< 2 מְלָכִים 18 >
וַֽיְהִי֙ בִּשְׁנַ֣ת שָׁלֹ֔שׁ לְהוֹשֵׁ֥עַ בֶּן־אֵלָ֖ה מֶ֣לֶךְ יִשְׂרָאֵ֑ל מָלַ֛ךְ חִזְקִיָּ֥ה בֶן־אָחָ֖ז מֶ֥לֶךְ יְהוּדָֽה׃ | 1 |
इस्राएल के राजा एलाह के पुत्र होशिया के शासन के तीसरे साल में आहाज़ के पुत्र हिज़किय्याह ने यहूदिया पर शासन करना शुरू किया.
בֶּן־עֶשְׂרִ֨ים וְחָמֵ֤שׁ שָׁנָה֙ הָיָ֣ה בְמָלְכ֔וֹ וְעֶשְׂרִ֤ים וָתֵ֙שַׁע֙ שָׁנָ֔ה מָלַ֖ךְ בִּירוּשָׁלִָ֑ם וְשֵׁ֣ם אִמּ֔וֹ אֲבִ֖י בַּת־זְכַרְיָֽה׃ | 2 |
जब हिज़किय्याह राजा बना, उसकी उम्र पच्चीस साल थी. येरूशलेम में उसने उनतीस साल शासन किया. उसकी माता का नाम अबीयाह था, वह ज़करयाह की पुत्री थी.
וַיַּ֥עַשׂ הַיָּשָׁ֖ר בְּעֵינֵ֣י יְהוָ֑ה כְּכֹ֥ל אֲשֶׁר־עָשָׂ֖ה דָּוִ֥ד אָבִֽיו׃ | 3 |
उसने वही किया, जो याहवेह की दृष्टि में सही था, वैसा ही, जैसा उसके पूर्वज दावीद ने किया था.
ה֣וּא ׀ הֵסִ֣יר אֶת־הַבָּמ֗וֹת וְשִׁבַּר֙ אֶת־הַמַּצֵּבֹ֔ת וְכָרַ֖ת אֶת־הָֽאֲשֵׁרָ֑ה וְכִתַּת֩ נְחַ֨שׁ הַנְּחֹ֜שֶׁת אֲשֶׁר־עָשָׂ֣ה מֹשֶׁ֗ה כִּ֣י עַד־הַיָּמִ֤ים הָהֵ֙מָּה֙ הָי֤וּ בְנֵֽי־יִשְׂרָאֵל֙ מְקַטְּרִ֣ים ל֔וֹ וַיִּקְרָא־ל֖וֹ נְחֻשְׁתָּֽן׃ | 4 |
उसने पूजा की जगह हटा दीं, पूजा के खंभे तोड़ दिए और अशेराह के खंभे भी ध्वस्त कर दिए. उसने मोशेह द्वारा बनाई उस कांसे के सांप की मूर्ति को भी नष्ट कर दिया, क्योंकि तब तक इस्राएली प्रजा इसे नेहूष्तान नाम से पुकारते हुए इसके सामने धूप जलाने लगे थे.
בַּיהוָ֥ה אֱלֹהֵֽי־יִשְׂרָאֵ֖ל בָּטָ֑ח וְאַחֲרָ֞יו לֹא־הָיָ֣ה כָמֹ֗הוּ בְּכֹל֙ מַלְכֵ֣י יְהוּדָ֔ה וַאֲשֶׁ֥ר הָי֖וּ לְפָנָֽיו׃ | 5 |
हिज़किय्याह का भरोसा याहवेह, इस्राएल के परमेश्वर पर था, इसलिये न उसके बाद और न ही उसके पहले यहूदिया के सारी राजाओं में उसके समान कोई हुआ.
וַיִּדְבַּק֙ בַּֽיהוָ֔ה לֹא־סָ֖ר מֵאַֽחֲרָ֑יו וַיִּשְׁמֹר֙ מִצְוֹתָ֔יו אֲשֶׁר־צִוָּ֥ה יְהוָ֖ה אֶת־מֹשֶֽׁה׃ | 6 |
वह याहवेह से चिपका रहा. कभी भी उसने याहवेह का अनुसरण करना न छोड़ा. वह मोशेह को सौंपे गए याहवेह के आदेशों का पालन करता रहा.
וְהָיָ֤ה יְהוָה֙ עִמּ֔וֹ בְּכֹ֥ל אֲשֶׁר־יֵצֵ֖א יַשְׂכִּ֑יל וַיִּמְרֹ֥ד בְּמֶֽלֶךְ־אַשּׁ֖וּר וְלֹ֥א עֲבָדֽוֹ׃ | 7 |
वह जहां कहीं गया, याहवेह उसके साथ रहे. वह उन्नत ही होता चला गया. उसने अश्शूर के राजा के विरुद्ध विद्रोह कर दिया, और उससे अपना दासत्व खत्म कर लिया.
הֽוּא־הִכָּ֧ה אֶת־פְּלִשְׁתִּ֛ים עַד־עַזָּ֖ה וְאֶת־גְּבוּלֶ֑יהָ מִמִּגְדַּ֥ל נוֹצְרִ֖ים עַד־עִ֥יר מִבְצָֽר׃ פ | 8 |
उसने अज्जाह की सीमा तक फिलिस्तीनियों को हरा दिया, यानी पहरेदारों की मचान से लेकर नगर गढ़ तक.
וַֽיְהִ֞י בַּשָּׁנָ֤ה הָֽרְבִיעִית֙ לַמֶּ֣לֶךְ חִזְקִיָּ֔הוּ הִ֚יא הַשָּׁנָ֣ה הַשְּׁבִיעִ֔ית לְהוֹשֵׁ֥עַ בֶּן־אֵלָ֖ה מֶ֣לֶךְ יִשְׂרָאֵ֑ל עָלָ֞ה שַׁלְמַנְאֶ֧סֶר מֶֽלֶךְ־אַשּׁ֛וּר עַל־שֹׁמְר֖וֹן וַיָּ֥צַר עָלֶֽיהָ׃ | 9 |
हिज़किय्याह के शासन के चौथे साल में, जो इस्राएल के राजा एलाह के पुत्र होशिया के शासन का सातवां साल था, अश्शूर के राजा शालमानेसर ने शमरिया पर घेरा डाल दिया.
וַֽיִּלְכְּדֻ֗הָ מִקְצֵה֙ שָׁלֹ֣שׁ שָׁנִ֔ים בִּשְׁנַת־שֵׁ֖שׁ לְחִזְקִיָּ֑ה הִ֣יא שְׁנַת־תֵּ֗שַׁע לְהוֹשֵׁ֙עַ֙ מֶ֣לֶךְ יִשְׂרָאֵ֔ל נִלְכְּדָ֖ה שֹׁמְרֽוֹן׃ | 10 |
और तीन साल पूरा होते-होते उन्होंने शमरिया को अपने अधिकार में ले लिया. हिज़किय्याह के शासन का छठवां और इस्राएल के राजा होशिया के शासन का नवां साल था, जब शमरिया पर अश्शूर के राजा का अधिकार हो गया.
וַיֶּ֧גֶל מֶֽלֶךְ־אַשּׁ֛וּר אֶת־יִשְׂרָאֵ֖ל אַשּׁ֑וּרָה וַיַּנְחֵ֞ם בַּחְלַ֧ח וּבְחָב֛וֹר נְהַ֥ר גּוֹזָ֖ן וְעָרֵ֥י מָדָֽי׃ | 11 |
अश्शूर का राजा इस्राएलियों को बंदी बनाकर अश्शूर देश को ले गया. वहां उसने उन्हें गोज़ान नदी के तट पर हालाह और हाबोर नामक स्थानों में और मेदिया प्रदेश के नगरों में बसा दिया,
עַ֣ל ׀ אֲשֶׁ֣ר לֹֽא־שָׁמְע֗וּ בְּקוֹל֙ יְהוָ֣ה אֱלֹהֵיהֶ֔ם וַיַּעַבְרוּ֙ אֶת־בְּרִית֔וֹ אֵ֚ת כָּל־אֲשֶׁ֣ר צִוָּ֔ה מֹשֶׁ֖ה עֶ֣בֶד יְהוָ֑ה וְלֹ֥א שָׁמְע֖וּ וְלֹ֥א עָשֽׂוּ׃ פ | 12 |
क्योंकि उन्होंने याहवेह, अपने परमेश्वर की वाणी को अनसुनी ही नहीं की, बल्कि उन्होंने उनकी वाचा भी तोड़ दी थी, यहां तक कि उन सारी आदेशों को भी, जो याहवेह के सेवक मोशेह ने दिए थे. न तो उन्होंने इन्हें सुना और न ही उनका पालन किया.
וּבְאַרְבַּע֩ עֶשְׂרֵ֨ה שָׁנָ֜ה לַמֶּ֣לֶךְ חִזְקִיָּ֗ה עָלָ֞ה סַנְחֵרִ֤יב מֶֽלֶךְ־אַשּׁוּר֙ עַ֣ל כָּל־עָרֵ֧י יְהוּדָ֛ה הַבְּצֻר֖וֹת וַֽיִּתְפְּשֵֽׂם׃ | 13 |
राजा हिज़किय्याह के शासनकाल के चौदहवें वर्ष में अश्शूर के राजा सेनहेरीब ने यहूदिया के समस्त गढ़ नगरों पर आक्रमण करके उन पर अधिकार कर लिया.
וַיִּשְׁלַ֣ח חִזְקִיָּ֣ה מֶֽלֶךְ־יְהוּדָ֣ה אֶל־מֶֽלֶךְ־אַשּׁוּר֩ ׀ לָכִ֨ישָׁה ׀ לֵאמֹ֤ר ׀ חָטָ֙אתִי֙ שׁ֣וּב מֵֽעָלַ֔י אֵ֛ת אֲשֶׁר־תִּתֵּ֥ן עָלַ֖י אֶשָּׂ֑א וַיָּ֨שֶׂם מֶֽלֶךְ־אַשּׁ֜וּר עַל־חִזְקִיָּ֣ה מֶֽלֶךְ־יְהוּדָ֗ה שְׁלֹ֤שׁ מֵאוֹת֙ כִּכַּר־כֶּ֔סֶף וּשְׁלֹשִׁ֖ים כִּכַּ֥ר זָהָֽב׃ | 14 |
यहूदिया के राजा हिज़किय्याह ने लाकीश नगर में अश्शूर के राजा को यह संदेश भेजा, “मुझसे गलती हुई है. अपनी सेना यहां से हटा लीजिए. आप मुझ पर जो भी आर्थिक दंड देंगे मैं उसे पूरा करूंगा!” तब अश्शूर के राजा ने यहूदिया के राजा हिज़किय्याह से दस टन चांदी और एक टन सोने का दंड तय कर दिया.
וַיִּתֵּן֙ חִזְקִיָּ֔ה אֶת־כָּל־הַכֶּ֖סֶף הַנִּמְצָ֣א בֵית־יְהוָ֑ה וּבְאֹצְר֖וֹת בֵּ֥ית הַמֶּֽלֶךְ׃ | 15 |
तब राजा हिज़किय्याह ने याहवेह के भवन और राजघराने के खजाने में रखी पूरी चांदी अश्शूर के राजा को सौंप दी.
בָּעֵ֣ת הַהִ֗יא קִצַּ֨ץ חִזְקִיָּ֜ה אֶת־דַּלְת֨וֹת הֵיכַ֤ל יְהוָה֙ וְאֶת־הָאֹ֣מְנ֔וֹת אֲשֶׁ֣ר צִפָּ֔ה חִזְקִיָּ֖ה מֶ֣לֶךְ יְהוּדָ֑ה וַֽיִּתְּנֵ֖ם לְמֶ֥לֶךְ אַשּֽׁוּר׃ פ | 16 |
इसी समय हिज़किय्याह ने याहवेह के मंदिर के दरवाजों पर मढ़ी गई सोने की परत उतार ली और वैसे ही दरवाजों के मीनारों की भी, जो यहूदिया के राजा हिज़किय्याह द्वारा ही दरवाजों और दरवाजों के मीनारों पर चढ़ाई गई थी. यह उसने अश्शूर के राजा को सौंप दिया.
וַיִּשְׁלַ֣ח מֶֽלֶךְ־אַשּׁ֡וּר אֶת־תַּרְתָּ֥ן וְאֶת־רַב־סָרִ֣יס ׀ וְאֶת־רַב־שָׁקֵ֨ה מִן־לָכִ֜ישׁ אֶל־הַמֶּ֧לֶךְ חִזְקִיָּ֛הוּ בְּחֵ֥יל כָּבֵ֖ד יְרוּשָׁלִָ֑ם וַֽיַּעֲלוּ֙ וַיָּבֹ֣אוּ יְרוּשָׁלִַ֔ם וַיַּעֲל֣וּ וַיָּבֹ֗אוּ וַיַּֽעַמְדוּ֙ בִּתְעָלַת֙ הַבְּרֵכָ֣ה הָֽעֶלְיוֹנָ֔ה אֲשֶׁ֕ר בִּמְסִלַּ֖ת שְׂדֵ֥ה כוֹבֵֽס׃ | 17 |
इस पर अश्शूर के राजा ने लाकीश से राजा हिज़किय्याह के पास अपने सर्वोच्च सेनापति, अपने मुख्य अधिकारी और अपने प्रमुख सेनापति को एक बड़ी सेना के साथ येरूशलेम भेज दिया. येरूशलेम पहुंचकर वे उस ऊपरी तालाब की नाली पर जा खड़े हुए, जो सदह-कोबेस के राजमार्ग पर बनी है.
וַֽיִּקְרְאוּ֙ אֶל־הַמֶּ֔לֶךְ וַיֵּצֵ֧א אֲלֵהֶ֛ם אֶלְיָקִ֥ים בֶּן־חִלְקִיָּ֖הוּ אֲשֶׁ֣ר עַל־הַבָּ֑יִת וְשֶׁבְנָה֙ הַסֹּפֵ֔ר וְיוֹאָ֥ח בֶּן־אָסָ֖ף הַמַּזְכִּֽיר׃ | 18 |
जब उन्होंने राजा को पुकारा, तब गृह प्रबंधक एलियाकिम, जो हिलकियाह का पुत्र था, शास्त्री शेबना तथा आसफ का पुत्र योआह, जो प्रालेख अधिकारी था, राजा से भेंट करने गए.
וַיֹּ֤אמֶר אֲלֵהֶם֙ רַב־שָׁקֵ֔ה אִמְרוּ־נָ֖א אֶל־חִזְקִיָּ֑הוּ כֹּֽה־אָמַ֞ר הַמֶּ֤לֶךְ הַגָּדוֹל֙ מֶ֣לֶךְ אַשּׁ֔וּר מָ֧ה הַבִּטָּח֛וֹן הַזֶּ֖ה אֲשֶׁ֥ר בָּטָֽחְתָּ׃ | 19 |
प्रमुख सेनापति ने उन्हें आदेश दिया, “हिज़किय्याह से जाकर यह कहो, “‘पराक्रमी राजा, अश्शूर के राजा का संदेश यह है: कौन है तुम्हारे इस भरोसे का आधार?
אָמַ֙רְתָּ֙ אַךְ־דְּבַר־שְׂפָתַ֔יִם עֵצָ֥ה וּגְבוּרָ֖ה לַמִּלְחָמָ֑ה עַתָּה֙ עַל־מִ֣י בָטַ֔חְתָּ כִּ֥י מָרַ֖דְתָּ בִּֽי׃ | 20 |
युद्ध से संबंधित तुम्हारी रणनीति तथा तुम्हारी शक्ति मात्र खोखले शब्द हैं. किस पर है तुम्हारा अवलंबन कि तुमने मुझसे विद्रोह का साहस किया है?
עַתָּ֡ה הִנֵּ֣ה בָטַ֣חְתָּ לְּךָ֡ עַל־מִשְׁעֶנֶת֩ הַקָּנֶ֨ה הָרָצ֤וּץ הַזֶּה֙ עַל־מִצְרַ֔יִם אֲשֶׁ֨ר יִסָּמֵ֥ךְ אִישׁ֙ עָלָ֔יו וּבָ֥א בְכַפּ֖וֹ וּנְקָבָ֑הּ כֵּ֚ן פַּרְעֹ֣ה מֶֽלֶךְ־מִצְרַ֔יִם לְכָֽל־הַבֹּטְחִ֖ים עָלָֽיו׃ | 21 |
देखो, तुमने जो मिस्र देश पर भरोसा किया है, वह है ही क्या, एक टूटा हुआ सरकंडे की छड़ी! यदि कोई व्यक्ति इसकी टेक लेना चाहे तो यह छड़ी उसके हाथ में ही चुभ जाएगी. मिस्र का राजा फ़रोह भी उन सबके लिए ऐसा ही साबित होता है, जो उस पर भरोसा करते हैं.
וְכִי־תֹאמְר֣וּן אֵלַ֔י אֶל־יְהוָ֥ה אֱלֹהֵ֖ינוּ בָּטָ֑חְנוּ הֲלוֹא־ה֗וּא אֲשֶׁ֨ר הֵסִ֤יר חִזְקִיָּ֙הוּ֙ אֶת־בָּמֹתָ֣יו וְאֶת־מִזְבְּחֹתָ֔יו וַיֹּ֤אמֶר לִֽיהוּדָה֙ וְלִיר֣וּשָׁלִַ֔ם לִפְנֵי֙ הַמִּזְבֵּ֣חַ הַזֶּ֔ה תִּֽשְׁתַּחֲו֖וּ בִּירוּשָׁלִָֽם׃ | 22 |
हां, यदि तुम मुझसे कहो, “हम तो याहवेह हमारे परमेश्वर पर भरोसा करते हैं,” तो क्या ये वही नहीं हैं, जिनके पूजा-स्थल तथा वेदियां हिज़किय्याह ने ध्वस्त कर दी हैं, तथा यहूदिया तथा येरूशलेम को यह आदेश दिया गया है: “तुम्हें येरूशलेम में इसी वेदी के समक्ष आराधना करनी होगी”?
וְעַתָּה֙ הִתְעָ֣רֶב נָ֔א אֶת־אֲדֹנִ֖י אֶת־מֶ֣לֶךְ אַשּׁ֑וּר וְאֶתְּנָ֤ה לְךָ֙ אַלְפַּ֣יִם סוּסִ֔ים אִם־תּוּכַ֕ל לָ֥תֶת לְךָ֖ רֹכְבִ֥ים עֲלֵיהֶֽם׃ | 23 |
“‘तो अब आओ, और हमारे स्वामी, अश्शूर के राजा से मोलभाव कर लो: मैं तुम्हें दो हज़ार घोड़े दूंगा; यदि तुम अपनी ओर से उनके लिए दो हज़ार घुड़सवार ला सको तो!
וְאֵ֣יךְ תָּשִׁ֗יב אֵ֠ת פְּנֵ֨י פַחַ֥ת אַחַ֛ד עַבְדֵ֥י אֲדֹנִ֖י הַקְּטַנִּ֑ים וַתִּבְטַ֤ח לְךָ֙ עַל־מִצְרַ֔יִם לְרֶ֖כֶב וּלְפָרָשִֽׁים׃ | 24 |
रथों और घुड़सवारों के लिए मिस्र देश पर निर्भर रहते हुए यह कैसे संभव है कि तुम मेरे स्वामी के छोटे से छोटे सेवक से टक्कर ले उसे हरा दो!
עַתָּה֙ הֲמִבַּלְעֲדֵ֣י יְהוָ֔ה עָלִ֛יתִי עַל־הַמָּק֥וֹם הַזֶּ֖ה לְהַשְׁחִת֑וֹ יְהוָה֙ אָמַ֣ר אֵלַ֔י עֲלֵ֛ה עַל־הָאָ֥רֶץ הַזֹּ֖את וְהַשְׁחִיתָֽהּ׃ | 25 |
क्या मैं याहवेह की आज्ञा बिना ही इस स्थान को नष्ट करने आया हूं? याहवेह ही ने मुझे आदेश दिया है, इस देश पर हमला कर इसे खत्म कर दो.’”
וַיֹּ֣אמֶר אֶלְיָקִ֣ים בֶּן־חִ֠לְקִיָּהוּ וְשֶׁבְנָ֨ה וְיוֹאָ֜ח אֶל־רַב־שָׁקֵ֗ה דַּבֶּר־נָ֤א אֶל־עֲבָדֶ֙יךָ֙ אֲרָמִ֔ית כִּ֥י שֹׁמְעִ֖ים אֲנָ֑חְנוּ וְאַל־תְּדַבֵּ֤ר עִמָּ֙נוּ֙ יְהוּדִ֔ית בְּאָזְנֵ֣י הָעָ֔ם אֲשֶׁ֖ר עַל־הַחֹמָֽה׃ | 26 |
तब हिलकियाह का पुत्र एलियाकिम, शेबना तथा योआह ने प्रमुख सेनापति से आग्रह किया, “अपने सेवकों से अरामी भाषा में संवाद कीजिए, क्योंकि यह भाषा हम समझते हैं; यहूदिया की हिब्री भाषा में संवाद मत कीजिए, क्योंकि प्राचीर पर कुछ लोग हमारा वार्तालाप सुन रहे हैं.”
וַיֹּ֨אמֶר אֲלֵיהֶ֜ם רַב־שָׁקֵ֗ה הַעַ֨ל אֲדֹנֶ֤יךָ וְאֵלֶ֙יךָ֙ שְׁלָחַ֣נִי אֲדֹנִ֔י לְדַבֵּ֖ר אֶת־הַדְּבָרִ֣ים הָאֵ֑לֶּה הֲלֹ֣א עַל־הָאֲנָשִׁ֗ים הַיֹּֽשְׁבִים֙ עַל־הַ֣חֹמָ֔ה לֶאֱכֹ֣ל אֶת צוֹאָתָ֗ם וְלִשְׁתּ֛וֹת אֶת־מימֵ֥י רַגְלֵיהֶ֖ם עִמָּכֶֽם׃ | 27 |
किंतु प्रमुख सेनापति ने उत्तर दिया, “क्या मेरे स्वामी ने मात्र तुम्हारे स्वामी तथा मात्र तुम्हें यह संदेश देने के लिए मुझे प्रेषित किया है, तथा प्राचीर पर बैठे व्यक्तियों के लिए नहीं, जिनके लिए तो यही दंड निर्धारित है, कि वे तुम्हारे साथ स्वयं अपनी विष्ठा का सेवन करें तथा अपने ही मूत्र का पान?”
וַֽיַּעֲמֹד֙ רַב־שָׁקֵ֔ה וַיִּקְרָ֥א בְקוֹל־גָּד֖וֹל יְהוּדִ֑ית וַיְדַבֵּ֣ר וַיֹּ֔אמֶר שִׁמְע֛וּ דְּבַר־הַמֶּ֥לֶךְ הַגָּד֖וֹל מֶ֥לֶךְ אַשּֽׁוּר׃ | 28 |
यह कहते हुए प्रमुख सेनापति खड़ा हो गया और सबके सामने उच्च स्वर में यहूदिया की हिब्री भाषा में यह कहा: “अश्शूर के राजा, प्रतिष्ठित सम्राट का यह संदेश सुन लो!
כֹּ֚ה אָמַ֣ר הַמֶּ֔לֶךְ אַל־יַשִּׁ֥יא לָכֶ֖ם חִזְקִיָּ֑הוּ כִּי־לֹ֣א יוּכַ֔ל לְהַצִּ֥יל אֶתְכֶ֖ם מִיָּדֽוֹ׃ | 29 |
सम्राट का आदेश यह है: हिज़किय्याह तुम्हें इस छल में सम्भ्रमित न रखे, क्योंकि वह तुम्हें विमुक्त करने में समर्थ न होगा;
וְאַל־יַבְטַ֨ח אֶתְכֶ֤ם חִזְקִיָּ֙הוּ֙ אֶל־יְהוָ֣ה לֵאמֹ֔ר הַצֵּ֥ל יַצִּילֵ֖נוּ יְהוָ֑ה וְלֹ֤א תִנָּתֵן֙ אֶת־הָעִ֣יר הַזֹּ֔את בְּיַ֖ד מֶ֥לֶךְ אַשּֽׁוּר׃ | 30 |
न ही हिज़किय्याह यह कहते हुए तुम्हें याहवेह पर भरोसा करने के लिए उकसाए, ‘निःसंदेह याहवेह हमारा छुटकारा करेंगे. यह नगर अश्शूर के राजा के अधीन होने न दिया जाएगा.’
אַֽל־תִּשְׁמְע֖וּ אֶל־חִזְקִיָּ֑הוּ כִּי֩ כֹ֨ה אָמַ֜ר מֶ֣לֶךְ אַשּׁ֗וּר עֲשֽׂוּ־אִתִּ֤י בְרָכָה֙ וּצְא֣וּ אֵלַ֔י וְאִכְל֤וּ אִישׁ־גַּפְנוֹ֙ וְאִ֣ישׁ תְּאֵֽנָת֔וֹ וּשְׁת֖וּ אִ֥ישׁ מֵֽי־בוֹרֽוֹ׃ | 31 |
“हिज़किय्याह के आश्वासन पर ध्यान न दो, क्योंकि अश्शूर के राजा का संदेश यह है, मुझसे संधि स्थापित कर लो. नगर से निकलकर बाहर मेरे पास आ जाओ. तब तुममें से हर एक अपनी ही लगाई हुई दाखलता से फल खाएगा, तुममें से हर एक अपने ही अंजीर वृक्ष से अंजीर खाएगा, और तुममें से हर एक अपने ही कुंड में से जल पीएगा.
עַד־בֹּאִי֩ וְלָקַחְתִּ֨י אֶתְכֶ֜ם אֶל־אֶ֣רֶץ כְּאַרְצְכֶ֗ם אֶרֶץ֩ דָּגָ֨ן וְתִיר֜וֹשׁ אֶ֧רֶץ לֶ֣חֶם וּכְרָמִ֗ים אֶ֣רֶץ זֵ֤ית יִצְהָר֙ וּדְבַ֔שׁ וִֽחְי֖וּ וְלֹ֣א תָמֻ֑תוּ וְאַֽל־תִּשְׁמְעוּ֙ אֶל־חִזְקִיָּ֔הוּ כִּֽי־יַסִּ֤ית אֶתְכֶם֙ לֵאמֹ֔ר יְהוָ֖ה יַצִּילֵֽנוּ׃ | 32 |
तब मैं आऊंगा और तुम्हें एक ऐसे देश में ले जाऊंगा, जो तुम्हारे ही देश के सदृश्य है, ऐसा देश जहां अन्न की उपज है, तथा नई द्राक्षा भी. यह भोजन तथा द्राक्षा उद्यानों का देश है, जैतून के पेड़ों और शहद में भरपूर; कि तुम वहां सम्पन्नता में जी सको, तुम काल का ग्रास न बनो. “तब तुम हिज़किय्याह के आश्वासन पर ध्यान न देना, जब वह तुम्हें यह कहते हुए भटकाएगा: ‘याहवेह हमारा छुटकारा कर देंगे.’
הַהַצֵּ֥ל הִצִּ֛ילוּ אֱלֹהֵ֥י הַגּוֹיִ֖ם אִ֣ישׁ אֶת־אַרְצ֑וֹ מִיַּ֖ד מֶ֥לֶךְ אַשּֽׁוּר׃ | 33 |
भला, कहीं कोई ऐसा हुआ भी है कि पड़ोसी राष्ट्रों के किसी देवता ने अपने देश को अश्शूर के राजा से बचाया हो?
אַיֵּה֩ אֱלֹהֵ֨י חֲמָ֜ת וְאַרְפָּ֗ד אַיֵּ֛ה אֱלֹהֵ֥י סְפַרְוַ֖יִם הֵנַ֣ע וְעִוָּ֑ה כִּֽי־הִצִּ֥ילוּ אֶת־שֹׁמְר֖וֹן מִיָּדִֽי׃ | 34 |
कहां हैं, हामाथ तथा अरपाद के देवता? कहां हैं, सेफरवाइम, हेना और इव्वाह के देवता? और हां, उन्होंने शमरिया को कब मेरे अधिकार से विमुक्त किया है?
מִ֚י בְּכָל־אֱלֹהֵ֣י הָֽאֲרָצ֔וֹת אֲשֶׁר־הִצִּ֥ילוּ אֶת־אַרְצָ֖ם מִיָּדִ֑י כִּי־יַצִּ֧יל יְהוָ֛ה אֶת־יְרוּשָׁלִַ֖ם מִיָּדִֽי׃ | 35 |
इन देशों के किस देवता ने अपने देश को मेरे हाथों से विमुक्त किया है? यह याहवेह येरूशलेम को मेरे हाथों से कैसे विमुक्त करा लेंगे?”
וְהֶחֱרִ֣ישׁוּ הָעָ֔ם וְלֹֽא־עָנ֥וּ אֹת֖וֹ דָּבָ֑ר כִּי־מִצְוַ֨ת הַמֶּ֥לֶךְ הִ֛יא לֵאמֹ֖ר לֹ֥א תַעֲנֻֽהוּ׃ | 36 |
मगर प्रजा मौन रही. किसी ने भी उससे एक शब्द तक न कहा, क्योंकि राजा का आदेश ही यह था, “उसे उत्तर न देना!”
וַיָּבֹ֣א אֶלְיָקִ֣ים בֶּן־חִלְקִיָּ֣ה אֲשֶׁר־עַל־הַ֠בַּיִת וְשֶׁבְנָ֨א הַסֹּפֵ֜ר וְיוֹאָ֨ח בֶּן־אָסָ֧ף הַמַּזְכִּ֛יר אֶל־חִזְקִיָּ֖הוּ קְרוּעֵ֣י בְגָדִ֑ים וַיַּגִּ֣דוּ ל֔וֹ דִּבְרֵ֖י רַב־שָׁקֵֽה׃ | 37 |
हिलकियाह के पुत्र एलियाकिम ने, जो राजघराने में गृह प्रबंधक था, लिपिक शेबना और आसफ के पुत्र योआह ने, जो लेखापाल था अपने वस्त्र फाड़े और जाकर प्रमुख सेनापति के शब्द राजा को जा सुनाए.