< בְּמִדְבַּר 22 >

וַיִּסְע֖וּ בְּנֵ֣י יִשְׂרָאֵ֑ל וַֽיַּחֲנוּ֙ בְּעַֽרְבֹ֣ות מֹואָ֔ב מֵעֵ֖בֶר לְיַרְדֵּ֥ן יְרֵחֹֽו׃ ס 1
फिर बनी — इस्राईल रवाना हुए और दरिया — ए — यरदन के पार मोआब के मैदानों में यरीहू के सामने ख़ेमे खड़े किए।
וַיַּ֥רְא בָּלָ֖ק בֶּן־צִפֹּ֑ור אֵ֛ת כָּל־אֲשֶׁר־עָשָׂ֥ה יִשְׂרָאֵ֖ל לָֽאֱמֹרִֽי׃ 2
और जो कुछ बनी — इस्राईल ने अमोरियों के साथ किया था वह सब बलक़ बिन सफ़ोर ने देखा था।
וַיָּ֨גָר מֹואָ֜ב מִפְּנֵ֥י הָעָ֛ם מְאֹ֖ד כִּ֣י רַב־ה֑וּא וַיָּ֣קָץ מֹואָ֔ב מִפְּנֵ֖י בְּנֵ֥י יִשְׂרָאֵֽל׃ 3
इसलिए मोआबियों को इन लोगों से बड़ा ख़ौफ़ आया, क्यूँकि यह बहुत से थे; ग़र्ज़ मोआबी बनी — इस्राईल की वजह से परेशान हुए।
וַיֹּ֨אמֶר מֹואָ֜ב אֶל־זִקְנֵ֣י מִדְיָ֗ן עַתָּ֞ה יְלַחֲכ֤וּ הַקָּהָל֙ אֶת־כָּל־סְבִ֣יבֹתֵ֔ינוּ כִּלְחֹ֣ךְ הַשֹּׁ֔ור אֵ֖ת יֶ֣רֶק הַשָּׂדֶ֑ה וּבָלָ֧ק בֶּן־צִפֹּ֛ור מֶ֥לֶךְ לְמֹואָ֖ב בָּעֵ֥ת הַהִֽוא׃ 4
तब मोआबियों ने मिदियानी बुज़ुर्गों से कहा, “जो कुछ हमारे आस पास है उसे यह लश्कर ऐसा चट कर जाएगा जैसे बैल मैदान की घास को चट कर जाता है।” उस वक़्त बलक़ बिन सफ़ोर मोआबियों का बादशाह था।
וַיִּשְׁלַ֨ח מַלְאָכִ֜ים אֶל־בִּלְעָ֣ם בֶּן־בְּעֹ֗ור פְּ֠תֹורָה אֲשֶׁ֧ר עַל־הַנָּהָ֛ר אֶ֥רֶץ בְּנֵי־עַמֹּ֖ו לִקְרֹא־לֹ֑ו לֵאמֹ֗ר הִ֠נֵּה עַ֣ם יָצָ֤א מִמִּצְרַ֙יִם֙ הִנֵּ֤ה כִסָּה֙ אֶת־עֵ֣ין הָאָ֔רֶץ וְה֥וּא יֹשֵׁ֖ב מִמֻּלִֽי׃ 5
इसलिए उस ने ब'ओर के बेटे बल'आम के पास फ़तोर को, जो बड़े दरिया कि किनारे उसकी क़ौम के लोगों का मुल्क था, क़ासिद रवाना किए कि उसे बुला लाएँ और यह कहला भेजा, “देख, एक क़ौम मिस्र से निकलकर आई है, उनसे ज़मीन की सतह छिप गई है; अब वह मेरे सामने ही आकर जम गए हैं।
וְעַתָּה֩ לְכָה־נָּ֨א אָֽרָה־לִּ֜י אֶת־הָעָ֣ם הַזֶּ֗ה כִּֽי־עָצ֥וּם הוּא֙ מִמֶּ֔נִּי אוּלַ֤י אוּכַל֙ נַכֶּה־בֹּ֔ו וַאֲגָרְשֶׁ֖נּוּ מִן־הָאָ֑רֶץ כִּ֣י יָדַ֗עְתִּי אֵ֤ת אֲשֶׁר־תְּבָרֵךְ֙ מְבֹרָ֔ךְ וַאֲשֶׁ֥ר תָּאֹ֖ר יוּאָֽר׃ 6
इसलिए अब तू आकर मेरी ख़ातिर इन लोगों पर ला'नत कर, क्यूँकि यह मुझ से बहुत क़वी हैं; फिर मुम्किन है कि मैं ग़ालिब आऊँ, और हम सब इनको मार कर इस मुल्क से निकाल दें; क्यूँकि यह मैं जानता हूँ कि जिसे तू बरकत देता है उसे बरकत मिलती है, और जिस पर तू ला'नत करता है वह मला'ऊन होता है।”
וַיֵּ֨לְכ֜וּ זִקְנֵ֤י מֹואָב֙ וְזִקְנֵ֣י מִדְיָ֔ן וּקְסָמִ֖ים בְּיָדָ֑ם וַיָּבֹ֙אוּ֙ אֶל־בִּלְעָ֔ם וַיְדַבְּר֥וּ אֵלָ֖יו דִּבְרֵ֥י בָלָֽק׃ 7
तब मोआब के बुज़ुर्ग और मिदियान के बुज़ुर्ग फ़ाल खोलने का इनाम साथ लेकर रवाना हुए और बल'आम के पास पहुँचे और बलक़ का पैग़ाम उसे दिया।
וַיֹּ֣אמֶר אֲלֵיהֶ֗ם לִ֤ינוּ פֹה֙ הַלַּ֔יְלָה וַהֲשִׁבֹתִ֤י אֶתְכֶם֙ דָּבָ֔ר כַּאֲשֶׁ֛ר יְדַבֵּ֥ר יְהוָ֖ה אֵלָ֑י וַיֵּשְׁב֥וּ שָׂרֵֽי־מֹואָ֖ב עִם־בִּלְעָֽם׃ 8
उसने उनसे कहा, “आज रात यहीं ठहरो और जो कुछ ख़ुदावन्द मुझ से कहेगा, उसके मुताबिक़ मैं तुम को जवाब दूँगा।” चुनाँचे मोआब के हाकिम बल'आम के साथ ठहर गए।
וַיָּבֹ֥א אֱלֹהִ֖ים אֶל־בִּלְעָ֑ם וַיֹּ֕אמֶר מִ֛י הָאֲנָשִׁ֥ים הָאֵ֖לֶּה עִמָּֽךְ׃ 9
और ख़ुदा ने बल'आम के पास आकर कहा, “तेरे यहाँ यह कौन आदमी हैं?”
וַיֹּ֥אמֶר בִּלְעָ֖ם אֶל־הָאֱלֹהִ֑ים בָּלָ֧ק בֶּן־צִפֹּ֛ר מֶ֥לֶךְ מֹואָ֖ב שָׁלַ֥ח אֵלָֽי׃ 10
बल'आम ने ख़ुदा से कहा, “मोआब के बादशाह बलक़ बिन सफ़ोर ने मेरे पास कहला भेजा है, कि
הִנֵּ֤ה הָעָם֙ הַיֹּצֵ֣א מִמִּצְרַ֔יִם וַיְכַ֖ס אֶת־עֵ֣ין הָאָ֑רֶץ עַתָּ֗ה לְכָ֤ה קָֽבָה־לִּי֙ אֹתֹ֔ו אוּלַ֥י אוּכַ֛ל לְהִלָּ֥חֶם בֹּ֖ו וְגֵרַשְׁתִּֽיו׃ 11
जो कौम मिस्र से निकल कर आई है उससे ज़मीन की सतह छिप गई है, इसलिए तू अब आकर मेरी ख़ातिर उन पर ला'नत कर, फिर मुम्किन है कि मैं उनसे लड़ सकूँ और उनको निकाल दूँ।”
וַיֹּ֤אמֶר אֱלֹהִים֙ אֶל־בִּלְעָ֔ם לֹ֥א תֵלֵ֖ךְ עִמָּהֶ֑ם לֹ֤א תָאֹר֙ אֶת־הָעָ֔ם כִּ֥י בָר֖וּךְ הֽוּא׃ 12
ख़ुदा ने बल'आम से कहा, “तू इनके साथ मत जाना, तू उन लोगों पर ला'नत न करना, इसलिए कि वह मुबारक हैं।”
וַיָּ֤קָם בִּלְעָם֙ בַּבֹּ֔קֶר וַיֹּ֙אמֶר֙ אֶל־שָׂרֵ֣י בָלָ֔ק לְכ֖וּ אֶֽל־אַרְצְכֶ֑ם כִּ֚י מֵאֵ֣ן יְהוָ֔ה לְתִתִּ֖י לַהֲלֹ֥ךְ עִמָּכֶֽם׃ 13
बल'आम ने सुबह को उठ कर बलक़ के हाकिमों से कहा, “तुम अपने मुल्क को लौट जाओ, क्यूँकि ख़ुदावन्द मुझे तुम्हारे साथ जाने की इजाज़त नहीं देता।”
וַיָּק֙וּמוּ֙ שָׂרֵ֣י מֹואָ֔ב וַיָּבֹ֖אוּ אֶל־בָּלָ֑ק וַיֹּ֣אמְר֔וּ מֵאֵ֥ן בִּלְעָ֖ם הֲלֹ֥ךְ עִמָּֽנוּ׃ 14
और मोआब के हाकिम चले गए और जाकर बलक़ से कहा, “बल'आम हमारे साथ आने से इंकार करता है।”
וַיֹּ֥סֶף עֹ֖וד בָּלָ֑ק שְׁלֹ֣חַ שָׂרִ֔ים רַבִּ֥ים וְנִכְבָּדִ֖ים מֵאֵֽלֶּה׃ 15
तब दूसरी दफ़ा' बलक़ ने और हाकिमों को भेजा, जो पहलों से बढ़ कर मु'अज़िज़ और शुमार में भी ज़्यादा थे।
וַיָּבֹ֖אוּ אֶל־בִּלְעָ֑ם וַיֹּ֣אמְרוּ לֹ֗ו כֹּ֤ה אָמַר֙ בָּלָ֣ק בֶּן־צִפֹּ֔ור אַל־נָ֥א תִמָּנַ֖ע מֵהֲלֹ֥ךְ אֵלָֽי׃ 16
उन्होंने बल'आम के पास जाकर उस से कहा, “बलक़ बिन सफ़ोर ने यूँ कहा है, कि मेरे पास आने में तेरे लिए कोई रुकावट न हो;
כִּֽי־כַבֵּ֤ד אֲכַבֶּדְךָ֙ מְאֹ֔ד וְכֹ֛ל אֲשֶׁר־תֹּאמַ֥ר אֵלַ֖י אֶֽעֱשֶׂ֑ה וּלְכָה־נָּא֙ קָֽבָה־לִּ֔י אֵ֖ת הָעָ֥ם הַזֶּֽה׃ 17
क्यूँकि मैं बहुत 'आला मन्सब पर तुझे मुम्ताज़ करूँगा, और जो कुछ तू मुझ से कहे मैं वही करूँगा; इसलिए तू आ जा और मेरी ख़ातिर इन लोगों पर ला'नत कर।”
וַיַּ֣עַן בִּלְעָ֗ם וַיֹּ֙אמֶר֙ אֶל־עַבְדֵ֣י בָלָ֔ק אִם־יִתֶּן־לִ֥י בָלָ֛ק מְלֹ֥א בֵיתֹ֖ו כֶּ֣סֶף וְזָהָ֑ב לֹ֣א אוּכַ֗ל לַעֲבֹר֙ אֶת־פִּי֙ יְהוָ֣ה אֱלֹהָ֔י לַעֲשֹׂ֥ות קְטַנָּ֖ה אֹ֥ו גְדֹולָֽה׃ 18
बल'आम ने बलक़ के ख़ादिमों को जवाब दिया, “अगर बलक़ अपना घर भी चाँदी और सोने से भर कर मुझे दे, तो भी मैं ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के हुक्म से तजावुज़ नहीं कर सकता, कि उसे घटाकर या बढ़ा कर मानूँ।
וְעַתָּ֗ה שְׁב֨וּ נָ֥א בָזֶ֛ה גַּם־אַתֶּ֖ם הַלָּ֑יְלָה וְאֵ֣דְעָ֔ה מַה־יֹּסֵ֥ף יְהוָ֖ה דַּבֵּ֥ר עִמִּֽי׃ 19
इसलिए अब तुम भी आज रात यहीं ठहरो, ताकि मैं देखूँ कि ख़ुदावन्द मुझ से और क्या कहता है।”
וַיָּבֹ֨א אֱלֹהִ֥ים ׀ אֶל־בִּלְעָם֮ לַיְלָה֒ וַיֹּ֣אמֶר לֹ֗ו אִם־לִקְרֹ֤א לְךָ֙ בָּ֣אוּ הָאֲנָשִׁ֔ים ק֖וּם לֵ֣ךְ אִתָּ֑ם וְאַ֗ךְ אֶת־הַדָּבָ֛ר אֲשֶׁר־אֲדַבֵּ֥ר אֵלֶ֖יךָ אֹתֹ֥ו תַעֲשֶֽׂה׃ 20
और ख़ुदा ने रात को बल'आम के पास आ कर उससे कहा, “अगर यह आदमी तुझे बुलाने को आए हुए हैं तो तू उठ कर उनके साथ जा; मगर जो बात मैं तुझ से कहूँ उसी पर 'अमल करना।”
וַיָּ֤קָם בִּלְעָם֙ בַּבֹּ֔קֶר וַֽיַּחֲבֹ֖שׁ אֶת־אֲתֹנֹ֑ו וַיֵּ֖לֶךְ עִם־שָׂרֵ֥י מֹואָֽב׃ 21
तब बल'आम सुबह को उठा, और अपनी गधी पर ज़ीन रख कर मोआब के हाकिमों के साथ चला।
וַיִּֽחַר־אַ֣ף אֱלֹהִים֮ כִּֽי־הֹולֵ֣ךְ הוּא֒ וַיִּתְיַצֵּ֞ב מַלְאַ֧ךְ יְהוָ֛ה בַּדֶּ֖רֶךְ לְשָׂטָ֣ן לֹ֑ו וְהוּא֙ רֹכֵ֣ב עַל־אֲתֹנֹ֔ו וּשְׁנֵ֥י נְעָרָ֖יו עִמֹּֽו׃ 22
और उसके जाने की वजह से ख़ुदा का ग़ज़ब भड़का, और ख़ुदावन्द का फ़रिश्ता उससे मुज़ाहमत करने के लिए रास्ता रोक कर खड़ा हो गया। वह तो अपनी गधी पर सवार था और उसके साथ उसके दो मुलाज़िम थे।
וַתֵּ֣רֶא הָאָתֹון֩ אֶת־מַלְאַ֨ךְ יְהוָ֜ה נִצָּ֣ב בַּדֶּ֗רֶךְ וְחַרְבֹּ֤ו שְׁלוּפָה֙ בְּיָדֹ֔ו וַתֵּ֤ט הָֽאָתֹון֙ מִן־הַדֶּ֔רֶךְ וַתֵּ֖לֶךְ בַּשָּׂדֶ֑ה וַיַּ֤ךְ בִּלְעָם֙ אֶת־הָ֣אָתֹ֔ון לְהַטֹּתָ֖הּ הַדָּֽרֶךְ׃ 23
और उस गधी ने ख़ुदावन्द के फ़रिश्ते को देखा, कि वह अपने हाथ में नंगी तलवार लिए हुए रास्ता रोके खड़ा है; तब गधी रास्ता छोड़कर एक तरफ़ हो गई और खेत में चली गई। तब बल'आम ने गधी को मारा ताकि उसे रास्ते पर ले आए।
וַֽיַּעֲמֹד֙ מַלְאַ֣ךְ יְהוָ֔ה בְּמִשְׁעֹ֖ול הַכְּרָמִ֑ים גָּדֵ֥ר מִזֶּ֖ה וְגָדֵ֥ר מִזֶּֽה׃ 24
तब ख़ुदावन्द का फ़रिश्ता एक नीची राह में जा खड़ा हुआ, जो ताकिस्तानों के बीच से होकर निकलती थी और उसकी दोनों तरफ़ दीवारें थीं।
וַתֵּ֨רֶא הָאָתֹ֜ון אֶת־מַלְאַ֣ךְ יְהוָ֗ה וַתִּלָּחֵץ֙ אֶל־הַקִּ֔יר וַתִּלְחַ֛ץ אֶת־רֶ֥גֶל בִּלְעָ֖ם אֶל־הַקִּ֑יר וַיֹּ֖סֶף לְהַכֹּתָֽהּ׃ 25
गधी ख़ुदावन्द के फ़रिश्ते को देख कर दीवार से जा लगी और बल'आम का पाँव दीवार से पिचा दिया, इसलिए उसने फिर उसे मारा।
וַיֹּ֥וסֶף מַלְאַךְ־יְהוָ֖ה עֲבֹ֑ור וַֽיַּעֲמֹד֙ בְּמָקֹ֣ום צָ֔ר אֲשֶׁ֛ר אֵֽין־דֶּ֥רֶךְ לִנְטֹ֖ות יָמִ֥ין וּשְׂמֹֽאול׃ 26
तब ख़ुदावन्द का फ़रिश्ता आगे बढ़ कर एक ऐसे तंग मक़ाम में खड़ा हो गया, जहाँ दहनी या बाई तरफ़ मुड़ने की जगह न थी।
וַתֵּ֤רֶא הָֽאָתֹון֙ אֶת־מַלְאַ֣ךְ יְהוָ֔ה וַתִּרְבַּ֖ץ תַּ֣חַת בִּלְעָ֑ם וַיִּֽחַר־אַ֣ף בִּלְעָ֔ם וַיַּ֥ךְ אֶת־הָאָתֹ֖ון בַּמַּקֵּֽל׃ 27
फिर जो गधी ने ख़ुदावन्द के फ़रिश्ते को देखा तो बल'आम को लिए हुए बैठ गई; फिर तो बल'आम झल्ला उठा और उसने गधी को अपनी लाठी से मारा।
וַיִּפְתַּ֥ח יְהוָ֖ה אֶת־פִּ֣י הָאָתֹ֑ון וַתֹּ֤אמֶר לְבִלְעָם֙ מֶה־עָשִׂ֣יתִֽי לְךָ֔ כִּ֣י הִכִּיתַ֔נִי זֶ֖ה שָׁלֹ֥שׁ רְגָלִֽים׃ 28
तब ख़ुदावन्द ने गधी की ज़बान खोल दी और उसने बल'आम से कहा, “मैंने तेरे साथ क्या किया है कि तूने मुझे तीन बार मारा?”
וַיֹּ֤אמֶר בִּלְעָם֙ לָֽאָתֹ֔ון כִּ֥י הִתְעַלַּ֖לְתְּ בִּ֑י ל֤וּ יֶשׁ־חֶ֙רֶב֙ בְּיָדִ֔י כִּ֥י עַתָּ֖ה הֲרַגְתִּֽיךְ׃ 29
बल'आम ने गधी से कहा, “इसलिए कि तूने मुझे चिढ़ाया; काश मेरे हाथ में तलवार होती, तो मैं तुझे अभी मार डालता।”
וַתֹּ֨אמֶר הָאָתֹ֜ון אֶל־בִּלְעָ֗ם הֲלֹוא֩ אָנֹכִ֨י אֲתֹֽנְךָ֜ אֲשֶׁר־רָכַ֣בְתָּ עָלַ֗י מֵעֹֽודְךָ֙ עַד־הַיֹּ֣ום הַזֶּ֔ה הַֽהַסְכֵּ֣ן הִסְכַּ֔נְתִּי לַעֲשֹׂ֥ות לְךָ֖ כֹּ֑ה וַיֹּ֖אמֶר לֹֽא׃ 30
गधी ने बल'आम से कहा, “क्या मैं तेरी वही गधी नहीं हूँ जिस पर तू अपनी सारी उम्र आज तक सवार होता आया है? क्या मैं तेरे साथ पहले कभी ऐसा करती थी?” उसने कहा, “नहीं।”
וַיְגַ֣ל יְהוָה֮ אֶת־עֵינֵ֣י בִלְעָם֒ וַיַּ֞רְא אֶת־מַלְאַ֤ךְ יְהוָה֙ נִצָּ֣ב בַּדֶּ֔רֶךְ וְחַרְבֹּ֥ו שְׁלֻפָ֖ה בְּיָדֹ֑ו וַיִּקֹּ֥ד וַיִּשְׁתַּ֖חוּ לְאַפָּֽיו׃ 31
तब ख़ुदावन्द ने बल'आम की आँखें खोलीं, और उसने ख़ुदावन्द के फ़रिश्ते को देखा कि वह अपने हाथ में नंगी तलवार लिए हुए रास्ता रोके खड़ा है, तब उसने अपना सिर झुका लिया और औंधा हो गया।
וַיֹּ֤אמֶר אֵלָיו֙ מַלְאַ֣ךְ יְהוָ֔ה עַל־מָ֗ה הִכִּ֙יתָ֙ אֶת־אֲתֹ֣נְךָ֔ זֶ֖ה שָׁלֹ֣ושׁ רְגָלִ֑ים הִנֵּ֤ה אָנֹכִי֙ יָצָ֣אתִי לְשָׂטָ֔ן כִּֽי־יָרַ֥ט הַדֶּ֖רֶךְ לְנֶגְדִּֽי׃ 32
ख़ुदावन्द के फ़रिश्ते ने उसे कहा, “तू ने अपनी गधी को तीन बार क्यूँ मारा? देख, मैं तुझ से मुज़ाहमत करने को आया हूँ, इसलिए कि तेरी चाल मेरी नज़र में टेढ़ी है।
וַתִּרְאַ֙נִי֙ הָֽאָתֹ֔ון וַתֵּ֣ט לְפָנַ֔י זֶ֖ה שָׁלֹ֣שׁ רְגָלִ֑ים אוּלַי֙ נָטְתָ֣ה מִפָּנַ֔י כִּ֥י עַתָּ֛ה גַּם־אֹתְכָ֥ה הָרַ֖גְתִּי וְאֹותָ֥הּ הֶחֱיֵֽיתִי׃ 33
और गधी ने मुझ को देखा, और वह तीन बार मेरे सामने से मुड़ गई। अगर वह मेरे सामने से न हटती तो मैं ज़रूर तुझ को मार ही डालता, और उसको ज़िन्दा छोड़ देता।”
וַיֹּ֨אמֶר בִּלְעָ֜ם אֶל־מַלְאַ֤ךְ יְהוָה֙ חָטָ֔אתִי כִּ֚י לֹ֣א יָדַ֔עְתִּי כִּ֥י אַתָּ֛ה נִצָּ֥ב לִקְרָאתִ֖י בַּדָּ֑רֶךְ וְעַתָּ֛ה אִם־רַ֥ע בְּעֵינֶ֖יךָ אָשׁ֥וּבָה לִּֽי׃ 34
बल'आम ने ख़ुदावन्द के फ़रिश्ते से कहा, “मुझ से ख़ता हुई, क्यूँकि मुझे मा'लूम न था कि तू मेरा रास्ता रोके खड़ा है। इसलिए अगर अब तुझे बुरा लगता है तो मैं लौट जाता हूँ।”
וַיֹּאמֶר֩ מַלְאַ֨ךְ יְהוָ֜ה אֶל־בִּלְעָ֗ם לֵ֚ךְ עִם־הָ֣אֲנָשִׁ֔ים וְאֶ֗פֶס אֶת־הַדָּבָ֛ר אֲשֶׁר־אֲדַבֵּ֥ר אֵלֶ֖יךָ אֹתֹ֣ו תְדַבֵּ֑ר וַיֵּ֥לֶךְ בִּלְעָ֖ם עִם־שָׂרֵ֥י בָלָֽק׃ 35
ख़ुदावन्द के फ़रिश्ते ने बल'आम से कहा, “तू इन आदमियों के साथ चला ही जा, लेकिन सिर्फ़ वही बात कहना जो मैं तुझ से कहूँ।” तब बल'आम बलक़ के हाकिमों के साथ गया।
וַיִּשְׁמַ֥ע בָּלָ֖ק כִּ֣י בָ֣א בִלְעָ֑ם וַיֵּצֵ֨א לִקְרָאתֹ֜ו אֶל־עִ֣יר מֹואָ֗ב אֲשֶׁר֙ עַל־גְּב֣וּל אַרְנֹ֔ן אֲשֶׁ֖ר בִּקְצֵ֥ה הַגְּבֽוּל׃ 36
जब बलक़ ने सुना कि बल'आम आ रहा है, तो वह उसके इस्तक़बाल के लिए मोआब के उस शहर तक गया जो अरनोन की सरहद पर उसकी हदों के इन्तिहाई हिस्से में वाक़े' था।
וַיֹּ֨אמֶר בָּלָ֜ק אֶל־בִּלְעָ֗ם הֲלֹא֩ שָׁלֹ֨חַ שָׁלַ֤חְתִּי אֵלֶ֙יךָ֙ לִקְרֹא־לָ֔ךְ לָ֥מָּה לֹא־הָלַ֖כְתָּ אֵלָ֑י הַֽאֻמְנָ֔ם לֹ֥א אוּכַ֖ל כַּבְּדֶֽךָ׃ 37
तब बलक़ ने बल'आम से कहा, “क्या मैंने बड़ी उम्मीद के साथ तुझे नहीं बुलवा भेजा था? फिर तू मेरे पास क्यूँ न चला आया? क्या मैं इस क़ाबिल नहीं कि तुझे 'आला मन्सब पर मुम्ताज़ करूँ?”
וַיֹּ֨אמֶר בִּלְעָ֜ם אֶל־בָּלָ֗ק הִֽנֵּה־בָ֙אתִי֙ אֵלֶ֔יךָ עַתָּ֕ה הֲיָכֹ֥ול אוּכַ֖ל דַּבֵּ֣ר מְא֑וּמָה הַדָּבָ֗ר אֲשֶׁ֨ר יָשִׂ֧ים אֱלֹהִ֛ים בְּפִ֖י אֹתֹ֥ו אֲדַבֵּֽר׃ 38
बल'आम ने बलक़ को जवाब दिया, “देख, मैं तेरे पास आ तो गया हूँ लेकिन क्या मेरी इतनी मजाल है कि मैं कुछ बोलूँ? जो बात ख़ुदा मेरे मुँह में डालेगा, वही मैं कहूँगा।”
וַיֵּ֥לֶךְ בִּלְעָ֖ם עִם־בָּלָ֑ק וַיָּבֹ֖אוּ קִרְיַ֥ת חֻצֹֽות׃ 39
और बल'आम बलक़ के साथ — साथ चला और वह करयत हुसात में पहुँचे।
וַיִּזְבַּ֥ח בָּלָ֖ק בָּקָ֣ר וָצֹ֑אן וַיְשַׁלַּ֣ח לְבִלְעָ֔ם וְלַשָּׂרִ֖ים אֲשֶׁ֥ר אִתֹּֽו׃ 40
बलक़ ने बैल और भेड़ों की क़ुर्बानी पेश कीं, और बल'आम और उन हाकिमों के पास जो उसके साथ थे क़ुर्बानी का गोश्त भेजा।
וַיְהִ֣י בַבֹּ֔קֶר וַיִּקַּ֤ח בָּלָק֙ אֶת־בִּלְעָ֔ם וַֽיַּעֲלֵ֖הוּ בָּמֹ֣ות בָּ֑עַל וַיַּ֥רְא מִשָּׁ֖ם קְצֵ֥ה הָעָֽם׃ 41
दूसरे दिन सुबह को बलक़ बल'आम को साथ लेकर उसे बा'ल के बुलन्द मक़ामों पर ले गया। वहाँ से उसने दूर दूर के इस्राईलियों को देखा।

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