< שֹׁפְטִים 16 >

וַיֵּ֥לֶךְ שִׁמְשֹׁ֖ון עַזָּ֑תָה וַיַּרְא־שָׁם֙ אִשָּׁ֣ה זֹונָ֔ה וַיָּבֹ֖א אֵלֶֽיהָ׃ 1
फिर समसून ग़ज़्ज़ा को गया। वहाँ उसने एक कस्बी देखी, और उसके पास गया।
לֽ͏ַעַזָּתִ֣ים ׀ לֵאמֹ֗ר בָּ֤א שִׁמְשֹׁון֙ הֵ֔נָּה וַיָּסֹ֛בּוּ וַיֶּאֶרְבוּ־לֹ֥ו כָל־הַלַּ֖יְלָה בְּשַׁ֣עַר הָעִ֑יר וַיִּתְחָרְשׁ֤וּ כָל־הַלַּ֙יְלָה֙ לֵאמֹ֔ר עַד־אֹ֥ור הַבֹּ֖קֶר וַהֲרְגְנֻֽהוּ׃ 2
और ग़ज़्ज़ा के लोगों को ख़बर हुई के समसून यहाँ आया है। उन्होंने उसे घेर लिया और सारी रात शहर के फाटक पर उसकी घात में बैठे रहे; लेकिन रात भर चुप चाप रहे और कहा कि सुबह की रोशनी होते ही हम उसे मार डालेंगे।
וַיִּשְׁכַּ֣ב שִׁמְשֹׁון֮ עַד־חֲצִ֣י הַלַּיְלָה֒ וַיָּ֣קָם ׀ בַּחֲצִ֣י הַלַּ֗יְלָה וַיֶּאֱחֹ֞ז בְּדַלְתֹ֤ות שַֽׁעַר־הָעִיר֙ וּבִשְׁתֵּ֣י הַמְּזוּזֹ֔ות וַיִּסָּעֵם֙ עִֽם־הַבְּרִ֔יחַ וַיָּ֖שֶׂם עַל־כְּתֵפָ֑יו וַֽיַּעֲלֵם֙ אֶל־רֹ֣אשׁ הָהָ֔ר אֲשֶׁ֖ר עַל־פְּנֵ֥י חֶבְרֹֽון׃ פ 3
और समसून आधी रात तक लेटा रहा, और आधी रात को उठ कर शहर के फाटक के दोनों पल्लों और दोनों बाज़ुओं को पकड़कर चौखट समेत उखाड़ लिया; और उनको अपने कंधों पर रख कर उस पहाड़ की चोटी पर, जो हबरून के सामने है ले गया।
וֽ͏ַיְהִי֙ אַחֲרֵי־כֵ֔ן וַיֶּאֱהַ֥ב אִשָּׁ֖ה בְּנַ֣חַל שֹׂרֵ֑ק וּשְׁמָ֖הּ דְּלִילָֽה׃ 4
इसके बाद सूरिक़ की वादी में एक 'औरत से जिसका नाम दलीला था, उसे इश्क़ हो गया।
וַיַּעֲל֨וּ אֵלֶ֜יהָ סַרְנֵ֣י פְלִשְׁתִּ֗ים וַיֹּ֨אמְרוּ לָ֜הּ פַּתִּ֣י אֹותֹ֗ו וּרְאִי֙ בַּמֶּה֙ כֹּחֹ֣ו גָדֹ֔ול וּבַמֶּה֙ נ֣וּכַל לֹ֔ו וַאֲסַרְנֻ֖הוּ לְעַנֹּתֹ֑ו וַאֲנַ֙חְנוּ֙ נִתַּן־לָ֔ךְ אִ֕ישׁ אֶ֥לֶף וּמֵאָ֖ה כָּֽסֶף׃ 5
और फ़िलिस्तियों के सरदारों ने उस 'औरत के पास जाकर उससे कहा कि तू उसे फुसलाकर दरियाफ़्त कर ले कि उसकी ताक़त का राज़ क्या है और हम क्यूँकर उस पर ग़ालिब आएँ, ताकि हम उसे बाँधकर उसको अज़िय्यत पहुँचाएँ; और हम में से हर एक ग्यारह सौ चाँदी के सिक्के तुझे देगा।
וַתֹּ֤אמֶר דְּלִילָה֙ אֶל־שִׁמְשֹׁ֔ון הַגִּֽידָה־נָּ֣א לִ֔י בַּמֶּ֖ה כֹּחֲךָ֣ גָדֹ֑ול וּבַמֶּ֥ה תֵאָסֵ֖ר לְעַנֹּותֶֽךָ׃ 6
तब दलीला ने समसून से कहा कि मुझे तो बता दे तेरी ताक़त का राज़ क्या है, और तुझे तकलीफ़ पहुँचाने के लिए किस चीज़ से तुझे बाँधना चाहिए।
וַיֹּ֤אמֶר אֵלֶ֙יהָ֙ שִׁמְשֹׁ֔ון אִם־יַאַסְרֻ֗נִי בְּשִׁבְעָ֛ה יְתָרִ֥ים לַחִ֖ים אֲשֶׁ֣ר לֹא־חֹרָ֖בוּ וְחָלִ֥יתִי וְהָיִ֖יתִי כְּאַחַ֥ד הָאָדָֽם׃ 7
समसून ने उससे कहा कि अगर वह मुझ को सात हरी हरी बेदों से जो सुखाई न गई हों बाँधे, तो मैं कमज़ोर होकर और आदमियों की तरह हो जाऊँगा।
וַיַּעֲלוּ־לָ֞הּ סַרְנֵ֣י פְלִשְׁתִּ֗ים שִׁבְעָ֛ה יְתָרִ֥ים לַחִ֖ים אֲשֶׁ֣ר לֹא־חֹרָ֑בוּ וַתַּאַסְרֵ֖הוּ בָּהֶֽם׃ 8
तब फ़िलिस्तियों के सरदार सात हरी हरी बेदें जो सुखाई न गई थीं, उस 'औरत के पास ले आए और उसने समसून को उनसे बाँधा।
וְהָאֹרֵ֗ב יֹשֵׁ֥ב לָהּ֙ בַּחֶ֔דֶר וַתֹּ֣אמֶר אֵלָ֔יו פְּלִשְׁתִּ֥ים עָלֶ֖יךָ שִׁמְשֹׁ֑ון וַיְנַתֵּק֙ אֶת־הַיְתָרִ֔ים כַּאֲשֶׁ֨ר יִנָּתֵ֤ק פְּתִֽיל־הַנְּעֹ֙רֶת֙ בַּהֲרִיחֹ֣ו אֵ֔שׁ וְלֹ֥א נֹודַ֖ע כֹּחֹֽו׃ 9
और उस 'औरत ने कुछ आदमी अन्दर की कोठरी में घात में बिठा लिए थे। इसलिए उस ने समसून से कहा कि ऐ समसून, फ़िलिस्ती तुझ पर चढ़ आए! तब उसने उन बेदों को ऐसा तोड़ा जैसे सन का सूत आग पाते ही टूट जाता है; इसलिए उसकी ताक़त का राज़ न खुला।
וַתֹּ֤אמֶר דְּלִילָה֙ אֶל־שִׁמְשֹׁ֔ון הִנֵּה֙ הֵתַ֣לְתָּ בִּ֔י וַתְּדַבֵּ֥ר אֵלַ֖י כְּזָבִ֑ים עַתָּה֙ הַגִּֽידָה־נָּ֣א לִ֔י בַּמֶּ֖ה תֵּאָסֵֽר׃ 10
तब दलीला ने समसून से कहा, देख, तूने मुझे धोका दिया और मुझ से झूट बोला। “अब तू ज़रा मुझ को बता दे, कि तू किस चीज़ से बाँधा जाए।”
וַיֹּ֣אמֶר אֵלֶ֔יהָ אִם־אָסֹ֤ור יַאַסְר֙וּנִי֙ בַּעֲבֹתִ֣ים חֲדָשִׁ֔ים אֲשֶׁ֛ר לֹֽא־נַעֲשָׂ֥ה בָהֶ֖ם מְלָאכָ֑ה וְחָלִ֥יתִי וְהָיִ֖יתִי כְּאַחַ֥ד הָאָדָֽם׃ 11
उसने उससे कहा, “अगर वह मुझें नई नई रस्सियों से जो कभी काम में न आई हों, बाँधे तो मैं कमज़ोर होकर और आदमियों की तरह हो जाऊँगा।”
וַתִּקַּ֣ח דְּלִילָה֩ עֲבֹתִ֨ים חֲדָשִׁ֜ים וַתַּאַסְרֵ֣הוּ בָהֶ֗ם וַתֹּ֤אמֶר אֵלָיו֙ פְּלִשְׁתִּ֤ים עָלֶ֙יךָ֙ שִׁמְשֹׁ֔ון וְהָאֹרֵ֖ב יֹשֵׁ֣ב בֶּחָ֑דֶר וַֽיְנַתְּקֵ֛ם מֵעַ֥ל זְרֹעֹתָ֖יו כַּחֽוּט׃ 12
तब दलीला ने नई रस्सियाँ लेकर उसको उनसे बाँधा और उससे कहा, “ऐ समसून, फ़िलिस्ती तुझ पर चढ़ आए!” और घात वाले अन्दर की कोठरी में ठहरे ही हुए थे। तब उसने अपने बाज़ुओं पर से धागे की तरह उनको तोड़ डाला।
וַתֹּ֨אמֶר דְּלִילָ֜ה אֶל־שִׁמְשֹׁ֗ון עַד־הֵ֜נָּה הֵתַ֤לְתָּ בִּי֙ וַתְּדַבֵּ֤ר אֵלַי֙ כְּזָבִ֔ים הַגִּ֣ידָה לִּ֔י בַּמֶּ֖ה תֵּאָסֵ֑ר וַיֹּ֣אמֶר אֵלֶ֔יהָ אִם־תַּאַרְגִ֗י אֶת־שֶׁ֛בַע מַחְלְפֹ֥ות רֹאשִׁ֖י עִם־הַמַּסָּֽכֶת׃ 13
तब दलीला समसून से कहने लगी, “अब तक तो तूने मुझे धोका ही दिया और मुझ से झूट बोला; अब तो बता दे, कि तू किस चीज़ से बँध सकता है?” उसने उसे कहा, “अगर तू मेरे सिर की सातों लटें ताने के साथ बुन दे।”
וַתִּתְקַע֙ בַּיָּתֵ֔ד וַתֹּ֣אמֶר אֵלָ֔יו פְּלִשְׁתִּ֥ים עָלֶ֖יךָ שִׁמְשֹׁ֑ון וַיִּיקַץ֙ מִשְּׁנָתֹ֔ו וַיִּסַּ֛ע אֶת־הַיְתַ֥ד הָאֶ֖רֶג וְאֶת־הַמַּסָּֽכֶת׃ 14
तब उसने खूंटे से उसे कसकर बाँध दिया और उससे कहा, ऐ समसून, फ़िलिस्ती तुझ पर चढ़ आए! “तब वह नींद से जाग उठा, और बल्ली के खूंटे को ताने के साथ उखाड़ डाला।
וַתֹּ֣אמֶר אֵלָ֗יו אֵ֚יךְ תֹּאמַ֣ר אֲהַבְתִּ֔יךְ וְלִבְּךָ֖ אֵ֣ין אִתִּ֑י זֶ֣ה שָׁלֹ֤שׁ פְּעָמִים֙ הֵתַ֣לְתָּ בִּ֔י וְלֹא־הִגַּ֣דְתָּ לִּ֔י בַּמֶּ֖ה כֹּחֲךָ֥ גָדֹֽול׃ 15
फिर वह उससे कहने लगी, तू क्यूँकर कह सकता है, कि मैं तुझे चाहता हूँ, जब कि तेरा दिल मुझ से लगा नहीं? तूने तीनों बार मुझे धोका ही दिया और न बताया कि तेरी ताक़त का राज़ क्या है।”
וַ֠יְהִי כִּֽי־הֵצִ֨יקָה לֹּ֧ו בִדְבָרֶ֛יהָ כָּל־הַיָּמִ֖ים וַתְּאַֽלֲצֵ֑הוּ וַתִּקְצַ֥ר נַפְשֹׁ֖ו לָמֽוּת׃ 16
जब वह उसे रोज़ अपनी बातों से तंग और मजबूर करने लगी, यहाँ तक कि उसका दम नाक में आ गया।
וַיַּגֶּד־לָ֣הּ אֶת־כָּל־לִבֹּ֗ו וַיֹּ֤אמֶר לָהּ֙ מֹורָה֙ לֹֽא־עָלָ֣ה עַל־רֹאשִׁ֔י כִּֽי־נְזִ֧יר אֱלֹהִ֛ים אֲנִ֖י מִבֶּ֣טֶן אִמִּ֑י אִם־גֻּלַּ֙חְתִּי֙ וְסָ֣ר מִמֶּ֣נִּי כֹחִ֔י וְחָלִ֥יתִי וְהָיִ֖יתִי כְּכָל־הָאָדָֽם׃ 17
तो उसने अपना दिल खोलकर उसे बता दिया कि मेरे सिर पर उस्तरा नहीं फिरा है, इसलिए कि मैं अपनी माँ के पेट ही से ख़ुदा का नज़ीर हूँ, इसलिए अगर मेरा सिर मूंडा जाए तो मेरी ताक़त मुझ से जाती रहेगा, और मैं कमज़ोर होकर और आदमियों की तरह हो जाऊँगा।
וַתֵּ֣רֶא דְּלִילָ֗ה כִּֽי־הִגִּ֣יד לָהּ֮ אֶת־כָּל־לִבֹּו֒ וַתִּשְׁלַ֡ח וַתִּקְרָא֩ לְסַרְנֵ֨י פְלִשְׁתִּ֤ים לֵאמֹר֙ עֲל֣וּ הַפַּ֔עַם כִּֽי־הִגִּ֥יד לָהּ (לִ֖י) אֶת־כָּל־לִבֹּ֑ו וְעָל֤וּ אֵלֶ֙יהָ֙ סַרְנֵ֣י פְלִשְׁתִּ֔ים וַיַּעֲל֥וּ הַכֶּ֖סֶף בְּיָדָֽם׃ 18
जब दलीला ने देखा के उसने दिल खोलकर सब कुछ बता दिया, तो उसने फ़िलिस्तियों के सरदारों को कहला भेजा कि इस बार और आओ, क्यूँकि उसने दिल खोलकर मुझे सब कुछ बता दिया है। तब फ़िलिस्तियों के सरदार उसके पास आए, और रुपये अपने हाथ में लेते आए।
וַתְּיַשְּׁנֵ֙הוּ֙ עַל־בִּרְכֶּ֔יהָ וַתִּקְרָ֣א לָאִ֔ישׁ וַתְּגַלַּ֕ח אֶת־שֶׁ֖בַע מַחְלְפֹ֣ות רֹאשֹׁ֑ו וַתָּ֙חֶל֙ לְעַנֹּותֹ֔ו וַיָּ֥סַר כֹּחֹ֖ו מֵעָלָֽיו׃ 19
तब उसे उसने अपने ज़ानों पर सुला लिया, और एक आदमी को बुलवाकर सातों लटें जो उसके सिर पर थीं, मुण्डवा डालीं, और उसे तकलीफ़ देने लगी; और उसका ज़ोर उससे जाता रहा।
וַתֹּ֕אמֶר פְּלִשְׁתִּ֥ים עָלֶ֖יךָ שִׁמְשֹׁ֑ון וַיִּקַ֣ץ מִשְּׁנָתֹ֗ו וַיֹּ֙אמֶר֙ אֵצֵ֞א כְּפַ֤עַם בְּפַ֙עַם֙ וְאִנָּעֵ֔ר וְהוּא֙ לֹ֣א יָדַ֔ע כִּ֥י יְהוָ֖ה סָ֥ר מֵעָלָֽיו׃ 20
फिर उसने कहा, “ऐ समसून, फ़िलिस्ती तुझ पर चढ़ आए!” और वह नींद से जागा और कहने लगा कि मैं और दफ़ा' की तरह बाहर जाकर अपने को झटकुँगा। लेकिन उसे ख़बर न थी कि ख़ुदावन्द उससे अलग हो गया है।
וַיֹּאחֲז֣וּהוּ פְלִשְׁתִּ֔ים וֽ͏ַיְנַקְּר֖וּ אֶת־עֵינָ֑יו וַיֹּורִ֨ידוּ אֹותֹ֜ו עַזָּ֗תָה וַיַּאַסְר֙וּהוּ֙ בַּֽנְחֻשְׁתַּ֔יִם וַיְהִ֥י טֹוחֵ֖ן בְּבֵ֥ית הָאֲסִירִים (הָאֲסוּרִֽים)׃ 21
तब फ़िलिस्तियों ने उसे पकड़ कर उसकी आँखें निकाल डालीं, और उसे ग़ज़्ज़ा में ले आए और पीतल की बेड़ियों से उसे जकड़ा, और वह क़ैदख़ाने में चक्की पीसा करता था।
וַיָּ֧חֶל שְׂעַר־רֹאשֹׁ֛ו לְצַמֵּ֖חַ כַּאֲשֶׁ֥ר גֻּלָּֽח׃ פ 22
तो भी उसके सिर के बाल मुण्डवाए जाने के बाद फिर बढ़ने लगे।
וְסַרְנֵ֣י פְלִשְׁתִּ֗ים נֶֽאֱסְפוּ֙ לִזְבֹּ֧חַ זֶֽבַח־גָּדֹ֛ול לְדָגֹ֥ון אֱלֹהֵיהֶ֖ם וּלְשִׂמְחָ֑ה וַיֹּ֣אמְר֔וּ נָתַ֤ן אֱלֹהֵ֙ינוּ֙ בְּיָדֵ֔נוּ אֵ֖ת שִׁמְשֹׁ֥ון אֹויְבֵֽינוּ׃ 23
और फ़िलिस्तियों के सरदार फ़राहम हुए ताकि अपने मा'बूद दजोन के लिए बड़ी क़ुर्बानी गुजारें और ख़ुशी करें क्यूँकि वह कहते थे कि हमारे मा'बूद ने हमारे दुश्मन समसून को हमारे क़ब्ज़े में कर दिया है।
וַיִּרְא֤וּ אֹתֹו֙ הָעָ֔ם וַֽיְהַלְל֖וּ אֶת־אֱלֹהֵיהֶ֑ם כִּ֣י אָמְר֗וּ נָתַ֨ן אֱלֹהֵ֤ינוּ בְיָדֵ֙נוּ֙ אֶת־אֹ֣ויְבֵ֔נוּ וְאֵת֙ מַחֲרִ֣יב אַרְצֵ֔נוּ וַאֲשֶׁ֥ר הִרְבָּ֖ה אֶת־חֲלָלֵֽינוּ׃ 24
और जब लोग उसको देखते तो अपने मा'बूद की ता'रीफ़ करते और कहते थे कि हमारे मा'बूद ने हमारे दुश्मन और हमारे मुल्क को उजाड़ने वाले को, जिसने हम में से बहुतों को हलाक किया हमारे हाथ में कर दिया है।
וַֽיְהִי֙ כִּי טֹוב (כְּטֹ֣וב) לִבָּ֔ם וַיֹּ֣אמְר֔וּ קִרְא֥וּ לְשִׁמְשֹׁ֖ון וִישַֽׂחֶק־לָ֑נוּ וַיִּקְרְא֨וּ לְשִׁמְשֹׁ֜ון מִבֵּ֣ית הָאֲסִירִים (הָאֲסוּרִ֗ים) וַיְצַחֵק֙ לִפְנֵיהֶ֔ם וַיַּעֲמִ֥ידוּ אֹותֹ֖ו בֵּ֥ין הָעַמּוּדִֽים׃ 25
और ऐसा हुआ कि जब उनके दिल निहायत शाद हुए, तो वह कहने लगे कि समसून को बुलाओ, कि हमारे लिए कोई खेल करे। इसलिए उन्होंने समसून को क़ैदख़ाने से बुलवाया, और वह उनके लिए खेल करने लगा; और उन्होंने उसको दो खम्बों के बीच खड़ा किया।
וַיֹּ֨אמֶר שִׁמְשֹׁ֜ון אֶל־הַנַּ֨עַר הַמַּחֲזִ֣יק בְּיָדֹו֮ הַנִּ֣יחָה אֹותִי֒ וַהֵימִשֵׁנִי (וַהֲמִשֵׁ֙נִי֙) אֶת־הָֽעַמֻּדִ֔ים אֲשֶׁ֥ר הַבַּ֖יִת נָכֹ֣ון עֲלֵיהֶ֑ם וְאֶשָּׁעֵ֖ן עֲלֵיהֶֽם׃ 26
तब समसून ने उस लड़के से जो उसका हाथ पकड़े था कहा, “मुझे उन खम्बों को जिन पर यह घर क़ाईम है, थामने दे ताकि मैं उन पर टेक लगाऊँ।”
וְהַבַּ֗יִת מָלֵ֤א הָֽאֲנָשִׁים֙ וְהַנָּשִׁ֔ים וְשָׁ֕מָּה כֹּ֖ל סַרְנֵ֣י פְלִשְׁתִּ֑ים וְעַל־הַגָּ֗ג כִּשְׁלֹ֤שֶׁת אֲלָפִים֙ אִ֣ישׁ וְאִשָּׁ֔ה הָרֹאִ֖ים בִּשְׂחֹ֥וק שִׁמְשֹֽׁון׃ 27
और वह घर शख़्सों और 'औरतों से भरा था, और फ़िलिस्तियों के सब सरदार वहीं थे, और छत पर क़रीबन तीन हज़ार शख़्स और 'औरत थे जो समसून के खेल देख रहे थे।
וַיִּקְרָ֥א שִׁמְשֹׁ֛ון אֶל־יְהוָ֖ה וַיֹּאמַ֑ר אֲדֹנָ֣י יֱהֹוִ֡ה זָכְרֵ֣נִי נָא֩ וְחַזְּקֵ֨נִי נָ֜א אַ֣ךְ הַפַּ֤עַם הַזֶּה֙ הָאֱלֹהִ֔ים וְאִנָּקְמָ֧ה נְקַם־אַחַ֛ת מִשְּׁתֵ֥י עֵינַ֖י מִפְּלִשְׁתִּֽים׃ 28
तब समसून ने ख़ुदावन्द से फ़रियाद की और कहा, “ऐ मालिक, ख़ुदावन्द! मैं तेरी मिन्नत करता हूँ कि मुझे याद कर; और मैं तेरी मिन्नत करता हूँ ऐ ख़ुदा सिर्फ़ इस बार और तू मुझे ताक़त बख़्श, ताकि मैं एक बार फ़िलिस्तियों से अपनी दोनों ऑखों का बदला लूं।”
וַיִּלְפֹּ֨ת שִׁמְשֹׁ֜ון אֶת־שְׁנֵ֣י ׀ עַמּוּדֵ֣י הַתָּ֗וֶךְ אֲשֶׁ֤ר הַבַּ֙יִת֙ נָכֹ֣ון עֲלֵיהֶ֔ם וַיִּסָּמֵ֖ךְ עֲלֵיהֶ֑ם אֶחָ֥ד בִּימִינֹ֖ו וְאֶחָ֥ד בִּשְׂמֹאלֹֽו׃ 29
और समसून ने दोनों बीच के खम्बों को जिन पर घर क़ाईम था पकड़ कर, एक पर दहने हाथ से और दूसरे पर बाएँ हाथ से ज़ोर लगाया।
וַיֹּ֣אמֶר שִׁמְשֹׁ֗ון תָּמֹ֣ות נַפְשִׁי֮ עִם־פְּלִשְׁתִּים֒ וַיֵּ֣ט בְּכֹ֔חַ וַיִּפֹּ֤ל הַבַּ֙יִת֙ עַל־הַסְּרָנִ֔ים וְעַל־כָּל־הָעָ֖ם אֲשֶׁר־בֹּ֑ו וַיִּהְי֤וּ הַמֵּתִים֙ אֲשֶׁ֣ר הֵמִ֣ית בְּמֹותֹ֔ו רַבִּ֕ים מֵאֲשֶׁ֥ר הֵמִ֖ית בְּחַיָּֽיו׃ 30
और समसून कहने लगा कि फ़िलिस्तियों के साथ मुझे भी मरना ही है। इसलिए वह अपने सारी ताक़त से झुका; और वह घर उन सरदारों और सब लोगों पर जो उसमें थे गिर पड़ा। इसलिए वह मुर्दे जिनको उसने अपने मरते दम मारा, उनसे भी ज़्यादा थे जिनको उसने जीते जी क़त्ल किया।
וַיֵּרְד֨וּ אֶחָ֜יו וְכָל־בֵּ֣ית אָבִיהוּ֮ וַיִּשְׂא֣וּ אֹתֹו֒ וַֽיַּעֲל֣וּ ׀ וַיִּקְבְּר֣וּ אֹותֹ֗ו בֵּ֤ין צָרְעָה֙ וּבֵ֣ין אֶשְׁתָּאֹ֔ל בְּקֶ֖בֶר מָנֹ֣וחַ אָבִ֑יו וְה֛וּא שָׁפַ֥ט אֶת־יִשְׂרָאֵ֖ל עֶשְׂרִ֥ים שָׁנָֽה׃ פ 31
तब उसके भाई और उसके बाप का सारा घराना आया, और वह उसे उठा कर ले गए और सुर'आ और इस्ताल के बीच उसके बाप मनोहा के क़ब्रिस्तान में उसे दफ़्न किया। वह बीस बरस तक इस्राईलियों का क़ाज़ी रहा।

< שֹׁפְטִים 16 >