< אִיּוֹב 37 >

אַף־לְ֭זֹאת יֶחֱרַ֣ד לִבִּ֑י וְ֝יִתַּ֗ר מִמְּקוֹמֽוֹ׃ 1
इस बात से भी मेरा दिल काँपता है और अपनी जगह से उछल पड़ता है।
שִׁמְע֤וּ שָׁמ֣וֹעַ בְּרֹ֣גֶז קֹל֑וֹ וְ֝הֶ֗גֶה מִפִּ֥יו יֵצֵֽא׃ 2
ज़रा उसके बोलने की आवाज़ को सुनो, और उस ज़मज़मा को जो उसके मुँह से निकलता है।
תַּֽחַת־כָּל־הַשָּׁמַ֥יִם יִשְׁרֵ֑הוּ וְ֝אוֹר֗וֹ עַל־כַּנְפ֥וֹת הָאָֽרֶץ׃ 3
वह उसे सारे आसमान के नीचे, और अपनी बिजली को ज़मीन की इन्तिहा तक भेजता है।
אַחֲרָ֤יו ׀ יִשְׁאַג־ק֗וֹל יַ֭רְעֵם בְּק֣וֹל גְּאוֹנ֑וֹ וְלֹ֥א יְ֝עַקְּבֵ֗ם כִּֽי־יִשָּׁמַ֥ע קוֹלֽוֹ׃ 4
इसके बाद कड़क की आवाज़ आती है; वह अपने जलाल की आवाज़ से गरजता है, और जब उसकी आवाज़ सुनाई देती है तो वह उसे रोकता है।
יַרְעֵ֤ם אֵ֣ל בְּ֭קוֹלוֹ נִפְלָא֑וֹת עֹשֶׂ֥ה גְ֝דֹל֗וֹת וְלֹ֣א נֵדָֽע׃ 5
ख़ुदा 'अजीब तौर पर अपनी आवाज़ से गरजता है। वह बड़े बड़े काम करता है जिनको हम समझ नहीं सकते।
כִּ֤י לַשֶּׁ֨לַג ׀ יֹאמַ֗ר הֱוֵ֫א אָ֥רֶץ וְגֶ֥שֶׁם מָטָ֑ר וְ֝גֶ֗שֶׁם מִטְר֥וֹת עֻזּֽוֹ׃ 6
क्यूँकि वह बर्फ़ को फ़रमाता है कि तू ज़मीन पर गिर, इसी तरह वह बारिश से और मूसलाधार मेह से कहता है।
בְּיַד־כָּל־אָדָ֥ם יַחְתּ֑וֹם לָ֝דַ֗עַת כָּל־אַנְשֵׁ֥י מַעֲשֵֽׂהוּ׃ 7
वह हर आदमी के हाथ पर मुहर कर देता है, ताकि सब लोग जिनको उसने बनाया है, इस बात को जान लें।
וַתָּבֹ֣א חַיָּ֣ה בְמוֹ־אָ֑רֶב וּבִמְע֖וֹנֹתֶ֣יהָ תִשְׁכֹּֽן׃ 8
तब दरिन्दे ग़ारों में घुस जाते, और अपनी अपनी माँद में पड़े रहते हैं।
מִן־הַ֭חֶדֶר תָּב֣וֹא סוּפָ֑ה וּֽמִמְּזָרִ֥ים קָרָֽה׃ 9
ऑधी दख्खिन की कोठरी से, और सर्दी उत्तर से आती है।
מִנִּשְׁמַת־אֵ֥ל יִתֶּן־קָ֑רַח וְרֹ֖חַב מַ֣יִם בְּמוּצָֽק׃ 10
ख़ुदा के दम से बर्फ़ जम जाती है, और पानी का फैलाव तंग हो जाता है।
אַף־בְּ֭רִי יַטְרִ֣יחַ עָ֑ב יָ֝פִ֗יץ עֲנַ֣ן אוֹרֽוֹ׃ 11
बल्कि वह घटा पर नमी को लादता है, और अपने बिजली वाले बादलों को दूर तक फैलाता है।
וְה֤וּא מְסִבּ֨וֹת ׀ מִתְהַפֵּ֣ךְ בְּתַחְבּוּלֹתָ֣יו לְפָעֳלָ֑ם כֹּ֖ל אֲשֶׁ֥ר יְצַוֵּ֓ם ׀ עַל־פְּנֵ֖י תֵבֵ֣ל אָֽרְצָה׃ 12
उसी की हिदायत से वह इधर उधर फिराए जाते हैं, ताकि जो कुछ वह उन्हें फ़रमाए, उसी को वह दुनिया के आबाद हिस्से पर अंजाम दें।
אִם־לְשֵׁ֥בֶט אִם־לְאַרְצ֑וֹ אִם־לְ֝חֶ֗סֶד יַמְצִאֵֽהוּ׃ 13
चाहे तम्बीह के लिए या अपने मुल्क के लिए, या रहमत के लिए वह उसे भेजे।
הַאֲזִ֣ינָה זֹּ֣את אִיּ֑וֹב עֲ֝מֹ֗ד וְהִתְבּוֹנֵ֤ן ׀ נִפְלְא֬וֹת אֵֽל׃ 14
“ऐ अय्यूब, इसको सुन ले; चुपचाप खड़ा रह, और ख़ुदा के हैरतअंगेज़ कामों पर ग़ौर कर।
הֲ֭תֵדַע בְּשׂוּם־אֱל֣וֹהַּ עֲלֵיהֶ֑ם וְ֝הוֹפִ֗יעַ א֣וֹר עֲנָנֽוֹ׃ 15
क्या तुझे मा'लूम है कि ख़ुदा क्यूँकर उन्हें ताकीद करता है और अपने बादल की बिजली को चमकाता है?
הֲ֭תֵדַע עַל־מִפְלְשֵׂי־עָ֑ב מִ֝פְלְא֗וֹת תְּמִ֣ים דֵּעִֽים׃ 16
क्या तू बादलों के मुवाज़ने से वाक़िफ़ है? यह उसी के हैरतअंगेज़ काम हैं जो 'इल्म में कामिल है।
אֲשֶׁר־בְּגָדֶ֥יךָ חַמִּ֑ים בְּהַשְׁקִ֥ט אֶ֝֗רֶץ מִדָּרֽוֹם׃ 17
जब ज़मीन पर दख्खिनी हवा की वजह से सन्नाटा होता है तो तेरे कपड़े क्यूँ गर्म हो जाते हैं?
תַּרְקִ֣יעַ עִ֭מּוֹ לִשְׁחָקִ֑ים חֲ֝זָקִ֗ים כִּרְאִ֥י מוּצָֽק׃ 18
क्या तू उसके साथ फ़लक को फैला सकता है जो ढले हुए आइने की तरह मज़बूत है?
ה֭וֹדִיעֵנוּ מַה־נֹּ֣אמַר ל֑וֹ לֹ֥א־נַ֝עֲרֹ֗ךְ מִפְּנֵי־חֹֽשֶׁךְ׃ 19
हम को सिखा कि हम उस से क्या कहें, क्यूँकि अंधेरे की वजह से हम अपनी तक़रीर को दुरुस्त नहीं कर सकते?
הַֽיְסֻפַּר־ל֭וֹ כִּ֣י אֲדַבֵּ֑ר אִֽם־אָ֥מַר אִ֝֗ישׁ כִּ֣י יְבֻלָּֽע׃ 20
क्या उसको बताया जाए कि मैं बोलना चाहता हूँ? या क्या कोई आदमी यह ख़्वाहिश करे कि वह निगल लिया जाए?
וְעַתָּ֤ה ׀ לֹ֘א רָ֤אוּ א֗וֹר בָּהִ֣יר ה֭וּא בַּשְּׁחָקִ֑ים וְר֥וּחַ עָ֝בְרָ֗ה וַֽתְּטַהֲרֵֽם׃ 21
“अभी तो आदमी उस नूर को नहीं देखते जो असमानों पर रोशन है, लेकिन हवा चलती है और उन्हें साफ़ कर देती है।
מִ֭צָּפוֹן זָהָ֣ב יֶֽאֱתֶ֑ה עַל־אֱ֝ל֗וֹהַּ נ֣וֹרָא הֽוֹד׃ 22
दख्खिनी से सुनहरी रोशनी आती है, ख़ुदा मुहीब शौकत से मुलब्बस है।
שַׁדַּ֣י לֹֽא־מְ֭צָאנֻהוּ שַׂגִּיא־כֹ֑חַ וּמִשְׁפָּ֥ט וְרֹב־צְ֝דָקָ֗ה לֹ֣א יְעַנֶּֽה׃ 23
हम क़ादिर — ए — मुतलक़ को पा नहीं सकते, वह क़ुदरत और 'अद्ल में शानदार है, और इन्साफ़ की फ़िरावानी में ज़ुल्म न करेगा।
לָ֭כֵן יְרֵא֣וּהוּ אֲנָשִׁ֑ים לֹֽא־יִ֝רְאֶ֗ה כָּל־חַכְמֵי־לֵֽב׃ פ 24
इसीलिए लोग उससे डरते हैं; वह अक़्लमन्ददिलों की परवाह नहीं करता।”

< אִיּוֹב 37 >