< אִיּוֹב 35 >

וַיַּ֥עַן אֱלִיה֗וּ וַיֹּאמַֽר׃ 1
एलिहू ने और कहा:
הֲ֭זֹאת חָשַׁ֣בְתָּ לְמִשְׁפָּ֑ט אָ֝מַ֗רְתָּ צִדְקִ֥י מֵאֵֽל׃ 2
“क्या आप यह न्याय समझते हैं? आप कहते हैं, ‘मेरा धर्म परमेश्वर के धर्म से ऊपर है?’
כִּֽי־תֹ֭אמַר מַה־יִּסְכָּן־לָ֑ךְ מָֽה־אֹ֝עִ֗יל מֵֽחַטָּאתִֽי׃ 3
क्योंकि आप तो यही कहेंगे, ‘आप पर मेरे पाप का क्या प्रभाव पड़ता है, और पाप न करने के द्वारा मैंने क्या प्राप्‍त किया है?’
אֲ֭נִי אֲשִֽׁיבְךָ֣ מִלִּ֑ין וְֽאֶת־רֵעֶ֥יךָ עִמָּֽךְ׃ 4
“इसका उत्तर आपको मैं दूंगा, आपको तथा आपके मित्रों को.
הַבֵּ֣ט שָׁמַ֣יִם וּרְאֵ֑ה וְשׁ֥וּר שְׁ֝חָקִ֗ים גָּבְה֥וּ מִמֶּֽךָּ׃ 5
आकाश की ओर दृष्टि उठाओ; मेघों का अवलोकन करो, वे तुमसे ऊपर हैं.
אִם־חָ֭טָאתָ מַה־תִּפְעָל־בּ֑וֹ וְרַבּ֥וּ פְ֝שָׁעֶ֗יךָ מַה־תַּעֲשֶׂה־לּֽוֹ׃ 6
जब आप पाप कर बैठते हैं, इससे हानि परमेश्वर की कैसी होती है? यदि आपके अत्याचारों की संख्या अधिक हो जाती, क्या परमेश्वर पर इसका कोई प्रभाव होता है?
אִם־צָ֭דַקְתָּ מַה־תִּתֶּן־ל֑וֹ א֥וֹ מַה־מִיָּדְךָ֥ יִקָּֽח׃ 7
यदि आप धर्मी हैं, आप परमेश्वर के लिए कौन सा उपकार कर देंगे, अथवा आपके इस कृत्य से आप उनके लिए कौन सा लाभ हासिल कर देंगे?
לְאִישׁ־כָּמ֥וֹךָ רִשְׁעֶ֑ךָ וּלְבֶן־אָ֝דָ֗ם צִדְקָתֶֽךָ׃ 8
आपकी दुष्चरित्रता आप जैसे व्यक्ति पर ही शोभा देती है, तथा आपकी धार्मिकता मानवता के लिए योग देती है.
מֵ֭רֹב עֲשׁוּקִ֣ים יַזְעִ֑יקוּ יְשַׁוְּע֖וּ מִזְּר֣וֹעַ רַבִּֽים׃ 9
“अत्याचारों में वृद्धि होने पर मनुष्य कराहने लगते हैं; वे बुरे काम के लिए किसी शूर की खोज करते हैं.
וְֽלֹא־אָמַ֗ר אַ֭יֵּה אֱל֣וֹהַּ עֹשָׂ֑י נֹתֵ֖ן זְמִר֣וֹת בַּלָּֽיְלָה׃ 10
किंतु किसी का ध्यान इस ओर नहीं जाता ‘कहां हैं परमेश्वर, मेरा रचयिता, जो रात में गीत देते हैं,
מַ֭לְּפֵנוּ מִבַּהֲמ֣וֹת אָ֑רֶץ וּמֵע֖וֹף הַשָּׁמַ֣יִם יְחַכְּמֵֽנוּ׃ 11
रचयिता परमेश्वर ही हैं, जिनकी शिक्षा हमें पशु पक्षियों से अधिक विद्वत्ता देती है, तथा हमें आकाश के पक्षियों से अधिक बुद्धिमान बना देती है.’
שָׁ֣ם יִ֭צְעֲקוּ וְלֹ֣א יַעֲנֶ֑ה מִ֝פְּנֵ֗י גְּא֣וֹן רָעִֽים׃ 12
वहां वे सहायता की पुकार देते हैं, किंतु परमेश्वर उनकी ओर ध्यान नहीं देते, क्योंकि वे दुर्जन अपने अहंकार में डूबे हुए रहते हैं.
אַךְ־שָׁ֭וְא לֹא־יִשְׁמַ֥ע ׀ אֵ֑ל וְ֝שַׁדַּ֗י לֹ֣א יְשׁוּרֶֽנָּה׃ 13
यह निर्विवाद सत्य है कि परमेश्वर निरर्थक पुकार को नहीं सुनते; सर्वशक्तिमान इस ओर ध्यान देना भी उपयुक्त नहीं समझते.
אַ֣ף כִּֽי־תֹ֭אמַר לֹ֣א תְשׁוּרֶ֑נּוּ דִּ֥ין לְ֝פָנָ֗יו וּתְח֥וֹלֵֽל לֽוֹ׃ 14
महोदय अय्योब, आप कह रहे थे, आप परमेश्वर को नहीं देख सकते, अनिवार्य है कि आप परमेश्वर के समय की प्रतीक्षा करें. आपका पक्ष उनके सामने रखा जा चुका है.
וְעַתָּ֗ה כִּי־אַ֭יִן פָּקַ֣ד אַפּ֑וֹ וְלֹֽא־יָדַ֖ע בַּפַּ֣שׁ מְאֹֽד׃ 15
इसके अतिरिक्त, परमेश्वर क्रोध कर तुम्हें दण्ड नहीं देता, और न ही वह अभिमान की ओर ध्यान देते हैं,
וְ֭אִיּוֹב הֶ֣בֶל יִפְצֶה־פִּ֑יהוּ בִּבְלִי־דַ֝֗עַת מִלִּ֥ין יַכְבִּֽר׃ פ 16
महोदय अय्योब, इसलिये व्यर्थ है आपका इस प्रकार बातें करना; आप बिना किसी ज्ञान के अपने उद्गार पर उद्गार किए जा रहे हैं.”

< אִיּוֹב 35 >