< 2 דִּבְרֵי הַיָּמִים 3 >

וַיָּ֣חֶל שְׁלֹמֹ֗ה לִבְנ֤וֹת אֶת־בֵּית־יְהוָה֙ בִּיר֣וּשָׁלִַ֔ם בְּהַר֙ הַמּ֣וֹרִיָּ֔ה אֲשֶׁ֥ר נִרְאָ֖ה לְדָוִ֣יד אָבִ֑יהוּ אֲשֶׁ֤ר הֵכִין֙ בִּמְק֣וֹם דָּוִ֔יד בְּגֹ֖רֶן אָרְנָ֥ן הַיְבוּסִֽי׃ 1
तब सुलैमान ने यरूशलेम में मोरिय्याह नामक पहाड़ पर उसी स्थान में यहोवा का भवन बनाना आरम्भ किया, जिसे उसके पिता दाऊद ने दर्शन पाकर यबूसी ओर्नान के खलिहान में तैयार किया था:
וַ֠יָּחֶל לִבְנ֞וֹת בַּחֹ֤דֶשׁ הַשֵּׁנִי֙ בַּשֵּׁנִ֔י בִּשְׁנַ֥ת אַרְבַּ֖ע לְמַלְכוּתֽוֹ׃ 2
उसने अपने राज्य के चौथे वर्ष के दूसरे महीने के, दूसरे दिन को निर्माण कार्य आरम्भ किया।
וְאֵ֙לֶּה֙ הוּסַ֣ד שְׁלֹמֹ֔ה לִבְנ֖וֹת אֶת־בֵּ֣ית הָאֱלֹהִ֑ים הָאֹ֡רֶךְ אַמּ֞וֹת בַּמִּדָּ֤ה הָרִֽאשׁוֹנָה֙ אַמּ֣וֹת שִׁשִּׁ֔ים וְרֹ֖חַב אַמּ֥וֹת עֶשְׂרִֽים׃ 3
परमेश्वर का जो भवन सुलैमान ने बनाया, उसकी यह नींव है, अर्थात् उसकी लम्बाई तो प्राचीनकाल के नाप के अनुसार साठ हाथ, और उसकी चौड़ाई बीस हाथ की थी।
וְהָאוּלָ֡ם אֲשֶׁר֩ עַל־פְּנֵ֨י הָאֹ֜רֶךְ עַל־פְּנֵ֤י רֹֽחַב־הַבַּ֙יִת֙ אַמּ֣וֹת עֶשְׂרִ֔ים וְהַגֹּ֖בַהּ מֵאָ֣ה וְעֶשְׂרִ֑ים וַיְצַפֵּ֥הוּ מִפְּנִ֖ימָה זָהָ֥ב טָהֽוֹר׃ 4
भवन के सामने के ओसारे की लम्बाई तो भवन की चौड़ाई के बराबर बीस हाथ की; और उसकी ऊँचाई एक सौ बीस हाथ की थी। सुलैमान ने उसको भीतर से शुद्ध सोने से मढ़वाया।
וְאֵ֣ת ׀ הַבַּ֣יִת הַגָּד֗וֹל חִפָּה֙ עֵ֣ץ בְּרוֹשִׁ֔ים וַיְחַפֵּ֖הוּ זָהָ֣ב ט֑וֹב וַיַּ֧עַל עָלָ֛יו תִּמֹרִ֖ים וְשַׁרְשְׁרֽוֹת׃ 5
भवन के मुख्य भाग की छत उसने सनोवर की लकड़ी से पटवाई, और उसको अच्छे सोने से मढ़वाया, और उस पर खजूर के वृक्ष की और साँकलों की नक्काशी कराई।
וַיְצַ֧ף אֶת־הַבַּ֛יִת אֶ֥בֶן יְקָרָ֖ה לְתִפְאָ֑רֶת וְהַזָּהָ֖ב זְהַ֥ב פַּרְוָֽיִם׃ 6
फिर शोभा देने के लिये उसने भवन में मणि जड़वाए। और यह सोना पर्वेम का था।
וַיְחַ֨ף אֶת־הַבַּ֜יִת הַקֹּר֧וֹת הַסִּפִּ֛ים וְקִֽירוֹתָ֥יו וְדַלְתוֹתָ֖יו זָהָ֑ב וּפִתַּ֥ח כְּרוּבִ֖ים עַל־הַקִּירֽוֹת׃ ס 7
उसने भवन को, अर्थात् उसकी कड़ियों, डेवढ़ियों, दीवारों और किवाड़ों को सोने से मढ़वाया, और दीवारों पर करूब खुदवाए।
וַיַּ֙עַשׂ֙ אֶת־בֵּֽית־קֹ֣דֶשׁ הַקֳּדָשִׁ֔ים אָרְכּ֞וֹ עַל־פְּנֵ֤י רֹֽחַב־הַבַּ֙יִת֙ אַמּ֣וֹת עֶשְׂרִ֔ים וְרָחְבּ֖וֹ אַמּ֣וֹת עֶשְׂרִ֑ים וַיְחַפֵּ֙הוּ֙ זָהָ֣ב ט֔וֹב לְכִכָּרִ֖ים שֵׁ֥שׁ מֵאֽוֹת׃ 8
फिर उसने भवन के परमपवित्र स्थान को बनाया; उसकी लम्बाई भवन की चौड़ाई के बराबर बीस हाथ की थी, और उसकी चौड़ाई बीस हाथ की थी; और उसने उसे छः सौ किक्कार शुद्ध सोने से मढ़वाया।
וּמִשְׁקָ֛ל לְמִסְמְר֥וֹת לִשְׁקָלִ֖ים חֲמִשִּׁ֣ים זָהָ֑ב וְהָעֲלִיּ֖וֹת חִפָּ֥ה זָהָֽב׃ 9
सोने की कीलों का तौल पचास शेकेल था। उसने अटारियों को भी सोने से मढ़वाया।
וַיַּ֜עַשׂ בְּבֵֽית־קֹ֤דֶשׁ הַקֳּדָשִׁים֙ כְּרוּבִ֣ים שְׁנַ֔יִם מַעֲשֵׂ֖ה צַעֲצֻעִ֑ים וַיְצַפּ֥וּ אֹתָ֖ם זָהָֽב׃ 10
१०फिर भवन के परमपवित्र स्थान में उसने नक्काशी के काम के दो करूब बनवाए और वे सोने से मढ़वाए गए।
וְכַנְפֵי֙ הַכְּרוּבִ֔ים אָרְכָּ֖ם אַמּ֣וֹת עֶשְׂרִ֑ים כְּנַ֨ף הָאֶחָ֜ד לְאַמּ֣וֹת חָמֵ֗שׁ מַגַּ֙עַת֙ לְקִ֣יר הַבַּ֔יִת וְהַכָּנָ֤ף הָאַחֶ֙רֶת֙ אַמּ֣וֹת חָמֵ֔שׁ מַגִּ֕יעַ לִכְנַ֖ף הַכְּר֥וּב הָאַחֵֽר׃ 11
११करूबों के पंख तो सब मिलकर बीस हाथ लम्बे थे, अर्थात् एक करूब का एक पंख पाँच हाथ का और भवन की दीवार तक पहुँचा हुआ था; और उसका दूसरा पंख पाँच हाथ का था और दूसरे करूब के पंख से मिला हुआ था।
וּכְנַ֨ף הַכְּר֤וּב הָאֶחָד֙ אַמּ֣וֹת חָמֵ֔שׁ מַגִּ֖יעַ לְקִ֣יר הַבָּ֑יִת וְהַכָּנָ֤ף הָאַחֶ֙רֶת֙ אַמּ֣וֹת חָמֵ֔שׁ דְּבֵקָ֕ה לִכְנַ֖ף הַכְּר֥וּב הָאַחֵֽר׃ 12
१२दूसरे करूब का भी एक पंख पाँच हाथ का और भवन की दूसरी दीवार तक पहुँचा था, और दूसरा पंख पाँच हाथ का और पहले करूब के पंख से सटा हुआ था।
כַּנְפֵי֙ הַכְּרוּבִ֣ים הָאֵ֔לֶּה פֹּֽרְשִׂ֖ים אַמּ֣וֹת עֶשְׂרִ֑ים וְהֵ֛ם עֹמְדִ֥ים עַל־רַגְלֵיהֶ֖ם וּפְנֵיהֶ֥ם לַבָּֽיִת׃ ס 13
१३इन करूबों के पंख बीस हाथ फैले हुए थे; और वे अपने-अपने पाँवों के बल खड़े थे, और अपना-अपना मुख भीतर की ओर किए हुए थे।
וַיַּ֙עַשׂ֙ אֶת־הַפָּרֹ֔כֶת תְּכֵ֥לֶת וְאַרְגָּמָ֖ן וְכַרְמִ֣יל וּב֑וּץ וַיַּ֥עַל עָלָ֖יו כְּרוּבִֽים׃ ס 14
१४फिर उसने बीचवाले पर्दे को नीले, बैंगनी और लाल रंग के सन के कपड़े का बनवाया, और उस पर करूब कढ़वाए।
וַיַּ֜עַשׂ לִפְנֵ֤י הַבַּ֙יִת֙ עַמּוּדִ֣ים שְׁנַ֔יִם אַמּ֕וֹת שְׁלֹשִׁ֥ים וְחָמֵ֖שׁ אֹ֑רֶךְ וְהַצֶּ֥פֶת אֲשֶׁר־עַל־רֹאשׁ֖וֹ אַמּ֥וֹת חָמֵֽשׁ׃ ס 15
१५भवन के सामने उसने पैंतीस-पैंतीस हाथ ऊँचे दो खम्भे बनवाए, और जो कँगनी एक-एक के ऊपर थी वह पाँच-पाँच हाथ की थी।
וַיַּ֤עַשׂ שַׁרְשְׁרוֹת֙ בַּדְּבִ֔יר וַיִּתֵּ֖ן עַל־רֹ֣אשׁ הָעַמֻּדִ֑ים וַיַּ֤עַשׂ רִמּוֹנִים֙ מֵאָ֔ה וַיִּתֵּ֖ן בַּֽשַּׁרְשְׁרֽוֹת׃ 16
१६फिर उसने भीतरी कोठरी में साँकलें बनवाकर खम्भों के ऊपर लगाई, और एक सौ अनार भी बनाकर साँकलों पर लटकाए।
וַיָּ֤קֶם אֶת־הָֽעַמּוּדִים֙ עַל־פְּנֵ֣י הַהֵיכָ֔ל אֶחָ֥ד מִיָּמִ֖ין וְאֶחָ֣ד מֵֽהַשְּׂמֹ֑אול וַיִּקְרָ֤א שֵׁם־הַיְמָנִי֙ יָכִ֔ין וְשֵׁ֥ם הַשְּׂמָאלִ֖י בֹּֽעַז׃ ס 17
१७उसने इन खम्भों को मन्दिर के सामने, एक तो उसकी दाहिनी ओर और दूसरा बाईं ओर खड़ा कराया; और दाहिने खम्भे का नाम याकीन और बाएँ खम्भे का नाम बोअज रखा।

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