< שֹׁפְטִים 18 >
בַּיָּמִ֣ים הָהֵ֔ם אֵ֥ין מֶ֖לֶךְ בְּיִשְׂרָאֵ֑ל וּבַיָּמִ֣ים הָהֵ֗ם שֵׁ֣בֶט הַדָּנִ֞י מְבַקֶּשׁ־לֹ֤ו נַֽחֲלָה֙ לָשֶׁ֔בֶת כִּי֩ לֹֽא־נָ֨פְלָה לֹּ֜ו עַד־הַיֹּ֥ום הַה֛וּא בְּתֹוךְ־שִׁבְטֵ֥י יִשְׂרָאֵ֖ל בְּנַחֲלָֽה׃ ס | 1 |
उन दिनों इस्राईल में कोई बादशाह न था, और उन ही दिनों में दान का क़बीला अपने रहने के लिए मीरास ढूँडता था, क्यूँकि उनको उस दिन तक इस्राईल के क़बीलों में मीरास नहीं मिली थी।
וַיִּשְׁלְח֣וּ בְנֵי־דָ֣ן ׀ מִֽמִּשְׁפַּחְתָּ֡ם חֲמִשָּׁ֣ה אֲנָשִׁ֣ים מִקְצֹותָם֩ אֲנָשִׁ֨ים בְּנֵי־חַ֜יִל מִצָּרְעָ֣ה וּמֵֽאֶשְׁתָּאֹ֗ל לְרַגֵּ֤ל אֶת־הָאָ֙רֶץ֙ וּלְחָקְרָ֔הּ וַיֹּאמְר֣וּ אֲלֵהֶ֔ם לְכ֖וּ חִקְר֣וּ אֶת־הָאָ֑רֶץ וַיָּבֹ֤אוּ הַר־אֶפְרַ֙יִם֙ עַד־בֵּ֣ית מִיכָ֔ה וַיָּלִ֖ינוּ שָֽׁם׃ | 2 |
इसलिए बनी दान ने अपने सारे शुमार में से पाँच सूर्माओं को सुर'आ और इस्ताल से रवाना किया, ताकि मुल्क का हाल दरियाफ़्त करें और उसे देखें भालें और उनसे कह दिया कि जाकर उस मुल्क को देखो भालो। इसलिए वह इफ़्राईम के पहाड़ी मुल्क में मीकाह के घर आए और वहीं उतरे।
הֵ֚מָּה עִם־בֵּ֣ית מִיכָ֔ה וְהֵ֣מָּה הִכִּ֔ירוּ אֶת־קֹ֥ול הַנַּ֖עַר הַלֵּוִ֑י וַיָּס֣וּרוּ שָׁ֗ם וַיֹּ֤אמְרוּ לֹו֙ מִֽי־הֱבִיאֲךָ֣ הֲלֹ֔ם וּמָֽה־אַתָּ֥ה עֹשֶׂ֛ה בָּזֶ֖ה וּמַה־לְּךָ֥ פֹֽה׃ | 3 |
जब वह मीकाह के घर के पास पहुँचे, तो उस लावी जवान की आवाज़ पहचानी, पस वह उधर को मुड़ गए और उससे कहने लगे, “तुझ को यहाँ कौन लाया? तू यहाँ क्या करता है और यहाँ तेरा क्या है?”
וַיֹּ֣אמֶר אֲלֵהֶ֔ם כָּזֹ֣ה וְכָזֶ֔ה עָ֥שָׂה לִ֖י מִיכָ֑ה וַיִּשְׂכְּרֵ֕נִי וָאֱהִי־לֹ֖ו לְכֹהֵֽן׃ | 4 |
उसने उनसे कहा, “मीकाह ने मुझ से ऐसा ऐसा सुलूक किया, और मुझे नौकर रख लिया है और मैं उसका काहिन बना हूँ।”
וַיֹּ֥אמְרוּ לֹ֖ו שְׁאַל־נָ֣א בֵאלֹהִ֑ים וְנֵ֣דְעָ֔ה הֲתַצְלִ֣יחַ דַּרְכֵּ֔נוּ אֲשֶׁ֥ר אֲנַ֖חְנוּ הֹלְכִ֥ים עָלֶֽיהָ׃ | 5 |
उन्होंने उससे कहा कि ख़ुदा से ज़रा सलाह ले, ताकि हम को मा'लूम हो जाए कि हमारा यह सफ़र मुबारक होगा या नहीं।
וַיֹּ֧אמֶר לָהֶ֛ם הַכֹּהֵ֖ן לְכ֣וּ לְשָׁלֹ֑ום נֹ֣כַח יְהוָ֔ה דַּרְכְּכֶ֖ם אֲשֶׁ֥ר תֵּֽלְכוּ־בָֽהּ׃ פ | 6 |
उस काहिन ने उनसे कहा, “सलामती से चले जाओ, क्यूँकि तुम्हारा यह सफ़र ख़ुदावन्द के हुज़ूर है।”
וַיֵּלְכוּ֙ חֲמֵ֣שֶׁת הָאֲנָשִׁ֔ים וַיָּבֹ֖אוּ לָ֑יְשָׁה וַיִּרְא֣וּ אֶת־הָעָ֣ם אֲשֶׁר־בְּקִרְבָּ֣הּ יֹושֶֽׁבֶת־לָ֠בֶטַח כְּמִשְׁפַּ֨ט צִדֹנִ֜ים שֹׁקֵ֣ט ׀ וּבֹטֵ֗חַ וְאֵין־מַכְלִ֨ים דָּבָ֤ר בָּאָ֙רֶץ֙ יֹורֵ֣שׁ עֶ֔צֶר וּרְחֹקִ֥ים הֵ֙מָּה֙ מִצִּ֣דֹנִ֔ים וְדָבָ֥ר אֵין־לָהֶ֖ם עִם־אָדָֽם׃ | 7 |
इसलिए वह पाँचों शख़्स चल निकले और लैस में आए। उन्होंने वहाँ के लोगों को देखा कि सैदानियों की तरह कैसे इत्मिनान और अम्न और चैन से रहते हैं; क्यूँकि उस मुल्क में कोई हाकिम नहीं था जो उनको किसी बात में ज़लील करता। वह सैदानियों से बहुत दूर थे, और किसी से उनको कुछ सरोकार न था।
וַיָּבֹ֙אוּ֙ אֶל־אֲחֵיהֶ֔ם צָרְעָ֖ה וְאֶשְׁתָּאֹ֑ל וַיֹּאמְר֥וּ לָהֶ֛ם אֲחֵיהֶ֖ם מָ֥ה אַתֶּֽם׃ | 8 |
इसलिए वह सुर'आ और इस्ताल को अपने भाइयों के पास लौटे, और उनके भाइयों ने उनसे पूछा कि तुम क्या कहते हो?
וַיֹּאמְר֗וּ ק֚וּמָה וְנַעֲלֶ֣ה עֲלֵיהֶ֔ם כִּ֤י רָאִ֙ינוּ֙ אֶת־הָאָ֔רֶץ וְהִנֵּ֥ה טֹובָ֖ה מְאֹ֑ד וְאַתֶּ֣ם מַחְשִׁ֔ים אַל־תֵּעָ֣צְל֔וּ לָלֶ֥כֶת לָבֹ֖א לָרֶ֥שֶׁת אֶת־הָאָֽרֶץ׃ | 9 |
उन्होंने कहा, “चलो, हम उन पर चढ़ जाएँ; क्यूँकि हम ने उस मुल्क को देखा कि वह बहुत अच्छा है; और तुम क्या चुप चाप ही रहे? अब चलकर उस मुल्क पर क़ाबिज़ होने में सुस्ती न करो।
כְּבֹאֲכֶ֞ם תָּבֹ֣אוּ ׀ אֶל־עַ֣ם בֹּטֵ֗חַ וְהָאָ֙רֶץ֙ רַחֲבַ֣ת יָדַ֔יִם כִּֽי־נְתָנָ֥הּ אֱלֹהִ֖ים בְּיֶדְכֶ֑ם מָקֹום֙ אֲשֶׁ֣ר אֵֽין־שָׁ֣ם מַחְסֹ֔ור כָּל־דָּבָ֖ר אֲשֶׁ֥ר בָּאָֽרֶץ׃ | 10 |
अगर तुम चले तो एक मुतम'इन क़ौम के पास पहुँचोगे, और वह मुल्क वसी' है; क्यूँकि ख़ुदा ने उसे तुम्हारे हाथ में कर दिया है। वह ऐसी जगह है जिसमें दुनिया की किसी चीज़ की कमी नहीं।”
וַיִּסְע֤וּ מִשָּׁם֙ מִמִּשְׁפַּ֣חַת הַדָּנִ֔י מִצָּרְעָ֖ה וּמֵאֶשְׁתָּאֹ֑ל שֵֽׁשׁ־מֵאֹ֣ות אִ֔ישׁ חָג֖וּר כְּלֵ֥י מִלְחָמָֽה׃ | 11 |
तब बनी दान के घराने के छ: सौ शख़्स जंग के हथियार बाँधे हुए सुर'आ और इस्ताल से रवाना हुए।
וַֽיַּעֲל֗וּ וַֽיַּחֲנ֛וּ בְּקִרְיַ֥ת יְעָרִ֖ים בִּֽיהוּדָ֑ה עַל־כֵּ֡ן קָרְאוּ֩ לַמָּקֹ֨ום הַה֜וּא מַחֲנֵה־דָ֗ן עַ֚ד הַיֹּ֣ום הַזֶּ֔ה הִנֵּ֕ה אַחֲרֵ֖י קִרְיַ֥ת יְעָרִֽים׃ | 12 |
और जाकर यहूदाह के क़रयत या'रीम में ख़ैमाज़न हुए। इसीलिए आज के दिन तक उस जगह को महने दान कहते हैं, और यह क़रयत या'रीम के पीछे है।
וַיַּעַבְר֥וּ מִשָּׁ֖ם הַר־אֶפְרָ֑יִם וַיָּבֹ֖אוּ עַד־בֵּ֥ית מִיכָֽה׃ | 13 |
और वहाँ से चलकर इफ़्राईम के पहाड़ी मुल्क में पहुँचे और मीकाह के घर आए।
וַֽיַּעֲנ֞וּ חֲמֵ֣שֶׁת הָאֲנָשִׁ֗ים הַהֹלְכִים֮ לְרַגֵּל֮ אֶת־הָאָ֣רֶץ לַיִשׁ֒ וַיֹּֽאמְרוּ֙ אֶל־אֲחֵיהֶ֔ם הַיְדַעְתֶּ֗ם כִּ֠י יֵ֣שׁ בַּבָּתִּ֤ים הָאֵ֙לֶּה֙ אֵפֹ֣וד וּתְרָפִ֔ים וּפֶ֖סֶל וּמַסֵּכָ֑ה וְעַתָּ֖ה דְּע֥וּ מַֽה־תַּעֲשֽׂוּ׃ | 14 |
तब वह पाँचों शख़्स जो लैस के मुल्क का हाल दरियाफ़्त करने गए थे, अपने भाइयों से कहने लगे, “क्या तुम को ख़बर है, कि इन घरों में एक अफ़ूद और तराफ़ीम और एक तराशा हुआ बुत और एक ढाला हुआ बुत है? इसलिए अब सोच लो कि तुम को क्या करना है।”
וַיָּס֣וּרוּ שָׁ֔מָּה וַיָּבֹ֛אוּ אֶל־בֵּֽית־הַנַּ֥עַר הַלֵּוִ֖י בֵּ֣ית מִיכָ֑ה וַיִּשְׁאֲלוּ־לֹ֖ו לְשָׁלֹֽום׃ | 15 |
तब वह उस तरफ़ मुड़ गए और उस लावी जवान के मकान में या'नी मीकाह के घर में दाख़िल हुए, और उससे ख़ैर — ओ — सलामती पूछी।
וְשֵׁשׁ־מֵאֹ֣ות אִ֗ישׁ חֲגוּרִים֙ כְּלֵ֣י מִלְחַמְתָּ֔ם נִצָּבִ֖ים פֶּ֣תַח הַשָּׁ֑עַר אֲשֶׁ֖ר מִבְּנֵי־דָֽן׃ | 16 |
और वह छ: सौ आदमी जो बनी दान में से थे, जंग के हथियार बाँधे फाटक पर खड़े रहे।
וֽ͏ַיַּעֲל֞וּ חֲמֵ֣שֶׁת הָאֲנָשִׁ֗ים הַהֹלְכִים֮ לְרַגֵּ֣ל אֶת־הָאָרֶץ֒ בָּ֣אוּ שָׁ֔מָּה לָקְח֗וּ אֶת־הַפֶּ֙סֶל֙ וְאֶת־הָ֣אֵפֹ֔וד וְאֶת־הַתְּרָפִ֖ים וְאֶת־הַמַּסֵּכָ֑ה וְהַכֹּהֵ֗ן נִצָּב֙ פֶּ֣תַח הַשַּׁ֔עַר וְשֵׁשׁ־מֵאֹ֣ות הָאִ֔ישׁ הֶחָג֖וּר כְּלֵ֥י הַמִּלְחָמָֽה׃ | 17 |
और उन पाँचों शख़्सों ने जो ज़मीन का हाल दरियाफ़्त करने को निकले थे, वहाँ आकर तराशा हुआ बुत और अफ़ूद और तराफ़ीम और ढाला हुआ बुत सब कुछ ले लिया, और वह काहिन फाटक पर उन छ: सौ आदमियों के साथ जो जंग के हथियार बाँधे थे खड़ा था।
וְאֵ֗לֶּה בָּ֚אוּ בֵּ֣ית מִיכָ֔ה וַיִּקְחוּ֙ אֶת־פֶּ֣סֶל הָאֵפֹ֔וד וְאֶת־הַתְּרָפִ֖ים וְאֶת־הַמַּסֵּכָ֑ה וַיֹּ֤אמֶר אֲלֵיהֶם֙ הַכֹּהֵ֔ן מָ֥ה אַתֶּ֖ם עֹשִֽׂים׃ | 18 |
जब वह मीकाह के घर में घुस कर तराशा हुआ बुत और अफ़ूद और तराफ़ीम और ढाला हुआ बुत ले आए, तो उस काहिन ने उनसे कहा, “तुम यह क्या करते हो?”
וַיֹּאמְרוּ֩ לֹ֨ו הַחֲרֵ֜שׁ שִֽׂים־יָדְךָ֤ עַל־פִּ֙יךָ֙ וְלֵ֣ךְ עִמָּ֔נוּ וֶֽהְיֵה־לָ֖נוּ לְאָ֣ב וּלְכֹהֵ֑ן הֲטֹ֣וב ׀ הֱיֹותְךָ֣ כֹהֵ֗ן לְבֵית֙ אִ֣ישׁ אֶחָ֔ד אֹ֚ו הֱיֹותְךָ֣ כֹהֵ֔ן לְשֵׁ֥בֶט וּלְמִשְׁפָּחָ֖ה בְּיִשְׂרָאֵֽל׃ | 19 |
तब उन्होंने उसे कहा, “चुप रह, मुँह पर हाथ रख ले; और हमारे साथ चल और हमारा बाप और काहिन बन। क्या तेरे लिए एक शख़्स के घर का काहिन होना अच्छा है, या यह कि तू बनी — इस्राईल के एक क़बीले और घराने का काहिन हो?”
וַיִּיטַב֙ לֵ֣ב הַכֹּהֵ֔ן וַיִּקַּח֙ אֶת־הָ֣אֵפֹ֔וד וְאֶת־הַתְּרָפִ֖ים וְאֶת־הַפָּ֑סֶל וַיָּבֹ֖א בְּקֶ֥רֶב הָעָֽם׃ | 20 |
तब काहिन का दिल ख़ुश हो गया और वह अफ़ूद और तराफ़ीम और तराशे हुए बुत को लेकर लोगों के बीच चला गया।
וַיִּפְנ֖וּ וַיֵּלֵ֑כוּ וַיָּשִׂ֨ימוּ אֶת־הַטַּ֧ף וְאֶת־הַמִּקְנֶ֛ה וְאֶת־הַכְּבוּדָּ֖ה לִפְנֵיהֶֽם׃ | 21 |
फिर वह मुड़े और रवाना हुए, और बाल बच्चों और चौपायों और सामन को अपने आगे कर लिया।
הֵ֥מָּה הִרְחִ֖יקוּ מִבֵּ֣ית מִיכָ֑ה וְהָאֲנָשִׁ֗ים אֲשֶׁ֤ר בַּבָּתִּים֙ אֲשֶׁר֙ עִם־בֵּ֣ית מִיכָ֔ה נִֽזְעֲק֔וּ וַיַּדְבִּ֖יקוּ אֶת־בְּנֵי־דָֽן׃ | 22 |
जब वह मीकाह के घर से दूर निकल गए, तो जो लोग मीकाह के घर के पास के मकानों में रहते थे वह जमा' हुए और चलकर बनी दान को जा लिया।
וַֽיִּקְרְאוּ֙ אֶל־בְּנֵי־דָ֔ן וַיַּסֵּ֖בּוּ פְּנֵיהֶ֑ם וַיֹּאמְר֣וּ לְמִיכָ֔ה מַה־לְּךָ֖ כִּ֥י נִזְעָֽקְתָּ׃ | 23 |
और उन्होंने बनी दान को पुकारा, तब उन्होंने उधर मुँह करके मीकाह से कहा, “तुझ को क्या हुआ जो तू इतने लोगों की जमिय'त को साथ लिए आ रहा है?”
וַיֹּ֡אמֶר אֶת־אֱלֹהַי֩ אֲשֶׁר־עָשִׂ֨יתִי לְקַחְתֶּ֧ם וְֽאֶת־הַכֹּהֵ֛ן וַתֵּלְכ֖וּ וּמַה־לִּ֣י עֹ֑וד וּמַה־זֶּ֛ה תֹּאמְר֥וּ אֵלַ֖י מַה־לָּֽךְ׃ | 24 |
उसने कहा, “तुम मेरे मा'बूदों को जिनको मैंने बनवाया, और मेरे काहिन को साथ लेकर चले आए, अब मेरे पास और क्या बाक़ी रहा? इसलिए तुम मुझ से यह क्यूँकर कहते हो कि तुझ को क्या हुआ?”
וַיֹּאמְר֤וּ אֵלָיו֙ בְּנֵי־דָ֔ן אַל־תַּשְׁמַ֥ע קֹולְךָ֖ עִמָּ֑נוּ פֶּֽן־יִפְגְּע֣וּ בָכֶ֗ם אֲנָשִׁים֙ מָ֣רֵי נֶ֔פֶשׁ וְאָסַפְתָּ֥ה נַפְשְׁךָ֖ וְנֶ֥פֶשׁ בֵּיתֶֽךָ׃ | 25 |
बनी दान ने उससे कहा कि तेरी आवाज़ हम लोगों में सुनाई न दे, ऐसा न हो कि झल्ले मिज़ाज के आदमी तुझ पर हमला कर बैठें और तू अपनी जान अपने घर के लोगों की जान के साथ खो बैठे।
וַיֵּלְכ֥וּ בְנֵי־דָ֖ן לְדַרְכָּ֑ם וַיַּ֣רְא מִיכָ֗ה כִּי־חֲזָקִ֥ים הֵ֙מָּה֙ מִמֶּ֔נּוּ וַיִּ֖פֶן וַיָּ֥שָׁב אֶל־בֵּיתֹֽו׃ | 26 |
इसलिए बनी दान तो अपने रास्ते ही चले गए: और जब मीकाह ने देखा, कि वह उसके मुक़ाबले में बड़े ज़बरदस्त हैं, तो वह मुड़ा और अपने घर को लौटा।
וְהֵ֨מָּה לָקְח֜וּ אֵ֧ת אֲשֶׁר־עָשָׂ֣ה מִיכָ֗ה וְֽאֶת־הַכֹּהֵן֮ אֲשֶׁ֣ר הָיָה־לֹו֒ וַיָּבֹ֣אוּ עַל־לַ֗יִשׁ עַל־עַם֙ שֹׁקֵ֣ט וּבֹטֵ֔חַ וַיַּכּ֥וּ אֹותָ֖ם לְפִי־חָ֑רֶב וְאֶת־הָעִ֖יר שָׂרְפ֥וּ בָאֵֽשׁ׃ | 27 |
यूँ वह मीकाह की बनवाई हुई चीज़ों को और उस काहिन को जो उसके यहाँ था, लेकर लैस में ऐसे लोगों के पास पहुँचे जो अम्न और चैन से रहते थे; और उनको बर्बाद किया और शहर जला दिया।
וְאֵ֨ין מַצִּ֜יל כִּ֧י רְֽחֹוקָה־הִ֣יא מִצִּידֹ֗ון וְדָבָ֤ר אֵין־לָהֶם֙ עִם־אָדָ֔ם וְהִ֕יא בָּעֵ֖מֶק אֲשֶׁ֣ר לְבֵית־רְחֹ֑וב וַיִּבְנ֥וּ אֶת־הָעִ֖יר וַיֵּ֥שְׁבוּ בָֽהּ׃ | 28 |
और बचाने वाला कोई न था, क्यूँकि वह सैदा से दूर था और यह लोग किसी आदमी से सरोकार नहीं रखते थे। और वह शहर बैत रहोब के पास की वादी में था। फिर उन्होंने वह शहर बनाया और उसमें रहने लगे।
וַיִּקְרְא֤וּ שֵׁם־הָעִיר֙ דָּ֔ן בְּשֵׁם֙ דָּ֣ן אֲבִיהֶ֔ם אֲשֶׁ֥ר יוּלַּ֖ד לְיִשְׂרָאֵ֑ל וְאוּלָ֛ם לַ֥יִשׁ שֵׁם־הָעִ֖יר לָרִאשֹׁנָֽה׃ | 29 |
और उस शहर का नाम अपने बाप दान के नाम पर जो इस्राईल की औलाद था दान ही रख्खा, लेकिन पहले उस शहर का नाम लैस था।
וַיָּקִ֧ימוּ לָהֶ֛ם בְּנֵי־דָ֖ן אֶת־הַפָּ֑סֶל וִ֠יהֹונָתָן בֶּן־גֵּרְשֹׁ֨ם בֶּן־מְנַשֶּׁ֜ה ה֣וּא וּבָנָ֗יו הָי֤וּ כֹהֲנִים֙ לְשֵׁ֣בֶט הַדָּנִ֔י עַד־יֹ֖ום גְּלֹ֥ות הָאָֽרֶץ׃ | 30 |
और बनी दान ने वह तराशा हुआ बुत अपने लिए खड़ा कर लिया; और यूनतन बिन जैरसोम बिन मूसा और उसके बेटे उस मुल्क की असीरी के दिन तक बनी दान के क़बीले के काहिन बने रहे।
וַיָּשִׂ֣ימוּ לָהֶ֔ם אֶת־פֶּ֥סֶל מִיכָ֖ה אֲשֶׁ֣ר עָשָׂ֑ה כָּל־יְמֵ֛י הֱיֹ֥ות בֵּית־הָאֱלֹהִ֖ים בְּשִׁלֹֽה׃ פ | 31 |
और सारे वक़्त जब तक ख़ुदा का घर शीलोह में रहा, वह मीकाह के तराशे हुए बुत को जो उसने बनवाया था अपने लिए खड़े किए रहे।