< בְּרֵאשִׁית 33 >

וַיִּשָּׂ֨א יַעֲקֹ֜ב עֵינָ֗יו וַיַּרְא֙ וְהִנֵּ֣ה עֵשָׂ֣ו בָּ֔א וְעִמּ֕וֹ אַרְבַּ֥ע מֵא֖וֹת אִ֑ישׁ וַיַּ֣חַץ אֶת־הַיְלָדִ֗ים עַל־לֵאָה֙ וְעַל־רָחֵ֔ל וְעַ֖ל שְׁתֵּ֥י הַשְּׁפָחֽוֹת׃ 1
और या'क़ूब ने अपनी आँखें उठा कर नज़र की और क्या देखता है कि 'ऐसौ चार सौ आदमी साथ लिए चला आ रहा है। तब उसने लियाह और राख़िल और दोनों लौंडियों को बच्चे बाँट दिए।
וַיָּ֧שֶׂם אֶת־הַשְּׁפָח֛וֹת וְאֶת־יַלְדֵיהֶ֖ן רִֽאשֹׁנָ֑ה וְאֶת־לֵאָ֤ה וִֽילָדֶ֙יהָ֙ אַחֲרֹנִ֔ים וְאֶת־רָחֵ֥ל וְאֶת־יוֹסֵ֖ף אַחֲרֹנִֽים׃ 2
और लौंडियों और उनके बच्चों को सबसे आगे, और लियाह और उसके बच्चों को पीछे, और राख़िल और यूसुफ़ को सबसे पीछे रख्खा।
וְה֖וּא עָבַ֣ר לִפְנֵיהֶ֑ם וַיִּשְׁתַּ֤חוּ אַ֙רְצָה֙ שֶׁ֣בַע פְּעָמִ֔ים עַד־גִּשְׁתּ֖וֹ עַד־אָחִֽיו׃ 3
और वह खुद उनके आगे — आगे चला और अपने भाई के पास पहुँचते — पहुँचते सात बार ज़मीन तक झुका।
וַיָּ֨רָץ עֵשָׂ֤ו לִקְרָאתוֹ֙ וַֽיְחַבְּקֵ֔הוּ וַיִּפֹּ֥ל עַל־צַוָּארָ֖יו וַׄיִּׄשָּׁׄקֵ֑ׄהׄוּׄ וַיִּבְכּֽוּ׃ 4
और 'ऐसौ उससे मिलने को दौड़ा, और उससे बग़लगीर हुआ और उसे गले लगाया और चूमा, और वह दोनों रोए।
וַיִּשָּׂ֣א אֶת־עֵינָ֗יו וַיַּ֤רְא אֶת־הַנָּשִׁים֙ וְאֶת־הַיְלָדִ֔ים וַיֹּ֖אמֶר מִי־אֵ֣לֶּה לָּ֑ךְ וַיֹּאמַ֕ר הַיְלָדִ֕ים אֲשֶׁר־חָנַ֥ן אֱלֹהִ֖ים אֶת־עַבְדֶּֽךָ׃ 5
फिर उसने आँखें उठाई और 'औरतों और बच्चों को देखा और कहा कि यह तेरे साथ कौन हैं? उसने कहा, “यह वह बच्चे हैं जो ख़ुदा ने तेरे ख़ादिम को इनायत किए हैं।”
וַתִּגַּ֧שְׁןָ הַשְּׁפָח֛וֹת הֵ֥נָּה וְיַלְדֵיהֶ֖ן וַתִּֽשְׁתַּחֲוֶֽיןָ׃ 6
तब लौडियाँ और उनके बच्चे नज़दीक आए और अपने आप को झुकाया।
וַתִּגַּ֧שׁ גַּם־לֵאָ֛ה וִילָדֶ֖יהָ וַיִּֽשְׁתַּחֲו֑וּ וְאַחַ֗ר נִגַּ֥שׁ יוֹסֵ֛ף וְרָחֵ֖ל וַיִּֽשְׁתַּחֲוֽוּ׃ 7
फिर लियाह अपने बच्चों के साथ नज़दीक आई और वह झुके, आख़िर को यूसुफ़ और राख़िल पास आए और उन्होंने अपने आप को झुकाया।
וַיֹּ֕אמֶר מִ֥י לְךָ֛ כָּל־הַמַּחֲנֶ֥ה הַזֶּ֖ה אֲשֶׁ֣ר פָּגָ֑שְׁתִּי וַיֹּ֕אמֶר לִמְצֹא־חֵ֖ן בְּעֵינֵ֥י אֲדֹנִֽי׃ 8
फिर उसने कहा कि उस बड़े गोल से जो मुझे मिला तेरा क्या मतलब है? उसने कहा, यह कि मैं अपने ख़ुदावन्द की नज़र में मक़्बूल ठहरूँ।
וַיֹּ֥אמֶר עֵשָׂ֖ו יֶשׁ־לִ֣י רָ֑ב אָחִ֕י יְהִ֥י לְךָ֖ אֲשֶׁר־לָֽךְ׃ 9
तब 'ऐसौ ने कहा, “मेरे पास बहुत हैं; इसलिए ऐ मेरे भाई जो तेरा है वह तेरा ही रहे।”
וַיֹּ֣אמֶר יַעֲקֹ֗ב אַל־נָא֙ אִם־נָ֨א מָצָ֤אתִי חֵן֙ בְּעֵינֶ֔יךָ וְלָקַחְתָּ֥ מִנְחָתִ֖י מִיָּדִ֑י כִּ֣י עַל־כֵּ֞ן רָאִ֣יתִי פָנֶ֗יךָ כִּרְאֹ֛ת פְּנֵ֥י אֱלֹהִ֖ים וַתִּרְצֵֽנִי׃ 10
या'क़ूब ने कहा, “नहीं अगर मुझ पर तेरे करम की नज़र हुई है तो मेरा नज़राना मेरे हाथ से क़ुबूल कर, क्यूँकि मैंने तो तेरा मुँह ऐसा देखा जैसा कोई ख़ुदा का मुँह देखता है, और तू मुझ से राज़ी हुआ।
קַח־נָ֤א אֶת־בִּרְכָתִי֙ אֲשֶׁ֣ר הֻבָ֣את לָ֔ךְ כִּֽי־חַנַּ֥נִי אֱלֹהִ֖ים וְכִ֣י יֶשׁ־לִי־כֹ֑ל וַיִּפְצַר־בּ֖וֹ וַיִּקָּֽח׃ 11
इसलिए मेरा नज़राना जो तेरे सामने पेश हुआ उसे क़ुबूल कर ले, क्यूँकि ख़ुदा ने मुझ पर बड़ा फ़ज़ल किया है और मेरे पास सब कुछ है।” ग़र्ज़ उसने उसे मजबूर किया, तब उसने उसे ले लिया।
וַיֹּ֖אמֶר נִסְעָ֣ה וְנֵלֵ֑כָה וְאֵלְכָ֖ה לְנֶגְדֶּֽךָ׃ 12
और उसने कहा कि अब हम कूच करें और चल पड़ें, और मैं तेरे आगे — आगे हो लूँगा।
וַיֹּ֣אמֶר אֵלָ֗יו אֲדֹנִ֤י יֹדֵ֙עַ֙ כִּֽי־הַיְלָדִ֣ים רַכִּ֔ים וְהַצֹּ֥אן וְהַבָּקָ֖ר עָל֣וֹת עָלָ֑י וּדְפָקוּם֙ י֣וֹם אֶחָ֔ד וָמֵ֖תוּ כָּל־הַצֹּֽאן׃ 13
उसने उसे जवाब दिया, “मेरा ख़ुदावन्द जानता है कि मेरे साथ नाज़ुक बच्चे और दूध पिलाने वाली भेड़ — बकरियाँ और गाय हैं। अगर उनकी एक दिन भी हद से ज़्यादा हंकाएँ तो सब भेड़ बकरियाँ मर जाएँगी।
יַעֲבָר־נָ֥א אֲדֹנִ֖י לִפְנֵ֣י עַבְדּ֑וֹ וַאֲנִ֞י אֶתְנָהֲלָ֣ה לְאִטִּ֗י לְרֶ֨גֶל הַמְּלָאכָ֤ה אֲשֶׁר־לְפָנַי֙ וּלְרֶ֣גֶל הַיְלָדִ֔ים עַ֛ד אֲשֶׁר־אָבֹ֥א אֶל־אֲדֹנִ֖י שֵׂעִֽירָה׃ 14
इसलिए मेरा ख़ुदावन्द अपने ख़ादिम से पहले रवाना हो जाए, और मैं चौपायों और बच्चों की रफ़्तार के मुताबिक़ आहिस्ता — आहिस्ता चलता हुआ अपने ख़ुदावन्द के पास श'ईर में आ जाऊँगा।”
וַיֹּ֣אמֶר עֵשָׂ֔ו אַצִּֽיגָה־נָּ֣א עִמְּךָ֔ מִן־הָעָ֖ם אֲשֶׁ֣ר אִתִּ֑י וַיֹּ֙אמֶר֙ לָ֣מָּה זֶּ֔ה אֶמְצָא־חֵ֖ן בְּעֵינֵ֥י אֲדֹנִֽי׃ 15
तब 'ऐसौ ने कहा कि मर्ज़ी हो तो मैं जो लोग मेरे साथ हैं उनमें से थोड़े तेरे साथ छोड़ता जाऊँ। उसने कहा, इसकी क्या ज़रूरत है? मेरे ख़ुदावन्द की नज़र — ए — करम मेरे लिए काफ़ी है।
וַיָּשָׁב֩ בַּיּ֨וֹם הַה֥וּא עֵשָׂ֛ו לְדַרְכּ֖וֹ שֵׂעִֽירָה׃ 16
तब 'ऐसौ उसी रोज़ उल्टे पाँव श'ईर को लौटा।
וְיַעֲקֹב֙ נָסַ֣ע סֻכֹּ֔תָה וַיִּ֥בֶן ל֖וֹ בָּ֑יִת וּלְמִקְנֵ֙הוּ֙ עָשָׂ֣ה סֻכֹּ֔ת עַל־כֵּ֛ן קָרָ֥א שֵׁם־הַמָּק֖וֹם סֻכּֽוֹת׃ ס 17
और या'क़ूब सफ़र करता हुआ सुक्कात में आया, और अपने लिए एक घर बनाया और अपने चौपायों के लिए झोंपड़े खड़े किए। इसी वजह से इस जगह का नाम सुक्कात पड़ गया।
וַיָּבֹא֩ יַעֲקֹ֨ב שָׁלֵ֜ם עִ֣יר שְׁכֶ֗ם אֲשֶׁר֙ בְּאֶ֣רֶץ כְּנַ֔עַן בְּבֹא֖וֹ מִפַּדַּ֣ן אֲרָ֑ם וַיִּ֖חַן אֶת־פְּנֵ֥י הָעִֽיר׃ 18
और या'क़ूब जब फ़द्दान अराम से चला तो मुल्क — ए — कना'न के एक शहर सिकम के नज़दीक सही — ओ — सलामत पहुँचा और उस शहर के सामने अपने डेरे लगाए।
וַיִּ֜קֶן אֶת־חֶלְקַ֣ת הַשָּׂדֶ֗ה אֲשֶׁ֤ר נָֽטָה־שָׁם֙ אָהֳל֔וֹ מִיַּ֥ד בְּנֵֽי־חֲמ֖וֹר אֲבִ֣י שְׁכֶ֑ם בְּמֵאָ֖ה קְשִׂיטָֽה׃ 19
और ज़मीन के जिस हिस्से पर उसने अपना ख़ेमा खड़ा किया था, उसे उसने सिकम के बाप हमोर के लड़कों से चाँदी के सौ सिक्के देकर ख़रीद लिया।
וַיַּצֶּב־שָׁ֖ם מִזְבֵּ֑חַ וַיִּ֨קְרָא־ל֔וֹ אֵ֖ל אֱלֹהֵ֥י יִשְׂרָאֵֽל׃ ס 20
और वहाँ उस ने ख़ुदा, के लिए एक मसबह बनाया और उसका नाम एल — इलाह — ए — इस्राईल रख्खा।

< בְּרֵאשִׁית 33 >