< תְהִלִּים 65 >

לַמְנַצֵּ֥חַ מִזְמֹ֗ור לְדָוִ֥ד שִֽׁיר׃ לְךָ֤ דֻֽמִיָּ֬ה תְהִלָּ֓ה אֱלֹ֘הִ֥ים בְּצִיֹּ֑ון וּ֝לְךָ֗ יְשֻׁלַּם־נֶֽדֶר׃ 1
प्रधान बजानेवाले के लिये दाऊद का भजन, गीत हे परमेश्वर, सिय्योन में स्तुति तेरी बाट जोहती है; और तेरे लिये मन्नतें पूरी की जाएँगी।
שֹׁמֵ֥עַ תְּפִלָּ֑ה עָ֝דֶ֗יךָ כָּל־בָּשָׂ֥ר יָבֹֽאוּ׃ 2
हे प्रार्थना के सुननेवाले! सब प्राणी तेरे ही पास आएँगे।
דִּבְרֵ֣י עֲ֭וֹנֹת גָּ֣בְרוּ מֶ֑נִּי פְּ֝שָׁעֵ֗ינוּ אַתָּ֥ה תְכַפְּרֵֽם׃ 3
अधर्म के काम मुझ पर प्रबल हुए हैं; हमारे अपराधों को तू क्षमा करेगा।
אַשְׁרֵ֤י ׀ תִּֽבְחַ֣ר וּתְקָרֵב֮ יִשְׁכֹּ֪ן חֲצֵ֫רֶ֥יךָ נִ֭שְׂבְּעָה בְּט֣וּב בֵּיתֶ֑ךָ קְ֝דֹ֗שׁ הֵיכָלֶֽךָ׃ 4
क्या ही धन्य है वह, जिसको तू चुनकर अपने समीप आने देता है, कि वह तेरे आँगनों में वास करे! हम तेरे भवन के, अर्थात् तेरे पवित्र मन्दिर के उत्तम-उत्तम पदार्थों से तृप्त होंगे।
נֹ֤ורָאֹ֨ות ׀ בְּצֶ֣דֶק תַּ֭עֲנֵנוּ אֱלֹהֵ֣י יִשְׁעֵ֑נוּ מִבְטָ֥ח כָּל־קַצְוֵי־אֶ֝֗רֶץ וְיָ֣ם רְחֹקִֽים׃ 5
हे हमारे उद्धारकर्ता परमेश्वर, हे पृथ्वी के सब दूर-दूर देशों के और दूर के समुद्र पर के रहनेवालों के आधार, तू धार्मिकता से किए हुए अद्भुत कार्यों द्वारा हमें उत्तर देगा;
מֵכִ֣ין הָרִ֣ים בְּכֹחֹ֑ו נֶ֝אְזָ֗ר בִּגְבוּרָֽה׃ 6
तू जो पराक्रम का फेंटा कसे हुए, अपनी सामर्थ्य के पर्वतों को स्थिर करता है;
מַשְׁבִּ֤יחַ ׀ שְׁאֹ֣ון יַ֭מִּים שְׁאֹ֥ון גַּלֵּיהֶ֗ם וַהֲמֹ֥ון לְאֻמִּֽים׃ 7
तू जो समुद्र का महाशब्द, उसकी तरंगों का महाशब्द, और देश-देश के लोगों का कोलाहल शान्त करता है;
וַיִּ֤ירְא֨וּ ׀ יֹשְׁבֵ֣י קְ֭צָוֹת מֵאֹותֹתֶ֑יךָ מֹ֤וצָֽאֵי־בֹ֖קֶר וָעֶ֣רֶב תַּרְנִֽין׃ 8
इसलिए दूर-दूर देशों के रहनेवाले तेरे चिन्ह देखकर डर गए हैं; तू उदयाचल और अस्ताचल दोनों से जयजयकार कराता है।
פָּקַ֥דְתָּ הָאָ֨רֶץ ׀ וַתְּשֹׁ֪קְקֶ֡הָ רַבַּ֬ת תַּעְשְׁרֶ֗נָּה פֶּ֣לֶג אֱ֭לֹהִים מָ֣לֵא מָ֑יִם תָּכִ֥ין דְּ֝גָנָ֗ם כִּי־כֵ֥ן תְּכִינֶֽהָ׃ 9
तू भूमि की सुधि लेकर उसको सींचता है, तू उसको बहुत फलदायक करता है; परमेश्वर की नदी जल से भरी रहती है; तू पृथ्वी को तैयार करके मनुष्यों के लिये अन्न को तैयार करता है।
תְּלָמֶ֣יהָ רַ֭וֵּה נַחֵ֣ת גְּדוּדֶ֑יהָ בִּרְבִיבִ֥ים תְּ֝מֹגְגֶ֗נָּה צִמְחָ֥הּ תְּבָרֵֽךְ׃ 10
१०तू रेघारियों को भली भाँति सींचता है, और उनके बीच की मिट्टी को बैठाता है, तू भूमि को मेंह से नरम करता है, और उसकी उपज पर आशीष देता है।
עִ֭טַּרְתָּ שְׁנַ֣ת טֹובָתֶ֑ךָ וּ֝מַעְגָּלֶ֗יךָ יִרְעֲפ֥וּן דָּֽשֶׁן׃ 11
११तेरी भलाइयों से, तू वर्ष को मुकुट पहनता है; तेरे मार्गों में उत्तम-उत्तम पदार्थ पाए जाते हैं।
יִ֭רְעֲפוּ נְאֹ֣ות מִדְבָּ֑ר וְ֝גִ֗יל גְּבָעֹ֥ות תַּחְגֹּֽרְנָה׃ 12
१२वे जंगल की चराइयों में हरियाली फूट पड़ती हैं; और पहाड़ियाँ हर्ष का फेंटा बाँधे हुए है।
לָבְשׁ֬וּ כָרִ֨ים ׀ הַצֹּ֗אן וַעֲמָקִ֥ים יַֽעַטְפוּ־בָ֑ר יִ֝תְרֹועֲע֗וּ אַף־יָשִֽׁירוּ׃ 13
१३चराइयाँ भेड़-बकरियों से भरी हुई हैं; और तराइयाँ अन्न से ढँपी हुई हैं, वे जयजयकार करती और गाती भी हैं।

< תְהִלִּים 65 >