< יִרְמְיָהוּ 51 >
כֹּ֚ה אָמַ֣ר יְהוָ֔ה הִנְנִי֙ מֵעִ֣יר עַל־בָּבֶ֔ל וְאֶל־יֹשְׁבֵ֖י לֵ֣ב קָמָ֑י ר֖וּחַ מַשְׁחִֽית׃ | 1 |
ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि देख, मैं बाबुल पर और उस मुखालिफ़ दार — उस — सल्तनत के रहनेवालों पर एक मुहलिक हवा चलाऊँगा।
וְשִׁלַּחְתִּ֨י לְבָבֶ֤ל ׀ זָרִים֙ וְזֵר֔וּהָ וִיבֹקְק֖וּ אֶת־אַרְצָ֑הּ כִּֽי־הָי֥וּ עָלֶ֛יהָ מִסָּבִ֖יב בְּי֥וֹם רָעָֽה׃ | 2 |
और मैं उसाने वालों को बाबुल में भेजूँगा कि उसे उसाएँ, और उसकी सरज़मीन को ख़ाली करें; यक़ीनन उसकी मुसीबत के दिन वह उसके दुश्मन बनकर उसे चारों तरफ़ से घेर लेंगे।
אֶֽל־יִדְרֹ֤ךְ יִדְרֹךְ הַדֹּרֵךְ֙ קַשְׁתּ֔וֹ וְאֶל־יִתְעַ֖ל בְּסִרְיֹנ֑וֹ וְאַֽל־תַּחְמְלוּ֙ אֶל־בַּ֣חֻרֶ֔יהָ הַחֲרִ֖ימוּ כָּל־צְבָאָֽהּ׃ | 3 |
उसके कमानदारों और ज़िरहपोशों पर तीरअन्दाज़ी करो; तुम उसके जवानों पर रहम न करो, उसके तमाम लश्कर को बिल्कुल हलाक करो।
וְנָפְל֥וּ חֲלָלִ֖ים בְּאֶ֣רֶץ כַּשְׂדִּ֑ים וּמְדֻקָּרִ֖ים בְּחוּצוֹתֶֽיהָ׃ | 4 |
मक़्तूल कसदियों की सरज़मीन में गिरेंगे, और छिदे हुए उसके बाज़ारों में पड़े रहेंगे।
כִּ֠י לֹֽא־אַלְמָ֨ן יִשְׂרָאֵ֤ל וִֽיהוּדָה֙ מֵֽאֱלֹהָ֔יו מֵֽיְהוָ֖ה צְבָא֑וֹת כִּ֤י אַרְצָם֙ מָלְאָ֣ה אָשָׁ֔ם מִקְּד֖וֹשׁ יִשְׂרָאֵֽל׃ | 5 |
क्यूँकि इस्राईल और यहूदाह को उनके ख़ुदा रब्ब — उल — अफ़वाज ने तर्क नहीं किया; अगरचे इनका मुल्क इस्राईल के क़ुद्दूस की नाफ़रमानी से पुर है।
נֻ֣סוּ ׀ מִתּ֣וֹךְ בָּבֶ֗ל וּמַלְּטוּ֙ אִ֣ישׁ נַפְשׁ֔וֹ אַל־תִּדַּ֖מּוּ בַּעֲוֹנָ֑הּ כִּי֩ עֵ֨ת נְקָמָ֥ה הִיא֙ לַֽיהוָ֔ה גְּמ֕וּל ה֥וּא מְשַׁלֵּ֖ם לָֽהּ׃ | 6 |
बाबुल से निकल भागो, और हर एक अपनी जान बचाए, उसकी बदकिरदारी की सज़ा में शरीक होकर हलाक न हो, क्यूँकि यह ख़ुदावन्द के इन्तक़ाम का वक़्त है; वह उसे बदला देता है।
כּוֹס־זָהָ֤ב בָּבֶל֙ בְּיַד־יְהוָ֔ה מְשַׁכֶּ֖רֶת כָּל־הָאָ֑רֶץ מִיֵּינָהּ֙ שָׁת֣וּ גוֹיִ֔ם עַל־כֵּ֖ן יִתְהֹלְל֥וּ גוֹיִֽם׃ | 7 |
बाबुल ख़ुदावन्द के हाथ में सोने का प्याला था, जिसने सारी दुनिया को मतवाला किया; क़ौमों ने उसकी मय पी, इसलिए वह दीवाने हैं।
פִּתְאֹ֛ם נָפְלָ֥ה בָבֶ֖ל וַתִּשָּׁבֵ֑ר הֵילִ֣ילוּ עָלֶ֗יהָ קְח֤וּ צֳרִי֙ לְמַכְאוֹבָ֔הּ אוּלַ֖י תֵּרָפֵֽא׃ | 8 |
बाबुल अचानक गिर गया और ग़ारत हुआ, उस पर वावैला करो; उसके ज़ख़्म के लिए बलसान लो, शायद वह शिफ़ा पाए।
רִפִּ֣ינוּ אֶת־בָּבֶל֙ וְלֹ֣א נִרְפָּ֔תָה עִזְב֕וּהָ וְנֵלֵ֖ךְ אִ֣ישׁ לְאַרְצ֑וֹ כִּֽי־נָגַ֤ע אֶל־הַשָּׁמַ֙יִם֙ מִשְׁפָּטָ֔הּ וְנִשָּׂ֖א עַד־שְׁחָקִֽים׃ | 9 |
हम तो बाबुल की शिफ़ायाबी चाहते थे लेकिन वह शिफ़ायाब न हुआ, तुम उसको छोड़ो, आओ, हम सब अपने अपने वतन को चले जाएँ, क्यूँकि उसकी आवाज़ आसमान तक पहुँची और अफ़लाक तक बुलन्द हुई।
הוֹצִ֥יא יְהוָ֖ה אֶת־צִדְקֹתֵ֑ינוּ בֹּ֚אוּ וּנְסַפְּרָ֣ה בְצִיּ֔וֹן אֶֽת־מַעֲשֵׂ֖ה יְהוָ֥ה אֱלֹהֵֽינוּ׃ | 10 |
ख़ुदावन्द ने हमारी रास्तबाज़ी को आशकारा किया; आओ, हम सिय्यून में ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के काम का बयान करें।
הָבֵ֣רוּ הַחִצִּים֮ מִלְא֣וּ הַשְּׁלָטִים֒ הֵעִ֣יר יְהוָ֗ה אֶת־ר֙וּחַ֙ מַלְכֵ֣י מָדַ֔י כִּֽי־עַל־בָּבֶ֥ל מְזִמָּת֖וֹ לְהַשְׁחִיתָ֑הּ כִּֽי־נִקְמַ֤ת יְהוָה֙ הִ֔יא נִקְמַ֖ת הֵיכָלֽוֹ׃ | 11 |
तीरों को सैक़ल करो, सिपरों को तैयार रख्खो; ख़ुदावन्द ने मादियों के बादशाहों की रूह को उभारा है, क्यूँकि उसका इरादा बाबुल को बर्बाद करने का है; क्यूँकि यह ख़ुदावन्द का, या'नी उसकी हैकल का इन्तक़ाम है।
אֶל־חוֹמֹ֨ת בָּבֶ֜ל שְׂאוּ־נֵ֗ס הַחֲזִ֙יקוּ֙ הַמִּשְׁמָ֔ר הָקִ֙ימוּ֙ שֹֽׁמְרִ֔ים הָכִ֖ינוּ הָאֹֽרְבִ֑ים כִּ֚י גַּם־זָמַ֣ם יְהוָ֔ה גַּם־עָשָׂ֕ה אֵ֥ת אֲשֶׁר־דִּבֶּ֖ר אֶל־יֹשְׁבֵ֥י בָבֶֽל׃ | 12 |
बाबुल की दीवारों के सामने झंडा खड़ा करो पहरे की चौकियाँ मज़बूत करो, पहरेदारों को बिठाओ, कमीनगाहें तैयार करो; क्यूँकि ख़ुदावन्द ने अहल — ए — बाबुल के हक़ में जो कुछ ठहराया और फ़रमाया था, इसलिए पूरा किया।
שֹׁכַנְתְּ֙ עַל־מַ֣יִם רַבִּ֔ים רַבַּ֖ת אֽוֹצָרֹ֑ת בָּ֥א קִצֵּ֖ךְ אַמַּ֥ת בִּצְעֵֽךְ׃ | 13 |
ऐ नहरों पर सुकूनत करने वाली, जिसके ख़ज़ाने फ़िरावान हैं; तेरी तमामी का वक़्त आ पहुँचा और तेरी ग़ारतगरी का पैमाना पुर हो गया।
נִשְׁבַּ֛ע יְהוָ֥ה צְבָא֖וֹת בְּנַפְשׁ֑וֹ כִּ֣י אִם־מִלֵּאתִ֤יךְ אָדָם֙ כַּיֶּ֔לֶק וְעָנ֥וּ עָלַ֖יִךְ הֵידָֽד׃ ס | 14 |
रब्ब — उल — अफ़वाज ने अपनी ज़ात की क़सम खाई है, कि यक़ीनन मैं तुझ में लोगों को टिड्डियों की तरह भर दूँगा, और वह तुझ पर जंग का नारा मारेंगे।
עֹשֵׂ֥ה אֶ֙רֶץ֙ בְּכֹח֔וֹ מֵכִ֥ין תֵּבֵ֖ל בְּחָכְמָת֑וֹ וּבִתְבוּנָת֖וֹ נָטָ֥ה שָׁמָֽיִם׃ | 15 |
उसी ने अपनी क़ुदरत से ज़मीन को बनाया, उसी ने अपनी हिकमत से जहाँ को क़ाईम किया, और अपनी 'अक़्ल से आसमान को तान दिया है;
לְק֨וֹל תִּתּ֜וֹ הֲמ֥וֹן מַ֙יִם֙ בַּשָּׁמַ֔יִם וַיַּ֥עַל נְשִׂאִ֖ים מִקְצֵה־אָ֑רֶץ בְּרָקִ֤ים לַמָּטָר֙ עָשָׂ֔ה וַיֹּ֥צֵא ר֖וּחַ מֵאֹצְרֹתָֽיו׃ | 16 |
उसकी आवाज़ से आसमान में पानी की फ़िरावानी होती है, और वह ज़मीन की इन्तिहा से बुख़ारात उठाता है; वह बारिश के लिए बिजली चमकाता है और अपने ख़ज़ानों से हवा चलाता है।
נִבְעַ֤ר כָּל־אָדָם֙ מִדַּ֔עַת הֹבִ֥ישׁ כָּל־צֹרֵ֖ף מִפָּ֑סֶל כִּ֛י שֶׁ֥קֶר נִסְכּ֖וֹ וְלֹא־ר֥וּחַ בָּֽם׃ | 17 |
हर आदमी हैवान ख़सलत और बे — 'इल्म हो गया है, सुनार अपनी खोदी हुई मूरत से रुस्वा है; क्यूँकि उसकी ढाली हुई मूरत बातिल है, उनमें दम नहीं।
הֶ֣בֶל הֵ֔מָּה מַעֲשֵׂ֖ה תַּעְתֻּעִ֑ים בְּעֵ֥ת פְּקֻדָּתָ֖ם יֹאבֵֽדוּ׃ | 18 |
वह बातिल — फ़े'ल — ए — फ़रेब हैं, सज़ा के वक़्त बर्बाद हो जाएँगी।
לֹֽא־כְאֵ֜לֶּה חֵ֣לֶק יַעֲק֗וֹב כִּֽי־יוֹצֵ֤ר הַכֹּל֙ ה֔וּא וְשֵׁ֖בֶט נַחֲלָת֑וֹ יְהוָ֥ה צְבָא֖וֹת שְׁמֽוֹ׃ ס | 19 |
या'क़ूब का हिस्सा उनकी तरह नहीं, क्यूँकि वह सब चीज़ों का ख़ालिक़ है और इस्राईल उसकी मीरास का 'असा है; रब्बउल — अफ़वाज उसका नाम है।
מַפֵּץ־אַתָּ֣ה לִ֔י כְּלֵ֖י מִלְחָמָ֑ה וְנִפַּצְתִּ֤י בְךָ֙ גּוֹיִ֔ם וְהִשְׁחַתִּ֥י בְךָ֖ מַמְלָכֽוֹת׃ | 20 |
तू मेरा गुर्ज़ और जंगी हथियार है, और तुझी से मैं क़ौमों को तोड़ता और तुझी से सल्तनतों को बर्बाद करता हूँ।
וְנִפַּצְתִּ֣י בְךָ֔ ס֖וּס וְרֹֽכְב֑וֹ וְנִפַּצְתִּ֣י בְךָ֔ רֶ֖כֶב וְרֹכְבֽוֹ׃ | 21 |
तुझी से मैं घोड़े और सवार को कुचलता, और तुझी से रथ और उसके सवार को चूर करता हूँ;
וְנִפַּצְתִּ֤י בְךָ֙ אִ֣ישׁ וְאִשָּׁ֔ה וְנִפַּצְתִּ֥י בְךָ֖ זָקֵ֣ן וָנָ֑עַר וְנִפַּצְתִּ֣י בְךָ֔ בָּח֖וּר וּבְתוּלָֽה׃ | 22 |
तुझी से मर्द — ओ — ज़न और पीर — ओ — जवान को कुचलता, और तुझ ही से नौखेंज़ लड़कों और लड़कियों को पीस डालता हूँ;
וְנִפַּצְתִּ֤י בְךָ֙ רֹעֶ֣ה וְעֶדְר֔וֹ וְנִפַּצְתִּ֥י בְךָ֖ אִכָּ֣ר וְצִמְדּ֑וֹ וְנִפַּצְתִּ֣י בְךָ֔ פַּח֖וֹת וּסְגָנִֽים׃ | 23 |
और तुझी से चरवाहे और उसके गल्ले को कुचलता, और तुझी से किसान और उसके जोड़ी बैल को, और तुझी से सरदारों और हाकिमों को चूर — चूर कर देता हूँ।
וְשִׁלַּמְתִּ֨י לְבָבֶ֜ל וּלְכֹ֣ל ׀ יוֹשְׁבֵ֣י כַשְׂדִּ֗ים אֵ֧ת כָּל־רָעָתָ֛ם אֲשֶׁר־עָשׂ֥וּ בְצִיּ֖וֹן לְעֵֽינֵיכֶ֑ם נְאֻ֖ם יְהוָֽה׃ ס | 24 |
और मैं बाबुल को और कसदिस्तान के सब बाशिन्दों को उस तमाम नुक़्सान का, जो उन्होंने सिय्यून को तुम्हारी आँखों के सामने पहुँचाया है इवज़ देता हूँ ख़ुदावन्द फ़रमाता है।
הִנְנִ֨י אֵלֶ֜יךָ הַ֤ר הַמַּשְׁחִית֙ נְאֻם־יְהוָ֔ה הַמַּשְׁחִ֖ית אֶת־כָּל־הָאָ֑רֶץ וְנָטִ֨יתִי אֶת־יָדִ֜י עָלֶ֗יךָ וְגִלְגַּלְתִּ֙יךָ֙ מִן־הַסְּלָעִ֔ים וּנְתַתִּ֖יךָ לְהַ֥ר שְׂרֵפָֽה׃ | 25 |
देख ख़ुदावन्द फ़रमाता है, ऐ हलाक करने वाले पहाड़, जो तमाम इस ज़मीन को हलाक करता है, मैं तेरा मुख़ालिफ़ हूँ और मैं अपना हाथ तुझ पर बढ़ाऊँगा, और चट्टानों पर से तुझे लुढ़काऊँगा, और तुझे जला हुआ पहाड़ बना दूँगा।
וְלֹֽא־יִקְח֤וּ מִמְּךָ֙ אֶ֣בֶן לְפִנָּ֔ה וְאֶ֖בֶן לְמֽוֹסָד֑וֹת כִּֽי־שִׁמְמ֥וֹת עוֹלָ֛ם תִּֽהְיֶ֖ה נְאֻם־יְהוָֽה׃ | 26 |
न तुझ से कोने का पत्थर, और न बुनियाद के लिए पत्थर लेंगे; बल्कि तू हमेशा तक वीरान रहेगा, ख़ुदावन्द फ़रमाता है।
שְׂאוּ־נֵ֣ס בָּאָ֗רֶץ תִּקְע֨וּ שׁוֹפָ֤ר בַּגּוֹיִם֙ קַדְּשׁ֤וּ עָלֶ֙יהָ֙ גּוֹיִ֔ם הַשְׁמִ֧יעוּ עָלֶ֛יהָ מַמְלְכ֥וֹת אֲרָרַ֖ט מִנִּ֣י וְאַשְׁכְּנָ֑ז פִּקְד֤וּ עָלֶ֙יהָ֙ טִפְסָ֔ר הַֽעֲלוּ־ס֖וּס כְּיֶ֥לֶק סָמָֽר׃ | 27 |
'मुल्क में झण्डा खड़ा करो, क़ौमों में नरसिंगा फूँको उनको उसके ख़िलाफ़ मख़सूस करो अरारात और मिन्नी और अश्कनाज़ की ममलुकतों को उस पर चढ़ा लाओ; उसके ख़िलाफ़ सिपहसालार मुक़र्रर करो और सवारों को मुहलिक टिड्डियों की तरह चढ़ा लाओ।
קַדְּשׁ֨וּ עָלֶ֤יהָ גוֹיִם֙ אֶת־מַלְכֵ֣י מָדַ֔י אֶת־פַּחוֹתֶ֖יהָ וְאֶת־כָּל־סְגָנֶ֑יהָ וְאֵ֖ת כָּל־אֶ֥רֶץ מֶמְשַׁלְתּֽוֹ׃ | 28 |
क़ौमों को मादियों के बादशाहों को और सरदारों और हाकिमों और उनकी सल्तनत के तमाम मुमालिक को मख़सूस करो कि उस पर चढ़ाई करें।
וַתִּרְעַ֥שׁ הָאָ֖רֶץ וַתָּחֹ֑ל כִּ֣י קָ֤מָה עַל־בָּבֶל֙ מַחְשְׁב֣וֹת יְהוָ֔ה לָשׂ֞וּם אֶת־אֶ֧רֶץ בָּבֶ֛ל לְשַׁמָּ֖ה מֵאֵ֥ין יוֹשֵֽׁב׃ | 29 |
और ज़मीन काँपती और दर्द में मुब्तिला है, क्यूँकि ख़ुदावन्द के इरादे बाबुल की मुखालिफ़त में क़ाईम रहेंगे, कि बाबुल की सरज़मीन को वीरान और ग़ैरआबाद कर दे।
חָדְלוּ֩ גִבּוֹרֵ֨י בָבֶ֜ל לְהִלָּחֵ֗ם יָֽשְׁבוּ֙ בַּמְּצָד֔וֹת נָשְׁתָ֥ה גְבוּרָתָ֖ם הָי֣וּ לְנָשִׁ֑ים הִצִּ֥יתוּ מִשְׁכְּנֹתֶ֖יהָ נִשְׁבְּר֥וּ בְרִיחֶֽיהָ׃ | 30 |
बाबुल के बहादुर लड़ाई से दस्तबरदार और क़िलों' में बैठे हैं, उनका ज़ोर घट गया, वह 'औरतों की तरह हो गए; उसके घर जलाए गए, उसके अड़बंगे तोड़े गए।
רָ֤ץ לִקְרַאת־רָץ֙ יָר֔וּץ וּמַגִּ֖יד לִקְרַ֣את מַגִּ֑יד לְהַגִּיד֙ לְמֶ֣לֶךְ בָּבֶ֔ל כִּֽי־נִלְכְּדָ֥ה עִיר֖וֹ מִקָּצֶֽה׃ | 31 |
हरकारा हरकारे से मिलने को और क़ासिद से मिलने को दौड़ेगा कि बाबुल के बादशाह को इत्तला दे, कि उसका शहर हर तरफ़ से ले लिया गया;
וְהַמַּעְבָּר֣וֹת נִתְפָּ֔שׂוּ וְאֶת־הָאֲגַמִּ֖ים שָׂרְפ֣וּ בָאֵ֑שׁ וְאַנְשֵׁ֥י הַמִּלְחָמָ֖ה נִבְהָֽלוּ׃ ס | 32 |
और गुज़रगाहें ले ली गई, और नेस्तान आग से जलाए गए और फ़ौज हड़बड़ा गईं।
כִּי֩ כֹ֨ה אָמַ֜ר יְהוָ֤ה צְבָאוֹת֙ אֱלֹהֵ֣י יִשְׂרָאֵ֔ל בַּת־בָּבֶ֕ל כְּגֹ֖רֶן עֵ֣ת הִדְרִיכָ֑הּ ע֣וֹד מְעַ֔ט וּבָ֥אָה עֵֽת־הַקָּצִ֖יר לָֽהּ׃ | 33 |
क्यूँकि रब्ब — उल — अफ़वाज, इस्राईल का ख़ुदा, यूँ फ़रमाता है कि: दुख़्तर — ए — बाबुल खलीहान की तरह है, जब उसे रौंदने का वक़्त आए, थोड़ी देर है कि उसकी कटाई का वक़्त आ पहुँचेगा।
אֲכָלַ֣נִי הֲמָמַ֗נִי נְבוּכַדְרֶאצַּר֮ מֶ֣לֶךְ בָּבֶל֒ הִצִּיגַ֙נִי֙ כְּלִ֣י רִ֔יק בְּלָעַ֙נִי֙ כַּתַּנִּ֔ין מִלָּ֥א כְרֵשׂ֖וֹ מֵֽעֲדָנָ֑י הֱדִיחָֽנִי׃ | 34 |
“शाह — ए — बाबुल नबूकदनज़र ने मुझे खा लिया, उसने मुझे शिकस्त दी है, उसने मुझे ख़ाली बर्तन की तरह कर दिया अज़दहा की तरह वह मुझे निगल गया, उसने अपने पेट को मेरी ने'मतों से भर लिया; उसने मुझे निकाल दिया;
חֲמָסִ֤י וּשְׁאֵרִי֙ עַל־בָּבֶ֔ל תֹּאמַ֖ר יֹשֶׁ֣בֶת צִיּ֑וֹן וְדָמִי֙ אֶל־יֹשְׁבֵ֣י כַשְׂדִּ֔ים תֹּאמַ֖ר יְרוּשָׁלִָֽם׃ ס | 35 |
सिय्यून के रहनेवाले कहेंगे, जो सितम हम पर और हमारे लोगों पर हुआ, बाबुल पर हो।” और येरूशलेम कहेगा, मेरा ख़ून अहल — ए — कसदिस्तान पर हो।
לָכֵ֗ן כֹּ֚ה אָמַ֣ר יְהוָ֔ה הִנְנִי־רָב֙ אֶת־רִיבֵ֔ךְ וְנִקַּמְתִּ֖י אֶת־נִקְמָתֵ֑ךְ וְהַחֲרַבְתִּי֙ אֶת־יַמָּ֔הּ וְהֹבַשְׁתִּ֖י אֶת־מְקוֹרָֽהּ׃ | 36 |
इसलिए ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि: देख, मैं तेरी हिमायत करूँगा और तेरा इन्तक़ाम लूँगा, और उसके बहर को सुखाऊँगा और उसके सोते को ख़ुश्क कर दूँगा;
וְהָיְתָה֩ בָבֶ֨ל ׀ לְגַלִּ֧ים ׀ מְעוֹן־תַּנִּ֛ים שַׁמָּ֥ה וּשְׁרֵקָ֖ה מֵאֵ֥ין יוֹשֵֽׁב׃ | 37 |
और बाबुल खण्डर हो जाएगा, और गीदड़ों का मक़ाम और हैरत और सुस्कार का ज़रिया' होगी और उसमें कोई न बसेगा।
יַחְדָּ֖ו כַּכְּפִרִ֣ים יִשְׁאָ֑גוּ נָעֲר֖וּ כְּגוֹרֵ֥י אֲרָיֽוֹת׃ | 38 |
वह जवान बबरों की तरह इकटठे गरजेंगे, वह शेर बच्चों की तरह ग़ुर्राएँगे।
בְּחֻמָּ֞ם אָשִׁ֣ית אֶת־מִשְׁתֵּיהֶ֗ם וְהִשְׁכַּרְתִּים֙ לְמַ֣עַן יַעֲלֹ֔זוּ וְיָשְׁנ֥וּ שְׁנַת־עוֹלָ֖ם וְלֹ֣א יָקִ֑יצוּ נְאֻ֖ם יְהוָֽה׃ | 39 |
उनकी हालत — ए — तैश में मैं उनकी ज़ियाफ़त करके उनको मस्त करूँगा, कि वह जद्द में आएँ और दाइमी ख़्वाब में पड़े रहें और बेदार न हों, ख़ुदावन्द फ़रमाता है।
אֽוֹרִידֵ֖ם כְּכָרִ֣ים לִטְב֑וֹחַ כְּאֵילִ֖ים עִם־עַתּוּדִֽים׃ | 40 |
मैं उनको बर्रों और मेंढों की तरह बकरों के साथ मसलख़ पर उतार लाऊँगा।
אֵ֚יךְ נִלְכְּדָ֣ה שֵׁשַׁ֔ךְ וַתִּתָּפֵ֖שׂ תְּהִלַּ֣ת כָּל־הָאָ֑רֶץ אֵ֣יךְ הָיְתָ֧ה לְשַׁמָּ֛ה בָּבֶ֖ל בַּגּוֹיִֽם׃ | 41 |
शेशक क्यूँकर ले लिया गया! हाँ, तमाम रु — ए — ज़मीन का खम्बा यकबारगी ले लिया गया। बाबुल क़ौमों के बीच कैसा वीरान हुआ!
עָלָ֥ה עַל־בָּבֶ֖ל הַיָּ֑ם בַּהֲמ֥וֹן גַּלָּ֖יו נִכְסָֽתָה׃ | 42 |
समन्दर बाबुल पर चढ़ गया है, वह उसकी लहरों की कसरत से छिप गया।
הָי֤וּ עָרֶ֙יהָ֙ לְשַׁמָּ֔ה אֶ֖רֶץ צִיָּ֣ה וַעֲרָבָ֑ה אֶ֗רֶץ לֹֽא־יֵשֵׁ֤ב בָּהֵן֙ כָּל־אִ֔ישׁ וְלֹֽא־יַעֲבֹ֥ר בָּהֵ֖ן בֶּן־אָדָֽם׃ | 43 |
उसकी बस्तियाँ उजड़ गईं, वह ख़ुश्क ज़मीन और सहरा हो गया ऐसी सरज़मीन जिसमें न कोई बसता हो और न वहाँ आदमज़ाद का गुज़र हो।
וּפָקַדְתִּ֨י עַל־בֵּ֜ל בְּבָבֶ֗ל וְהֹצֵאתִ֤י אֶת־בִּלְעוֹ֙ מִפִּ֔יו וְלֹֽא־יִנְהֲר֥וּ אֵלָ֛יו ע֖וֹד גּוֹיִ֑ם גַּם־חוֹמַ֥ת בָּבֶ֖ל נָפָֽלָה׃ | 44 |
क्यूँकि मैं बाबुल में बेल को सज़ा दूँगा, और जो कुछ वह निगल गया है उसके मुँह से निकालूँगा, और फिर क़ौमें उसकी तरफ़ रवाँ न होंगी; हाँ, बाबुल की फ़सील गिर जाएगी।
צְא֤וּ מִתּוֹכָהּ֙ עַמִּ֔י וּמַלְּט֖וּ אִ֣ישׁ אֶת־נַפְשׁ֑וֹ מֵחֲר֖וֹן אַף־יְהוָֽה׃ | 45 |
ऐ मेरे लोगों, उसमें से निकल आओ, और तुम में से हर एक ख़ुदावन्द के क़हर — ए — शदीद से अपनी जान बचाए।
וּפֶן־יֵרַ֤ךְ לְבַבְכֶם֙ וְתִֽירְא֔וּ בַּשְּׁמוּעָ֖ה הַנִּשְׁמַ֣עַת בָּאָ֑רֶץ וּבָ֧א בַשָּׁנָ֣ה הַשְּׁמוּעָ֗ה וְאַחֲרָ֤יו בַּשָּׁנָה֙ הַשְּׁמוּעָ֔ה וְחָמָ֣ס בָּאָ֔רֶץ וּמֹשֵׁ֖ל עַל־מֹשֵֽׁל׃ | 46 |
न हो कि तुम्हारा दिल सुस्त हो, और तुम उस अफ़वाह से डरो जो ज़मीन में सुनी जाएगी; एक अफ़वाह एक साल आएगी और फिर दूसरी अफ़वाह दूसरे साल में, और मुल्क में ज़ुल्म होगा और हाकिम हाकिम से लड़ेगा।
לָכֵן֙ הִנֵּ֣ה יָמִ֣ים בָּאִ֔ים וּפָקַדְתִּי֙ עַל־פְּסִילֵ֣י בָבֶ֔ל וְכָל־אַרְצָ֖הּ תֵּב֑וֹשׁ וְכָל־חֲלָלֶ֖יהָ יִפְּל֥וּ בְתוֹכָֽהּ׃ | 47 |
इसलिए देख, वह दिन आते हैं कि मैं बाबुल की तराशी हुई मूरतों से इन्तक़ाम लूँगा और उसकी तमाम सरज़मीं रुस्वा होगी और उसके सब मक़्तूल उसी में पड़े रहेंगे।
וְרִנְּנ֤וּ עַל־בָּבֶל֙ שָׁמַ֣יִם וָאָ֔רֶץ וְכֹ֖ל אֲשֶׁ֣ר בָּהֶ֑ם כִּ֧י מִצָּפ֛וֹן יָבוֹא־לָ֥הּ הַשּׁוֹדְדִ֖ים נְאֻם־יְהוָֽה׃ | 48 |
तब आसमान और ज़मीन और सब कुछ जो उनमें है, बाबुल पर शादियाना बजाएँगे; क्यूँकि ग़ारतगर उत्तर से उस पर चढ़ आएँगे, ख़ुदावन्द फ़रमाता है।
גַּם־בָּבֶ֕ל לִנְפֹּ֖ל חַֽלְלֵ֣י יִשְׂרָאֵ֑ל גַּם־לְבָבֶ֥ל נָפְל֖וּ חַֽלְלֵ֥י כָל־הָאָֽרֶץ׃ | 49 |
जिस तरह बाबुल में बनी — इस्राईल क़त्ल हुए, उसी तरह बाबुल में तमाम मुल्क के लोग क़त्ल होंगे।
פְּלֵטִ֣ים מֵחֶ֔רֶב הִלְכ֖וּ אַֽל־תַּעֲמֹ֑דוּ זִכְר֤וּ מֵֽרָחוֹק֙ אֶת־יְהוָ֔ה וִירֽוּשָׁלִַ֖ם תַּעֲלֶ֥ה עַל־לְבַבְכֶֽם׃ | 50 |
तुम जो तलवार से बच गए हो, खड़े न हो, चले जाओ! दूर ही से ख़ुदावन्द को याद करो, और येरूशलेम का ख़याल तुम्हारे दिल में आए।
בֹּ֚שְׁנוּ כִּֽי־שָׁמַ֣עְנוּ חֶרְפָּ֔ה כִּסְּתָ֥ה כְלִמָּ֖ה פָּנֵ֑ינוּ כִּ֚י בָּ֣אוּ זָרִ֔ים עַֽל־מִקְדְּשֵׁ֖י בֵּ֥ית יְהוָֽה׃ ס | 51 |
'हम परेशान हैं, क्यूँकि हम ने मलामत सुनी; हम शर्मआलूदा हुए, क्यूँकि ख़ुदावन्द के घर के हैकलों में अजनबी घुस आए।
לָכֵ֞ן הִנֵּֽה־יָמִ֤ים בָּאִים֙ נְאֻם־יְהוָ֔ה וּפָקַדְתִּ֖י עַל־פְּסִילֶ֑יהָ וּבְכָל־אַרְצָ֖הּ יֶאֱנֹ֥ק חָלָֽל׃ | 52 |
इसलिए देख, वह दिन आते हैं, ख़ुदावन्द फ़रमाता है, कि मैं उसकी तराशी हुई मूरतों को सज़ा दूँगा; और उसकी तमाम सल्तनत में घायल कराहेंगे।
כִּֽי־תַעֲלֶ֤ה בָבֶל֙ הַשָּׁמַ֔יִם וְכִ֥י תְבַצֵּ֖ר מְר֣וֹם עֻזָּ֑הּ מֵאִתִּ֗י יָבֹ֧אוּ שֹׁדְדִ֛ים לָ֖הּ נְאֻם־יְהוָֽה׃ ס | 53 |
हरचन्द बाबुल आसमान पर चढ़ जाए और अपने ज़ोर की इन्तिहा तक मुस्तहकम हो बैठे तो भी ग़ारतगर मेरी तरफ़ से उस पर चढ़ आएँगे, ख़ुदावन्द फ़रमाता है।
ק֥וֹל זְעָקָ֖ה מִבָּבֶ֑ל וְשֶׁ֥בֶר גָּד֖וֹל מֵאֶ֥רֶץ כַּשְׂדִּֽים׃ | 54 |
बाबुल से रोने की और कसदियों की सरज़मीन से बड़ी हलाकत की आवाज़ आती है।
כִּֽי־שֹׁדֵ֤ד יְהוָה֙ אֶת־בָּבֶ֔ל וְאִבַּ֥ד מִמֶּ֖נָּה ק֣וֹל גָּד֑וֹל וְהָמ֤וּ גַלֵּיהֶם֙ כְּמַ֣יִם רַבִּ֔ים נִתַּ֥ן שְׁא֖וֹן קוֹלָֽם׃ | 55 |
क्यूँकि ख़ुदावन्द बाबुल को ग़ारत करता है, और उसके बड़े शोर — ओ — ग़ुल को बर्बाद करेगा; उनकी लहरें समन्दर की तरह शोर मचाती हैं उनके शोर की आवाज़ बुलंद है;
כִּי֩ בָ֨א עָלֶ֤יהָ עַל־בָּבֶל֙ שׁוֹדֵ֔ד וְנִלְכְּדוּ֙ גִּבּוֹרֶ֔יהָ חִתְּתָ֖ה קַשְּׁתוֹתָ֑ם כִּ֣י אֵ֧ל גְּמֻל֛וֹת יְהוָ֖ה שַׁלֵּ֥ם יְשַׁלֵּֽם׃ | 56 |
इसलिए कि ग़ारतगर उस पर, हाँ, बाबुल पर चढ़ आया है, और उसके ताक़तवर लोग पकड़े जायेंगे उनकी कमाने तोड़ी जायेंगी क्यूँकि ख़ुदावन्द इन्तक़ाम लेनेवाला ख़ुदा है, वह ज़रूर बदला लेगा।
וְ֠הִשְׁכַּרְתִּי שָׂרֶ֨יהָ וַחֲכָמֶ֜יהָ פַּחוֹתֶ֤יהָ וּסְגָנֶ֙יהָ֙ וְגִבּוֹרֶ֔יהָ וְיָשְׁנ֥וּ שְׁנַת־עוֹלָ֖ם וְלֹ֣א יָקִ֑יצוּ נְאֻ֨ם־הַמֶּ֔לֶךְ יְהוָ֥ה צְבָא֖וֹת שְׁמֽוֹ׃ ס | 57 |
मैं हाकिम — ओ — हुक्मा को और उसके सरदारों और हाकिमों को मस्त करूँगा, और वह दाइमी ख़्वाब में पड़े रहेंगे और बेदार न होंगे, वह बादशाह फ़रमाता है, जिसका नाम रब्ब — उल — अफ़वाज है।
כֹּֽה־אָמַ֞ר יְהוָ֣ה צְבָא֗וֹת חֹ֠מוֹת בָּבֶ֤ל הָֽרְחָבָה֙ עַרְעֵ֣ר תִּתְעַרְעָ֔ר וּשְׁעָרֶ֥יהָ הַגְּבֹהִ֖ים בָּאֵ֣שׁ יִצַּ֑תּוּ וְיִֽגְע֨וּ עַמִּ֧ים בְּדֵי־רִ֛יק וּלְאֻמִּ֥ים בְּדֵי־אֵ֖שׁ וְיָעֵֽפוּ׃ ס | 58 |
“रब्ब — उल — अफ़वाज यूँ फ़रमाता है कि: बाबुल की चौड़ी फ़सील बिल्कुल गिरा दी जाएगी, और उसके बुलन्द फाटक आग से जला दिए जाएँगे। यूँ लोगों की मेहनत बे फ़ायदा ठहरेगी, और क़ौमों का काम आग के लिए होगा और वह मान्दा होंगे।”
הַדָּבָ֞ר אֲשֶׁר־צִוָּ֣ה ׀ יִרְמְיָ֣הוּ הַנָּבִ֗יא אֶת־שְׂרָיָ֣ה בֶן־נֵרִיָּה֮ בֶּן־מַחְסֵיָה֒ בְּלֶכְתּ֞וֹ אֶת־צִדְקִיָּ֤הוּ מֶֽלֶךְ־יְהוּדָה֙ בָּבֶ֔ל בִּשְׁנַ֥ת הָרְבִעִ֖ית לְמָלְכ֑וֹ וּשְׂרָיָ֖ה שַׂ֥ר מְנוּחָֽה׃ | 59 |
यह वह बात है, जो यरमियाह नबी ने सिरायाह — बिन — नेयिरियाह — बिन — महसियाह से कही, जब वह शाह — ए — यहूदाह सिदक़ियाह के साथ उसकी सल्तनत के चौथे बरस बाबुल में गया, और यह सिरायाह ख़्वाजासराओं का सरदार था।
וַיִּכְתֹּ֣ב יִרְמְיָ֗הוּ אֵ֧ת כָּל־הָרָעָ֛ה אֲשֶׁר־תָּב֥וֹא אֶל־בָּבֶ֖ל אֶל־סֵ֣פֶר אֶחָ֑ד אֵ֚ת כָּל־הַדְּבָרִ֣ים הָאֵ֔לֶּה הַכְּתֻבִ֖ים אֶל־בָּבֶֽל׃ | 60 |
और यरमियाह ने उन सब आफ़तों को जो बाबुल पर आने वाली थीं, एक किताब में क़लमबन्द किया; या'नी इन सब बातों को जो बाबुल के बारे में लिखी गई हैं।
וַיֹּ֥אמֶר יִרְמְיָ֖הוּ אֶל־שְׂרָיָ֑ה כְּבֹאֲךָ֣ בָבֶ֔ל וְֽרָאִ֔יתָ וְֽקָרָ֔אתָ אֵ֥ת כָּל־הַדְּבָרִ֖ים הָאֵֽלֶּה׃ | 61 |
और यरमियाह ने सिरायाह से कहा, कि “जब तू बाबुल में पहुँचे, तो' इन सब बातों को पढ़ना,
וְאָמַרְתָּ֗ יְהוָה֙ אַתָּ֨ה דִבַּ֜רְתָּ אֶל־הַמָּק֤וֹם הַזֶּה֙ לְהַכְרִית֔וֹ לְבִלְתִּ֤י הֱיֽוֹת־בּוֹ֙ יוֹשֵׁ֔ב לְמֵאָדָ֖ם וְעַד־בְּהֵמָ֑ה כִּֽי־שִׁמְמ֥וֹת עוֹלָ֖ם תִּֽהְיֶֽה׃ | 62 |
और कहना, 'ऐ ख़ुदावन्द, तूने इस जगह की बर्बादी के बारे में फ़रमाया है कि मैं इसको बर्बाद करूँगा, ऐसा कि कोई इसमें न बसे, न इंसान न हैवान, लेकिन हमेशा वीरान रहे।
וְהָיָה֙ כְּכַלֹּ֣תְךָ֔ לִקְרֹ֖א אֶת־הַסֵּ֣פֶר הַזֶּ֑ה תִּקְשֹׁ֤ר עָלָיו֙ אֶ֔בֶן וְהִשְׁלַכְתּ֖וֹ אֶל־תּ֥וֹךְ פְּרָֽת׃ | 63 |
और जब तू इस किताब को पढ़ चुके, तो एक पत्थर इससे बाँधना और फ़रात में फेंक देना;
וְאָמַרְתָּ֗ כָּ֠כָה תִּשְׁקַ֨ע בָּבֶ֤ל וְלֹֽא־תָקוּם֙ מִפְּנֵ֣י הָרָעָ֗ה אֲשֶׁ֧ר אָנֹכִ֛י מֵבִ֥יא עָלֶ֖יהָ וְיָעֵ֑פוּ עַד־הֵ֖נָּה דִּבְרֵ֥י יִרְמְיָֽהוּ׃ ס | 64 |
और कहना, 'बाबुल इसी तरह डूब जाएगा, और उस मुसीबत की वजह से जो मैं उस पर डाल दूँगा, फिर न उठेगा और वह मान्दा होंगे।” यरमियाह की बातें यहाँ तक हैं।