< אִיּוֹב 27 >
וַיֹּ֣סֶף אִ֭יּוֹב שְׂאֵ֥ת מְשָׁל֗וֹ וַיֹּאמַֽר׃ | 1 |
और अय्यूब ने फिर अपनी मिसाल शुरू' की और कहने लगा,
חַי־אֵ֭ל הֵסִ֣יר מִשְׁפָּטִ֑י וְ֝שַׁדַּ֗י הֵמַ֥ר נַפְשִֽׁי׃ | 2 |
“ज़िन्दा ख़ुदा की क़सम, जिसने मेरा हक़ छीन लिया; और क़ादिर — ए — मुतलक़ की क़सम, जिसने मेरी जान को दुख दिया है।
כִּֽי־כָל־ע֣וֹד נִשְׁמָתִ֣י בִ֑י וְר֖וּחַ אֱל֣וֹהַּ בְּאַפִּֽי׃ | 3 |
क्यूँकि मेरी जान मुझ में अब तक सालिम है और ख़ुदा का रूह मेरे नथनों में है।
אִם־תְּדַבֵּ֣רְנָה שְׂפָתַ֣י עַוְלָ֑ה וּ֝לְשׁוֹנִ֗י אִם־יֶהְגֶּ֥ה רְמִיָּֽה׃ | 4 |
यक़ीनन मेरे लब नारास्ती की बातें न कहेंगे, न मेरी ज़बान से फ़रेब की बात निकलेगी।
חָלִ֣ילָה לִּי֮ אִם־אַצְדִּ֪יק אֶ֫תְכֶ֥ם עַד־אֶגְוָ֑ע לֹא־אָסִ֖יר תֻּמָּתִ֣י מִמֶּֽנִּי׃ | 5 |
ख़ुदा न करे कि मैं तुम्हें रास्त ठहराऊँ, मैं मरते दम तक अपनी रास्ती को छोड़ूँगा।
בְּצִדְקָתִ֣י הֶ֭חֱזַקְתִּי וְלֹ֣א אַרְפֶּ֑הָ לֹֽא־יֶחֱרַ֥ף לְ֝בָבִ֗י מִיָּמָֽי׃ | 6 |
मैं अपनी सदाक़त पर क़ाईम हूँ और उसे न छोड़ूँगा, जब तक मेरी ज़िन्दगी है, मेरा दिल मुझे मुजरिम न ठहराएगा।
יְהִ֣י כְ֭רָשָׁע אֹ֣יְבִ֑י וּמִתְקוֹמְמִ֥י כְעַוָּֽל׃ | 7 |
“मेरा दुश्मन शरीरों की तरह हो, और मेरे ख़िलाफ़ उठने वाला नारास्तों की तरह।
כִּ֤י מַה־תִּקְוַ֣ת חָ֭נֵף כִּ֣י יִבְצָ֑ע כִּ֤י יֵ֖שֶׁל אֱל֣וֹהַּ נַפְשֽׁוֹ׃ | 8 |
क्यूँकि गो बे दीन दौलत हासिल कर ले तोभी उसकी क्या उम्मीद है? जब ख़ुदा उसकी जान ले ले,
הַֽ֭צַעֲקָתוֹ יִשְׁמַ֥ע ׀ אֵ֑ל כִּֽי־תָב֖וֹא עָלָ֣יו צָרָֽה׃ | 9 |
क्या ख़ुदा उसकी फ़रियाद सुनेगा, जब मुसीबत उस पर आए?
אִם־עַל־שַׁדַּ֥י יִתְעַנָּ֑ג יִקְרָ֖א אֱל֣וֹהַּ בְּכָל־עֵֽת׃ | 10 |
क्या वह क़ादिर — ए — मुतलक में ख़ुश रहेगा, और हर वक़्त ख़ुदा से दुआ करेगा?
אוֹרֶ֣ה אֶתְכֶ֣ם בְּיַד־אֵ֑ל אֲשֶׁ֥ר עִם־שַׁ֝דַּ֗י לֹ֣א אֲכַחֵֽד׃ | 11 |
मैं तुम्हें ख़ुदा के बर्ताव “की तालीम दूँगा, और क़ादिर — ए — मुतलक़ की बात न छिपाऊँगा।
הֵן־אַתֶּ֣ם כֻּלְּכֶ֣ם חֲזִיתֶ֑ם וְלָמָּה־זֶּ֝֗ה הֶ֣בֶל תֶּהְבָּֽלוּ׃ | 12 |
देखो, तुम सभों ने ख़ुद यह देख चुके हो, फिर तुम ख़ुद बीन कैसे हो गए।”
זֶ֤ה ׀ חֵֽלֶק־אָדָ֖ם רָשָׁ֥ע ׀ עִם־אֵ֑ל וְֽנַחֲלַ֥ת עָ֝רִיצִ֗ים מִשַּׁדַּ֥י יִקָּֽחוּ׃ | 13 |
“ख़ुदा की तरफ़ से शरीर आदमी का हिस्सा, और ज़ालिमों की मीरास जो वह क़ादिर — ए — मुतलक़ की तरफ़ से पाते हैं, यही है।
אִם־יִרְבּ֣וּ בָנָ֣יו לְמוֹ־חָ֑רֶב וְ֝צֶאֱצָאָ֗יו לֹ֣א יִשְׂבְּעוּ־לָֽחֶם׃ | 14 |
अगर उसके बच्चे बहुत हो जाएँ तो वह तलवार के लिए हैं, और उसकी औलाद रोटी से सेर न होगी।
שְׂ֭רִידָיו בַּמָּ֣וֶת יִקָּבֵ֑רוּ וְ֝אַלְמְנֹתָ֗יו לֹ֣א תִבְכֶּֽינָה׃ | 15 |
उसके बाक़ी लोग मर कर दफ़्न होंगे, और उसकी बेवाएँ नौहा न करेंगी।
אִם־יִצְבֹּ֣ר כֶּעָפָ֣ר כָּ֑סֶף וְ֝כַחֹ֗מֶר יָכִ֥ין מַלְבּֽוּשׁ׃ | 16 |
चाहे वह ख़ाक की तरह चाँदी जमा' कर ले, और कसरत से लिबास तैयार कर रख्खें
יָ֭כִין וְצַדִּ֣יק יִלְבָּ֑שׁ וְ֝כֶ֗סֶף נָקִ֥י יַחֲלֹֽק׃ | 17 |
वह तैयार कर ले, लेकिन जो रास्त हैं वह उनको पहनेंगे और जो बेगुनाह हैं वह उस चाँदी को बाँट लेंगे।
בָּנָ֣ה כָעָ֣שׁ בֵּית֑וֹ וּ֝כְסֻכָּ֗ה עָשָׂ֥ה נֹצֵֽר׃ | 18 |
उसने मकड़ी की तरह अपना घर बनाया, और उस झोंपड़ी की तरह जिसे रखवाला बनाता है।
עָשִׁ֣יר יִ֭שְׁכַּב וְלֹ֣א יֵאָסֵ֑ף עֵינָ֖יו פָּקַ֣ח וְאֵינֶֽנּוּ׃ | 19 |
वह लेटता है दौलतमन्द, लेकिन वह दफ़न न किया जाएगा। वह अपनी आँख खोलता है और वह है ही नहीं।
תַּשִּׂיגֵ֣הוּ כַ֭מַּיִם בַּלָּה֑וֹת לַ֝֗יְלָה גְּנָבַ֥תּוּ סוּפָֽה׃ | 20 |
दहशत उसे पानी की तरह आ लेती है; रात को तूफ़ान उसे उड़ा ले जाता है।
יִשָּׂאֵ֣הוּ קָדִ֣ים וְיֵלַ֑ךְ וִֽ֝ישָׂעֲרֵ֗הוּ מִמְּקֹמֽוֹ׃ | 21 |
पूरबी हवा उसे उड़ा ले जाती है, और वह जाता रहता है। वह उसे उसकी जगह से उखाड़ फेंकती है।
וְיַשְׁלֵ֣ךְ עָ֭לָיו וְלֹ֣א יַחְמֹ֑ל מִ֝יָּד֗וֹ בָּר֥וֹחַ יִבְרָֽח׃ | 22 |
क्यूँकि ख़ुदा उस पर बरसाएगा और छोड़ने का नहीं वह उसके हाथ से निकल भागना चाहेगा।
יִשְׂפֹּ֣ק עָלֵ֣ימוֹ כַפֵּ֑ימוֹ וְיִשְׁרֹ֥ק עָ֝לָ֗יו מִמְּקֹמֽוֹ׃ | 23 |
लोग उस पर तालियाँ बजाएँगे, और सुस्कार कर उसे उसकी जगह से निकाल देंगे।