< תְהִלִּים 44 >
לַמְנַצֵּ֬חַ לִבְנֵי־קֹ֬רַח מַשְׂכִּֽיל׃ אֱלֹהִ֤ים ׀ בְּאָזְנֵ֬ינוּ שָׁמַ֗עְנוּ אֲבֹותֵ֥ינוּ סִפְּרוּ־לָ֑נוּ פֹּ֥עַל פָּעַ֥לְתָּ בִֽ֝ימֵיהֶ֗ם בִּ֣ימֵי קֶֽדֶם׃ | 1 |
१प्रधान बजानेवाले के लिये कोरहवंशियों का मश्कील हे परमेश्वर, हमने अपने कानों से सुना, हमारे बापदादों ने हम से वर्णन किया है, कि तूने उनके दिनों में और प्राचीनकाल में क्या-क्या काम किए हैं।
אַתָּ֤ה ׀ יָדְךָ֡ גֹּויִ֣ם הֹ֭ורַשְׁתָּ וַתִּטָּעֵ֑ם תָּרַ֥ע לְ֝אֻמִּ֗ים וַֽתְּשַׁלְּחֵֽם׃ | 2 |
२तूने अपने हाथ से जातियों को निकाल दिया, और इनको बसाया; तूने देश-देश के लोगों को दुःख दिया, और इनको चारों ओर फैला दिया;
כִּ֤י לֹ֪א בְחַרְבָּ֡ם יָ֥רְשׁוּ אָ֗רֶץ וּזְרֹועָם֮ לֹא־הֹושִׁ֪יעָ֫ה לָּ֥מֹו כִּֽי־יְמִֽינְךָ֣ וּ֭זְרֹועֲךָ וְאֹ֥ור פָּנֶ֗יךָ כִּ֣י רְצִיתָֽם׃ | 3 |
३क्योंकि वे न तो अपनी तलवार के बल से इस देश के अधिकारी हुए, और न अपने बाहुबल से; परन्तु तेरे दाहिने हाथ और तेरी भुजा और तेरे प्रसन्न मुख के कारण जयवन्त हुए; क्योंकि तू उनको चाहता था।
אַתָּה־ה֣וּא מַלְכִּ֣י אֱלֹהִ֑ים צַ֝וֵּ֗ה יְשׁוּעֹ֥ות יַעֲקֹֽב׃ | 4 |
४हे परमेश्वर, तू ही हमारा महाराजा है, तू याकूब के उद्धार की आज्ञा देता है।
בְּ֭ךָ צָרֵ֣ינוּ נְנַגֵּ֑חַ בְּ֝שִׁמְךָ֗ נָב֥וּס קָמֵֽינוּ׃ | 5 |
५तेरे सहारे से हम अपने द्रोहियों को ढकेलकर गिरा देंगे; तेरे नाम के प्रताप से हम अपने विरोधियों को रौंदेंगे।
כִּ֤י לֹ֣א בְקַשְׁתִּ֣י אֶבְטָ֑ח וְ֝חַרְבִּ֗י לֹ֣א תֹושִׁיעֵֽנִי׃ | 6 |
६क्योंकि मैं अपने धनुष पर भरोसा न रखूँगा, और न अपनी तलवार के बल से बचूँगा।
כִּ֣י הֹ֭ושַׁעְתָּנוּ מִצָּרֵ֑ינוּ וּמְשַׂנְאֵ֥ינוּ הֱבִישֹֽׁותָ׃ | 7 |
७परन्तु तू ही ने हमको द्रोहियों से बचाया है, और हमारे बैरियों को निराश और लज्जित किया है।
בֵּֽ֭אלֹהִים הִלַּלְ֣נוּ כָל־הַיֹּ֑ום וְשִׁמְךָ֓ ׀ לְעֹולָ֖ם נֹודֶ֣ה סֶֽלָה׃ | 8 |
८हम परमेश्वर की बड़ाई दिन भर करते रहते हैं, और सदैव तेरे नाम का धन्यवाद करते रहेंगे। (सेला)
אַף־זָ֭נַחְתָּ וַתַּכְלִימֵ֑נוּ וְלֹא־תֵ֝צֵ֗א בְּצִבְאֹותֵֽינוּ׃ | 9 |
९तो भी तूने अब हमको त्याग दिया और हमारा अनादर किया है, और हमारे दलों के साथ आगे नहीं जाता।
תְּשִׁיבֵ֣נוּ אָ֭חֹור מִנִּי־צָ֑ר וּ֝מְשַׂנְאֵ֗ינוּ שָׁ֣סוּ לָֽמֹו׃ | 10 |
१०तू हमको शत्रु के सामने से हटा देता है, और हमारे बैरी मनमाने लूट मार करते हैं।
תִּ֭תְּנֵנוּ כְּצֹ֣אן מַאֲכָ֑ל וּ֝בַגֹּויִ֗ם זֵרִיתָֽנוּ׃ | 11 |
११तूने हमें कसाई की भेड़ों के समान कर दिया है, और हमको अन्यजातियों में तितर-बितर किया है।
תִּמְכֹּֽר־עַמְּךָ֥ בְלֹא־הֹ֑ון וְלֹ֥א־רִ֝בִּ֗יתָ בִּמְחִירֵיהֶֽם׃ | 12 |
१२तू अपनी प्रजा को सेंत-मेंत बेच डालता है, परन्तु उनके मोल से तू धनी नहीं होता।
תְּשִׂימֵ֣נוּ חֶ֭רְפָּה לִשְׁכֵנֵ֑ינוּ לַ֥עַג וָ֝קֶ֗לֶס לִסְבִיבֹותֵֽינוּ׃ | 13 |
१३तू हमारे पड़ोसियों से हमारी नामधराई कराता है, और हमारे चारों ओर के रहनेवाले हम से हँसी ठट्ठा करते हैं।
תְּשִׂימֵ֣נוּ מָ֭שָׁל בַּגֹּויִ֑ם מְנֹֽוד־רֹ֝֗אשׁ בַּל־אֻמִּֽים׃ | 14 |
१४तूने हमको अन्यजातियों के बीच में अपमान ठहराया है, और देश-देश के लोग हमारे कारण सिर हिलाते हैं।
כָּל־הַ֭יֹּום כְּלִמָּתִ֣י נֶגְדִּ֑י וּבֹ֖שֶׁת פָּנַ֣י כִּסָּֽתְנִי׃ | 15 |
१५दिन भर हमें तिरस्कार सहना पड़ता है, और कलंक लगाने और निन्दा करनेवाले के बोल से,
מִ֭קֹּול מְחָרֵ֣ף וּמְגַדֵּ֑ף מִפְּנֵ֥י אֹ֝ויֵ֗ב וּמִתְנַקֵּֽם׃ | 16 |
१६शत्रु और बदला लेनेवालों के कारण, बुरा-भला कहनेवालों और निन्दा करनेवालों के कारण।
כָּל־זֹ֣את בָּ֭אַתְנוּ וְלֹ֣א שְׁכַחֲנ֑וּךָ וְלֹֽא־שִׁ֝קַּ֗רְנוּ בִּבְרִיתֶֽךָ׃ | 17 |
१७यह सब कुछ हम पर बीता तो भी हम तुझे नहीं भूले, न तेरी वाचा के विषय विश्वासघात किया है।
לֹא־נָסֹ֣וג אָחֹ֣ור לִבֵּ֑נוּ וַתֵּ֥ט אֲשֻׁרֵ֗ינוּ מִנִּ֥י אָרְחֶֽךָ׃ | 18 |
१८हमारे मन न बहके, न हमारे पैर तरी राह से मुड़ें;
כִּ֣י דִ֭כִּיתָנוּ בִּמְקֹ֣ום תַּנִּ֑ים וַתְּכַ֖ס עָלֵ֣ינוּ בְצַלְמָֽוֶת׃ | 19 |
१९तो भी तूने हमें गीदड़ों के स्थान में पीस डाला, और हमको घोर अंधकार में छिपा दिया है।
אִם־שָׁ֭כַחְנוּ שֵׁ֣ם אֱלֹהֵ֑ינוּ וַנִּפְרֹ֥שׂ כַּ֝פֵּ֗ינוּ לְאֵ֣ל זָֽר׃ | 20 |
२०यदि हम अपने परमेश्वर का नाम भूल जाते, या किसी पराए देवता की ओर अपने हाथ फैलाते,
הֲלֹ֣א אֱ֭לֹהִים יַֽחֲקָר־זֹ֑את כִּֽי־ה֥וּא יֹ֝דֵ֗עַ תַּעֲלֻמֹ֥ות לֵֽב׃ | 21 |
२१तो क्या परमेश्वर इसका विचार न करता? क्योंकि वह तो मन की गुप्त बातों को जानता है।
כִּֽי־עָ֭לֶיךָ הֹרַ֣גְנוּ כָל־הַיֹּ֑ום נֶ֝חְשַׁ֗בְנוּ כְּצֹ֣אן טִבְחָֽה׃ | 22 |
२२परन्तु हम दिन भर तेरे निमित्त मार डाले जाते हैं, और उन भेड़ों के समान समझे जाते हैं जो वध होने पर हैं।
ע֤וּרָה ׀ לָ֖מָּה תִישַׁ֥ן ׀ אֲדֹנָ֑י הָ֝קִ֗יצָה אַל־תִּזְנַ֥ח לָנֶֽצַח׃ | 23 |
२३हे प्रभु, जाग! तू क्यों सोता है? उठ! हमको सदा के लिये त्याग न दे!
לָֽמָּה־פָנֶ֥יךָ תַסְתִּ֑יר תִּשְׁכַּ֖ח עָנְיֵ֣נוּ וְֽלַחֲצֵֽנוּ׃ | 24 |
२४तू क्यों अपना मुँह छिपा लेता है? और हमारा दुःख और सताया जाना भूल जाता है?
כִּ֤י שָׁ֣חָה לֶעָפָ֣ר נַפְשֵׁ֑נוּ דָּבְקָ֖ה לָאָ֣רֶץ בִּטְנֵֽנוּ׃ | 25 |
२५हमारा प्राण मिट्टी से लग गया; हमारा शरीर भूमि से सट गया है।
ק֭וּמָֽה עֶזְרָ֣תָה לָּ֑נוּ וּ֝פְדֵ֗נוּ לְמַ֣עַן חַסְדֶּֽךָ׃ | 26 |
२६हमारी सहायता के लिये उठ खड़ा हो। और अपनी करुणा के निमित्त हमको छुड़ा ले।