< יְשַׁעְיָהוּ 46 >
כָּרַ֥ע בֵּל֙ קֹרֵ֣ס נְב֔וֹ הָיוּ֙ עֲצַבֵּיהֶ֔ם לַחַיָּ֖ה וְלַבְּהֵמָ֑ה נְשֻׂאֹתֵיכֶ֣ם עֲמוּס֔וֹת מַשָּׂ֖א לַעֲיֵפָֽה׃ | 1 |
बेल झुकता है नबू ख़म होता उनके बुत जानवरों और चौपायों पर लदे हैं; जो चीजें तुम उठाए फिरते थे, थके हुए चौपायों पर लदी हैं।
קָרְס֤וּ כָֽרְעוּ֙ יַחְדָּ֔ו לֹ֥א יָכְל֖וּ מַלֵּ֣ט מַשָּׂ֑א וְנַפְשָׁ֖ם בַּשְּׁבִ֥י הָלָֽכָה׃ ס | 2 |
वह झुकते और एक साथ ख़म होते हैं; वह उस बोझ को बचा न सके, और वह आप ही ग़ुलामी में चले गए हैं।
שִׁמְע֤וּ אֵלַי֙ בֵּ֣ית יַעֲקֹ֔ב וְכָל־שְׁאֵרִ֖ית בֵּ֣ית יִשְׂרָאֵ֑ל הַֽעֲמֻסִים֙ מִנִּי־בֶ֔טֶן הַנְּשֻׂאִ֖ים מִנִּי־רָֽחַם׃ | 3 |
ऐ या'क़ूब के घराने, और ऐ इस्राईल के घर के सब बाक़ी थके लोगो, जिनको बत्न ही से मैंने उठाया और जिनको रहम ही से मैंने गोद में लिया, मेरी सुनो
וְעַד־זִקְנָה֙ אֲנִ֣י ה֔וּא וְעַד־שֵיבָ֖ה אֲנִ֣י אֶסְבֹּ֑ל אֲנִ֤י עָשִׂ֙יתִי֙ וַאֲנִ֣י אֶשָּׂ֔א וַאֲנִ֥י אֶסְבֹּ֖ל וַאֲמַלֵּֽט׃ ס | 4 |
मैं तुम्हारे बुढ़ापे तक वही हूँ और सिर सफ़ेद होने तक तुम को उठाए फिरूँगा। मैंने तुम्हें बनाया और मैं ही उठाता रहूँगा, मैं ही लिए चलूँगा और रिहाई दूँगा।
לְמִ֥י תְדַמְי֖וּנִי וְתַשְׁו֑וּ וְתַמְשִׁל֖וּנִי וְנִדְמֶֽה׃ | 5 |
तुम मुझे किससे तशबीह दोगे, और मुझे किसके बराबर ठहराओगे, और मुझे किसकी तरह कहोगे ताकि हम मुशाबह हों?
הַזָּלִ֤ים זָהָב֙ מִכִּ֔יס וְכֶ֖סֶף בַּקָּנֶ֣ה יִשְׁקֹ֑לוּ יִשְׂכְּר֤וּ צוֹרֵף֙ וְיַעֲשֵׂ֣הוּ אֵ֔ל יִסְגְּד֖וּ אַף־יִֽשְׁתַּחֲוּֽוּ׃ | 6 |
जो थैली से बाइफ़रात सोना निकालते और चाँदी को तराज़ू में तोलते हैं, वह सुनार को उजरत पर लगाते हैं और वह उससे एक बुत ख़ुदा के नाम से बनाता है; फिर वह उसके सामने झुकते, बल्कि सिज्दा करते हैं।
יִ֠שָּׂאֻהוּ עַל־כָּתֵ֨ף יִסְבְּלֻ֜הוּ וְיַנִּיחֻ֤הוּ תַחְתָּיו֙ וְיַֽעֲמֹ֔ד מִמְּקוֹמ֖וֹ לֹ֣א יָמִ֑ישׁ אַף־יִצְעַ֤ק אֵלָיו֙ וְלֹ֣א יַעֲנֶ֔ה מִצָּרָת֖וֹ לֹ֥א יוֹשִׁיעֶֽנּוּ׃ ס | 7 |
वह उसे कँधे पर उठाते हैं, वह उसे ले जाकर उसकी जगह पर खड़ा करते हैं और वह खड़ा रहता है, वह अपनी जगह से सरकता नहीं; बल्कि अगर कोई उसे पुकारे, तो वह न जवाब दे सकता है और न उसे मुसीबत से छुड़ा सकता है।
זִכְרוּ־זֹ֖את וְהִתְאֹשָׁ֑שׁוּ הָשִׁ֥יבוּ פוֹשְׁעִ֖ים עַל־לֵֽב׃ | 8 |
ऐ गुनाहगारो, इसको याद रख्खो और मर्द बनो, इस पर फिर सोचो।
זִכְר֥וּ רִאשֹׁנ֖וֹת מֵעוֹלָ֑ם כִּ֣י אָנֹכִ֥י אֵל֙ וְאֵ֣ין ע֔וֹד אֱלֹהִ֖ים וְאֶ֥פֶס כָּמֽוֹנִי׃ | 9 |
पहली बातों को जो क़दीम से हैं, याद करो कि मैं ख़ुदा हूँ और कोई दूसरा नहीं मैं ख़ुदा हूँ और मुझ सा कोई नहीं।
מַגִּ֤יד מֵֽרֵאשִׁית֙ אַחֲרִ֔ית וּמִקֶּ֖דֶם אֲשֶׁ֣ר לֹא־נַעֲשׂ֑וּ אֹמֵר֙ עֲצָתִ֣י תָק֔וּם וְכָל־חֶפְצִ֖י אֶעֱשֶֽׂה׃ | 10 |
जो इब्तिदा ही से अंजाम की ख़बर देता हूँ, और पहले दिनों से वह बातें जो अब तक वजूद में नहीं आई, बताता हूँ; और कहता हूँ, कि 'मेरी मसलहत क़ाईम रहेगी और मैं अपनी मर्ज़ी बिल्कुल पूरी करूँगा।
קֹרֵ֤א מִמִּזְרָח֙ עַ֔יִט מֵאֶ֥רֶץ מֶרְחָ֖ק אִ֣ישׁ עֲצָתִ֑י אַף־דִּבַּ֙רְתִּי֙ אַף־אֲבִיאֶ֔נָּה יָצַ֖רְתִּי אַף־אֶעֱשֶֽׂנָּה׃ ס | 11 |
जो पूरब से उक़ाब को या'नी उस शख़्स को जो मेरे इरादे को पूरा करेगा, दूर के मुल्क से बुलाता हूँ, मैंने ही कहा और मैं ही इसको वजूद में लाऊँगा; मैंने इसका इरादा किया और मैं ही इसे पूरा करूँगा।
שִׁמְע֥וּ אֵלַ֖י אַבִּ֣ירֵי לֵ֑ב הָרְחוֹקִ֖ים מִצְּדָקָֽה׃ | 12 |
“ऐ सख़्त दिलो, जो सदाक़त से दूर हो मेरी सुनो,
קֵרַ֤בְתִּי צִדְקָתִי֙ לֹ֣א תִרְחָ֔ק וּתְשׁוּעָתִ֖י לֹ֣א תְאַחֵ֑ר וְנָתַתִּ֤י בְצִיּוֹן֙ תְּשׁוּעָ֔ה לְיִשְׂרָאֵ֖ל תִּפְאַרְתִּֽי׃ ס | 13 |
मैं अपनी सदाक़त को नज़दीक लाता हूँ, वह दूर नहीं होगी और मेरी नजात ताख़ीर न करेगी; और मैं सिय्यून को नजात और इस्राईल को अपना जलाल बख़्शूँगा।”