< אִיּוֹב 15 >
וַ֭יַּעַן אֱלִיפַ֥ז הַֽתֵּימָנִ֗י וַיֹּאמַֽר׃ | 1 |
तब इलिफ़ज़ तेमानी ने जवाब दिया,
הֶֽחָכָ֗ם יַעֲנֶ֥ה דַֽעַת־ר֑וּחַ וִֽימַלֵּ֖א קָדִ֣ים בִּטְנֹֽו׃ | 2 |
क्या 'अक़्लमन्द को चाहिए कि फ़ुज़ूल बातें जोड़ कर जवाब दे, और पूरबी हवा से अपना पेट भरे?
הֹוכֵ֣חַ בְּ֭דָבָר לֹ֣א יִסְכֹּ֑ון וּ֝מִלִּ֗ים לֹא־יֹועִ֥יל בָּֽם׃ | 3 |
क्या वह बेफ़ाइदा बक़वास से बहस करे या ऐसी तक़रीरों से जो बे फ़ाइदा हैं?
אַף־אַ֭תָּה תָּפֵ֣ר יִרְאָ֑ה וְתִגְרַ֥ע שִׂ֝יחָ֗ה לִפְנֵי־אֵֽל׃ | 4 |
बल्कि तू ख़ौफ़ को नज़र अन्दाज़ करके, ख़ुदा के सामने इबादत को ज़ायल करता है।
כִּ֤י יְאַלֵּ֣ף עֲוֹנְךָ֣ פִ֑יךָ וְ֝תִבְחַ֗ר לְשֹׁ֣ון עֲרוּמִֽים׃ | 5 |
क्यूँकि तेरा गुनाह तेरे मुँह को सिखाता है, और तू रियाकारों की ज़बान इख़्तियार करता है।
יַרְשִֽׁיעֲךָ֣ פִ֣יךָ וְלֹא־אָ֑נִי וּ֝שְׂפָתֶ֗יךָ יַעֲנוּ־בָֽךְ׃ | 6 |
तेरा ही मुँह तुझे मुल्ज़िम ठहराता है न कि मैं, बल्कि तेरे ही होंट तेरे ख़िलाफ़ गवाही देते हैं।
הֲרִאישֹׁ֣ון אָ֭דָם תִּוָּלֵ֑ד וְלִפְנֵ֖י גְבָעֹ֣ות חֹולָֽלְתָּ׃ | 7 |
क्या पहला इंसान तू ही पैदा हुआ? या पहाड़ों से पहले तेरी पैदाइश हुई?
הַבְסֹ֣וד אֱלֹ֣והַ תִּשְׁמָ֑ע וְתִגְרַ֖ע אֵלֶ֣יךָ חָכְמָֽה׃ | 8 |
क्या तू ने ख़ुदा की पोशीदा मसलहत सुन ली है, और अपने लिए 'अक़्लमन्दी का ठेका ले रख्खा है?
מַה־יָּ֭דַעְתָּ וְלֹ֣א נֵדָ֑ע תָּ֝בִ֗ין וְֽלֹא־עִמָּ֥נוּ הֽוּא׃ | 9 |
तू ऐसा क्या जानता है, जो हम नहीं जानते? तुझ में ऐसी क्या समझ है जो हम में नहीं?
גַּם־שָׂ֣ב גַּם־יָשִׁ֣ישׁ בָּ֑נוּ כַּבִּ֖יר מֵאָבִ֣יךָ יָמִֽים׃ | 10 |
हम लोगों में सिर सफ़ेद बाल वाले और बड़े बूढ़े भी हैं, जो तेरे बाप से भी बहुत ज़्यादा उम्र के हैं।
הַמְעַ֣ט מִ֭מְּךָ תַּנְחֻמֹ֣ות אֵ֑ל וְ֝דָבָ֗ר לָאַ֥ט עִמָּֽךְ׃ | 11 |
क्या ख़ुदा की तसल्ली तेरे नज़दीक कुछ कम है, और वह कलाम जो तुझ से नरमी के साथ किया जाता है?
מַה־יִּקָּחֲךָ֥ לִבֶּ֑ךָ וּֽמַה־יִּרְזְמ֥וּן עֵינֶֽיךָ׃ | 12 |
तेरा दिल तुझे क्यूँ खींच ले जाता है, और तेरी आँखें क्यूँ इशारा करती हैं?
כִּֽי־תָשִׁ֣יב אֶל־אֵ֣ל רוּחֶ֑ךָ וְהֹצֵ֖אתָ מִפִּ֣יךָ מִלִּֽין׃ | 13 |
क्या तू अपनी रूह को ख़ुदा की मुख़ालिफ़त पर आमादा करता है, और अपने मुँह से ऐसी बातें निकलने देता है?
מָֽה־אֱנֹ֥ושׁ כִּֽי־יִזְכֶּ֑ה וְכִֽי־יִ֝צְדַּ֗ק יְל֣וּד אִשָּֽׁה׃ | 14 |
इंसान है क्या कि वह पाक हो? और वह जो 'औरत से पैदा हुआ क्या है, कि सच्चा हो।
הֵ֣ן בִּקְדֹשֹׁו (בִּ֭קְדֹשָׁיו) לֹ֣א יַאֲמִ֑ין וְ֝שָׁמַ֗יִם לֹא־זַכּ֥וּ בְעֵינָֽיו׃ | 15 |
देख, वह अपने फ़रिर्श्तों का 'ऐतबार नहीं करता बल्कि आसमान भी उसकी नज़र में पाक नहीं।
אַ֭ף כִּֽי־נִתְעָ֥ב וְֽנֶאֱלָ֑ח אִישׁ־שֹׁתֶ֖ה כַמַּ֣יִם עַוְלָֽה׃ | 16 |
फ़िर भला उसका क्या ज़िक्र जो घिनौना और ख़राब है या'नी वह आदमी जो बुराई को पानी की तरह पीता है।
אֲחַוְךָ֥ שְֽׁמַֽע־לִ֑י וְזֶֽה־חָ֝זִ֗יתִי וַאֲסַפֵּֽרָה׃ | 17 |
“मैं तुझे बताता हूँ, तू मेरी सुन; और जो मैंने देखा है उसका बयान करूँगा।
אֲשֶׁר־חֲכָמִ֥ים יַגִּ֑ידוּ וְלֹ֥א כִֽ֝חֲד֗וּ מֵאֲבֹותָֽם׃ | 18 |
जिसे 'अक़्लमन्दों ने अपने बाप — दादा से सुनकर बताया है, और उसे छिपाया नहीं;
לָהֶ֣ם לְ֭בַדָּם נִתְּנָ֣ה הָאָ֑רֶץ וְלֹא־עָ֖בַר זָ֣ר בְּתֹוכָֽם׃ | 19 |
सिर्फ़ उन ही को मुल्क दिया गया था, और कोई परदेसी उनके बीच नहीं आया
כָּל־יְמֵ֣י רָ֭שָׁע ה֣וּא מִתְחֹולֵ֑ל וּמִסְפַּ֥ר שָׁ֝נִ֗ים נִצְפְּנ֥וּ לֶעָרִֽיץ׃ | 20 |
शरीर आदमी अपनी सारी उम्र दर्द से कराहता है, या'नी सब बरस जो ज़ालिम के लिए रख्खे गए हैं।
קֹול־פְּחָדִ֥ים בְּאָזְנָ֑יו בַּ֝שָּׁלֹ֗ום שֹׁודֵ֥ד יְבֹואֶֽנּוּ׃ | 21 |
डरावनी आवाजें उसके कान में गूँजती रहती हैं, इक़बालमंदी के वक़्त ग़ारतगर उस पर आ पड़ेगा।
לֹא־יַאֲמִ֣ין שׁ֭וּב מִנִּי־חֹ֑שֶׁךְ וְצָפוּ (וְצָפ֖וּי) ה֣וּא אֱלֵי־חָֽרֶב׃ | 22 |
उसे यक़ीन नहीं कि वह अँधेरे से बाहर निकलेगा, और तलवार उसकी मुन्तज़िर है।
נֹ֘דֵ֤ד ה֣וּא לַלֶּ֣חֶם אַיֵּ֑ה יָדַ֓ע ׀ כִּֽי־נָכֹ֖ון בְּיָדֹ֣ו יֹֽום־חֹֽשֶׁךְ׃ | 23 |
वह रोटी के लिए मारा मारा फिरता है कि कहाँ मिलेगी। वह जानता है, कि अँधेरे के दिन मेरे पास ही है।
יְֽ֭בַעֲתֻהוּ צַ֣ר וּמְצוּקָ֑ה תִּ֝תְקְפֵ֗הוּ כְּמֶ֤לֶךְ ׀ עָתִ֬יד לַכִּידֹֽור׃ | 24 |
मुसीबत और सख़्त तकलीफ़ उसे डराती है; ऐसे बादशाह की तरह जो लड़ाई के लिए तैयार हो, वह उस पर ग़ालिब होते है।
כִּֽי־נָטָ֣ה אֶל־אֵ֣ל יָדֹ֑ו וְאֶל־שַׁ֝דַּ֗י יִתְגַּבָּֽר׃ | 25 |
इसलिए कि उसने ख़ुदा के ख़िलाफ़ अपना हाथ बढ़ाया और क़ादिर — ए — मुतलक़ के ख़िलाफ़ फ़ख़्र करता है;
יָר֣וּץ אֵלָ֣יו בְּצַוָּ֑אר בַּ֝עֲבִ֗י גַּבֵּ֥י מָֽגִנָּֽיו׃ | 26 |
वह अपनी ढालों की मोटी — मोटी गुलमैखों के साथ बाग़ी होकर उसपर हमला करता है:
כִּֽי־כִסָּ֣ה פָנָ֣יו בְּחֶלְבֹּ֑ו וַיַּ֖עַשׂ פִּימָ֣ה עֲלֵי־כָֽסֶל׃ | 27 |
इसलिए कि उसके मुँह पर मोटापा छा गया है, और उसके पहलुओं पर चर्बी की तहें जम गई हैं।
וַיִּשְׁכֹּ֤ון ׀ עָ֘רִ֤ים נִכְחָדֹ֗ות בָּ֭תִּים לֹא־יֵ֣שְׁבוּ לָ֑מֹו אֲשֶׁ֖ר הִתְעַתְּד֣וּ לְגַלִּֽים׃ | 28 |
और वह वीरान शहरों में बस गया है, ऐसे मकानों में जिनमें कोई आदमी न बसा और जो वीरान होने को थे।
לֹֽא־יֶ֖עְשַׁר וְלֹא־יָק֣וּם חֵילֹ֑ו וְלֹֽא־יִטֶּ֖ה לָאָ֣רֶץ מִנְלָֽם׃ | 29 |
वह दौलतमन्द न होगा, उसका माल बना न रहेगा और ऐसों की पैदावार ज़मीन की तरफ़ न झुकेगी।
לֹֽא־יָס֨וּר ׀ מִנִּי־חֹ֗שֶׁךְ יֹֽ֭נַקְתֹּו תְּיַבֵּ֣שׁ שַׁלְהָ֑בֶת וְ֝יָס֗וּר בְּר֣וּחַ פִּֽיו׃ | 30 |
वह अँधेरे से कभी न निकलेगा, और शोले उसकी शाखों को ख़ुश्क कर देंगे, और वह ख़ुदा के मुँह से ताक़त से जाता रहेगा।
אַל־יַאֲמֵ֣ן בַּשֹּׁו (בַּשָּׁ֣יו) נִתְעָ֑ה כִּי־שָׁ֝֗וְא תִּהְיֶ֥ה תְמוּרָתֹֽו׃ | 31 |
वह अपने आप को धोका देकर बतालत का भरोसा न करे, क्यूँकि बतालत ही उसका मज़दूरी ठहरेगी।
בְּֽלֹא־יֹ֭ומֹו תִּמָּלֵ֑א וְ֝כִפָּתֹ֗ו לֹ֣א רַעֲנָֽנָה׃ | 32 |
यह उसके वक़्त से पहले पूरा हो जाएगा, और उसकी शाख़ हरी न रहेगी।
יַחְמֹ֣ס כַּגֶּ֣פֶן בִּסְרֹ֑ו וְיַשְׁלֵ֥ךְ כַּ֝זַּ֗יִת נִצָּתֹֽו׃ | 33 |
ताक की तरह उसके अंगूर कच्चे ही और जै़तून की तरह उसके फूल गिर जाएँगे।
כִּֽי־עֲדַ֣ת חָנֵ֣ף גַּלְמ֑וּד וְ֝אֵ֗שׁ אָכְלָ֥ה אָֽהֳלֵי־שֹֽׁחַד׃ | 34 |
क्यूँकि बे ख़ुदा लोगों की जमा'अत बेफल रहेगी, और रिशवत के ख़ेमों को आग भस्म कर देगी।
הָרֹ֣ה עָ֭מָל וְיָ֣לֹד אָ֑וֶן וּ֝בִטְנָ֗ם תָּכִ֥ין מִרְמָֽה׃ ס | 35 |
वह शरारत से ताक़तवर होते हैं और गुनाह पैदा होता है, और उनका पेट धोखा को तैयार करता है।”