< אִיּוֹב 34 >

וַיַּ֥עַן אֱלִיה֗וּא וַיֹּאמַֽר׃ 1
इसके 'अलावा इलीहू ने यह भी कहा,
שִׁמְע֣וּ חֲכָמִ֣ים מִלָּ֑י וְ֝יֹדְעִ֗ים הַאֲזִ֥ינוּ לִֽי׃ 2
“ऐ तुम 'अक़्लमन्द लोगों, मेरी बातें सुनो, और ऐ तुम जो अहल — ए — 'इल्म हो, मेरी तरफ़ कान लगाओ;
כִּי־אֹ֭זֶן מִלִּ֣ין תִּבְחָ֑ן וְ֝חֵ֗ךְ יִטְעַ֥ם לֶאֱכֹֽל׃ 3
क्यूँकि कान बातों को परखता है, जैसे ज़बान' खाने को चखती है।
מִשְׁפָּ֥ט נִבְחֲרָה־לָּ֑נוּ נֵדְעָ֖ה בֵינֵ֣ינוּ מַה־טֹּֽוב׃ 4
जो कुछ ठीक है, हम अपने लिए चुन लें, जो भला है, हम आपस में जान लें।
כִּֽי־אָ֭מַר אִיֹּ֣וב צָדַ֑קְתִּי וְ֝אֵ֗ל הֵסִ֥יר מִשְׁפָּטִֽי׃ 5
क्यूँकि अय्यूब ने कहा, 'मैं सादिक़ हूँ, और ख़ुदा ने मेरी हक़ तल्फ़ी की है।
עַל־מִשְׁפָּטִ֥י אֲכַזֵּ֑ב אָנ֖וּשׁ חִצִּ֣י בְלִי־פָֽשַׁע׃ 6
अगरचे मैं हक़ पर हूँ, तोभी झूटा ठहरता हूँ जबकि मैं बेक़ुसूर हूँ, मेरा ज़ख़्म ला 'इलाज है।
מִי־גֶ֥בֶר כְּאִיֹּ֑וב יִֽשְׁתֶּה־לַּ֥עַג כַּמָּֽיִם׃ 7
अय्यूब जैसा बहादुर कौन है, जो मज़ाक़ को पानी की तरह पी जाता है?
וְאָרַ֣ח לְ֭חֶבְרָה עִם־פֹּ֣עֲלֵי אָ֑וֶן וְ֝לָלֶ֗כֶת עִם־אַנְשֵׁי־רֶֽשַׁע׃ 8
जो बदकिरदारों की रफ़ाफ़त में चलता है, और शरीर लोगों के साथ फिरता है।
כִּֽי־אָ֭מַר לֹ֣א יִסְכָּן־גָּ֑בֶר בִּ֝רְצֹתֹ֗ו עִם־אֱלֹהִֽים׃ 9
क्यूँकि उसने कहा है, कि 'आदमी को कुछ फ़ायदा नहीं कि वह ख़ुदा में ख़ुश है।”
לָכֵ֤ן ׀ אַ֥נֲשֵׁ֥י לֵבָ֗ב שִׁמְע֫וּ לִ֥י חָלִ֖לָה לָאֵ֥ל מֵרֶ֗שַׁע וְשַׁדַּ֥י מֵעָֽוֶל׃ 10
“इसलिए ऐ अहल — ए — अक़्ल मेरी सुनो, यह हरगिज़ हो नहीं सकता कि ख़ुदा शरारत का काम करे, और क़ादिर — ए — मुतलक़ गुनाह करे।
כִּ֤י פֹ֣עַל אָ֭דָם יְשַׁלֶּם־לֹ֑ו וּֽכְאֹ֥רַח אִ֝֗ישׁ יַמְצִאֶֽנּוּ׃ 11
वह इंसान को उसके आ'माल के मुताबिक़ बदला देगा, वह ऐसा करेगा कि हर किसी को अपनी ही राहों के मुताबिक़ बदला मिलेगा।
אַף־אָמְנָ֗ם אֵ֥ל לֹֽא־יַרְשִׁ֑יעַ וְ֝שַׁדַּ֗י לֹֽא־יְעַוֵּ֥ת מִשְׁפָּֽט׃ 12
यक़ीनन ख़ुदा बुराई नहीं करेगा; क़ादिर — ए — मुतलक़ से बेइन्साफ़ी न होगी।
מִֽי־פָקַ֣ד עָלָ֣יו אָ֑רְצָה וּמִ֥י שָׂ֝֗ם תֵּבֵ֥ל כֻּלָּֽהּ׃ 13
किसने उसको ज़मीन पर इख़्तियार दिया? या किसने सारी दुनिया का इन्तिज़ाम किया है?
אִם־יָשִׂ֣ים אֵלָ֣יו לִבֹּ֑ו רוּחֹ֥ו וְ֝נִשְׁמָתֹ֗ו אֵלָ֥יו יֶאֱסֹֽף׃ 14
अगर वह इंसान से अपना दिल लगाए, अगर वह अपनी रूह और अपने दम को वापस ले ले;
יִגְוַ֣ע כָּל־בָּשָׂ֣ר יָ֑חַד וְ֝אָדָ֗ם עַל־עָפָ֥ר יָשֽׁוּב׃ 15
तो तमाम बशर इकट्ठे फ़ना हो जाएँगे, और इंसान फिर मिट्टी में मिल जाएगा।
וְאִם־בִּ֥ינָה שִׁמְעָה־זֹּ֑את הַ֝אֲזִ֗ינָה לְקֹ֣ול מִלָּֽי׃ 16
“इसलिए अगर तुझ में समझ है तो इसे सुन ले, और मेरी बातों पर तवज्जुह कर।
הַאַ֬ף שֹׂונֵ֣א מִשְׁפָּ֣ט יַחֲבֹ֑ושׁ וְאִם־צַדִּ֖יק כַּבִּ֣יר תַּרְשִֽׁיעַ׃ 17
क्या वह जो हक़ से 'अदावत रखता है, हुकूमत करेगा? और क्या तू उसे जो 'आदिल और क़ादिर है, मुल्ज़िम ठहराएगा?
הַאֲמֹ֣ר לְמֶ֣לֶךְ בְּלִיָּ֑עַל רָ֝שָׁ֗ע אֶל־נְדִיבִֽים׃ 18
वह तो बादशाह से कहता है, 'तू रज़ील है'; और शरीफ़ों से, कि 'तुम शरीर हो'।
אֲשֶׁ֤ר לֹֽא־נָשָׂ֨א ׀ פְּנֵ֥י שָׂרִ֗ים וְלֹ֣א נִכַּר־שֹׁ֖ועַ לִפְנֵי־דָ֑ל כִּֽי־מַעֲשֵׂ֖ה יָדָ֣יו כֻּלָּֽם׃ 19
वह उमर की तरफ़दारी नहीं करता, और अमीर को ग़रीब से ज़्यादा नहीं मानता, क्यूँकि वह सब उसी के हाथ की कारीगरी हैं।
רֶ֤גַע ׀ יָמֻתוּ֮ וַחֲצֹ֪ות לָ֥יְלָה יְגֹעֲשׁ֣וּ עָ֣ם וְיַעֲבֹ֑רוּ וְיָסִ֥ירוּ אַ֝בִּ֗יר לֹ֣א בְיָֽד׃ 20
वह दम भर में आधी रात को मर जाते हैं, लोग हिलाए जाते हैं और गुज़र जाते हैं और बहादुर लोग बगै़र हाथ लगाए उठा लिए जाते हैं।
כִּי־עֵ֭ינָיו עַל־דַּרְכֵי־אִ֑ישׁ וְֽכָל־צְעָדָ֥יו יִרְאֶֽה׃ 21
“क्यूँकि उसकी आँखें आदमी की राहों पर लगीं हैं, और वह उसकी आदतों को देखता है;
אֵֽין־חֹ֖שֶׁךְ וְאֵ֣ין צַלְמָ֑וֶת לְהִסָּ֥תֶר שָׁ֝֗ם פֹּ֣עֲלֵי אָֽוֶן׃ 22
न कोई ऐसी तारीकी न मौत का साया है, जहाँ बद किरदार छिप सकें।
כִּ֤י לֹ֣א עַל־אִ֭ישׁ יָשִׂ֣ים עֹ֑וד לַהֲלֹ֥ךְ אֶל־אֵ֝֗ל בַּמִּשְׁפָּֽט׃ 23
क्यूँकि उसे ज़रूरी नहीं कि आदमी का ज़्यादा ख़याल करे ताकि वह ख़ुदा के सामने 'अदालत में जाए।
יָרֹ֣עַ כַּבִּירִ֣ים לֹא־חֵ֑קֶר וַיַּעֲמֵ֖ד אֲחֵרִ֣ים תַּחְתָּֽם׃ 24
वह बिला तफ़तीश ज़बरदस्तों को टुकड़े — टुकड़े करता, और उनकी जगह औरों को खड़ा करता है।
לָכֵ֗ן יַ֭כִּיר מַעְבָּֽדֵיהֶ֑ם וְהָ֥פַךְ לַ֝֗יְלָה וְיִדַּכָּֽאוּ׃ 25
इसलिए वह उनके कामों का ख़याल रखता है, और वह उन्हें रात को उलट देता है ऐसा कि वह हलाक हो जाते हैं।
תַּֽחַת־רְשָׁעִ֥ים סְפָקָ֗ם בִּמְקֹ֥ום רֹאִֽים׃ 26
वह औरों को देखते हुए, उनको ऐसा मारता है जैसा शरीरों को;
אֲשֶׁ֣ר עַל־כֵּ֭ן סָ֣רוּ מֵֽאַחֲרָ֑יו וְכָל־דְּ֝רָכָ֗יו לֹ֣א הִשְׂכִּֽילוּ׃ 27
इसलिए कि वह उसकी पैरवी से फिर गए, और उसकी किसी राह का ख़याल न किया।
לְהָבִ֣יא עָ֭לָיו צַֽעֲקַת־דָּ֑ל וְצַעֲקַ֖ת עֲנִיִּ֣ים יִשְׁמָֽע׃ 28
यहाँ तक कि उनकी वजह से ग़रीबों की फ़रियाद उसके सामने पहुँची और उसने मुसीबत ज़दों की फ़रियाद सुनी।
וְה֤וּא יַשְׁקִ֨ט ׀ וּמִ֥י יַרְשִׁ֗עַ וְיַסְתֵּ֣ר פָּ֭נִים וּמִ֣י יְשׁוּרֶ֑נּוּ וְעַל־גֹּ֖וי וְעַל־אָדָ֣ם יָֽחַד׃ 29
जब वह राहत बख़्शे तो कौन मुल्ज़िम ठहरा सकता है? जब वह मुँह छिपा ले तो कौन उसे देख सकता है? चाहे कोई क़ौम हो या आदमी, दोनों के साथ यकसाँ सुलूक है।
מִ֭מְּלֹךְ אָדָ֥ם חָנֵ֗ף מִמֹּ֥קְשֵׁי עָֽם׃ 30
ताकि बेदीन आदमी सल्तनत न करे, और लोगों को फंदे में फंसाने के लिए कोई न हो।
כִּֽי־אֶל־אֵ֭ל הֶאָמַ֥ר נָשָׂ֗אתִי לֹ֣א אֶחְבֹּֽל׃ 31
“क्यूँकि क्या किसी ने ख़ुदा से कहा है, मैंने सज़ा उठा ली है, मैं अब बुराई न करूँगा;
בִּלְעֲדֵ֣י אֶ֭חֱזֶה אַתָּ֣ה הֹרֵ֑נִי אִֽם־עָ֥וֶל פָּ֝עַ֗לְתִּי לֹ֣א אֹסִֽיף׃ 32
जो मुझे दिखाई नहीं देता, वह तू मुझे सिखा; अगर मैंने गुनाह किया है तो अब ऐसा नहीं करूँगा'?
הַֽמֵעִמְּךָ֬ יְשַׁלְמֶ֨נָּה כִּֽי־מָאַ֗סְתָּ כִּי־אַתָּ֣ה תִבְחַ֣ר וְלֹא־אָ֑נִי וּֽמַה־יָדַ֥עְתָּ דַבֵּֽר׃ 33
क्या उसका बदला तेरी मर्ज़ी पर हो कि तू उसे ना मंज़ूर करता है? क्यूँकि तुझे फ़ैसला करना है न कि मुझे; इसलिए जो कुछ तू जानता है, कह दे।
אַנְשֵׁ֣י לֵ֭בָב יֹ֣אמְרוּ לִ֑י וְגֶ֥בֶר חָ֝כָ֗ם שֹׁמֵ֥עַֽ לִֽי׃ 34
अहल — ए — अक़्ल मुझ से कहेंगे, बल्कि हर 'अक़्लमन्द जो मेरी सुनता है कहेगा,
אִ֭יֹּוב לֹא־בְדַ֣עַת יְדַבֵּ֑ר וּ֝דְבָרָ֗יו לֹ֣א בְהַשְׂכֵּֽיל׃ 35
'अय्यूब नादानी से बोलता है, और उसकी बातें हिकमत से ख़ाली हैं।
אָבִ֗י יִבָּחֵ֣ן אִיֹּ֣וב עַד־נֶ֑צַח עַל־תְּ֝שֻׁבֹ֗ת בְּאַנְשֵׁי־אָֽוֶן׃ 36
काश कि अय्यूब आख़िर तक आज़माया जाता, क्यूँकि वह शरीरों की तरह जवाब देता है।
כִּ֥י יֹ֘סִ֤יף עַֽל־חַטָּאתֹ֣ו פֶ֭שַׁע בֵּינֵ֣ינוּ יִסְפֹּ֑וק וְיֶ֖רֶב אֲמָרָ֣יו לָאֵֽל׃ ס 37
इसलिए कि वह अपने गुनाहों पर बग़ावत को बढ़ाता है; वह हमारे बीच तालियाँ बजाता है, और ख़ुदा के ख़िलाफ़ बहुत बातें बनाता है।”

< אִיּוֹב 34 >