< מִשְׁלֵי 9 >

חָ֭כְמֹות בָּנְתָ֣ה בֵיתָ֑הּ חָצְבָ֖ה עַמּוּדֶ֣יהָ שִׁבְעָֽה׃ 1
ज्ञान ने एक घर का निर्माण किया है; उसने काटकर अपने लिए सात स्तंभ भी गढ़े हैं.
טָבְחָ֣ה טִ֭בְחָהּ מָסְכָ֣ה יֵינָ֑הּ אַ֝֗ף עָֽרְכָ֥ה שֻׁלְחָנָֽהּ׃ 2
उसने उत्कृष्ट भोजन तैयार किए हैं तथा उत्तम द्राक्षारस भी परोसा है; उसने अतिथियों के लिए सभी भोज तैयार कर रखा है.
שָֽׁלְחָ֣ה נַעֲרֹתֶ֣יהָ תִקְרָ֑א עַל־גַּ֝פֵּ֗י מְרֹ֣מֵי קָֽרֶת׃ 3
आमंत्रण के लिए उसने अपनी सहेलियां भेज दी हैं कि वे नगर के सर्वोच्च स्थलों से आमंत्रण की घोषणा करें,
מִי־פֶ֭תִי יָסֻ֣ר הֵ֑נָּה חֲסַר־לֵ֝֗ב אָ֣מְרָה לֹּֽו׃ 4
“जो कोई सरल-साधारण है, यहां आ जाए!” जिस किसी में सरल ज्ञान का अभाव है, उसे वह कहता है,
לְ֭כוּ לַחֲמ֣וּ בְֽלַחֲמִ֑י וּ֝שְׁת֗וּ בְּיַ֣יִן מָסָֽכְתִּי׃ 5
“आ जाओ, मेरे भोज में सम्मिलित हो जाओ. उस द्राक्षारस का भी सेवन करो, जो मैंने परोसा है.
עִזְב֣וּ פְתָאיִ֣ם וִֽחְי֑וּ וְ֝אִשְׁר֗וּ בְּדֶ֣רֶךְ בִּינָֽה׃ 6
अपना भोला चालचलन छोड़कर; समझ का मार्ग अपना लो और जीवन में प्रवेश करो.”
יֹ֤סֵ֨ר ׀ לֵ֗ץ לֹקֵ֣חַֽ לֹ֣ו קָלֹ֑ון וּמֹוכִ֖יחַ לְרָשָׁ֣ע מוּמֹֽו׃ 7
यदि कोई ठट्ठा करनेवाले की भूल सुधारता है, उसे अपशब्द ही सुनने पड़ते हैं; यदि कोई किसी दुष्ट को डांटता है, अपने ही ऊपर अपशब्द ले आता है.
אַל־תֹּ֣וכַח לֵ֭ץ פֶּן־יִשְׂנָאֶ֑ךָּ הֹוכַ֥ח לְ֝חָכָ֗ם וְיֶאֱהָבֶֽךָּ׃ 8
तब ठट्ठा करनेवाले को मत डांटो, अन्यथा तुम उसकी घृणा के पात्र हो जाओगे; तुम ज्ञानवान को डांटो, तुम उसके प्रेम पात्र ही बनोगे.
תֵּ֣ן לְ֭חָכָם וְיֶחְכַּם־עֹ֑וד הֹודַ֥ע לְ֝צַדִּ֗יק וְיֹ֣וסֶף לֶֽקַח׃ פ 9
शिक्षा ज्ञानवान को दो. इससे वह और भी अधिक ज्ञानवान हो जाएगा; शिक्षा किसी सज्जन को दो, इससे वह अपने ज्ञान में बढ़ते जाएगा.
תְּחִלַּ֣ת חָ֭כְמָה יִרְאַ֣ת יְהוָ֑ה וְדַ֖עַת קְדֹשִׁ֣ים בִּינָֽה׃ 10
याहवेह के प्रति श्रद्धा-भय से ज्ञान का तथा महा पवित्र के सैद्धान्तिक ज्ञान से समझ का उद्भव होता है.
כִּי־בִ֭י יִרְבּ֣וּ יָמֶ֑יךָ וְיֹוסִ֥יפוּ לְּ֝ךָ֗ שְׁנֹ֣ות חַיִּֽים׃ 11
तुम मेरे द्वारा ही आयुष्मान होगे तथा तुम्हारी आयु के वर्ष बढ़ाए जाएंगे.
אִם־חָ֭כַמְתָּ חָכַ֣מְתָּ לָּ֑ךְ וְ֝לַ֗צְתָּ לְֽבַדְּךָ֥ תִשָּֽׂא׃ 12
यदि तुम बुद्धिमान हो, तो तुम्हारा ज्ञान तुमको प्रतिफल देगा; यदि तुम ज्ञान के ठट्ठा करनेवाले हो तो इसके परिणाम मात्र तुम भोगोगे.
אֵ֣שֶׁת כְּ֭סִילוּת הֹֽמִיָּ֑ה פְּ֝תַיּ֗וּת וּבַל־יָ֥דְעָה מָּֽה׃ 13
श्रीमती मूर्खता उच्च स्वर में बक-बक करती है; वह भोली है, अज्ञानी है.
וְֽ֭יָשְׁבָה לְפֶ֣תַח בֵּיתָ֑הּ עַל־כִּ֝סֵּ֗א מְרֹ֣מֵי קָֽרֶת׃ 14
उसके घर के द्वार पर ही अपना आसन लगाया है, जब वह नगर में होती है तब वह अपने लिए सर्वोच्च आसन चुन लेती है,
לִקְרֹ֥א לְעֹֽבְרֵי־דָ֑רֶךְ הַֽ֝מְיַשְּׁרִ֗ים אֹֽרְחֹותָֽם׃ 15
वह उनको आह्वान करती है, जो वहां से निकलते हैं, जो अपने मार्ग की ओर अग्रगामी हैं,
מִי־פֶ֭תִי יָסֻ֣ר הֵ֑נָּה וַחֲסַר־לֵ֝֗ב וְאָ֣מְרָה לֹּֽו׃ 16
“जो कोई सीधा-सादा है, वह यहां आ जाए!” और निबुद्धियों से वह कहती है,
מַֽיִם־גְּנוּבִ֥ים יִמְתָּ֑קוּ וְלֶ֖חֶם סְתָרִ֣ים יִנְעָֽם׃ 17
“मीठा लगता है चोरी किया हुआ जल; स्वादिष्ट लगता है वह भोजन, जो छिपा-छिपा कर खाया जाता है!”
וְֽלֹא־יָ֭דַע כִּֽי־רְפָאִ֣ים שָׁ֑ם בְּעִמְקֵ֖י שְׁאֹ֣ול קְרֻאֶֽיהָ׃ פ (Sheol h7585) 18
भला उसे क्या मालूम कि वह मृतकों का स्थान है, कि उसके अतिथि अधोलोक में पहुंचे हैं. (Sheol h7585)

< מִשְׁלֵי 9 >