< אִיּוֹב 9 >
וַיַּ֥עַן אִיֹּ֗וב וַיֹּאמַֽר׃ | 1 |
तब अय्योब ने और कहा:
אָ֭מְנָם יָדַ֣עְתִּי כִי־כֵ֑ן וּמַה־יִּצְדַּ֖ק אֱנֹ֣ושׁ עִם־אֵֽל׃ | 2 |
“वस्तुतः मुझे यह मालूम है कि सत्य यही है. किंतु मनुष्य भला परमेश्वर की आंखों में निर्दोष कैसे हो सकता है?
אִם־יַ֭חְפֹּץ לָרִ֣יב עִמֹּ֑ו לֹֽא־יַ֝עֲנֶ֗נּוּ אַחַ֥ת מִנִּי־אָֽלֶף׃ | 3 |
यदि कोई व्यक्ति परमेश्वर से वाद-विवाद करना चाहे, तो वह परमेश्वर को एक हजार में से एक प्रश्न का भी उत्तर नहीं दे सकेगा.
חֲכַ֣ם לֵ֭בָב וְאַמִּ֣יץ כֹּ֑חַ מִֽי־הִקְשָׁ֥ה אֵ֝לָ֗יו וַיִּשְׁלָֽם׃ | 4 |
वह तो मन से बुद्धिमान तथा बल के शूर हैं. कौन उनकी हानि किए बिना उनकी उपेक्षा कर सका है?
הַמַּעְתִּ֣יק הָ֭רִים וְלֹ֣א יָדָ֑עוּ אֲשֶׁ֖ר הֲפָכָ֣ם בְּאַפֹּֽו׃ | 5 |
मात्र परमेश्वर ही हैं, जो विचलित कर देते हैं, किसे यह मालूम है कि अपने क्रोध में वह किस रीति से उन्हें पलट देते हैं.
הַמַּרְגִּ֣יז אֶ֭רֶץ מִמְּקֹומָ֑הּ וְ֝עַמּוּדֶ֗יהָ יִתְפַלָּצֽוּן׃ | 6 |
कौन है जो पृथ्वी को इसके स्थान से हटा देता है, कि इसके आधार-स्तंभ थरथरा जाते हैं.
הָאֹמֵ֣ר לַ֭חֶרֶס וְלֹ֣א יִזְרָ֑ח וּבְעַ֖ד כֹּוכָבִ֣ים יַחְתֹּֽם׃ | 7 |
उसके आदेश पर सूर्य निष्प्रभ हो जाता है, कौन तारों पर अपनी मोहर लगा देता है?
נֹטֶ֣ה שָׁמַ֣יִם לְבַדֹּ֑ו וְ֝דֹורֵ֗ךְ עַל־בָּ֥מֳתֵי יָֽם׃ | 8 |
कौन अकेले ही आकाशमंडल को फैला देता है, कौन सागर की लहरों को रौंदता चला जाता है;
עֹֽשֶׂה־עָ֭שׁ כְּסִ֥יל וְכִימָ֗ה וְחַדְרֵ֥י תֵמָֽן׃ | 9 |
किसने सप्त ऋषि, मृगशीर्ष, कृतिका तथा दक्षिण नक्षत्रों की स्थापना की है?
עֹשֶׂ֣ה גְ֭דֹלֹות עַד־אֵ֣ין חֵ֑קֶר וְנִפְלָאֹ֗ות עַד־אֵ֥ין מִסְפָּֽר׃ | 10 |
कौन विलक्षण कार्य करता है? वे कार्य, जो अगम्य, आश्चर्यजनक एवं असंख्य भी हैं.
הֵ֤ן יַעֲבֹ֣ר עָ֭לַי וְלֹ֣א אֶרְאֶ֑ה וְ֝יַחֲלֹ֗ף וְֽלֹא־אָבִ֥ין לֹֽו׃ | 11 |
यदि वे मेरे निकट से होकर निकलें, वह दृश्य न होंगे; यदि वह मेरे निकट से होकर निकलें, मुझे उनका बोध भी न होगा.
הֵ֣ן יַ֭חְתֹּף מִ֣י יְשִׁיבֶ֑נּוּ מִֽי־יֹאמַ֥ר אֵ֝לָ֗יו מַֽה־תַּעֲשֶֽׂה׃ | 12 |
यदि वह कुछ छीनना चाहें, कौन उन्हें रोक सकता है? किसमें उनसे यह प्रश्न करने का साहस है, ‘यह क्या कर रहे हैं आप?’
אֱ֭לֹוהַּ לֹא־יָשִׁ֣יב אַפֹּ֑ו תַּחַתֹו (תַּחְתָּ֥יו) שָׁ֝חֲח֗וּ עֹ֣זְרֵי רָֽהַב׃ | 13 |
परमेश्वर अपने कोप को शांत नहीं करेंगे; उनके नीचे राहाब के सहायक दुबके बैठे हैं.
אַ֭ף כִּֽי־אָנֹכִ֣י אֶֽעֱנֶ֑נּוּ אֶבְחֲרָ֖ה דְבָרַ֣י עִמֹּֽו׃ | 14 |
“मैं उन्हें किस प्रकार उत्तर दे सकता हूं? मैं कैसे उनके लिए दोषी व निर्दोष को पहचानूं?
אֲשֶׁ֣ר אִם־צָ֭דַקְתִּי לֹ֣א אֶעֱנֶ֑ה לִ֝מְשֹׁפְטִ֗י אֶתְחַנָּֽן׃ | 15 |
क्योंकि यदि मुझे धर्मी व्यक्ति पहचाना भी जाए, तो उत्तर देना मेरे लिए असंभव होगा; मुझे अपने न्याय की कृपा के लिए याचना करनी होगी.
אִם־קָרָ֥אתִי וַֽיַּעֲנֵ֑נִי לֹֽא־אַ֝אֲמִ֗ין כִּֽי־יַאֲזִ֥ין קֹולִֽי׃ | 16 |
यदि वे मेरी पुकार सुन लेते हैं, मेरे लिए यह विश्वास करना कठिन होगा, कि वे मेरी पुकार को सुन रहे थे.
אֲשֶׁר־בִּשְׂעָרָ֥ה יְשׁוּפֵ֑נִי וְהִרְבָּ֖ה פְצָעַ֣י חִנָּֽם׃ | 17 |
क्योंकि वे तो मुझे तूफान द्वारा घायल करते हैं, तथा अकारण ही मेरे घावों की संख्या में वृद्धि करते हैं.
לֹֽא־יִ֭תְּנֵנִי הָשֵׁ֣ב רוּחִ֑י כִּ֥י יַ֝שְׂבִּעַ֗נִי מַמְּרֹרִֽים׃ | 18 |
वे मुझे श्वास भी न लेने देंगे, वह मुझे कड़वाहट से परिपूर्ण कर देते हैं.
אִם־לְכֹ֣חַ אַמִּ֣יץ הִנֵּ֑ה וְאִם־לְ֝מִשְׁפָּ֗ט מִ֣י יֹועִידֵֽנִי׃ | 19 |
यदि यह अधिकार का विषय है, तो परमेश्वर बलशाली हैं! यदि यह न्याय का विषय है, तो कौन उनके सामने ठहर सकता है?
אִם־אֶ֭צְדָּק פִּ֣י יַרְשִׁיעֵ֑נִי תָּֽם־אָ֝֗נִי וַֽיַּעְקְשֵֽׁנִי׃ | 20 |
यद्यपि मैं ईमानदार हूं, मेरे ही शब्द मुझे दोषारोपित करेंगे; यद्यपि मैं दोषहीन हूं, मेरा मुंह मुझे दोषी घोषित करेंगे.
תָּֽם־אָ֭נִי לֹֽא־אֵדַ֥ע נַפְשִׁ֗י אֶמְאַ֥ס חַיָּֽי׃ | 21 |
“मैं दोषहीन हूं, यह स्वयं मुझे दिखाई नहीं देता; मुझे तो स्वयं से घृणा हो रही है.
אַחַ֗ת הִ֥יא עַל־כֵּ֥ן אָמַ֑רְתִּי תָּ֥ם וְ֝רָשָׁ֗ע ה֣וּא מְכַלֶּֽה׃ | 22 |
सभी समान हैं; तब मेरा विचार यह है, ‘वे तो निर्दोष तथा दुर्वृत्त दोनों ही को नष्ट कर देते हैं.’
אִם־שֹׁ֭וט יָמִ֣ית פִּתְאֹ֑ם לְמַסַּ֖ת נְקִיִּ֣ם יִלְעָֽג׃ | 23 |
यदि एकाएक आई विपत्ति महामारी ले आती है, तो परमेश्वर निर्दोषों की निराशा का उपहास करते हैं.
אֶ֤רֶץ ׀ נִתְּנָ֬ה בְֽיַד־רָשָׁ֗ע פְּנֵֽי־שֹׁפְטֶ֥יהָ יְכַסֶּ֑ה אִם־לֹ֖א אֵפֹ֣וא מִי־הֽוּא׃ | 24 |
समस्त को दुष्ट के हाथों में सौप दिया गया है, वे अपने न्यायाधीशों के चेहरे को आवृत्त कर देते हैं. अगर वे नहीं हैं, तो वे कौन हैं?
וְיָמַ֣י קַ֭לּוּ מִנִּי־רָ֑ץ בָּֽ֝רְח֗וּ לֹא־רָא֥וּ טֹובָֽה׃ | 25 |
“मेरे इन दिनों की गति तो धावक से भी तीव्र है; वे उड़े चले जा रहे हैं, इन्होंने बुरा समय ही देखा है.
חָ֭לְפוּ עִם־אֳנִיֹּ֣ות אֵבֶ֑ה כְּ֝נֶ֗שֶׁר יָט֥וּשׂ עֲלֵי־אֹֽכֶל׃ | 26 |
ये ऐसे निकले जा रहे हैं, कि मानो ये सरकंडों की नौकाएं हों, मानो गरुड़ अपने शिकार पर झपटता है.
אִם־אָ֭מְרִי אֶשְׁכְּחָ֣ה שִׂיחִ֑י אֶעֶזְבָ֖ה פָנַ֣י וְאַבְלִֽיגָה׃ | 27 |
यद्यपि मैं कहूं: मैं अपनी शिकायत प्रस्तुत नहीं करूंगा, ‘मैं अपने चेहरे के विषाद को हटाकर उल्लास करूंगा.’
יָגֹ֥רְתִּי כָל־עַצְּבֹתָ֑י יָ֝דַ֗עְתִּי כִּי־לֹ֥א תְנַקֵּֽנִי׃ | 28 |
मेरे समस्त कष्टों ने मुझे भयभीत कर रखा है, मुझे यह मालूम है कि आप मुझे निर्दोष घोषित नहीं करेंगे.
אָנֹכִ֥י אֶרְשָׁ֑ע לָמָּה־זֶּ֝֗ה הֶ֣בֶל אִיגָֽע׃ | 29 |
मेरी गणना दुर्वृत्तों में हो चुकी है, तो फिर मैं अब व्यर्थ परिश्रम क्यों करूं?
אִם־הִתְרָחַ֥צְתִּי בְמֹו (בְמֵי)־שָׁ֑לֶג וַ֝הֲזִכֹּ֗ותִי בְּבֹ֣ר כַּפָּֽי׃ | 30 |
यदि मैं स्वयं को बर्फ के निर्मल जल से साफ कर लूं, अपने हाथों को साबुन से साफ़ कर लूं,
אָ֭ז בַּשַּׁ֣חַת תִּטְבְּלֵ֑נִי וְ֝תִֽעֲב֗וּנִי שַׂלְמֹותָֽי׃ | 31 |
यह सब होने पर भी आप मुझे कब्र में डाल देंगे. मेरे वस्त्र मुझसे घृणा करने लगेंगे.
כִּי־לֹא־אִ֣ישׁ כָּמֹ֣נִי אֶֽעֱנֶ֑נּוּ נָבֹ֥וא יַ֝חְדָּ֗ו בַּמִּשְׁפָּֽט׃ | 32 |
“परमेश्वर कोई मेरे समान मनुष्य तो नहीं हैं, कि मैं उन्हें वाद-विवाद में सम्मिलित कर लूं, कि मैं उनके साथ न्यायालय में प्रवेश करूं.
לֹ֣א יֵשׁ־בֵּינֵ֣ינוּ מֹוכִ֑יחַ יָשֵׁ֖ת יָדֹ֣ו עַל־שְׁנֵֽינוּ׃ | 33 |
हम दोनों के मध्य कोई भी मध्यस्थ नहीं, कि वह हम दोनों के सिर पर हाथ रखे.
יָסֵ֣ר מֵעָלַ֣י שִׁבְטֹ֑ו וְ֝אֵמָתֹ֗ו אַֽל־תְּבַעֲתַֽנִּי׃ | 34 |
परमेश्वर ही मुझ पर से अपना नियंत्रण हटा लें, उनका आतंक मुझे भयभीत न करने पाए.
אַֽ֭דַבְּרָה וְלֹ֣א אִירָאֶ֑נּוּ כִּ֥י לֹא־כֵ֥ן אָ֝נֹכִ֗י עִמָּדִֽי׃ | 35 |
इसी के बाद मैं उनसे बिना डर के वार्तालाप कर सकूंगा, किंतु स्वयं मैं अपने अंतर में वैसा नहीं हूं.