< דְּבָרִים 32 >
הַאֲזִ֥ינוּ הַשָּׁמַ֖יִם וַאֲדַבֵּ֑רָה וְתִשְׁמַ֥ע הָאָ֖רֶץ אִמְרֵי־פִֽי׃ | 1 |
कान लगाओ, ऐ आसमानो, और मैं बोलूँगा; और ज़मीन मेरे मुँह की बातें सुने।
יַעֲרֹ֤ף כַּמָּטָר֙ לִקְחִ֔י תִּזַּ֥ל כַּטַּ֖ל אִמְרָתִ֑י כִּשְׂעִירִ֣ם עֲלֵי־דֶ֔שֶׁא וְכִרְבִיבִ֖ים עֲלֵי־עֵֽשֶׂב׃ | 2 |
मेरी ता'लीम मेंह की तरह बरसेगी, मेरी तक़रीर शबनम की तरह टपकेगी; जैसे नर्म घास पर फुआर पड़ती हो, और सब्ज़ी पर झड़ियाँ।
כִּ֛י שֵׁ֥ם יְהוָ֖ה אֶקְרָ֑א הָב֥וּ גֹ֖דֶל לֵאלֹהֵֽינוּ׃ | 3 |
क्यूँकि मैं ख़ुदावन्द के नाम का इश्तिहार दूँगा। तुम हमारे ख़ुदा की ता'ज़ीम करो।
הַצּוּר֙ תָּמִ֣ים פָּעֳלֹ֔ו כִּ֥י כָל־דְּרָכָ֖יו מִשְׁפָּ֑ט אֵ֤ל אֱמוּנָה֙ וְאֵ֣ין עָ֔וֶל צַדִּ֥יק וְיָשָׁ֖ר הֽוּא׃ | 4 |
“वह वही चट्टान है, उसकी सन'अत कामिल है; क्यूँकि उसकी सब राहें इन्साफ़ की हैं, वह वफ़ादार ख़ुदा, और बदी से मुबर्रा है, वह मुन्सिफ़ और बर — हक़ है।
שִׁחֵ֥ת לֹ֛ו לֹ֖א בָּנָ֣יו מוּמָ֑ם דֹּ֥ור עִקֵּ֖שׁ וּפְתַלְתֹּֽל׃ | 5 |
यह लोग उसके साथ बुरी तरह से पेश आए, यह उसके फ़र्ज़न्द नहीं। यह उनका 'ऐब है, यह सब कजरौ और टेढ़ी नसल हैं।
הֲ־לַיְהוָה֙ תִּגְמְלוּ־זֹ֔את עַ֥ם נָבָ֖ל וְלֹ֣א חָכָ֑ם הֲלֹוא־הוּא֙ אָבִ֣יךָ קָּנֶ֔ךָ ה֥וּא עָֽשְׂךָ֖ וַֽיְכֹנְנֶֽךָ׃ | 6 |
क्या तुम ऐ बेवक़ूफ़ और कम'अक़्ल लोगों, इस तरह ख़ुदावन्द को बदला दोगे? क्या वह तुम्हारा बाप नहीं, जिसने तुमको ख़रीदा है? उस ही ने तुमको बनाया और क़याम बख़्शा।
זְכֹר֙ יְמֹ֣ות עֹולָ֔ם בִּ֖ינוּ שְׁנֹ֣ות דֹּור־וָדֹ֑ור שְׁאַ֤ל אָבִ֙יךָ֙ וְיַגֵּ֔דְךָ זְקֵנֶ֖יךָ וְיֹ֥אמְרוּ לָֽךְ׃ | 7 |
क़दीम दिनों को याद करो, नसल दर नसल के बरसों पर ग़ौर करो; अपने बाप से पूछो, वह तुमको बताएगा; बुज़ुर्गों से सवाल करो, वह तुमसे बयान करेंगे।
בְּהַנְחֵ֤ל עֶלְיֹון֙ גֹּויִ֔ם בְּהַפְרִידֹ֖ו בְּנֵ֣י אָדָ֑ם יַצֵּב֙ גְּבֻלֹ֣ת עַמִּ֔ים לְמִסְפַּ֖ר בְּנֵ֥י יִשְׂרָאֵֽל׃ | 8 |
जब हक़ त'आला ने क़ौमों को मीरास बाँटी, और बनी आदम को जुदा — जुदा किया, तो उसने क़ौमों की सरहदें, बनी इस्राईल के शुमार के मुताबिक़ ठहराईं।
כִּ֛י חֵ֥לֶק יְהֹוָ֖ה עַמֹּ֑ו יַעֲקֹ֖ב חֶ֥בֶל נַחֲלָתֹֽו׃ | 9 |
क्यूँकि ख़ुदावन्द का हिस्सा उसी के लोग हैं। या'क़ूब उसकी मीरास का हिस्सा है।
יִמְצָאֵ֙הוּ֙ בְּאֶ֣רֶץ מִדְבָּ֔ר וּבְתֹ֖הוּ יְלֵ֣ל יְשִׁמֹ֑ן יְסֹֽבְבֶ֙נְהוּ֙ יְבֹ֣ונְנֵ֔הוּ יִצְּרֶ֖נְהוּ כְּאִישֹׁ֥ון עֵינֹֽו׃ | 10 |
वह ख़ुदावन्द को वीराने और सूने ख़तरनाक वीराने में मिला; ख़ुदावन्द उसके चारों तरफ़ रहा, उसने उसकी ख़बर ली, और उसे अपनी आँख की पुतली की तरह रख्खा।
כְּנֶ֙שֶׁר֙ יָעִ֣יר קִנֹּ֔ו עַל־גֹּוזָלָ֖יו יְרַחֵ֑ף יִפְרֹ֤שׂ כְּנָפָיו֙ יִקָּחֵ֔הוּ יִשָּׂאֵ֖הוּ עַל־אֶבְרָתֹֽו׃ | 11 |
जैसे 'उक़ाब अपने घोंसले को हिला हिलाकर अपने बच्चों पर मण्डलाता है, वैसे ही उसने अपने बाज़ूओं को फैलाया, और उनको लेकर अपने परों पर उठा लिया।
יְהוָ֖ה בָּדָ֣ד יַנְחֶ֑נּוּ וְאֵ֥ין עִמֹּ֖ו אֵ֥ל נֵכָֽר׃ | 12 |
सिर्फ़ ख़ुदावन्द ही ने उनकी रहबरी की, और उसके साथ कोई अजनबी मा'बूद न था।
יַרְכִּבֵ֙הוּ֙ עַל־בָּמֹותֵי (בָּ֣מֳתֵי) אָ֔רֶץ וַיֹּאכַ֖ל תְּנוּבֹ֣ת שָׂדָ֑י וַיֵּנִקֵ֤הֽוּ דְבַשׁ֙ מִסֶּ֔לַע וְשֶׁ֖מֶן מֵחַלְמִ֥ישׁ צֽוּר׃ | 13 |
उसने उसे ज़मीन की ऊँची — ऊँची जगहों पर सवार कराया, और उसने खेत की पैदावार खाई; उसने उसे चट्टान में से शहद, और मुश्किल जगह में से तेल चुसाया।
חֶמְאַ֨ת בָּקָ֜ר וַחֲלֵ֣ב צֹ֗אן עִם־חֵ֨לֶב כָּרִ֜ים וְאֵילִ֤ים בְּנֵֽי־בָשָׁן֙ וְעַתּוּדִ֔ים עִם־חֵ֖לֶב כִּלְיֹ֣ות חִטָּ֑ה וְדַם־עֵנָ֖ב תִּשְׁתֶּה־חָֽמֶר׃ | 14 |
और गायों का मक्खन और भेड़ — बकरियों का दूध और बर्रों की चर्बी, और बसनी नसल के मेंढे और बकरे, और ख़ालिस गेंहू का आटा भी; और तू अंगूर के ख़ालिस रस की मय पिया करता था।
וַיִּשְׁמַ֤ן יְשֻׁרוּן֙ וַיִּבְעָ֔ט שָׁמַ֖נְתָּ עָבִ֣יתָ כָּשִׂ֑יתָ וַיִּטֹּשׁ֙ אֱלֹ֣והַ עָשָׂ֔הוּ וַיְנַבֵּ֖ל צ֥וּר יְשֻׁעָתֹֽו׃ | 15 |
लेकिन यसूरून मोटा हो कर लातें मारने लगा; तू मोटा हो कर सुस्त हो गया है, और तुझ पर चर्बी छा गई है; तब उसने ख़ुदा को जिसने उसे बनाया छोड़ दिया, और अपनी नजात की चट्टान की हिक़ारत की।
יַקְנִאֻ֖הוּ בְּזָרִ֑ים בְּתֹועֵבֹ֖ת יַכְעִיסֻֽהוּ׃ | 16 |
उन्होंने अजनबी मा'बूदों के ज़रिए' उसे ग़ैरत, और मकरूहात से उसे ग़ुस्सा दिलाया।
יִזְבְּח֗וּ לַשֵּׁדִים֙ לֹ֣א אֱלֹ֔הַ אֱלֹהִ֖ים לֹ֣א יְדָע֑וּם חֲדָשִׁים֙ מִקָּרֹ֣ב בָּ֔אוּ לֹ֥א שְׂעָר֖וּם אֲבֹתֵיכֶֽם׃ | 17 |
उन्होंने जिन्नात के लिए जो ख़ुदा न थे, बल्कि ऐसे मा'बूदों के लिए जिनसे वह वाक़िफ़ न थे, या'नी नये — नये मा'बूदों के लिए जो हाल ही में ज़ाहिर हुए थे, जिनसे उनके बाप दादा कभी डरे नहीं क़ुर्बानी की।
צ֥וּר יְלָדְךָ֖ תֶּ֑שִׁי וַתִּשְׁכַּ֖ח אֵ֥ל מְחֹלְלֶֽךָ׃ | 18 |
तू उस चट्टान से ग़ाफ़िल हो गया, जिसने तुझे पैदा किया था; तू ख़ुदा को भूल गया, जिसने तुझे पैदा किया।
וַיַּ֥רְא יְהוָ֖ה וַיִּנְאָ֑ץ מִכַּ֥עַס בָּנָ֖יו וּבְנֹתָֽיו׃ | 19 |
“ख़ुदावन्द ने यह देख कर उनसे नफ़रत की, क्यूँकि उसके बेटों और बेटियों ने उसे ग़ुस्सा दिलाया।
וַיֹּ֗אמֶר אַסְתִּ֤ירָה פָנַי֙ מֵהֶ֔ם אֶרְאֶ֖ה מָ֣ה אַחֲרִיתָ֑ם כִּ֣י דֹ֤ור תַּהְפֻּכֹת֙ הֵ֔מָּה בָּנִ֖ים לֹא־אֵמֻ֥ן בָּֽם׃ | 20 |
तब उसने कहा, 'मैं अपना मुँह उनसे छिपा लूँगा, और देखूँगा कि उनका अन्जाम कैसा होगा; क्यूँकि वह बाग़ी नसल और बेवफ़ा औलाद हैं।
הֵ֚ם קִנְא֣וּנִי בְלֹא־אֵ֔ל כִּעֲס֖וּנִי בְּהַבְלֵיהֶ֑ם וַאֲנִי֙ אַקְנִיאֵ֣ם בְּלֹא־עָ֔ם בְּגֹ֥וי נָבָ֖ל אַכְעִיסֵֽם׃ | 21 |
उन्होंने उस चीज़ के ज़रिए' जो ख़ुदा नहीं, मुझे ग़ैरत और अपनी बातिल बातों से मुझे ग़ुस्सा दिलाया; इसलिए मैं भी उनके ज़रिए' से जो कोई उम्मत नहीं उनको ग़ैरत और एक नादान क़ौम के ज़रिए' से उनको ग़ुस्सा दिलाऊँगा।
כִּי־אֵשׁ֙ קָדְחָ֣ה בְאַפִּ֔י וַתִּיקַ֖ד עַד־שְׁאֹ֣ול תַּחְתִּ֑ית וַתֹּ֤אכַל אֶ֙רֶץ֙ וִֽיבֻלָ֔הּ וַתְּלַהֵ֖ט מֹוסְדֵ֥י הָרִֽים׃ (Sheol ) | 22 |
इसलिए कि मेरे ग़ुस्से के मारे आग भड़क उठी है, जो पाताल की तह तक जलती जाएगी, और ज़मीन को उसकी पैदावार समेत भसम कर देगी, और पहाड़ों की बुनियादों में आग लगा देगी। (Sheol )
אַסְפֶּ֥ה עָלֵ֖ימֹו רָעֹ֑ות חִצַּ֖י אֲכַלֶּה־בָּֽם׃ | 23 |
'मैं उन पर आफ़तों का ढेर लगाऊँगा, और अपने तीरों को उन पर ख़त्म करूँगा।
מְזֵ֥י רָעָ֛ב וּלְחֻ֥מֵי רֶ֖שֶׁף וְקֶ֣טֶב מְרִירִ֑י וְשֶׁן־בְּהֵמֹות֙ אֲשַׁלַּח־בָּ֔ם עִם־חֲמַ֖ת זֹחֲלֵ֥י עָפָֽר׃ | 24 |
वह भूक के मारे घुल जाएँगे, और शदीद हरारत और सख़्त हलाकत का लुक़्मा हो जाएँगे; और मैं उन पर दरिन्दों के दाँत और ज़मीन पर के सरकने वाले कीड़ों का ज़हर छोड़ दूँगा।
מִחוּץ֙ תְּשַׁכֶּל־חֶ֔רֶב וּמֵחֲדָרִ֖ים אֵימָ֑ה גַּם־בָּחוּר֙ גַּם־בְּתוּלָ֔ה יֹונֵ֖ק עִם־אִ֥ישׁ שֵׂיבָֽה׃ | 25 |
बाहर वह तलवार से मरेंगे, और कोठरियों के अन्दर ख़ौफ़ से, जवान मर्द और कुँवारियों, दूध पीते बच्चे और पक्के बाल वाले सब यूँ ही हलाक होंगे।
אָמַ֖רְתִּי אַפְאֵיהֶ֑ם אַשְׁבִּ֥יתָה מֵאֱנֹ֖ושׁ זִכְרָֽם׃ | 26 |
मैंने कहा, मैं उनको दूर — दूर तितर — बितर करूँगा, और उनका तज़किरा नौ' — ए — बशर में से मिटा डालूँगा।
לוּלֵ֗י כַּ֤עַס אֹויֵב֙ אָג֔וּר פֶּֽן־יְנַכְּר֖וּ צָרֵ֑ימֹו פֶּן־יֹֽאמְרוּ֙ יָדֵ֣ינוּ רָ֔מָה וְלֹ֥א יְהוָ֖ה פָּעַ֥ל כָּל־זֹֽאת׃ | 27 |
लेकिन मुझे दुश्मन की छेड़ छाड़ का अन्देशा था, कि कहीं मुख़ालिफ़ उल्टा समझ कर, यूँ न कहने लगें, कि हमारे ही हाथ बाला हैं और यह सब ख़ुदावन्द से नहीं हुआ।”
כִּי־גֹ֛וי אֹבַ֥ד עֵצֹ֖ות הֵ֑מָּה וְאֵ֥ין בָּהֶ֖ם תְּבוּנָֽה׃ | 28 |
“वह एक ऐसी क़ौम हैं जो मसलहत से ख़ाली हो उनमें कुछ समझ नहीं।
ל֥וּ חָכְמ֖וּ יַשְׂכִּ֣ילוּ זֹ֑את יָבִ֖ינוּ לְאַחֲרִיתָֽם׃ | 29 |
काश वह 'अक़्लमन्द होते कि इसको समझते, और अपनी 'आक़बत पर ग़ौर करते।
אֵיכָ֞ה יִרְדֹּ֤ף אֶחָד֙ אֶ֔לֶף וּשְׁנַ֖יִם יָנִ֣יסוּ רְבָבָ֑ה אִם־לֹא֙ כִּי־צוּרָ֣ם מְכָרָ֔ם וַֽיהוָ֖ה הִסְגִּירָֽם׃ | 30 |
क्यूँ कर एक आदमी हज़ार का पीछा करता, और दो आदमी दस हज़ार को भगा देते, अगर उनकी चट्टान ही उनको बेच न देती, और ख़ुदावन्द ही उनको हवाले न कर देता?
כִּ֛י לֹ֥א כְצוּרֵ֖נוּ צוּרָ֑ם וְאֹיְבֵ֖ינוּ פְּלִילִֽים׃ | 31 |
क्यूँकि उनकी चट्टान ऐसी नहीं जैसी हमारी चट्टान है, चाहे हमारे दुश्मन ही क्यूँ न मुन्सिफ़ हों।
כִּֽי־מִגֶּ֤פֶן סְדֹם֙ גַּפְנָ֔ם וּמִשַּׁדְמֹ֖ת עֲמֹרָ֑ה עֲנָבֵ֙מֹו֙ עִנְּבֵי־רֹ֔ושׁ אַשְׁכְּלֹ֥ת מְרֹרֹ֖ת לָֽמֹו׃ | 32 |
क्यूँकि उनकी ताक सदूम की ताकों में से और 'अमूरा के खेतों की है; उनके अंगूर हलाहल के बने हुए हैं, और उनके गुच्छे कड़वे हैं।
חֲמַ֥ת תַּנִּינִ֖ם יֵינָ֑ם וְרֹ֥אשׁ פְּתָנִ֖ים אַכְזָֽר׃ | 33 |
उनकी मय अज़दहाओं का बिस, और काले नागों का ज़हर — ए — क़ातिल है
הֲלֹא־ה֖וּא כָּמֻ֣ס עִמָּדִ֑י חָתֻ֖ם בְּאֹוצְרֹתָֽי׃ | 34 |
क्या यह मेरे ख़ज़ानों में सर — ब — मुहर होकर भरा नहीं पड़ा है?
לִ֤י נָקָם֙ וְשִׁלֵּ֔ם לְעֵ֖ת תָּמ֣וּט רַגְלָ֑ם כִּ֤י קָרֹוב֙ יֹ֣ום אֵידָ֔ם וְחָ֖שׁ עֲתִדֹ֥ת לָֽמֹו׃ | 35 |
उस वक़्त जब उनके पाँव फिसलें, तो इन्तक़ाम लेना और बदला देना मेरा काम होगाः क्यूँकि उनकी आफ़त का दिन नज़दीक है, और जो हादिसे उन पर गुज़रने वाले हैं वह जल्द आएँगे।
כִּֽי־יָדִ֤ין יְהוָה֙ עַמֹּ֔ו וְעַל־עֲבָדָ֖יו יִתְנֶחָ֑ם כִּ֤י יִרְאֶה֙ כִּי־אָ֣זְלַת יָ֔ד וְאֶ֖פֶס עָצ֥וּר וְעָזֽוּב׃ | 36 |
क्यूँकि ख़ुदावन्द अपने लोगों का इन्साफ़ करेगा, और अपने बन्दों पर तरस खाएगा; जब वह देखेगा कि उनकी क़ुव्वत जाती रही, और कोई भी, न क़ैदी और न आज़ाद बाक़ी बचा।
וְאָמַ֖ר אֵ֣י אֱלֹהֵ֑ימֹו צ֖וּר חָסָ֥יוּ בֹֽו׃ | 37 |
और वह कहेगा, उन के मा'बूद कहाँ हैं? वह चट्टान कहाँ, जिस पर उनका भरोसा था;
אֲשֶׁ֨ר חֵ֤לֶב זְבָחֵ֙ימֹו֙ יֹאכֵ֔לוּ יִשְׁתּ֖וּ יֵ֣ין נְסִיכָ֑ם יָק֙וּמוּ֙ וְיַעְזְרֻכֶ֔ם יְהִ֥י עֲלֵיכֶ֖ם סִתְרָֽה׃ | 38 |
जो उनके क़ुर्बानियों की चर्बी खाते, और उनके तपावन की मय पीते थे? वही उठ कर तुम्हारी मदद करें, वही तुम्हारी पनाह हों।
רְא֣וּ ׀ עַתָּ֗ה כִּ֣י אֲנִ֤י אֲנִי֙ ה֔וּא וְאֵ֥ין אֱלֹהִ֖ים עִמָּדִ֑י אֲנִ֧י אָמִ֣ית וַאֲחַיֶּ֗ה מָחַ֙צְתִּי֙ וַאֲנִ֣י אֶרְפָּ֔א וְאֵ֥ין מִיָּדִ֖י מַצִּֽיל׃ | 39 |
'इसलिए अब तुम देख लो, कि मैं ही वह हूँ। और मेरे साथ कोई मा'बूद नहीं। मैं ही मार डालता और मैं ही जिलाता हूँ। मैं ही ज़ख़्मी करता और मैं ही चंगा करता हूँ, और कोई नहीं जो मेरे हाथ से छुड़ाए।
כִּֽי־אֶשָּׂ֥א אֶל־שָׁמַ֖יִם יָדִ֑י וְאָמַ֕רְתִּי חַ֥י אָנֹכִ֖י לְעֹלָֽם׃ | 40 |
क्यूँकि मैं अपना हाथ आसमान की तरफ़ उठाकर कहता हूँ, कि चूँकि मैं हमेशा हमेश ज़िन्दा हूँ,
אִם־שַׁנֹּותִי֙ בְּרַ֣ק חַרְבִּ֔י וְתֹאחֵ֥ז בְּמִשְׁפָּ֖ט יָדִ֑י אָשִׁ֤יב נָקָם֙ לְצָרָ֔י וְלִמְשַׂנְאַ֖י אֲשַׁלֵּֽם׃ | 41 |
इसलिए अगर मैं अपनी झलकती तलवार को, तेज़ करूँ, और 'अदालत को अपने हाथ में ले लूँ, तो अपने मुख़ालिफ़ों से इन्तक़ाम लूँगा, और अपने कीना रखने वालों को बदला दूँगा।
אַשְׁכִּ֤יר חִצַּי֙ מִדָּ֔ם וְחַרְבִּ֖י תֹּאכַ֣ל בָּשָׂ֑ר מִדַּ֤ם חָלָל֙ וְשִׁבְיָ֔ה מֵרֹ֖אשׁ פַּרְעֹ֥ות אֹויֵֽב׃ | 42 |
मैं अपने तीरों को ख़ून पिला — पिलाकर मस्त कर दूंगा, और मेरी तलवार गोश्त खाएगी — वह ख़ून मक़्तूलों और ग़ुलामों का, और वह गोश्त दुश्मन के सरदारों के सिर का होगा।
הַרְנִ֤ינוּ גֹויִם֙ עַמֹּ֔ו כִּ֥י דַם־עֲבָדָ֖יו יִקֹּ֑ום וְנָקָם֙ יָשִׁ֣יב לְצָרָ֔יו וְכִפֶּ֥ר אַדְמָתֹ֖ו עַמֹּֽו׃ פ | 43 |
'ऐ क़ौमों, उसके लोगों के साथ ख़ुशी मनाओ क्यूँकि वह अपने बन्दों के ख़ून का बदला लेगा, और अपने मुख़ालिफ़ों को बदला देगा, और अपने मुल्क और लोगों के लिए कफ़्फ़ारा देगा।”
וַיָּבֹ֣א מֹשֶׁ֗ה וַיְדַבֵּ֛ר אֶת־כָּל־דִּבְרֵ֥י הַשִּׁירָֽה־הַזֹּ֖את בְּאָזְנֵ֣י הָעָ֑ם ה֖וּא וְהֹושֵׁ֥עַ בִּן־נֽוּן׃ | 44 |
तब मूसा और नून के बेटे होसे'अ ने आ कर इस गीत की सारी बातें लोगों को कह सुनाईं।
וַיְכַ֣ל מֹשֶׁ֗ה לְדַבֵּ֛ר אֶת־כָּל־הַדְּבָרִ֥ים הָאֵ֖לֶּה אֶל־כָּל־יִשְׂרָאֵֽל׃ | 45 |
और जब मूसा यह सब बातें सब इस्राईलियों को सुना चुका,
וַיֹּ֤אמֶר אֲלֵהֶם֙ שִׂ֣ימוּ לְבַבְכֶ֔ם לְכָל־הַדְּבָרִ֔ים אֲשֶׁ֧ר אָנֹכִ֛י מֵעִ֥יד בָּכֶ֖ם הַיֹּ֑ום אֲשֶׁ֤ר תְּצַוֻּם֙ אֶת־בְּנֵיכֶ֔ם לִשְׁמֹ֣ר לַעֲשֹׂ֔ות אֶת־כָּל־דִּבְרֵ֖י הַתֹּורָ֥ה הַזֹּֽאת׃ | 46 |
तो उसने उनसे कहा, “जो बातें मैंने तुमसे आज के दिन बयान की हैं, उन सब से तुम दिल लगाना और अपने लड़कों को हुक्म देना कि वह एहतियात रखकर इस शरी'अत की सब बातों पर 'अमल करें।
כִּ֠י לֹֽא־דָבָ֨ר רֵ֥ק הוּא֙ מִכֶּ֔ם כִּי־ה֖וּא חַיֵּיכֶ֑ם וּבַדָּבָ֣ר הַזֶּ֗ה תַּאֲרִ֤יכוּ יָמִים֙ עַל־הָ֣אֲדָמָ֔ה אֲשֶׁ֨ר אַתֶּ֜ם עֹבְרִ֧ים אֶת־הַיַּרְדֵּ֛ן שָׁ֖מָּה לְרִשְׁתָּֽהּ׃ פ | 47 |
क्यूँकि यह तुम्हारे लिए कोई बे फ़ायदा बात नहीं, बल्कि यह तुम्हारी ज़िन्दगानी है; और इसी से उस मुल्क में, जहाँ तुम यरदन पार जा रहे हो कि उस पर क़ब्ज़ा करो, तुम्हारी 'उम्र दराज़ होगी।”
וַיְדַבֵּ֤ר יְהוָה֙ אֶל־מֹשֶׁ֔ה בְּעֶ֛צֶם הַיֹּ֥ום הַזֶּ֖ה לֵאמֹֽר׃ | 48 |
और उसी दिन ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा कि,
עֲלֵ֡ה אֶל־הַר֩ הָעֲבָרִ֨ים הַזֶּ֜ה הַר־נְבֹ֗ו אֲשֶׁר֙ בְּאֶ֣רֶץ מֹואָ֔ב אֲשֶׁ֖ר עַל־פְּנֵ֣י יְרֵחֹ֑ו וּרְאֵה֙ אֶת־אֶ֣רֶץ כְּנַ֔עַן אֲשֶׁ֨ר אֲנִ֥י נֹתֵ֛ן לִבְנֵ֥י יִשְׂרָאֵ֖ל לַאֲחֻזָּֽה׃ | 49 |
“तू इस कोह — ए — 'अबारीम पर चढ़ कर नबू की चोटी को जा, जो यरीहू के सामने मुल्क — ए — मोआब में है; और कनान के मुल्क की जिसे मैं मीरास के तौर पर बनी — इस्राईल को देता हूँ देख ले।
וּמֻ֗ת בָּהָר֙ אֲשֶׁ֤ר אַתָּה֙ עֹלֶ֣ה שָׁ֔מָּה וְהֵאָסֵ֖ף אֶל־עַמֶּ֑יךָ כּֽ͏ַאֲשֶׁר־מֵ֞ת אַהֲרֹ֤ן אָחִ֙יךָ֙ בְּהֹ֣ר הָהָ֔ר וַיֵּאָ֖סֶף אֶל־עַמָּֽיו׃ | 50 |
और उसी पहाड़ पर जहाँ तू जाए वफ़ात पाकर अपने लोगों में शामिल हो, जैसे तेरा भाई हारून होर के पहाड़ पर मरा और अपने लोगों में जा मिला।
עַל֩ אֲשֶׁ֨ר מְעַלְתֶּ֜ם בִּ֗י בְּתֹוךְ֙ בְּנֵ֣י יִשְׂרָאֵ֔ל בְּמֵֽי־מְרִיבַ֥ת קָדֵ֖שׁ מִדְבַּר־צִ֑ן עַ֣ל אֲשֶׁ֤ר לֹֽא־קִדַּשְׁתֶּם֙ אֹותִ֔י בְּתֹ֖וךְ בְּנֵ֥י יִשְׂרָאֵֽל׃ | 51 |
इसलिए कि तुम दोनों ने बनी — इस्राईल के बीच सीन के जंगल के क़ादिस में मरीबा के चश्मे पर मेरा गुनाह किया, क्यूँकि तुमने बनी — इस्राईल के बीच मेरी बड़ाई न की।
כִּ֥י מִנֶּ֖גֶד תִּרְאֶ֣ה אֶת־הָאָ֑רֶץ וְשָׁ֙מָּה֙ לֹ֣א תָבֹ֔וא אֶל־הָאָ֕רֶץ אֲשֶׁר־אֲנִ֥י נֹתֵ֖ן לִבְנֵ֥י יִשְׂרָאֵֽל׃ פ | 52 |
इसलिए तू उस मुल्क को अपने आगे देख लेगा, लेकिन तू वहाँ उस मुल्क में जो मैं बनी — इस्राईल को देता हूँ जाने न पाएगा।”