर के दिन उनको क़त्ल किया; तूने उनको काट डाला, और रहम न किया।
תִּקְרָא֩ כְי֨וֹם מוֹעֵ֤ד מְגוּרַי֙ מִסָּבִ֔יב וְלֹ֥א הָיָ֛ה בְּי֥וֹם אַף־יְהוָ֖ה פָּלִ֣יט וְשָׂרִ֑יד אֲשֶׁר־טִפַּ֥חְתִּי וְרִבִּ֖יתִי אֹיְבִ֥י כִלָּֽם׃ פ | 22 |
तूने मेरी दहशत को हर तरफ से गोया 'ईद के दिन बुला लिया, और ख़ुदावन्द के क़हर के दिन न कोई बचा, न बाक़ी रहा; जिनको मैंने गोद में खिलाया और पला पोसा, मेरे दुश्मनों ने फ़ना कर दिया।