< יִרְמְיָהוּ 37 >
וַיִּ֨מְלָךְ־מֶ֔לֶךְ צִדְקִיָּ֖הוּ בֶּן־יֹֽאשִׁיָּ֑הוּ תַּ֗חַת כָּנְיָ֙הוּ֙ בֶּן־יְהֹ֣ויָקִ֔ים אֲשֶׁ֥ר הִמְלִ֛יךְ נְבוּכַדְרֶאצַּ֥ר מֶֽלֶךְ־בָּבֶ֖ל בְּאֶ֥רֶץ יְהוּדָֽה׃ | 1 |
और सिदक़ियाह बिन यूसियाह जिसको शाह — ए — बाबुल नबूकदनज़र ने मुल्क — ए — यहूदाह पर बादशाह मुक़र्रर किया था, कूनियाह बिन यहुयक़ीम की जगह बादशाही करने लगा।
וְלֹ֥א שָׁמַ֛ע ה֥וּא וַעֲבָדָ֖יו וְעַ֣ם הָאָ֑רֶץ אֶל־דִּבְרֵ֣י יְהוָ֔ה אֲשֶׁ֣ר דִּבֶּ֔ר בְּיַ֖ד יִרְמְיָ֥הוּ הַנָּבִֽיא׃ | 2 |
लेकिन न उसने, न उसके मुलाज़िमों ने, न मुल्क के लोगों ने ख़ुदावन्द की वह बातें सुनीं, जो उसने यरमियाह नबी के ज़रिए' फ़रमाई थीं।
וַיִּשְׁלַח֩ הַמֶּ֨לֶךְ צִדְקִיָּ֜הוּ אֶת־יְהוּכַ֣ל בֶּן־שֶֽׁלֶמְיָ֗ה וְאֶת־צְפַנְיָ֤הוּ בֶן־מַֽעֲשֵׂיָה֙ הַכֹּהֵ֔ן אֶל־יִרְמְיָ֥הוּ הַנָּבִ֖יא לֵאמֹ֑ר הִתְפַּלֶּל־נָ֣א בַעֲדֵ֔נוּ אֶל־יְהוָ֖ה אֱלֹהֵֽינוּ׃ | 3 |
और सिदक़ियाह बादशाह ने यहूकल — बिन सलमियाह और सफ़नियाह — बिन — मासियाह काहिन के ज़रिए' यरमियाह नबी को कहला भेजा कि अब हमारे लिए ख़ुदावन्द हमारे ख़ुदा से दुआ कर।
וְיִרְמְיָ֕הוּ בָּ֥א וְיֹצֵ֖א בְּתֹ֣וךְ הָעָ֑ם וְלֹֽא־נָתְנ֥וּ אֹתֹ֖ו בֵּ֥ית הַכְּלִיא (הַכְּלֽוּא)׃ | 4 |
हुनूज़ यरमियाह लोगों के बीच आया जाया करता था, क्यूँकि उन्होंने अभी उसे क़ैदख़ाने में नहीं डाला था।
וְחֵ֥יל פַּרְעֹ֖ה יָצָ֣א מִמִּצְרָ֑יִם וַיִּשְׁמְע֨וּ הַכַּשְׂדִּ֜ים הַצָּרִ֤ים עַל־יְרוּשָׁלַ֙͏ִם֙ אֶת־שִׁמְעָ֔ם וַיֵּ֣עָל֔וּ מֵעַ֖ל יְרוּשָׁלָֽ͏ִם׃ פ | 5 |
इस वक़्त फ़िर'औन की फ़ौज ने मिस्र से चढ़ाई की; और जब कसदियों ने जो येरूशलेम का घिराव किए थे इसकी शोहरत सुनी, तो वहाँ से चले गए।
וַֽיְהִי֙ דְּבַר־יְהוָ֔ה אֶל־יִרְמְיָ֥הוּ הַנָּבִ֖יא לֵאמֹֽר׃ | 6 |
तब ख़ुदावन्द का यह कलाम यरमियाह नबी पर नाज़िल हुआ:
כֹּֽה־אָמַ֤ר יְהוָה֙ אֱלֹהֵ֣י יִשְׂרָאֵ֔ל כֹּ֚ה תֹֽאמְרוּ֙ אֶל־מֶ֣לֶךְ יְהוּדָ֔ה הַשֹּׁלֵ֧חַ אֶתְכֶ֛ם אֵלַ֖י לְדָרְשֵׁ֑נִי הִנֵּ֣ה ׀ חֵ֣יל פַּרְעֹ֗ה הַיֹּצֵ֤א לָכֶם֙ לְעֶזְרָ֔ה שָׁ֥ב לְאַרְצֹ֖ו מִצְרָֽיִם׃ | 7 |
कि ख़ुदावन्द, इस्राईल का ख़ुदा, यूँ फ़रमाता है कि: तुम शाह — ए — यहूदाह से जिसने तुम को मेरी तरफ़ भेजा कि मुझसे दरियाफ़्त करो, यूँ कहना कि देख, फ़िर'औन की फ़ौज जो तुम्हारी मदद को निकली है, अपने मुल्क — ए — मिस्र को लौट जाएगी।
וְשָׁ֙בוּ֙ הַכַּשְׂדִּ֔ים וְנִלְחֲמ֖וּ עַל־הָעִ֣יר הַזֹּ֑את וּלְכָדֻ֖הָ וּשְׂרָפֻ֥הָ בָאֵֽשׁ׃ ס | 8 |
और कसदी वापस आकर इस शहर से लड़ेंगे, और इसे फ़तह करके आग से जलाएँगे।
כֹּ֣ה ׀ אָמַ֣ר יְהוָ֗ה אַל־תַּשִּׁ֤אוּ נַפְשֹֽׁתֵיכֶם֙ לֵאמֹ֔ר הָלֹ֛ךְ יֵלְכ֥וּ מֵעָלֵ֖ינוּ הַכַּשְׂדִּ֑ים כִּי־לֹ֖א יֵלֵֽכוּ׃ | 9 |
ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि: तुम यह कह कर अपने आपको फ़रेब न दो, कसदी ज़रूर हमारे पास से चले जाएँगे, क्यूँकि वह न जाएँगे।
כִּ֣י אִם־הִכִּיתֶ֞ם כָּל־חֵ֤יל כַּשְׂדִּים֙ הַנִּלְחָמִ֣ים אִתְּכֶ֔ם וְנִ֨שְׁאֲרוּ בָ֔ם אֲנָשִׁ֖ים מְדֻקָּרִ֑ים אִ֤ישׁ בְּאָהֳלֹו֙ יָק֔וּמוּ וְשָֽׂרְפ֛וּ אֶת־הָעִ֥יר הַזֹּ֖את בָּאֵֽשׁ׃ | 10 |
और अगरचे तुम कसदियों की तमाम फ़ौज को जो तुम से लड़ती है, ऐसी शिकस्त देते कि उनमें से सिर्फ़ ज़ख़्मी बाक़ी रहते, तो भी वह सब अपने — अपने ख़ेमे से उठते और इस शहर को जला देते।
וְהָיָ֗ה בְּהֵֽעָלֹות֙ חֵ֣יל הַכַּשְׂדִּ֔ים מֵעַ֖ל יְרֽוּשָׁלָ֑͏ִם מִפְּנֵ֖י חֵ֥יל פַּרְעֹֽה׃ ס | 11 |
और जब कसदियों की फ़ौज फ़िर'औन की फ़ौज के डर से येरूशलेम के सामने से रवाना हो गई,
וַיֵּצֵ֤א יִרְמְיָ֙הוּ֙ מִיר֣וּשָׁלַ֔͏ִם לָלֶ֖כֶת אֶ֣רֶץ בִּנְיָמִ֑ן לַחֲלִ֥ק מִשָּׁ֖ם בְּתֹ֥וךְ הָעָֽם׃ | 12 |
तो यरमियाह येरूशलेम से निकला कि बिनयमीन के 'इलाक़े में जाकर वहाँ लोगों के बीच अपना हिस्सा ले।
וַיְהִי־ה֞וּא בְּשַׁ֣עַר בִּנְיָמִ֗ן וְשָׁם֙ בַּ֣עַל פְּקִדֻ֔ת וּשְׁמֹו֙ יִרְאִיָּ֔יה בֶּן־שֶֽׁלֶמְיָ֖ה בֶּן־חֲנַנְיָ֑ה וַיִּתְפֹּ֞שׂ אֶֽת־יִרְמְיָ֤הוּ הַנָּבִיא֙ לֵאמֹ֔ר אֶל־הַכַּשְׂדִּ֖ים אַתָּ֥ה נֹפֵֽל׃ | 13 |
और जब वह बिनयमीन के फाटक पर पहुँचा, तो वहाँ पहरेवालों का दारोग़ा था, जिसका नाम इर्रियाह — बिन — सलमियाह — बिन — हननियाह था, और उसने यरमियाह नबी को पकड़ा और कहा तू क़सदियों की तरफ़ भागा जाता है।
וַיֹּ֨אמֶר יִרְמְיָ֜הוּ שֶׁ֗קֶר אֵינֶ֤נִּי נֹפֵל֙ עַל־הַכַּשְׂדִּ֔ים וְלֹ֥א שָׁמַ֖ע אֵלָ֑יו וַיִּתְפֹּ֤שׂ יִרְאִיָּיה֙ בְּיִרְמְיָ֔הוּ וַיְבִאֵ֖הוּ אֶל־הַשָּׂרִֽים׃ | 14 |
तब यरमियाह ने कहा, यह झूट है; मैं कसदियों की तरफ़ भागा नहीं जाता हूँ, लेकिन उसने उसकी एक न सुनी; तब इर्रियाह यरमियाह को पकड़ कर हाकिम के पास लाया।
וַיִּקְצְפ֧וּ הַשָּׂרִ֛ים עַֽל־יִרְמְיָ֖הוּ וְהִכּ֣וּ אֹתֹ֑ו וְנָתְנ֨וּ אֹותֹ֜ו בֵּ֣ית הָאֵס֗וּר בֵּ֚ית יְהֹונָתָ֣ן הַסֹּפֵ֔ר כִּֽי־אֹתֹ֥ו עָשׂ֖וּ לְבֵ֥ית הַכֶּֽלֶא׃ | 15 |
और हाकिम यरमियाह पर ग़ज़बनाक हुए और उसे मारा, और यूनतन मुन्शी के घर में उसे क़ैद किया; क्यूँकि उन्होंने उस घर को क़ैदख़ाना बना रख्खा था।
כִּ֣י בָ֧א יִרְמְיָ֛הוּ אֶל־בֵּ֥ית הַבֹּ֖ור וְאֶל־הַֽחֲנֻ֑יֹות וַיֵּֽשֶׁב־שָׁ֥ם יִרְמְיָ֖הוּ יָמִ֥ים רַבִּֽים׃ פ | 16 |
जब यरमियाह क़ैदख़ाने में और उसके तहख़ानों में दाख़िल होकर बहुत दिनों तक वहाँ रह चुका;
וַיִּשְׁלַח֩ הַמֶּ֨לֶךְ צִדְקִיָּ֜הוּ וַיִּקָּחֵ֗הוּ וַיִּשְׁאָלֵ֨הוּ הַמֶּ֤לֶךְ בְּבֵיתֹו֙ בַּסֵּ֔תֶר וַיֹּ֕אמֶר הֲיֵ֥שׁ דָּבָ֖ר מֵאֵ֣ת יְהוָ֑ה וַיֹּ֤אמֶר יִרְמְיָ֙הוּ֙ יֵ֔שׁ וַיֹּ֕אמֶר בְּיַ֥ד מֶֽלֶךְ־בָּבֶ֖ל תִּנָּתֵֽן׃ ס | 17 |
तो सिदक़ियाह बादशाह ने आदमी भेजकर उसे निकलवाया, और अपने महल में उससे ख़ुफ़िया तौर से दरियाफ़्त किया कि “क्या ख़ुदावन्द की तरफ़ से कोई कलाम है?” और यरमियाह ने कहा है कि “क्यूँकि उसने फ़रमाया है कि तू शाह — ए — बाबुल के हवाले किया जाएगा।”
וַיֹּ֣אמֶר יִרְמְיָ֔הוּ אֶל־הַמֶּ֖לֶךְ צִדְקִיָּ֑הוּ מֶה֩ חָטָ֨אתִֽי לְךָ֤ וְלַעֲבָדֶ֙יךָ֙ וְלָעָ֣ם הַזֶּ֔ה כִּֽי־נְתַתֶּ֥ם אֹותִ֖י אֶל־בֵּ֥ית הַכֶּֽלֶא׃ | 18 |
और यरमियाह ने सिदक़ियाह बादशाह से कहा, मैंने तेरा, और तेरे मुलाज़िमों का, और इन लोगों का क्या गुनाह किया है कि तुमने मुझे क़ैदख़ाने में डाला है?
וְאַיֹּו (וְאַיֵּה֙) נְבִ֣יאֵיכֶ֔ם אֲשֶׁר־נִבְּא֥וּ לָכֶ֖ם לֵאמֹ֑ר לֹֽא־יָבֹ֤א מֶֽלֶךְ־בָּבֶל֙ עֲלֵיכֶ֔ם וְעַ֖ל הָאָ֥רֶץ הַזֹּֽאת׃ | 19 |
अब तुम्हारे नबी कहाँ हैं, जो तुम से नबुव्वत करते और कहते थे, 'शाह — ए — बाबुल तुम पर और इस मुल्क पर चढ़ाई नहीं करेगा'?
וְעַתָּ֕ה שְֽׁמַֽע־נָ֖א אֲדֹנִ֣י הַמֶּ֑לֶךְ תִּפָּל־נָ֤א תְחִנָּתִי֙ לְפָנֶ֔יךָ וְאַל־תְּשִׁבֵ֗נִי בֵּ֚ית יְהֹונָתָ֣ן הַסֹּפֵ֔ר וְלֹ֥א אָמ֖וּת שָֽׁם׃ | 20 |
अब ऐ बादशाह, मेरे आक़ा मेरी सुन; मेरी दरख़्वास्त क़ुबूल फ़रमा और मुझे यूनतन मुन्शी के घर में वापस न भेज, ऐसा न हो कि मैं वहाँ मर जाऊँ।
וַיְצַוֶּ֞ה הַמֶּ֣לֶךְ צִדְקִיָּ֗הוּ וַיַּפְקִ֣דוּ אֶֽת־יִרְמְיָהוּ֮ בַּחֲצַ֣ר הַמַּטָּרָה֒ וְנָתֹן֩ לֹ֨ו כִכַּר־לֶ֤חֶם לַיֹּום֙ מִח֣וּץ הָאֹפִ֔ים עַד־תֹּ֥ם כָּל־הַלֶּ֖חֶם מִן־הָעִ֑יר וַיֵּ֣שֶׁב יִרְמְיָ֔הוּ בַּחֲצַ֖ר הַמַּטָּרָֽה׃ | 21 |
तब सिदक़ियाह बादशाह ने हुक्म दिया, और उन्होंने यरमियाह को क़ैदख़ाने के सहन में रख्खा; और हर रोज़ उसे नानबाइयों के महल्ले से एक रोटी ले कर देते रहे, जब तक कि शहर में रोटी मिल सकती थी। इसलिए यरमियाह क़ैदख़ाने के सहन में रहा।