< 2 שְׁמוּאֵל 18 >

וַיִּפְקֹ֣ד דָּוִ֔ד אֶת־הָעָ֖ם אֲשֶׁ֣ר אִתּ֑וֹ וַיָּ֣שֶׂם עֲלֵיהֶ֔ם שָׂרֵ֥י אֲלָפִ֖ים וְשָׂרֵ֥י מֵאֽוֹת׃ 1
दावीद ने अपने साथियों की गिनती की, और इसमें उन्होंने हज़ारों और सैकड़ों के ऊपर प्रधान बना दिए.
וַיְשַׁלַּ֨ח דָּוִ֜ד אֶת־הָעָ֗ם הַשְּׁלִשִׁ֤ית בְּיַד־יוֹאָב֙ וְ֠הַשְּׁלִשִׁית בְּיַ֨ד אֲבִישַׁ֤י בֶּן־צְרוּיָה֙ אֲחִ֣י יוֹאָ֔ב וְהַ֨שְּׁלִשִׁ֔ת בְּיַ֖ד אִתַּ֣י הַגִּתִּ֑י ס וַיֹּ֤אמֶר הַמֶּ֙לֶךְ֙ אֶל־הָעָ֔ם יָצֹ֥א אֵצֵ֛א גַּם־אֲנִ֖י עִמָּכֶֽם׃ 2
तब उन्होंने सेना को तीन भागों में बांटकर एक तिहाई भाग योआब के नेतृत्व में, दूसरी तिहाई भाग ज़ेरुइयाह के पुत्र और योआब के भाई अबीशाई के नेतृत्व में और तीसरी तिहाई भाग गाथी इत्तई के नेतृत्व में भेज दिया. राजा ने सेना के सामने यह घोषित किया, “मैं स्वयं तुम्हारे साथ चलूंगा.”
וַיֹּ֨אמֶר הָעָ֜ם לֹ֣א תֵצֵ֗א כִּי֩ אִם־נֹ֨ס נָנ֜וּס לֹא־יָשִׂ֧ימוּ אֵלֵ֣ינוּ לֵ֗ב וְאִם־יָמֻ֤תוּ חֶצְיֵ֙נוּ֙ לֹֽא־יָשִׂ֤ימוּ אֵלֵ֙ינוּ֙ לֵ֔ב כִּֽי־עַתָּ֥ה כָמֹ֖נוּ עֲשָׂרָ֣ה אֲלָפִ֑ים וְעַתָּ֣ה ט֔וֹב כִּי־תִֽהְיֶה־לָּ֥נוּ מֵעִ֖יר לַעְזֽוֹר׃ ס 3
मगर सैनिकों ने विरोध किया, “नहीं, आपका हमारे साथ जाना सही नहीं है. यदि हमें भागना ही पड़ जाए, तो उन्हें तो हमारी कोई परवाह नहीं है. यदि हम आधे मार दिये जाए तो भी अबशालोम के सैनिक परवाह नहीं करेंगे. मगर आपका महत्व हम जैसे दस हज़ार के बराबर है. तब इस स्थिति में ठीक यही है कि आप नगर में रहते हुए ही हमारा समर्थन करें.”
וַיֹּ֤אמֶר אֲלֵיהֶם֙ הַמֶּ֔לֶךְ אֲשֶׁר־יִיטַ֥ב בְּעֵינֵיכֶ֖ם אֶעֱשֶׂ֑ה וַיַּעֲמֹ֤ד הַמֶּ֙לֶךְ֙ אֶל־יַ֣ד הַשַּׁ֔עַר וְכָל־הָעָם֙ יָֽצְא֔וּ לְמֵא֖וֹת וְלַאֲלָפִֽים׃ 4
यह सुन राजा ने उन्हें उत्तर दिया, “मैं वही करूंगा जो तुम्हारी दृष्टि में सही है.” तब राजा नगर फाटक के पास खड़े हो गए और सारी सेना सौ-सौ और हज़ार के समान समूहों में उनके पास से निकलते चले गए.
וַיְצַ֣ו הַמֶּ֡לֶךְ אֶת־י֠וֹאָב וְאֶת־אֲבִישַׁ֤י וְאֶת־אִתַּי֙ לֵאמֹ֔ר לְאַט־לִ֖י לַנַּ֣עַר לְאַבְשָׁל֑וֹם וְכָל־הָעָ֣ם שָׁמְע֗וּ בְּצַוֹּ֥ת הַמֶּ֛לֶךְ אֶת־כָּל־הַשָּׂרִ֖ים עַל־דְּבַ֥ר אַבְשָׁלֽוֹם׃ 5
राजा ने योआब, अबीशाई और इत्तई को आदेश दिया, “मेरे हित का ध्यान रखते हुए इस युवा अबशालोम के साथ दया दिखाना.” राजा द्वारा अबशालोम के विषय में सारे प्रधानों को दिए गए इस आदेश को सारी सेना ने भी सुना.
וַיֵּצֵ֥א הָעָ֛ם הַשָּׂדֶ֖ה לִקְרַ֣את יִשְׂרָאֵ֑ל וַתְּהִ֥י הַמִּלְחָמָ֖ה בְּיַ֥עַר אֶפְרָֽיִם׃ 6
तब यह सेना इस्राएल से युद्ध करने मैदान में जा पहुंची, और यह युद्ध एफ्राईम के वन में छिड़ गया.
וַיִּנָּ֤גְפוּ שָׁם֙ עַ֣ם יִשְׂרָאֵ֔ל לִפְנֵ֖י עַבְדֵ֣י דָוִ֑ד וַתְּהִי־שָׁ֞ם הַמַּגֵּפָ֧ה גְדוֹלָ֛ה בַּיּ֥וֹם הַה֖וּא עֶשְׂרִ֥ים אָֽלֶף׃ 7
दावीद के सैनिकों ने इस्राएल की सेना को हरा दिया. उस दिन की मार बहुत ही भयानक थी जिसमें 20,000 सैनिक मारे गये.
וַתְּהִי־שָׁ֧ם הַמִּלְחָמָ֛ה נָפֹ֖צֶת עַל־פְּנֵ֣י כָל־הָאָ֑רֶץ וַיֶּ֤רֶב הַיַּ֙עַר֙ לֶאֱכֹ֣ל בָּעָ֔ם מֵאֲשֶׁ֥ר אָכְלָ֛ה הַחֶ֖רֶב בַּיּ֥וֹם הַהֽוּא׃ 8
यह युद्ध पूरे देश में फैल गया था. तलवार की अपेक्षा वन के घनत्व ने ही अधिकतर सैनिकों के प्राण ले लिए.
וַיִּקָּרֵא֙ אַבְשָׁל֔וֹם לִפְנֵ֖י עַבְדֵ֣י דָוִ֑ד וְאַבְשָׁל֞וֹם רֹכֵ֣ב עַל־הַפֶּ֗רֶד וַיָּבֹ֣א הַפֶּ֡רֶד תַּ֣חַת שׂוֹבֶךְ֩ הָאֵלָ֨ה הַגְּדוֹלָ֜ה וַיֶּחֱזַ֧ק רֹאשׁ֣וֹ בָאֵלָ֗ה וַיֻּתַּן֙ בֵּ֤ין הַשָּׁמַ֙יִם֙ וּבֵ֣ין הָאָ֔רֶץ וְהַפֶּ֥רֶד אֲשֶׁר־תַּחְתָּ֖יו עָבָֽר׃ 9
संयोगवश, अबशालोम की भेंट दावीद के सैनिकों से हो गई. उस समय अबशालोम अपने खच्चर पर चढ़ा हुआ था. खच्चर एक विशालकाय बांज वृक्ष के नीचे से भागने लगा. परिणामस्वरूप, अबशालोम का सिर बांज वृक्ष की डालियों में मजबूती से जा फंसा. उसका खच्चर तो आगे बढ़ गया मगर वह स्वयं भूमि और आकाश के बीच लटका रह गया.
וַיַּרְא֙ אִ֣ישׁ אֶחָ֔ד וַיַּגֵּ֖ד לְיוֹאָ֑ב וַיֹּ֗אמֶר הִנֵּה֙ רָאִ֣יתִי אֶת־אַבְשָׁלֹ֔ם תָּל֖וּי בָּאֵלָֽה׃ 10
किसी ने अबशालोम को इस स्थिति में देख लिया और जाकर योआब को इसकी सूचना दे दी, “सुनिए, मैंने अबशालोम को बांज वृक्ष से लटके हुए देखा है.”
וַיֹּ֣אמֶר יוֹאָ֗ב לָאִישׁ֙ הַמַּגִּ֣יד ל֔וֹ וְהִנֵּ֣ה רָאִ֔יתָ וּמַדּ֛וּעַ לֹֽא־הִכִּית֥וֹ שָׁ֖ם אָ֑רְצָה וְעָלַ֗י לָ֤תֶת לְךָ֙ עֲשָׂ֣רָה כֶ֔סֶף וַחֲגֹרָ֖ה אֶחָֽת׃ 11
योआब ने उस व्यक्ति से कहा, “अच्छा! तुमने उसे सचमुच देखा है? तब तुमने उसे मारकर भूमि पर क्यों न गिरा दिया? इसके लिए मैं तुम्हें खुशी से दस चांदी के सिक्‍के और योद्धा का एक कमरबंध भी दे देता.”
וַיֹּ֤אמֶר הָאִישׁ֙ אֶל־יוֹאָ֔ב וְל֨וּא אָנֹכִ֜י שֹׁקֵ֤ל עַל־כַּפַּי֙ אֶ֣לֶף כֶּ֔סֶף לֹֽא־אֶשְׁלַ֥ח יָדִ֖י אֶל־בֶּן־הַמֶּ֑לֶךְ כִּ֣י בְאָזְנֵ֜ינוּ צִוָּ֣ה הַמֶּ֗לֶךְ אֹ֠תְךָ וְאֶת־אֲבִישַׁ֤י וְאֶת־אִתַּי֙ לֵאמֹ֔ר שִׁמְרוּ־מִ֕י בַּנַּ֖עַר בְּאַבְשָׁלֽוֹם׃ 12
मगर उस व्यक्ति ने योआब को उत्तर दिया, “यदि मेरे हाथ पर हज़ार चांदी के सिक्‍के भी रख दिए जाते, मेरा हाथ राजकुमार पर नहीं उठ सकता था; क्योंकि स्वयं हमने राजा को आपको, अबीशाई को और इत्तई को यह आदेश देते हुए सुन रखा है, ‘मेरे हित का ध्यान रखते हुए उस युवा अबशालोम को सुरक्षित रखना.’
אֽוֹ־עָשִׂ֤יתִי בְנַפְשִׁי֙ שֶׁ֔קֶר וְכָל־דָּבָ֖ר לֹא־יִכָּחֵ֣ד מִן־הַמֶּ֑לֶךְ וְאַתָּ֖ה תִּתְיַצֵּ֥ב מִנֶּֽגֶד׃ 13
इसके अलावा यदि मैंने उसके प्राण लेकर राजा के प्रति विश्वासघात किया भी होता, तो आप तो मुझसे स्वयं को पूरी तरह अलग ही कर लेते, जबकि राजा से कुछ भी छिपा नहीं रह सकता.”
וַיֹּ֣אמֶר יוֹאָ֔ב לֹא־כֵ֖ן אֹחִ֣ילָה לְפָנֶ֑יךָ וַיִּקַּח֩ שְׁלֹשָׁ֨ה שְׁבָטִ֜ים בְּכַפּ֗וֹ וַיִּתְקָעֵם֙ בְּלֵ֣ב אַבְשָׁל֔וֹם עוֹדֶ֥נּוּ חַ֖י בְּלֵ֥ב הָאֵלָֽה׃ 14
इस पर योआब ने कहा, “व्यर्थ है तुम्हारे साथ समय नष्ट करना.” उन्होंने तीन भाले लिए और बांज वृक्ष में लटके हुए जीवित अबशालोम के हृदय में भोंक दिए.
וַיָּסֹ֙בּוּ֙ עֲשָׂרָ֣ה נְעָרִ֔ים נֹשְׂאֵ֖י כְּלֵ֣י יוֹאָ֑ב וַיַּכּ֥וּ אֶת־אַבְשָׁל֖וֹם וַיְמִיתֻֽהוּ׃ 15
उसके बाद दस सैनिकों ने, जो योआब के हथियार उठानेवाले थे, अबशालोम को घेरकर उस पर वार कर उसे घात कर दिया.
וַיִּתְקַ֤ע יוֹאָב֙ בַּשֹּׁפָ֔ר וַיָּ֣שָׁב הָעָ֔ם מִרְדֹ֖ף אַחֲרֵ֣י יִשְׂרָאֵ֑ל כִּֽי־חָשַׂ֥ךְ יוֹאָ֖ב אֶת־הָעָֽם׃ 16
यह होने के बाद योआब ने युद्ध समाप्‍ति की तुरही फूंकी, और सैनिक इस्राएल का पीछा करना छोड़ लौट आए, युद्ध समापन योआब का आदेश था.
וַיִּקְח֣וּ אֶת־אַבְשָׁל֗וֹם וַיַּשְׁלִ֨יכוּ אֹת֤וֹ בַיַּ֙עַר֙ אֶל־הַפַּ֣חַת הַגָּד֔וֹל וַיַּצִּ֧בוּ עָלָ֛יו גַּל־אֲבָנִ֖ים גָּד֣וֹל מְאֹ֑ד וְכָל־יִשְׂרָאֵ֔ל נָ֖סוּ אִ֥ישׁ לְאֹהָלָֽיו׃ ס 17
उन्होंने अबशालोम के शव को वन में एक गहरे गड्ढे में डालकर उसके ऊपर पत्थरों का बहुत विशाल ढेर लगा दिया. सभी इस्राएली सैनिक भाग गये, हर एक अपने-अपने तंबू में.
וְאַבְשָׁלֹ֣ם לָקַ֗ח וַיַּצֶּב־ל֤וֹ בְחַיָּיו֙ אֶת־מַצֶּ֙בֶת֙ אֲשֶׁ֣ר בְּעֵֽמֶק־הַמֶּ֔לֶךְ כִּ֤י אָמַר֙ אֵֽין־לִ֣י בֵ֔ן בַּעֲב֖וּר הַזְכִּ֣יר שְׁמִ֑י וַיִּקְרָ֤א לַמַּצֶּ֙בֶת֙ עַל־שְׁמ֔וֹ וַיִּקָּ֤רֵא לָהּ֙ יַ֣ד אַבְשָׁלֹ֔ם עַ֖ד הַיּ֥וֹם הַזֶּֽה׃ ס 18
जब अबशालोम जीवित ही था, उसने राजा की घाटी नामक स्थान पर अपने लिए एक स्मारक खंभा बनवा दिया था. उसका विचार था, “मेरे नाम की याद स्थायी रखने के लिए, क्योंकि मेरे कोई पुत्र नहीं है.” इस स्मारक स्तंभ को उसने अपना ही नाम दिया. आज तक यह अबशालोम स्मारक के नाम से जाना जाता है.
וַאֲחִימַ֤עַץ בֶּן־צָדוֹק֙ אָמַ֔ר אָר֣וּצָה נָּ֔א וַאֲבַשְּׂרָ֖ה אֶת־הַמֶּ֑לֶךְ כִּי־שְׁפָט֥וֹ יְהוָ֖ה מִיַּ֥ד אֹיְבָֽיו׃ 19
यह सब होने पर सादोक के पुत्र अहीमाज़ ने विचार किया, “मैं दौड़कर राजा को यह संदेश दूंगा कि याहवेह ने उन्हें उनके शत्रुओं के सामर्थ्य से छुड़ाया है.”
וַיֹּ֧אמֶר ל֣וֹ יוֹאָ֗ב לֹא֩ אִ֨ישׁ בְּשֹׂרָ֤ה אַתָּה֙ הַיּ֣וֹם הַזֶּ֔ה וּבִשַּׂרְתָּ֖ בְּי֣וֹם אַחֵ֑ר וְהַיּ֤וֹם הַזֶּה֙ לֹ֣א תְבַשֵּׂ֔ר כִּֽי־עַל־כֵּ֥ן בֶּן־הַמֶּ֖לֶךְ מֵֽת׃ 20
मगर योआब ने उससे कहा, “आज तुम कोई भी संदेश नहीं ले जाओगे. तुम किसी दूसरे दिन संदेश ले जाना, लेकिन तुम्हें आज ऐसा नहीं करना चाहिए, क्योंकि यह राजकुमार की मृत्यु का समाचार है.”
וַיֹּ֤אמֶר יוֹאָב֙ לַכּוּשִׁ֔י לֵ֛ךְ הַגֵּ֥ד לַמֶּ֖לֶךְ אֲשֶׁ֣ר רָאִ֑יתָה וַיִּשְׁתַּ֧חוּ כוּשִׁ֛י לְיוֹאָ֖ב וַיָּרֹֽץ׃ 21
वहां कूश देश का एक निवासी था. योआब ने आदेश दिया, “तुमने जो कुछ देखा है, उसकी सूचना जाकर राजा को दे दो.” कूश देशवासी ने झुककर योआब का अभिवंदन किया और दौड़ पड़ा.
וַיֹּ֨סֶף ע֜וֹד אֲחִימַ֤עַץ בֶּן־צָדוֹק֙ וַיֹּ֣אמֶר אֶל־יוֹאָ֔ב וִ֣יהִי מָ֔ה אָרֻֽצָה־נָּ֥א גַם־אָ֖נִי אַחֲרֵ֣י הַכּוּשִׁ֑י וַיֹּ֣אמֶר יוֹאָ֗ב לָֽמָּה־זֶּ֞ה אַתָּ֥ה רָץ֙ בְּנִ֔י וּלְכָ֖ה אֵין־בְּשׂוֹרָ֥ה מֹצֵֽאת׃ 22
सादोक के पुत्र अहीमाज़ ने योआब से दोबारा विनती की, “कुछ भी हो, मुझे भी उस कूश देश निवासी के पीछे जाने दीजिए.” योआब ने उससे पूछा, “मेरे पुत्र, तुम क्यों जाना चाह रहे हो? इस समाचार को प्रेषित करने का तुम्हें कोई पुरस्कार तो मिलेगा नहीं.”
וִיהִי־מָ֣ה אָר֔וּץ וַיֹּ֥אמֶר ל֖וֹ ר֑וּץ וַיָּ֤רָץ אֲחִימַ֙עַץ֙ דֶּ֣רֶךְ הַכִּכָּ֔ר וַֽיַּעֲבֹ֖ר אֶת־הַכּוּשִֽׁי׃ 23
“कुछ भी हो,” उसने उत्तर दिया, “मैं तो जाऊंगा.” तब योआब ने उसे उत्तर दिया, “जाओ!” तब अहीमाज़ दौड़ पड़ा और मैदान में से दौड़ता हुआ उस कूश देश निवासी से आगे निकल गया.
וְדָוִ֥ד יוֹשֵׁ֖ב בֵּין־שְׁנֵ֣י הַשְּׁעָרִ֑ים וַיֵּ֨לֶךְ הַצֹּפֶ֜ה אֶל־גַּ֤ג הַשַּׁ֙עַר֙ אֶל־הַ֣חוֹמָ֔ה וַיִּשָּׂ֤א אֶת־עֵינָיו֙ וַיַּ֔רְא וְהִנֵּה־אִ֖ישׁ רָ֥ץ לְבַדּֽוֹ׃ 24
दावीद दो द्वारों के मध्य बैठे हुए थे. प्रहरी दीवार से चढ़कर द्वार पर बने छत पर पहुंच गया. जब उसने दृष्टि की तो उसे एक अकेला व्यक्ति दौड़ता हुआ नजर आया.
וַיִּקְרָ֤א הַצֹּפֶה֙ וַיַּגֵּ֣ד לַמֶּ֔לֶךְ וַיֹּ֣אמֶר הַמֶּ֔לֶךְ אִם־לְבַדּ֖וֹ בְּשׂוֹרָ֣ה בְּפִ֑יו וַיֵּ֥לֶךְ הָל֖וֹךְ וְקָרֵֽב׃ 25
प्रहरी ने पुकारते हुए राजा को इसकी सूचना दी. राजा ने उससे कहा, “यदि वह अकेला व्यक्ति है तो उसके मुख से आनंददायक संदेश ही सुना जाएगा.” वह व्यक्ति निकट-निकट आता गया.
וַיַּ֣רְא הַצֹּפֶה֮ אִישׁ־אַחֵ֣ר רָץ֒ וַיִּקְרָ֤א הַצֹּפֶה֙ אֶל־הַשֹּׁעֵ֔ר וַיֹּ֕אמֶר הִנֵּה־אִ֖ישׁ רָ֣ץ לְבַדּ֑וֹ וַיֹּ֥אמֶר הַמֶּ֖לֶךְ גַּם־זֶ֥ה מְבַשֵּֽׂר׃ 26
तब प्रहरी ने एक और व्यक्ति को दौड़ते हुए आते देखा. प्रहरी ने पुकारते हुए द्वारपाल को सूचित किया, “देखो, देखो, एक और व्यक्ति अकेला दौड़ा आ रहा है!” राजा कहने लगा, “वह भी आनंददायक संदेश ही ला रहा है.”
וַיֹּ֙אמֶר֙ הַצֹּפֶ֔ה אֲנִ֤י רֹאֶה֙ אֶת־מְרוּצַ֣ת הָרִאשׁ֔וֹן כִּמְרֻצַ֖ת אֲחִימַ֣עַץ בֶּן־צָד֑וֹק וַיֹּ֤אמֶר הַמֶּ֙לֶךְ֙ אִֽישׁ־ט֣וֹב זֶ֔ה וְאֶל־בְּשׂוֹרָ֥ה טוֹבָ֖ה יָבֽוֹא׃ 27
प्रहरी ने उन्हें बताया, “मेरे विचार से प्रथम व्यक्ति के दौड़ने के ढंग से ऐसा लग रहा है कि वह सादोक का पुत्र अहीमाज़ है.” यह सुन राजा ने कहा, “वह एक अच्छा व्यक्ति है. वह अवश्य ही शुभ संदेश ला रहा है.”
וַיִּקְרָ֣א אֲחִימַ֗עַץ וַיֹּ֤אמֶר אֶל־הַמֶּ֙לֶךְ֙ שָׁל֔וֹם וַיִּשְׁתַּ֧חוּ לַמֶּ֛לֶךְ לְאַפָּ֖יו אָ֑רְצָה ס וַיֹּ֗אמֶר בָּרוּךְ֙ יְהוָ֣ה אֱלֹהֶ֔יךָ אֲשֶׁ֤ר סִגַּר֙ אֶת־הָ֣אֲנָשִׁ֔ים אֲשֶׁר־נָשְׂא֥וּ אֶת־יָדָ֖ם בַּֽאדֹנִ֥י הַמֶּֽלֶךְ׃ 28
अहीमाज़ ने पुकारकर राजा से कहा, “सब कुछ कुशल है.” तब वह राजा के समक्ष भूमि पर दंडवत हो गया, उसने आगे कहा, “स्तुत्य हैं याहवेह, आपके परमेश्वर जिन्होंने महाराज मेरे स्वामी के शत्रुओं को पराजित कर दिया है!”
וַיֹּ֣אמֶר הַמֶּ֔לֶךְ שָׁל֥וֹם לַנַּ֖עַר לְאַבְשָׁל֑וֹם וַיֹּ֣אמֶר אֲחִימַ֡עַץ רָאִיתִי֩ הֶהָמ֨וֹן הַגָּד֜וֹל לִ֠שְׁלֹחַ אֶת־עֶ֨בֶד הַמֶּ֤לֶךְ יוֹאָב֙ וְאֶת־עַבְדֶּ֔ךָ וְלֹ֥א יָדַ֖עְתִּי מָֽה׃ 29
राजा ने उससे पूछा, “क्या युवा अबशालोम सकुशल है?” अहीमाज़ ने उत्तर दिया, “जब योआब ने आपके सेवक को महाराज के लिए संदेश के साथ प्रेषित किया था, तब मैंने वहां बड़ी अव्यवस्था देखी, मगर मुझे यह ज्ञात नहीं कि वह सब क्या था.”
וַיֹּ֣אמֶר הַמֶּ֔לֶךְ סֹ֖ב הִתְיַצֵּ֣ב כֹּ֑ה וַיִּסֹּ֖ב וַֽיַּעֲמֹֽד׃ 30
तब राजा ने उसे आदेश दिया, “आकर यहां खड़े रहो.” तब वह जाकर वहां खड़ा हो गया.
וְהִנֵּ֥ה הַכּוּשִׁ֖י בָּ֑א וַיֹּ֣אמֶר הַכּוּשִׁ֗י יִתְבַּשֵּׂר֙ אֲדֹנִ֣י הַמֶּ֔לֶךְ כִּֽי־שְׁפָטְךָ֤ יְהוָה֙ הַיּ֔וֹם מִיַּ֖ד כָּל־הַקָּמִ֥ים עָלֶֽיךָ׃ ס 31
तब वह कूश देशवासी भी वहां आ पहुंचा. उसने सूचना दी, “महाराज, मेरे स्वामी के लिए खुशखबरी है! आज याहवेह ने आपको विद्रोहियों पर जयंत किया है.”
וַיֹּ֤אמֶר הַמֶּ֙לֶךְ֙ אֶל־הַכּוּשִׁ֔י הֲשָׁל֥וֹם לַנַּ֖עַר לְאַבְשָׁל֑וֹם וַיֹּ֣אמֶר הַכּוּשִׁ֗י יִהְי֤וּ כַנַּ֙עַר֙ אֹֽיְבֵי֙ אֲדֹנִ֣י הַמֶּ֔לֶךְ וְכֹ֛ל אֲשֶׁר־קָ֥מוּ עָלֶ֖יךָ לְרָעָֽה׃ ס 32
यह सुनने के बाद राजा ने कूश देशवासी से प्रश्न किया, “युवा अबशालोम तो सकुशल है न?” कूशवासी ने उत्तर दिया, “महाराज मेरे स्वामी के शत्रुओं की और उन सभी की नियति, जो आपके हानि के कटिबद्ध हो जाते हैं, वही हो, जो उस युवा की हुई है.”
וַיִּרְגַּ֣ז הַמֶּ֗לֶךְ וַיַּ֛עַל עַל־עֲלִיַּ֥ת הַשַּׁ֖עַר וַיֵּ֑בְךְּ וְכֹ֣ה ׀ אָמַ֣ר בְּלֶכְתּ֗וֹ בְּנִ֤י אַבְשָׁלוֹם֙ בְּנִ֣י בְנִ֣י אַבְשָׁל֔וֹם מִֽי־יִתֵּ֤ן מוּתִי֙ אֲנִ֣י תַחְתֶּ֔יךָ אַבְשָׁל֖וֹם בְּנִ֥י בְנִֽי׃ 33
भावना से अभिभूत राजा नगर द्वार के ऊपर बने हुए कक्ष में जाकर शोक करने लगे. जब वह वहां जा रहे थे, उनके द्वारा उच्चारे गए ये शब्द सुने गए, “मेरे पुत्र अबशालोम, मेरे पुत्र, मेरे पुत्र अबशालोम! उत्तम तो यह होता, तुम्हारे स्थान पर मेरी ही मृत्यु हो जाती, अबशालोम, मेरे पुत्र—मेरे पुत्र!”

< 2 שְׁמוּאֵל 18 >