< בְּרֵאשִׁית 2 >
וַיְכֻלּ֛וּ הַשָּׁמַ֥יִם וְהָאָ֖רֶץ וְכָל־צְבָאָֽם׃ | 1 |
इस प्रकार परमेश्वर ने आकाश और पृथ्वी के लिए सब कुछ बनाकर अपना काम पूरा किया.
וַיְכַ֤ל אֱלֹהִים֙ בַּיֹּ֣ום הַשְּׁבִיעִ֔י מְלַאכְתֹּ֖ו אֲשֶׁ֣ר עָשָׂ֑ה וַיִּשְׁבֹּת֙ בַּיֹּ֣ום הַשְּׁבִיעִ֔י מִכָּל־מְלַאכְתֹּ֖ו אֲשֶׁ֥ר עָשָֽׂה׃ | 2 |
सातवें दिन परमेश्वर ने अपना सब काम पूरा कर लिया था; जो उन्होंने शुरू किया था; अपने सभी कामों को पूरा करके सातवें दिन उन्होंने विश्राम किया.
וַיְבָ֤רֶךְ אֱלֹהִים֙ אֶת־יֹ֣ום הַשְּׁבִיעִ֔י וַיְקַדֵּ֖שׁ אֹתֹ֑ו כִּ֣י בֹ֤ו שָׁבַת֙ מִכָּל־מְלַאכְתֹּ֔ו אֲשֶׁר־בָּרָ֥א אֱלֹהִ֖ים לַעֲשֹֽׂות׃ פ | 3 |
परमेश्वर ने सातवें दिन को आशीष दी तथा उसे पवित्र ठहराया, क्योंकि यह वह दिन था, जब उन्होंने अपनी रचना, जिसकी उन्होंने सृष्टि की थी, पूरी करके विश्राम किया.
אֵ֣לֶּה תֹולְדֹ֧ות הַשָּׁמַ֛יִם וְהָאָ֖רֶץ בְּהִבָּֽרְאָ֑ם בְּיֹ֗ום עֲשֹׂ֛ות יְהוָ֥ה אֱלֹהִ֖ים אֶ֥רֶץ וְשָׁמָֽיִם׃ | 4 |
यही वर्णन है कि जिस प्रकार याहवेह परमेश्वर ने आकाश और पृथ्वी को बनाया.
וְכֹ֣ל ׀ שִׂ֣יחַ הַשָּׂדֶ֗ה טֶ֚רֶם יִֽהְיֶ֣ה בָאָ֔רֶץ וְכָל־עֵ֥שֶׂב הַשָּׂדֶ֖ה טֶ֣רֶם יִצְמָ֑ח כִּי֩ לֹ֨א הִמְטִ֜יר יְהוָ֤ה אֱלֹהִים֙ עַל־הָאָ֔רֶץ וְאָדָ֣ם אַ֔יִן לַֽעֲבֹ֖ד אֶת־הָֽאֲדָמָֽה׃ | 5 |
उस समय तक पृथ्वी में कोई हरियाली और कोई पौधा नहीं उगा था, क्योंकि तब तक याहवेह परमेश्वर ने पृथ्वी पर बारिश नहीं भेजी थी. और न खेती करने के लिए कोई मनुष्य था.
וְאֵ֖ד יַֽעֲלֶ֣ה מִן־הָאָ֑רֶץ וְהִשְׁקָ֖ה אֶֽת־כָּל־פְּנֵֽי־הָֽאֲדָמָֽה׃ | 6 |
भूमि से कोहरा उठता था जिससे सारी भूमि सींच जाती थी.
וַיִּיצֶר֩ יְהוָ֨ה אֱלֹהִ֜ים אֶת־הָֽאָדָ֗ם עָפָר֙ מִן־הָ֣אֲדָמָ֔ה וַיִּפַּ֥ח בְּאַפָּ֖יו נִשְׁמַ֣ת חַיִּ֑ים וַֽיְהִ֥י הָֽאָדָ֖ם לְנֶ֥פֶשׁ חַיָּֽה׃ | 7 |
फिर याहवेह परमेश्वर ने मिट्टी से मनुष्य को बनाया तथा उसके नाक में जीवन की सांस फूंक दिया. इस प्रकार मनुष्य जीवित प्राणी हो गया.
וַיִּטַּ֞ע יְהוָ֧ה אֱלֹהִ֛ים גַּן־בְּעֵ֖דֶן מִקֶּ֑דֶם וַיָּ֣שֶׂם שָׁ֔ם אֶת־הָֽאָדָ֖ם אֲשֶׁ֥ר יָצָֽר׃ | 8 |
याहवेह परमेश्वर ने पूर्व दिशा में एदेन नामक स्थान में एक बगीचा बनाया और उस बगीचे में मनुष्य को रखा.
וַיַּצְמַ֞ח יְהוָ֤ה אֱלֹהִים֙ מִן־הָ֣אֲדָמָ֔ה כָּל־עֵ֛ץ נֶחְמָ֥ד לְמַרְאֶ֖ה וְטֹ֣וב לְמַאֲכָ֑ל וְעֵ֤ץ הַֽחַיִּים֙ בְּתֹ֣וךְ הַגָּ֔ן וְעֵ֕ץ הַדַּ֖עַת טֹ֥וב וָרָֽע׃ | 9 |
याहवेह परमेश्वर ने सुंदर पेड़ और जिनके फल खाने में अच्छे हैं, उगाए और बगीचे के बीच में जीवन का पेड़ और भले या बुरे के ज्ञान के पेड़ भी लगाया.
וְנָהָר֙ יֹצֵ֣א מֵעֵ֔דֶן לְהַשְׁקֹ֖ות אֶת־הַגָּ֑ן וּמִשָּׁם֙ יִפָּרֵ֔ד וְהָיָ֖ה לְאַרְבָּעָ֥ה רָאשִֽׁים׃ | 10 |
एदेन से एक नदी बहती थी जो बगीचे को सींचा करती थी और वहां से नदी चार भागों में बंट गई.
שֵׁ֥ם הָֽאֶחָ֖ד פִּישֹׁ֑ון ה֣וּא הַסֹּבֵ֗ב אֵ֚ת כָּל־אֶ֣רֶץ הַֽחֲוִילָ֔ה אֲשֶׁר־שָׁ֖ם הַזָּהָֽב׃ | 11 |
पहली नदी का नाम पीशोन; जो बहती हुई हाविलाह देश में मिल गई, जहां सोना मिलता है.
וּֽזֲהַ֛ב הָאָ֥רֶץ הַהִ֖וא טֹ֑וב שָׁ֥ם הַבְּדֹ֖לַח וְאֶ֥בֶן הַשֹּֽׁהַם׃ | 12 |
(उस देश में अच्छा सोना है. मोती एवं सुलेमानी पत्थर भी वहां पाए जाते हैं.)
וְשֵֽׁם־הַנָּהָ֥ר הַשֵּׁנִ֖י גִּיחֹ֑ון ה֣וּא הַסֹּובֵ֔ב אֵ֖ת כָּל־אֶ֥רֶץ כּֽוּשׁ׃ | 13 |
दूसरी नदी का नाम गीहोन है. यह नदी कूश देश में जाकर मिलती है.
וְשֵׁ֨ם הַנָּהָ֤ר הַשְּׁלִישִׁי֙ חִדֶּ֔קֶל ה֥וּא הַֽהֹלֵ֖ךְ קִדְמַ֣ת אַשּׁ֑וּר וְהַנָּהָ֥ר הָֽרְבִיעִ֖י ה֥וּא פְרָֽת׃ | 14 |
तीसरी नदी का नाम हिद्देकेल है; यह अश्शूर के पूर्व में बहती है. चौथी नदी का नाम फरात है.
וַיִּקַּ֛ח יְהוָ֥ה אֱלֹהִ֖ים אֶת־הָֽאָדָ֑ם וַיַּנִּחֵ֣הוּ בְגַן־עֵ֔דֶן לְעָבְדָ֖הּ וּלְשָׁמְרָֽהּ׃ | 15 |
याहवेह परमेश्वर ने आदम को एदेन बगीचे में इस उद्देश्य से रखा कि वह उसमें खेती करे और उसकी रक्षा करे.
וַיְצַו֙ יְהוָ֣ה אֱלֹהִ֔ים עַל־הָֽאָדָ֖ם לֵאמֹ֑ר מִכֹּ֥ל עֵֽץ־הַגָּ֖ן אָכֹ֥ל תֹּאכֵֽל׃ | 16 |
याहवेह परमेश्वर ने मनुष्य से यह कहा, “तुम बगीचे के किसी भी पेड़ के फल खा सकते हो;
וּמֵעֵ֗ץ הַדַּ֙עַת֙ טֹ֣וב וָרָ֔ע לֹ֥א תֹאכַ֖ל מִמֶּ֑נּוּ כִּ֗י בְּיֹ֛ום אֲכָלְךָ֥ מִמֶּ֖נּוּ מֹ֥ות תָּמֽוּת׃ | 17 |
लेकिन भले या बुरे के ज्ञान का जो पेड़ है उसका फल तुम कभी न खाना, क्योंकि जिस दिन तुम इसमें से खाओगे, निश्चय तुम मर जाओगे.”
וַיֹּ֙אמֶר֙ יְהוָ֣ה אֱלֹהִ֔ים לֹא־טֹ֛וב הֱיֹ֥ות הָֽאָדָ֖ם לְבַדֹּ֑ו אֶֽעֱשֶׂהּ־לֹּ֥ו עֵ֖זֶר כְּנֶגְדֹּֽו׃ | 18 |
इसके बाद याहवेह परमेश्वर ने कहा, “आदम का अकेला रहना अच्छा नहीं है. मैं उसके लिए एक सुयोग्य साथी बनाऊंगा.”
וַיִּצֶר֩ יְהוָ֨ה אֱלֹהִ֜ים מִן־הָֽאֲדָמָ֗ה כָּל־חַיַּ֤ת הַשָּׂדֶה֙ וְאֵת֙ כָּל־עֹ֣וף הַשָּׁמַ֔יִם וַיָּבֵא֙ אֶל־הָ֣אָדָ֔ם לִרְאֹ֖ות מַה־יִּקְרָא־לֹ֑ו וְכֹל֩ אֲשֶׁ֨ר יִקְרָא־לֹ֧ו הָֽאָדָ֛ם נֶ֥פֶשׁ חַיָּ֖ה ה֥וּא שְׁמֹֽו׃ | 19 |
याहवेह परमेश्वर ने पृथ्वी में पशुओं तथा पक्षियों को बनाया और उन सभी को मनुष्य के पास ले आए, ताकि वह उनका नाम रखे; आदम ने जो भी नाम रखा, वही उस प्राणी का नाम हो गया.
וַיִּקְרָ֨א הָֽאָדָ֜ם שֵׁמֹ֗ות לְכָל־הַבְּהֵמָה֙ וּלְעֹ֣וף הַשָּׁמַ֔יִם וּלְכֹ֖ל חַיַּ֣ת הַשָּׂדֶ֑ה וּלְאָדָ֕ם לֹֽא־מָצָ֥א עֵ֖זֶר כְּנֶגְדֹּֽו׃ | 20 |
आदम ने सब जंतुओं का नाम रख दिया. किंतु आदम के लिए कोई साथी नहीं था, जो उसके साथ रह सके.
וַיַּפֵּל֩ יְהוָ֨ה אֱלֹהִ֧ים ׀ תַּרְדֵּמָ֛ה עַל־הָאָדָ֖ם וַיִּישָׁ֑ן וַיִּקַּ֗ח אַחַת֙ מִצַּלְעֹתָ֔יו וַיִּסְגֹּ֥ר בָּשָׂ֖ר תַּחְתֶּֽנָּה׃ | 21 |
इसलिये याहवेह परमेश्वर ने आदम को गहरी नींद में डाला; जब वह सो गया, याहवेह परमेश्वर ने उसकी एक पसली निकाली और उस जगह को मांस से भर दिया.
וַיִּבֶן֩ יְהוָ֨ה אֱלֹהִ֧ים ׀ אֶֽת־הַצֵּלָ֛ע אֲשֶׁר־לָקַ֥ח מִן־הָֽאָדָ֖ם לְאִשָּׁ֑ה וַיְבִאֶ֖הָ אֶל־הָֽאָדָֽם׃ | 22 |
फिर याहवेह परमेश्वर ने उस पसली से एक स्त्री बना दी और उसे आदम के पास ले गए.
וַיֹּאמֶר֮ הֽ͏ָאָדָם֒ זֹ֣את הַפַּ֗עַם עֶ֚צֶם מֵֽעֲצָמַ֔י וּבָשָׂ֖ר מִבְּשָׂרִ֑י לְזֹאת֙ יִקָּרֵ֣א אִשָּׁ֔ה כִּ֥י מֵאִ֖ישׁ לֻֽקֳחָה־זֹּֽאת׃ | 23 |
आदम ने कहा, “अब यह मेरी हड्डियों में की हड्डी और मेरे मांस में का मांस है; उसे ‘नारी’ नाम दिया जायेगा, क्योंकि यह ‘नर’ से निकाली गई थी.”
עַל־כֵּן֙ יֽ͏ַעֲזָב־אִ֔ישׁ אֶת־אָבִ֖יו וְאֶת־אִמֹּ֑ו וְדָבַ֣ק בְּאִשְׁתֹּ֔ו וְהָי֖וּ לְבָשָׂ֥ר אֶחָֽד׃ | 24 |
इस कारण पुरुष अपने माता-पिता को छोड़कर अपनी पत्नी से मिला रहेगा तथा वे दोनों एक देह होंगे.
וַיִּֽהְי֤וּ שְׁנֵיהֶם֙ עֲרוּמִּ֔ים הָֽאָדָ֖ם וְאִשְׁתֹּ֑ו וְלֹ֖א יִתְבֹּשָֽׁשׁוּ׃ | 25 |
आदम एवं उसकी पत्नी नग्न तो थे पर लजाते न थे.