< דְּבָרִים 11 >
וְאָ֣הַבְתָּ֔ אֵ֖ת יְהוָ֣ה אֱלֹהֶ֑יךָ וְשָׁמַרְתָּ֣ מִשְׁמַרְתֹּ֗ו וְחֻקֹּתָ֧יו וּמִשְׁפָּטָ֛יו וּמִצְוֹתָ֖יו כָּל־הַיָּמִֽים׃ | 1 |
इसलिये ज़रूरी है कि तुम याहवेह, अपने परमेश्वर से प्रेम करो और हमेशा उनके निर्देशों, नियमों, अध्यादेशों का और आदेशों का पालन करो.
וִֽידַעְתֶּם֮ הַיֹּום֒ כִּ֣י ׀ לֹ֣א אֶת־בְּנֵיכֶ֗ם אֲשֶׁ֤ר לֹֽא־יָדְעוּ֙ וַאֲשֶׁ֣ר לֹא־רָא֔וּ אֶת־מוּסַ֖ר יְהוָ֣ה אֱלֹהֵיכֶ֑ם אֶת־גָּדְלֹ֕ו אֶת־יָדֹו֙ הַחֲזָקָ֔ה וּזְרֹעֹ֖ו הַנְּטוּיָֽה׃ | 2 |
आज यह भी समझ लो: मैं तुम्हारी संतानों से बातें नहीं करता हूं, जिन्होंने न तो याहवेह, तुम्हारे परमेश्वर के अनुशासन-शिक्षण को समझा है, न उन्होंने इसे देखा है न उन्होंने याहवेह की महानता को: उनके शक्तिशाली हाथ को, न उनकी बढ़ाई हुई भुजा को;
וְאֶת־אֹֽתֹתָיו֙ וְאֶֽת־מַעֲשָׂ֔יו אֲשֶׁ֥ר עָשָׂ֖ה בְּתֹ֣וךְ מִצְרָ֑יִם לְפַרְעֹ֥ה מֶֽלֶךְ־מִצְרַ֖יִם וּלְכָל־אַרְצֹֽו׃ | 3 |
उनके द्वारा दिखाए गए चिन्ह, उनके द्वारा किए अद्धुत काम, जो उन्होंने मिस्र देश में मिस्र के राजा फ़रोह के और मिस्र की सारी प्रजा के सामने किए;
וַאֲשֶׁ֣ר עָשָׂה֩ לְחֵ֨יל מִצְרַ֜יִם לְסוּסָ֣יו וּלְרִכְבֹּ֗ו אֲשֶׁ֨ר הֵצִ֜יף אֶת־מֵ֤י יַם־סוּף֙ עַל־פְּנֵיהֶ֔ם בְּרָדְפָ֖ם אַחֲרֵיכֶ֑ם וַיְאַבְּדֵ֣ם יְהוָ֔ה עַ֖ד הַיֹּ֥ום הַזֶּֽה׃ | 4 |
मिस्र की सेना के साथ, उसके घोड़ों और रथों के साथ, जब वे तुम्हारा पीछा करते चले जा रहे थे, कैसे याहवेह ने उन्हें लाल सागर के जल में डुबोकर पूरी तरह से नाश कर डाला था.
וַאֲשֶׁ֥ר עָשָׂ֛ה לָכֶ֖ם בַּמִּדְבָּ֑ר עַד־בֹּאֲכֶ֖ם עַד־הַמָּקֹ֥ום הַזֶּֽה׃ | 5 |
और उन्होंने निर्जन प्रदेश में तुम्हारे साथ क्या-क्या किया था, जब तक तुम यहां न पहुंच गए,
וַאֲשֶׁ֨ר עָשָׂ֜ה לְדָתָ֣ן וְלַאֲבִירָ֗ם בְּנֵ֣י אֱלִיאָב֮ בֶּן־רְאוּבֵן֒ אֲשֶׁ֨ר פָּצְתָ֤ה הָאָ֙רֶץ֙ אֶת־פִּ֔יהָ וַתִּבְלָעֵ֥ם וְאֶת־בָּתֵּיהֶ֖ם וְאֶת־אָהֳלֵיהֶ֑ם וְאֵ֤ת כָּל־הַיְקוּם֙ אֲשֶׁ֣ר בְּרַגְלֵיהֶ֔ם בְּקֶ֖רֶב כָּל־יִשְׂרָאֵֽל׃ | 6 |
और याहवेह ने दाथान और अबीराम के साथ, जो एलियाब के पुत्र और रियूबेन के पोते थे, क्या किया था, जब धरती ने अपना मुख खोल उन्हें, सारे इस्राएल के बीच से, उनके घर-परिवारों को, उनके शिविरों को और उनके साथ आ रहे हर एक जीवधारी को कौर बना लिया.
כִּ֤י עֵֽינֵיכֶם֙ הָֽרֹאֹ֔ת אֶת־כָּל־מַעֲשֵׂ֥ה יְהוָ֖ה הַגָּדֹ֑ל אֲשֶׁ֖ר עָשָֽׂה׃ | 7 |
मगर तुम तो याहवेह द्वारा किए हर एक महान काम के गवाह हो.
וּשְׁמַרְתֶּם֙ אֶת־כָּל־הַמִּצְוָ֔ה אֲשֶׁ֛ר אָנֹכִ֥י מְצַוְּךָ֖ הַיֹּ֑ום לְמַ֣עַן תֶּחֶזְק֗וּ וּבָאתֶם֙ וִֽירִשְׁתֶּ֣ם אֶת־הָאָ֔רֶץ אֲשֶׁ֥ר אַתֶּ֛ם עֹבְרִ֥ים שָׁ֖מָּה לְרִשְׁתָּֽהּ׃ | 8 |
फिर तुम आज मेरे द्वारा भेजे हर एक आदेश का पालन करोगे, कि तुम मजबूत हो जाओ और आगे बढ़कर उस देश पर अधिकार कर सको, जिसे पार करने के बाद तुम उस पर अधिकार करने पर हो,
וּלְמַ֨עַן תַּאֲרִ֤יכוּ יָמִים֙ עַל־הָ֣אֲדָמָ֔ה אֲשֶׁר֩ נִשְׁבַּ֨ע יְהוָ֧ה לַאֲבֹתֵיכֶ֛ם לָתֵ֥ת לָהֶ֖ם וּלְזַרְעָ֑ם אֶ֛רֶץ זָבַ֥ת חָלָ֖ב וּדְבָֽשׁ׃ ס | 9 |
कि तुम उस देश में, जिसमें दूध और शहद की बहुतायत है, जिसे उन्हें और उनके वंशजों को देने की शपथ याहवेह ने तुम्हारे पूर्वजों से की थी, तुम लंबी उम्र के हो सको.
כִּ֣י הָאָ֗רֶץ אֲשֶׁ֨ר אַתָּ֤ה בָא־שָׁ֙מָּה֙ לְרִשְׁתָּ֔הּ לֹ֣א כְאֶ֤רֶץ מִצְרַ֙יִם֙ הִ֔וא אֲשֶׁ֥ר יְצָאתֶ֖ם מִשָּׁ֑ם אֲשֶׁ֤ר תִּזְרַע֙ אֶֽת־זַרְעֲךָ֔ וְהִשְׁקִ֥יתָ בְרַגְלְךָ֖ כְּגַ֥ן הַיָּרָֽק׃ | 10 |
क्योंकि जिस देश के अधिकार के लक्ष्य से तुम वहां प्रवेश करने पर हो, वह मिस्र देश समान नहीं है, तुम जहां से निकलकर यहां आ पहुंचे हो, जहां तुम बीज बोते और सब्जी के बगीचे के समान अपने पैरों का प्रयोग सिंचाई के लिए किया करते थे.
וְהָאָ֗רֶץ אֲשֶׁ֨ר אַתֶּ֜ם עֹבְרִ֥ים שָׁ֙מָּה֙ לְרִשְׁתָּ֔הּ אֶ֥רֶץ הָרִ֖ים וּבְקָעֹ֑ת לִמְטַ֥ר הַשָּׁמַ֖יִם תִּשְׁתֶּה־מָּֽיִם׃ | 11 |
वस्तुतः जिस देश पर अधिकार करने के उद्देश्य से तुम उसमें प्रवेश करने ही पर हो, वह पहाड़ियों और घाटियों का देश है, जो आकाश से हुई बारिश का जल जमा करता रहता है.
אֶ֕רֶץ אֲשֶׁר־יְהוָ֥ה אֱלֹהֶ֖יךָ דֹּרֵ֣שׁ אֹתָ֑הּ תָּמִ֗יד עֵינֵ֨י יְהוָ֤ה אֱלֹהֶ֙יךָ֙ בָּ֔הּ מֵֽרֵשִׁית֙ הַשָּׁנָ֔ה וְעַ֖ד אַחֲרִ֥ית שָׁנָֽה׃ ס | 12 |
यह एक ऐसा देश है, जिसकी देखभाल याहवेह, तुम्हारे परमेश्वर करते हैं; इस देश पर याहवेह, तुम्हारे परमेश्वर की दृष्टि सदैव लगी रहती है, साल के शुरू से लेकर साल के अंत होने तक.
וְהָיָ֗ה אִם־שָׁמֹ֤עַ תִּשְׁמְעוּ֙ אֶל־מִצְוֹתַ֔י אֲשֶׁ֧ר אָנֹכִ֛י מְצַוֶּ֥ה אֶתְכֶ֖ם הַיֹּ֑ום לְאַהֲבָ֞ה אֶת־יְהוָ֤ה אֱלֹֽהֵיכֶם֙ וּלְעָבְדֹ֔ו בְּכָל־לְבַבְכֶ֖ם וּבְכָל־נַפְשְׁכֶֽם׃ | 13 |
यह तय है कि यदि तुम मेरे द्वारा आज दिए जा रहे इन आदेशों का पालन करोगे, अर्थात् याहवेह अपने परमेश्वर से प्रेम करोगे, और उन्हीं की सेवा अपने पूरा हृदय और अपने पूरा प्राणों से करोगे,
וְנָתַתִּ֧י מְטַֽר־אַרְצְכֶ֛ם בְּעִתֹּ֖ו יֹורֶ֣ה וּמַלְקֹ֑ושׁ וְאָסַפְתָּ֣ דְגָנֶ֔ךָ וְתִֽירֹשְׁךָ֖ וְיִצְהָרֶֽךָ׃ | 14 |
तो वह उपयुक्त मौसम में तुम्हारी भूमि के लिए बारिश भेजेंगे, शुरुआती और अंतिम बारिश, ताकि तुम अपने अन्न, नई दाखमधु और अपना तेल इकट्ठा कर सको.
וְנָתַתִּ֛י עֵ֥שֶׂב בְּשָׂדְךָ֖ לִבְהֶמְתֶּ֑ךָ וְאָכַלְתָּ֖ וְשָׂבָֽעְתָּ׃ | 15 |
वह तुम्हारे पशुओं के लिए मैदानों में घास उत्पन्न करते रहेंगे. तुम भरपूर खाकर तृप्त हो जाओगे.
הִשָּֽׁמְר֣וּ לָכֶ֔ם פֶּ֥ן יִפְתֶּ֖ה לְבַבְכֶ֑ם וְסַרְתֶּ֗ם וַעֲבַדְתֶּם֙ אֱלֹהִ֣ים אֲחֵרִ֔ים וְהִשְׁתַּחֲוִיתֶ֖ם לָהֶֽם׃ | 16 |
यह ध्यान रहे कि तुम्हारे हृदय के साथ छल न कर दिया जाए, कि तुम पराए देवताओं की ओर होकर उनकी सेवा और उपासना न करने लगो.
וְחָרָ֨ה אַף־יְהוָ֜ה בָּכֶ֗ם וְעָצַ֤ר אֶת־הַשָּׁמַ֙יִם֙ וְלֹֽא־יִהְיֶ֣ה מָטָ֔ר וְהָ֣אֲדָמָ֔ה לֹ֥א תִתֵּ֖ן אֶת־יְבוּלָ֑הּ וַאֲבַדְתֶּ֣ם מְהֵרָ֗ה מֵעַל֙ הָאָ֣רֶץ הַטֹּבָ֔ה אֲשֶׁ֥ר יְהוָ֖ה נֹתֵ֥ן לָכֶֽם׃ | 17 |
नहीं तो याहवेह का कोप तुम पर भड़क उठेगा. तब वह आकाश को इस प्रकार रोक देंगे, कि बारिश के अभाव में भूमि अपनी उपज न दे सकेगी; फलस्वरूप तुम याहवेह द्वारा उत्तम देश से शीघ्र ही नाश हो जाओगे.
וְשַׂמְתֶּם֙ אֶת־דְּבָרַ֣י אֵ֔לֶּה עַל־לְבַבְכֶ֖ם וְעַֽל־נַפְשְׁכֶ֑ם וּקְשַׁרְתֶּ֨ם אֹתָ֤ם לְאֹות֙ עַל־יֶדְכֶ֔ם וְהָי֥וּ לְטֹוטָפֹ֖ת בֵּ֥ין עֵינֵיכֶֽם׃ | 18 |
तुम मेरे ये आदेश हृदय में रखोगे, अपनी आत्मा में उतार लोगे; तुम इन्हें अपने हाथ पर चिन्ह के रूप में बांध लोगे, ये तुम्हारे माथे पर टीका होंगे.
וְלִמַּדְתֶּ֥ם אֹתָ֛ם אֶת־בְּנֵיכֶ֖ם לְדַבֵּ֣ר בָּ֑ם בְּשִׁבְתְּךָ֤ בְּבֵיתֶ֙ךָ֙ וּבְלֶכְתְּךָ֣ בַדֶּ֔רֶךְ וּֽבְשָׁכְבְּךָ֖ וּבְקוּמֶֽךָ׃ | 19 |
तुम ये आदेश अपनी संतान को सिखाया करना. जब तुम अपने घर में बैठे हुए हो, तब तुम इनका उल्लेख करोगे, जब तुम मार्ग में आगे बढ़ रहे हो और जब तुम विश्राम के लिए लेटोगे या जब तुम नींद से उठोगे.
וּכְתַבְתָּ֛ם עַל־מְזוּזֹ֥ות בֵּיתֶ֖ךָ וּבִשְׁעָרֶֽיךָ׃ | 20 |
तुम उन्हें अपने घर की चौखटों पर और अपने द्वारों पर लिखोगे,
לְמַ֨עַן יִרְבּ֤וּ יְמֵיכֶם֙ וִימֵ֣י בְנֵיכֶ֔ם עַ֚ל הָֽאֲדָמָ֔ה אֲשֶׁ֨ר נִשְׁבַּ֧ע יְהוָ֛ה לַאֲבֹתֵיכֶ֖ם לָתֵ֣ת לָהֶ֑ם כִּימֵ֥י הַשָּׁמַ֖יִם עַל־הָאָֽרֶץ׃ ס | 21 |
कि उस देश में, जिसे देने की प्रतिज्ञा याहवेह ने शपथपूर्वक तुम्हारे पूर्वजों से की थी, आकाश और पृथ्वी के बने रहने तक तुम्हारी संतान गिनती में बढ़ती जाएं.
כִּי֩ אִם־שָׁמֹ֨ר תִּשְׁמְר֜וּן אֶת־כָּל־הַמִּצְוָ֣ה הַזֹּ֗את אֲשֶׁ֧ר אָנֹכִ֛י מְצַוֶּ֥ה אֶתְכֶ֖ם לַעֲשֹׂתָ֑הּ לְאַהֲבָ֞ה אֶת־יְהוָ֧ה אֱלֹהֵיכֶ֛ם לָלֶ֥כֶת בְּכָל־דְּרָכָ֖יו וּלְדָבְקָה־בֹֽו׃ | 22 |
क्योंकि यदि तुम बड़ी सच्चाई से आदेशों का पालन करते रहोगे, जो मैं तुम्हें पालन करने का आदेश दे रहा हूं—याहवेह, अपने परमेश्वर से प्रेम करने का, उनकी पूरी नीतियों का पालन करने का और उनसे पूरी तरह सच्चा बने रहने का.
וְהֹורִ֧ישׁ יְהוָ֛ה אֶת־כָּל־הַגֹּויִ֥ם הָאֵ֖לֶּה מִלִּפְנֵיכֶ֑ם וִֽירִשְׁתֶּ֣ם גֹּויִ֔ם גְּדֹלִ֥ים וַעֲצֻמִ֖ים מִכֶּֽם׃ | 23 |
तब याहवेह इन सभी राष्ट्रों को तुम्हारे सामने से खदेड़ देंगे और तुम ऐसे राष्ट्रों को उनके देश से दूर कर दोगे, जो गिनती में तुमसे अधिक और तुमसे अधिक शक्तिशाली हैं.
כָּל־הַמָּקֹ֗ום אֲשֶׁ֨ר תִּדְרֹ֧ךְ כַּֽף־רַגְלְכֶ֛ם בֹּ֖ו לָכֶ֣ם יִהְיֶ֑ה מִן־הַמִּדְבָּ֨ר וְהַלְּבָנֹ֜ון מִן־הַנָּהָ֣ר נְהַר־פְּרָ֗ת וְעַד֙ הַיָּ֣ם הָֽאַחֲרֹ֔ון יִהְיֶ֖ה גְּבֻלְכֶֽם׃ | 24 |
ऐसा हर एक भूभाग, जिससे तुम्हारे पांवों के तलवे छुएंगे, तुम्हारी संपत्ति हो जाएगा. तुम्हारी सीमा निर्जन प्रदेश से लेकर लबानोन तक और उस नदी, यानी फरात से पश्चिम सागर तक.
לֹא־יִתְיַצֵּ֥ב אִ֖ישׁ בִּפְנֵיכֶ֑ם פַּחְדְּכֶ֨ם וּמֹֽורַאֲכֶ֜ם יִתֵּ֣ן ׀ יְהוָ֣ה אֱלֹֽהֵיכֶ֗ם עַל־פְּנֵ֤י כָל־הָאָ֙רֶץ֙ אֲשֶׁ֣ר תִּדְרְכוּ־בָ֔הּ כַּאֲשֶׁ֖ר דִּבֶּ֥ר לָכֶֽם׃ ס | 25 |
कोई भी व्यक्ति तुम्हारे सामने ठहर न सकेगा. याहवेह तुम्हारे परमेश्वर, अपनी प्रतिज्ञा के अनुरूप, उस पूरे देश पर, जिसे तुम्हारे पैर छुएंगे, तुम्हारा भय, तुम्हारा आतंक भर देंगे.
רְאֵ֗ה אָנֹכִ֛י נֹתֵ֥ן לִפְנֵיכֶ֖ם הַיֹּ֑ום בְּרָכָ֖ה וּקְלָלָֽה׃ | 26 |
अब सुनो, आज मैं तुम्हारे सामने एक आशीर्वाद और एक शाप प्रस्तुत कर रहा हूं—
אֶֽת־הַבְּרָכָ֑ה אֲשֶׁ֣ר תִּשְׁמְע֗וּ אֶל־מִצְוֹת֙ יְהוָ֣ה אֱלֹֽהֵיכֶ֔ם אֲשֶׁ֧ר אָנֹכִ֛י מְצַוֶּ֥ה אֶתְכֶ֖ם הַיֹּֽום׃ | 27 |
आशीर्वाद उस स्थिति में, जब तुम याहवेह, तुम्हारे परमेश्वर के आदेशों का पालन करोगे, जिनका आदेश आज मैं तुम्हें दे रहा हूं;
וְהַקְּלָלָ֗ה אִם־לֹ֤א תִשְׁמְעוּ֙ אֶל־מִצְוֹת֙ יְהוָ֣ה אֱלֹֽהֵיכֶ֔ם וְסַרְתֶּ֣ם מִן־הַדֶּ֔רֶךְ אֲשֶׁ֧ר אָנֹכִ֛י מְצַוֶּ֥ה אֶתְכֶ֖ם הַיֹּ֑ום לָלֶ֗כֶת אַחֲרֵ֛י אֱלֹהִ֥ים אֲחֵרִ֖ים אֲשֶׁ֥ר לֹֽא־יְדַעְתֶּֽם׃ ס | 28 |
और शाप उस स्थिति में, जब तुम याहवेह, तुम्हारे परमेश्वर के आदेशों को ठुकराओगे, उस मार्ग से भटक जाओगे, जिसका आदेश मैं आज तुम्हें दे रहा हूं, और उन पराए देवताओं का अनुसरण शुरू कर दोगे, जिन्हें तुम जानते भी न थे.
וְהָיָ֗ה כִּ֤י יְבִֽיאֲךָ֙ יְהוָ֣ה אֱלֹהֶ֔יךָ אֶל־הָאָ֕רֶץ אֲשֶׁר־אַתָּ֥ה בָא־שָׁ֖מָּה לְרִשְׁתָּ֑הּ וְנָתַתָּ֤ה אֶת־הַבְּרָכָה֙ עַל־הַ֣ר גְּרִזִ֔ים וְאֶת־הַקְּלָלָ֖ה עַל־הַ֥ר עֵיבָֽל׃ | 29 |
और तब उस समय, जब याहवेह, तुम्हारे परमेश्वर तुम्हें उस देश में पहुंचा देंगे, जिस पर अधिकार करने के लिए तुम उसमें प्रवेश करने पर हो, तुम आशीर्वाद तो गेरिज़िम पर्वत पर से और शाप एबल पर्वत पर से घोषित करोगे.
הֲלֹא־הֵ֜מָּה בְּעֵ֣בֶר הַיַּרְדֵּ֗ן אַֽחֲרֵי֙ דֶּ֚רֶךְ מְבֹ֣וא הַשֶּׁ֔מֶשׁ בְּאֶ֙רֶץ֙ הַֽכְּנַעֲנִ֔י הַיֹּשֵׁ֖ב בָּעֲרָבָ֑ה מ֚וּל הַגִּלְגָּ֔ל אֵ֖צֶל אֵלֹונֵ֥י מֹרֶֽה׃ | 30 |
ये पर्वत यरदन नदी के पार हैं, पश्चिम दिशा में कुछ ही दूरी पर यह कनानियों का देश है, जो अराबाह में गिलगाल के सामने, मोरेह के बांज वृक्षों के निकट, निवास करते हैं.
כִּ֤י אַתֶּם֙ עֹבְרִ֣ים אֶת־הַיַּרְדֵּ֔ן לָבֹא֙ לָרֶ֣שֶׁת אֶת־הָאָ֔רֶץ אֲשֶׁר־יְהוָ֥ה אֱלֹהֵיכֶ֖ם נֹתֵ֣ן לָכֶ֑ם וִֽירִשְׁתֶּ֥ם אֹתָ֖הּ וִֽישַׁבְתֶּם־בָּֽהּ׃ | 31 |
क्योंकि अब तुम इस यरदन नदी को पार कर उस देश पर अधिकार करने पर ही हो, जो याहवेह तुम्हारे परमेश्वर तुम्हें प्रदान कर रहे हैं. तुम इस पर अधिकार करके इसमें निवास करने लगोगे.
וּשְׁמַרְתֶּ֣ם לַעֲשֹׂ֔ות אֵ֥ת כָּל־הֽ͏ַחֻקִּ֖ים וְאֶת־הַמִּשְׁפָּטִ֑ים אֲשֶׁ֧ר אָנֹכִ֛י נֹתֵ֥ן לִפְנֵיכֶ֖ם הַיֹּֽום׃ | 32 |
जो जो आदेश और विधान मैं आज तुम्हारे सामने स्पष्ट कर रहा हूं, तुम उनको पूरा करने में सावधान रहोगे.