< אִיּוֹב 21 >
וַיַּ֥עַן אִיּ֗וֹב וַיֹּאמַֽר׃ | 1 |
तब अय्यूब ने जवाब दिया,
שִׁמְע֣וּ שָׁ֭מוֹעַ מִלָּתִ֑י וּתְהִי־זֹ֝֗את תַּנְח֥וּמֹֽתֵיכֶֽם׃ | 2 |
ग़ौर से मेरी बात सुनो, और यही तुम्हारा तसल्ली देना हो।
שָׂ֭אוּנִי וְאָנֹכִ֣י אֲדַבֵּ֑ר וְאַחַ֖ר דַּבְּרִ֣י תַלְעִֽיג׃ | 3 |
मुझे इजाज़त दो तो मैं भी कुछ कहूँगा, और जब मैं कह चुकूँ तो ठठ्ठा मारलेना।
הֶ֭אָנֹכִי לְאָדָ֣ם שִׂיחִ֑י וְאִם־מַ֝דּ֗וּעַ לֹא־תִקְצַ֥ר רוּחִֽי׃ | 4 |
लेकिन मैं, क्या मेरी फ़रियाद इंसान से है? फिर मैं बेसब्री क्यूँ न करूँ?
פְּנוּ־אֵלַ֥י וְהָשַׁ֑מּוּ וְשִׂ֖ימוּ יָ֣ד עַל־פֶּֽה׃ | 5 |
मुझ पर ग़ौर करो और मुत'अजीब हो, और अपना हाथ अपने मुँह पर रखो।
וְאִם־זָכַ֥רְתִּי וְנִבְהָ֑לְתִּי וְאָחַ֥ז בְּ֝שָׂרִ֗י פַּלָּצֽוּת׃ | 6 |
जब मैं याद करता हूँ तो घबरा जाता हूँ, और मेरा जिस्म थर्रा उठता है।
מַדּ֣וּעַ רְשָׁעִ֣ים יִחְי֑וּ עָ֝תְק֗וּ גַּם־גָּ֥בְרוּ חָֽיִל׃ | 7 |
शरीर क्यूँ जीते रहते, उम्र रसीदा होते, बल्कि कु़व्वत में ज़बरदस्त होते हैं?
זַרְעָ֤ם נָכ֣וֹן לִפְנֵיהֶ֣ם עִמָּ֑ם וְ֝צֶאֱצָאֵיהֶ֗ם לְעֵינֵיהֶֽם׃ | 8 |
उनकी औलाद उनके साथ उनके देखते देखते, और उनकी नसल उनकी आँखों के सामने क़ाईम हो जाती है।
בָּתֵּיהֶ֣ם שָׁל֣וֹם מִפָּ֑חַד וְלֹ֤א שֵׁ֖בֶט אֱל֣וֹהַּ עֲלֵיהֶֽם׃ | 9 |
उनके घर डर से महफ़ूज़ हैं, और ख़ुदा की छड़ी उन पर नहीं है।
שׁוֹר֣וֹ עִ֭בַּר וְלֹ֣א יַגְעִ֑ל תְּפַלֵּ֥ט פָּ֝רָת֗וֹ וְלֹ֣א תְשַׁכֵּֽל׃ | 10 |
उनका साँड बरदार कर देता है और चूकता नहीं, उनकी गाय ब्याती है और अपना बच्चा नहीं गिराती।
יְשַׁלְּח֣וּ כַ֭צֹּאן עֲוִילֵיהֶ֑ם וְ֝יַלְדֵיהֶ֗ם יְרַקֵּדֽוּן׃ | 11 |
वह अपने छोटे छोटे बच्चों को रेवड़ की तरह बाहर भेजते हैं, और उनकी औलाद नाचती है।
יִ֭שְׂאוּ כְּתֹ֣ף וְכִנּ֑וֹר וְ֝יִשְׂמְח֗וּ לְק֣וֹל עוּגָֽב׃ | 12 |
वह ख़जरी और सितार के ताल पर गाते, और बाँसली की आवाज़ से ख़ुश होते हैं।
יְכַלּ֣וּ בַטּ֣וֹב יְמֵיהֶ֑ם וּ֝בְרֶ֗גַע שְׁא֣וֹל יֵחָֽתּוּ׃ (Sheol ) | 13 |
वह ख़ुशहाली में अपने दिन काटते, और दम के दम में पाताल में उतर जाते हैं। (Sheol )
וַיֹּאמְר֣וּ לָ֭אֵל ס֣וּר מִמֶּ֑נּוּ וְדַ֥עַת דְּ֝רָכֶ֗יךָ לֹ֣א חָפָֽצְנוּ׃ | 14 |
हालाँकि उन्होंने ख़ुदा से कहा था, कि 'हमारे पास से चला जा; क्यूँकि हम तेरी राहों के 'इल्म के ख़्वाहिशमन्द नहीं।
מַה־שַׁדַּ֥י כִּֽי־נַֽעַבְדֶ֑נּוּ וּמַה־נּ֝וֹעִ֗יל כִּ֣י נִפְגַּע־בּֽוֹ׃ | 15 |
क़ादिर — ए — मुतलक़ है क्या कि हम उसकी इबादत करें? और अगर हम उससे दुआ करें तो हमें क्या फ़ायदा होगा?
הֵ֤ן לֹ֣א בְיָדָ֣ם טוּבָ֑ם עֲצַ֥ת רְ֝שָׁעִ֗ים רָ֣חֲקָה מֶֽנִּי׃ | 16 |
देखो, उनकी इक़बालमन्दी उनके हाथ में नहीं है। शरीरों की मशवरत मुझ से दूर है।
כַּמָּ֤ה ׀ נֵר־רְשָׁ֘עִ֤ים יִדְעָ֗ךְ וְיָבֹ֣א עָלֵ֣ימוֹ אֵידָ֑ם חֲ֝בָלִ֗ים יְחַלֵּ֥ק בְּאַפּֽוֹ׃ | 17 |
कितनी बार शरीरों का चराग़ बुझ जाता है? और उनकी आफ़त उन पर आ पड़ती है? और ख़ुदा अपने ग़ज़ब में उन्हें ग़म पर ग़म देता है?
יִהְי֗וּ כְּתֶ֥בֶן לִפְנֵי־ר֑וּחַ וּ֝כְמֹ֗ץ גְּנָבַ֥תּוּ סוּפָֽה׃ | 18 |
और वह ऐसे हैं जैसे हवा के आगे डंठल, और जैसे भूसा जिसे आँधी उड़ा ले जाती है?
אֱל֗וֹהַּ יִצְפֹּן־לְבָנָ֥יו אוֹנ֑וֹ יְשַׁלֵּ֖ם אֵלָ֣יו וְיֵדָֽע׃ | 19 |
'ख़ुदा उसका गुनाह उसके बच्चों के लिए रख छोड़ता है, वह उसका बदला उसी को दे ताकि वह जान ले।
יִרְא֣וּ עֵינָ֣יו כִּיד֑וֹ וּמֵחֲמַ֖ת שַׁדַּ֣י יִשְׁתֶּֽה׃ | 20 |
उसकी हलाकत को उसी की आँखें देखें, और वह क़ादिर — ए — मुतलक के ग़ज़ब में से पिए।
כִּ֤י מַה־חֶפְצ֣וֹ בְּבֵית֣וֹ אַחֲרָ֑יו וּמִסְפַּ֖ר חֳדָשָׁ֣יו חֻצָּֽצוּ׃ | 21 |
क्यूँकि अपने बाद उसको अपने घराने से क्या ख़ुशी है, जब उसके महीनों का सिलसिला ही काट डाला गया?
הַלְאֵ֥ל יְלַמֶּד־דָּ֑עַת וְ֝ה֗וּא רָמִ֥ים יִשְׁפּֽוֹט׃ | 22 |
क्या कोई ख़ुदा को 'इल्म सिखाएगा? जिस हाल की वह सरफ़राज़ों की 'अदालत करता है।
זֶ֗ה יָ֭מוּת בְּעֶ֣צֶם תֻּמּ֑וֹ כֻּ֝לּ֗וֹ שַׁלְאֲנַ֥ן וְשָׁלֵֽיו׃ | 23 |
कोई तो अपनी पूरी ताक़त में, चैन और सुख से रहता हुआ मर जाता है।
עֲ֭טִינָיו מָלְא֣וּ חָלָ֑ב וּמֹ֖חַ עַצְמוֹתָ֣יו יְשֻׁקֶּֽה׃ | 24 |
उसकी दोहिनियाँ दूध से भरी हैं, और उसकी हड्डियों का गूदा तर है;
וְזֶ֗ה יָ֭מוּת בְּנֶ֣פֶשׁ מָרָ֑ה וְלֹֽא־אָ֝כַ֗ל בַּטּוֹבָֽה׃ | 25 |
और कोई अपने जी में कुढ़ कुढ़ कर मरता है, और कभी सुख नहीं पाता।
יַ֭חַד עַל־עָפָ֣ר יִשְׁכָּ֑בוּ וְ֝רִמָּ֗ה תְּכַסֶּ֥ה עֲלֵיהֶֽם׃ | 26 |
वह दोनों मिट्टी में यकसाँ पड़ जाते हैं, और कीड़े उन्हें ढाँक लेते हैं।
הֵ֣ן יָ֭דַעְתִּי מַחְשְׁבֽוֹתֵיכֶ֑ם וּ֝מְזִמּ֗וֹת עָלַ֥י תַּחְמֹֽסוּ׃ | 27 |
देखो, मैं तुम्हारे ख़यालों को जानता हूँ, और उन मंसूबों को भी जो तुम बे इन्साफ़ी से मेरे ख़िलाफ़ बाँधते हो।
כִּ֤י תֹֽאמְר֗וּ אַיֵּ֥ה בֵית־נָדִ֑יב וְ֝אַיֵּ֗ה אֹ֤הֶל ׀ מִשְׁכְּנ֬וֹת רְשָׁעִֽים׃ | 28 |
क्यूँकि तुम कहते हो, 'अमीर का घर कहाँ रहा? और वह ख़ेमा कहाँ है जिसमें शरीर बसते थे?
הֲלֹ֣א שְׁ֭אֶלְתֶּם ע֣וֹבְרֵי דָ֑רֶךְ וְ֝אֹתֹתָ֗ם לֹ֣א תְנַכֵּֽרוּ׃ | 29 |
क्या तुम ने रास्ता चलने वालों से कभी नहीं पूछा? और उनके निशान — आत नहीं पहचानते
כִּ֤י לְי֣וֹם אֵ֭יד יֵחָ֣שֶׂךְ רָ֑ע לְי֖וֹם עֲבָר֣וֹת יוּבָֽלוּ׃ | 30 |
कि शरीर आफ़त के दिन के लिए रख्खा जाता है, और ग़ज़ब के दिन तक पहुँचाया जाता है?
מִֽי־יַגִּ֣יד עַל־פָּנָ֣יו דַּרְכּ֑וֹ וְהֽוּא־עָ֝שָׂ֗ה מִ֣י יְשַׁלֶּם־לֽוֹ׃ | 31 |
कौन उसकी राह को उसके मुँह पर बयान करेगा? और उसके किए का बदला कौन उसे देगा?
וְ֭הוּא לִקְבָר֣וֹת יוּבָ֑ל וְֽעַל־גָּדִ֥ישׁ יִשְׁקֽוֹד׃ | 32 |
तोभी वह क़ब्र में पहुँचाया जाएगा, और उसकी क़ब्र पर पहरा दिया जाएगा।
מָֽתְקוּ־ל֗וֹ רִגְבֵ֫י נָ֥חַל וְ֭אַחֲרָיו כָּל־אָדָ֣ם יִמְשׁ֑וֹךְ וּ֝לְפָנָ֗יו אֵ֣ין מִסְפָּֽר׃ | 33 |
वादी के ढेले उसे पसंद हैं; और सब लोग उसके पीछे चले जाएँगे, जैसे उससे पहले बेशुमार लोग गए।
וְ֭אֵיךְ תְּנַחֲמ֣וּנִי הָ֑בֶל וּ֝תְשֽׁוּבֹתֵיכֶ֗ם נִשְׁאַר־מָֽעַל׃ ס | 34 |
इसलिए तुम क्यूँ मुझे झूठी तसल्ली देते हो, जिस हाल कि तुम्हारी बातों में झूँठ ही झूँठ है।