< יְחֶזְקֵאל 1 >

וַיְהִ֣י ׀ בִּשְׁלֹשִׁ֣ים שָׁנָ֗ה בָּֽרְבִיעִי֙ בַּחֲמִשָּׁ֣ה לַחֹ֔דֶשׁ וַאֲנִ֥י בְתֽוֹךְ־הַגּוֹלָ֖ה עַל־נְהַר־כְּבָ֑ר נִפְתְּחוּ֙ הַשָּׁמַ֔יִם וָאֶרְאֶ֖ה מַרְא֥וֹת אֱלֹהִֽים׃ 1
तीसवें वर्ष के चौथे महीने के पाँचवें दिन, मैं बन्दियों के बीच कबार नदी के तट पर था, तब स्वर्ग खुल गया, और मैंने परमेश्वर के दर्शन पाए।
בַּחֲמִשָּׁ֖ה לַחֹ֑דֶשׁ הִ֚יא הַשָּׁנָ֣ה הַחֲמִישִׁ֔ית לְגָל֖וּת הַמֶּ֥לֶךְ יוֹיָכִֽין׃ 2
यहोयाकीन राजा की बँधुआई के पाँचवें वर्ष के चौथे महीने के पाँचवें दिन को, कसदियों के देश में कबार नदी के तट पर,
הָיֹ֣ה הָיָ֣ה דְבַר־יְ֠הוָה אֶל־יְחֶזְקֵ֨אל בֶּן־בּוּזִ֧י הַכֹּהֵ֛ן בְּאֶ֥רֶץ כַּשְׂדִּ֖ים עַל־נְהַר־כְּבָ֑ר וַתְּהִ֥י עָלָ֛יו שָׁ֖ם יַד־יְהוָֽה׃ 3
यहोवा का वचन बूजी के पुत्र यहेजकेल याजक के पास पहुँचा; और यहोवा की शक्ति उस पर वहीं प्रगट हुई।
וָאֵ֡רֶא וְהִנֵּה֩ ר֨וּחַ סְעָרָ֜ה בָּאָ֣ה מִן־הַצָּפ֗וֹן עָנָ֤ן גָּדוֹל֙ וְאֵ֣שׁ מִתְלַקַּ֔חַת וְנֹ֥גַֽהּ ל֖וֹ סָבִ֑יב וּמִ֨תּוֹכָ֔הּ כְּעֵ֥ין הַחַשְׁמַ֖ל מִתּ֥וֹךְ הָאֵֽשׁ׃ 4
जब मैं देखने लगा, तो क्या देखता हूँ कि उत्तर दिशा से बड़ी घटा, और लहराती हुई आग सहित बड़ी आँधी आ रही है; और घटा के चारों ओर प्रकाश और आग के बीचों-बीच से झलकाया हुआ पीतल सा कुछ दिखाई देता है।
וּמִ֨תּוֹכָ֔הּ דְּמ֖וּת אַרְבַּ֣ע חַיּ֑וֹת וְזֶה֙ מַרְאֵֽיהֶ֔ן דְּמ֥וּת אָדָ֖ם לָהֵֽנָּה׃ 5
फिर उसके बीच से चार जीवधारियों के समान कुछ निकले। और उनका रूप मनुष्य के समान था,
וְאַרְבָּעָ֥ה פָנִ֖ים לְאֶחָ֑ת וְאַרְבַּ֥ע כְּנָפַ֖יִם לְאַחַ֥ת לָהֶֽם׃ 6
परन्तु उनमें से हर एक के चार-चार मुख और चार-चार पंख थे।
וְרַגְלֵיהֶ֖ם רֶ֣גֶל יְשָׁרָ֑ה וְכַ֣ף רַגְלֵיהֶ֗ם כְּכַף֙ רֶ֣גֶל עֵ֔גֶל וְנֹ֣צְצִ֔ים כְּעֵ֖ין נְחֹ֥שֶׁת קָלָֽל׃ 7
उनके पाँव सीधे थे, और उनके पाँवों के तलवे बछड़ों के खुरों के से थे; और वे झलकाए हुए पीतल के समान चमकते थे।
וִידֵ֣י אָדָ֗ם מִתַּ֙חַת֙ כַּנְפֵיהֶ֔ם עַ֖ל אַרְבַּ֣עַת רִבְעֵיהֶ֑ם וּפְנֵיהֶ֥ם וְכַנְפֵיהֶ֖ם לְאַרְבַּעְתָּֽם׃ 8
उनके चारों ओर पर पंखों के नीचे मनुष्य के से हाथ थे। और उन चारों के मुख और पंख इस प्रकार के थे:
חֹֽבְרֹ֛ת אִשָּׁ֥ה אֶל־אֲחוֹתָ֖הּ כַּנְפֵיהֶ֑ם לֹא־יִסַּ֣בּוּ בְלֶכְתָּ֔ן אִ֛ישׁ אֶל־עֵ֥בֶר פָּנָ֖יו יֵלֵֽכוּ׃ 9
उनके पंख एक दूसरे से परस्पर मिले हुए थे; वे अपने-अपने सामने सीधे ही चलते हुए मुड़ते नहीं थे।
וּדְמ֣וּת פְּנֵיהֶם֮ פְּנֵ֣י אָדָם֒ וּפְנֵ֨י אַרְיֵ֤ה אֶל־הַיָּמִין֙ לְאַרְבַּעְתָּ֔ם וּפְנֵי־שׁ֥וֹר מֵֽהַשְּׂמֹ֖אול לְאַרְבַּעְתָּ֑ן וּפְנֵי־נֶ֖שֶׁר לְאַרְבַּעְתָּֽן׃ 10
१०उनके सामने के मुखों का रूप मनुष्य का सा था; और उन चारों के दाहिनी ओर के मुख सिंह के से, बाईं ओर के मुख बैल के से थे, और चारों के पीछे के मुख उकाब पक्षी के से थे।
וּפְנֵיהֶ֕ם וְכַנְפֵיהֶ֥ם פְּרֻד֖וֹת מִלְמָ֑עְלָה לְאִ֗ישׁ שְׁ֚תַּיִם חֹבְר֣וֹת אִ֔ישׁ וּשְׁתַּ֣יִם מְכַסּ֔וֹת אֵ֖ת גְּוִיֹתֵיהֶֽנָה׃ 11
११उनके चेहरे ऐसे थे और उनके मुख और पंख ऊपर की ओर अलग-अलग थे; हर एक जीवधारी के दो-दो पंख थे, जो एक दूसरे के पंखों से मिले हुए थे, और दो-दो पंखों से उनका शरीर ढँपा हुआ था।
וְאִ֛ישׁ אֶל־עֵ֥בֶר פָּנָ֖יו יֵלֵ֑כוּ אֶ֣ל אֲשֶׁר֩ יִֽהְיֶה־שָׁ֨מָּה הָר֤וּחַ לָלֶ֙כֶת֙ יֵלֵ֔כוּ לֹ֥א יִסַּ֖בּוּ בְּלֶכְתָּֽן׃ 12
१२वे सीधे अपने-अपने सामने ही चलते थे; जिधर आत्मा जाना चाहता था, वे उधर ही जाते थे, और चलते समय मुड़ते नहीं थे।
וּדְמ֨וּת הַחַיּ֜וֹת מַרְאֵיהֶ֣ם כְּגַחֲלֵי־אֵ֗שׁ בֹּֽעֲרוֹת֙ כְּמַרְאֵ֣ה הַלַּפִּדִ֔ים הִ֕יא מִתְהַלֶּ֖כֶת בֵּ֣ין הַחַיּ֑וֹת וְנֹ֣גַהּ לָאֵ֔שׁ וּמִן־הָאֵ֖שׁ יוֹצֵ֥א בָרָֽק׃ 13
१३जीवधारियों के रूप अंगारों और जलते हुए मशालों के समान दिखाई देते थे, और वह आग जीवधारियों के बीच इधर-उधर चलती-फिरती हुई बड़ा प्रकाश देती रही; और उस आग से बिजली निकलती थी।
וְהַחַיּ֖וֹת רָצ֣וֹא וָשׁ֑וֹב כְּמַרְאֵ֖ה הַבָּזָֽק׃ 14
१४जीवधारियों का चलना फिरना बिजली का सा था।
וָאֵ֖רֶא הַחַיּ֑וֹת וְהִנֵּה֩ אוֹפַ֨ן אֶחָ֥ד בָּאָ֛רֶץ אֵ֥צֶל הַחַיּ֖וֹת לְאַרְבַּ֥עַת פָּנָֽיו׃ 15
१५जब मैं जीवधारियों को देख ही रहा था, तो क्या देखा कि भूमि पर उनके पास चारों मुखों की गिनती के अनुसार, एक-एक पहिया था।
מַרְאֵ֨ה הָאוֹפַנִּ֤ים וּמַעֲשֵׂיהֶם֙ כְּעֵ֣ין תַּרְשִׁ֔ישׁ וּדְמ֥וּת אֶחָ֖ד לְאַרְבַּעְתָּ֑ן וּמַרְאֵיהֶם֙ וּמַ֣עֲשֵׂיהֶ֔ם כַּאֲשֶׁ֛ר יִהְיֶ֥ה הָאוֹפַ֖ן בְּת֥וֹךְ הָאוֹפָֽן׃ 16
१६पहियों का रूप और बनावट फीरोजे की सी थी, और चारों का एक ही रूप था; और उनका रूप और बनावट ऐसी थी जैसे एक पहिये के बीच दूसरा पहिया हो।
עַל־אַרְבַּ֥עַת רִבְעֵיהֶ֖ן בְּלֶכְתָּ֣ם יֵלֵ֑כוּ לֹ֥א יִסַּ֖בּוּ בְּלֶכְתָּֽן׃ 17
१७चलते समय वे अपनी चारों ओर चल सकते थे, और चलने में मुड़ते नहीं थे।
וְגַ֨בֵּיהֶ֔ן וְגֹ֥בַהּ לָהֶ֖ם וְיִרְאָ֣ה לָהֶ֑ם וְגַבֹּתָ֗ם מְלֵאֹ֥ת עֵינַ֛יִם סָבִ֖יב לְאַרְבַּעְתָּֽן׃ 18
१८उन चारों पहियों के घेरे बहुत बड़े और डरावने थे, और उनके घेरों में चारों ओर आँखें ही आँखें भरी हुई थीं।
וּבְלֶ֙כֶת֙ הַֽחַיּ֔וֹת יֵלְכ֥וּ הָאוֹפַנִּ֖ים אֶצְלָ֑ם וּבְהִנָּשֵׂ֤א הַֽחַיּוֹת֙ מֵעַ֣ל הָאָ֔רֶץ יִנָּשְׂא֖וּ הָאוֹפַנִּֽים׃ 19
१९जब जीवधारी चलते थे, तब पहिये भी उनके साथ चलते थे; और जब जीवधारी भूमि पर से उठते थे, तब पहिये भी उठते थे।
עַ֣ל אֲשֶׁר֩ יִֽהְיֶה־שָּׁ֨ם הָר֤וּחַ לָלֶ֙כֶת֙ יֵלֵ֔כוּ שָׁ֥מָּה הָר֖וּחַ לָלֶ֑כֶת וְהָאוֹפַנִּ֗ים יִנָּשְׂאוּ֙ לְעֻמָּתָ֔ם כִּ֛י ר֥וּחַ הַחַיָּ֖ה בָּאוֹפַנִּֽים׃ 20
२०जिधर आत्मा जाना चाहती थी, उधर ही वे जाते, और पहिये जीवधारियों के साथ उठते थे; क्योंकि उनकी आत्मा पहियों में थी।
בְּלֶכְתָּ֣ם יֵלֵ֔כוּ וּבְעָמְדָ֖ם יַֽעֲמֹ֑דוּ וּֽבְהִנָּשְׂאָ֞ם מֵעַ֣ל הָאָ֗רֶץ יִנָּשְׂא֤וּ הָאֽוֹפַנִּים֙ לְעֻמָּתָ֔ם כִּ֛י ר֥וּחַ הַחַיָּ֖ה בָּאוֹפַנִּֽים׃ 21
२१जब वे चलते थे तब ये भी चलते थे; और जब जब वे खड़े होते थे तब ये भी खड़े होते थे; और जब वे भूमि पर से उठते थे तब पहिये भी उनके साथ उठते थे; क्योंकि जीवधारियों की आत्मा पहियों में थी।
וּדְמ֞וּת עַל־רָאשֵׁ֤י הַחַיָּה֙ רָקִ֔יעַ כְּעֵ֖ין הַקֶּ֣רַח הַנּוֹרָ֑א נָט֥וּי עַל־רָאשֵׁיהֶ֖ם מִלְמָֽעְלָה׃ 22
२२जीवधारियों के सिरों के ऊपर आकाशमण्डल सा कुछ था जो बर्फ के समान भयानक रीति से चमकता था, और वह उनके सिरों के ऊपर फैला हुआ था।
וְתַ֙חַת֙ הָרָקִ֔יעַ כַּנְפֵיהֶ֣ם יְשָׁר֔וֹת אִשָּׁ֖ה אֶל־אֲחוֹתָ֑הּ לְאִ֗ישׁ שְׁתַּ֤יִם מְכַסּוֹת֙ לָהֵ֔נָּה וּלְאִ֗ישׁ שְׁתַּ֤יִם מְכַסּוֹת֙ לָהֵ֔נָּה אֵ֖ת גְּוִיֹּתֵיהֶֽם׃ 23
२३आकाशमण्डल के नीचे, उनके पंख एक दूसरे की ओर सीधे फैले हुए थे; और हर एक जीवधारी के दो-दो और पंख थे जिनसे उनके शरीर ढँपे हुए थे।
וָאֶשְׁמַ֣ע אֶת־ק֣וֹל כַּנְפֵיהֶ֡ם כְּקוֹל֩ מַ֨יִם רַבִּ֤ים כְּקוֹל־שַׁדַּי֙ בְּלֶכְתָּ֔ם ק֥וֹל הֲמֻלָּ֖ה כְּק֣וֹל מַחֲנֶ֑ה בְּעָמְדָ֖ם תְּרַפֶּ֥ינָה כַנְפֵיהֶֽן׃ 24
२४उनके चलते समय उनके पंखों की फड़फड़ाहट की आहट मुझे बहुत से जल, या सर्वशक्तिमान की वाणी, या सेना के हलचल की सी सुनाई पड़ती थी; और जब वे खड़े होते थे, तब अपने पंख लटका लेते थे।
וַיְהִי־ק֕וֹל מֵעַ֕ל לָרָקִ֖יעַ אֲשֶׁ֣ר עַל־רֹאשָׁ֑ם בְּעָמְדָ֖ם תְּרַפֶּ֥ינָה כַנְפֵיהֶֽן׃ 25
२५फिर उनके सिरों के ऊपर जो आकाशमण्डल था, उसके ऊपर से एक शब्द सुनाई पड़ता था; और जब वे खड़े होते थे, तब अपने पंख लटका लेते थे।
וּמִמַּ֗עַל לָרָקִ֙יעַ֙ אֲשֶׁ֣ר עַל־רֹאשָׁ֔ם כְּמַרְאֵ֥ה אֶֽבֶן־סַפִּ֖יר דְּמ֣וּת כִּסֵּ֑א וְעַל֙ דְּמ֣וּת הַכִּסֵּ֔א דְּמ֞וּת כְּמַרְאֵ֥ה אָדָ֛ם עָלָ֖יו מִלְמָֽעְלָה׃ 26
२६जो आकाशमण्डल उनके सिरों के ऊपर था, उसके ऊपर मानो कुछ नीलम का बना हुआ सिंहासन था; इस सिंहासन के ऊपर मनुष्य के समान कोई दिखाई देता था।
וָאֵ֣רֶא ׀ כְּעֵ֣ין חַשְׁמַ֗ל כְּמַרְאֵה־אֵ֤שׁ בֵּֽית־לָהּ֙ סָבִ֔יב מִמַּרְאֵ֥ה מָתְנָ֖יו וּלְמָ֑עְלָה וּמִמַּרְאֵ֤ה מָתְנָיו֙ וּלְמַ֔טָּה רָאִ֙יתִי֙ כְּמַרְאֵה־אֵ֔שׁ וְנֹ֥גַֽהּ ל֖וֹ סָבִֽיב׃ 27
२७उसकी मानो कमर से लेकर ऊपर की ओर मुझे झलकाया हुआ पीतल सा दिखाई पड़ा, और उसके भीतर और चारों ओर आग सी दिखाई देती थी; फिर उस मनुष्य की कमर से लेकर नीचे की ओर भी मुझे कुछ आग सी दिखाई देती थी; और उसके चारों ओर प्रकाश था।
כְּמַרְאֵ֣ה הַקֶּ֡שֶׁת אֲשֶׁר֩ יִֽהְיֶ֨ה בֶעָנָ֜ן בְּי֣וֹם הַגֶּ֗שֶׁם כֵּ֣ן מַרְאֵ֤ה הַנֹּ֙גַהּ֙ סָבִ֔יב ה֕וּא מַרְאֵ֖ה דְּמ֣וּת כְּבוֹד־יְהוָ֑ה וָֽאֶרְאֶה֙ וָאֶפֹּ֣ל עַל־פָּנַ֔י וָאֶשְׁמַ֖ע ק֥וֹל מְדַבֵּֽר׃ ס 28
२८जैसे वर्षा के दिन बादल में धनुष दिखाई पड़ता है, वैसे ही चारों ओर का प्रकाश दिखाई देता था। यहोवा के तेज का रूप ऐसा ही था। और उसे देखकर, मैं मुँह के बल गिरा, तब मैंने एक शब्द सुना जैसे कोई बातें करता है।

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