< 2 דִּבְרֵי הַיָּמִים 6 >
אָ֖ז אָמַ֣ר שְׁלֹמֹ֑ה יְהוָ֣ה אָמַ֔ר לִשְׁכֹּ֖ון בָּעֲרָפֶֽל׃ | 1 |
तब शलोमोन ने यह कहा: “याहवेह ने यह प्रकट किया है कि वह घने बादल में रहना सही समझते हैं.
וַֽאֲנִ֛י בָּנִ֥יתִי בֵית־זְבֻ֖ל לָ֑ךְ וּמָכֹ֥ון לְשִׁבְתְּךָ֖ עֹולָמִֽים׃ | 2 |
आपके लिए मैंने एक ऐसा भव्य भवन बनवाया है कि आप उसमें हमेशा रहें.”
וַיַּסֵּ֤ב הַמֶּ֙לֶךְ֙ אֶת־פָּנָ֔יו וַיְבָ֕רֶךְ אֵ֖ת כָּל־קְהַ֣ל יִשְׂרָאֵ֑ל וְכָל־קְהַ֥ל יִשְׂרָאֵ֖ל עֹומֵֽד׃ | 3 |
यह कहकर राजा ने सारी इस्राएली प्रजा की ओर होकर उनको आशीर्वाद दिया, इस अवसर पर सारी इस्राएली सभा खड़ी हुई थी.
וַיֹּ֗אמֶר בָּר֤וּךְ יְהוָה֙ אֱלֹהֵ֣י יִשְׂרָאֵ֔ל אֲשֶׁר֙ דִּבֶּ֣ר בְּפִ֔יו אֵ֖ת דָּוִ֣יד אָבִ֑י וּבְיָדָ֥יו מִלֵּ֖א לֵאמֹֽר׃ | 4 |
राजा ने यह कहा: “धन्य हैं याहवेह, इस्राएल के परमेश्वर! उन्होंने मेरे पिता दावीद से अपने मुख से कहे गए इस वचन को अपने हाथों से पूरा कर दिया है
מִן־הַיֹּ֗ום אֲשֶׁ֨ר הֹוצֵ֣אתִי אֶת־עַמִּי֮ מֵאֶ֣רֶץ מִצְרַיִם֒ לֹא־בָחַ֣רְתִּֽי בְעִ֗יר מִכֹּל֙ שִׁבְטֵ֣י יִשְׂרָאֵ֔ל לִבְנֹ֣ות בַּ֔יִת לִהְיֹ֥ות שְׁמִ֖י שָׁ֑ם וְלֹא־בָחַ֣רְתִּֽי בְאִ֔ישׁ לִהְיֹ֥ות נָגִ֖יד עַל־עַמִּ֥י יִשְׂרָאֵֽל׃ | 5 |
‘जिस दिन मैं अपनी प्रजा इस्राएल को मिस्र देश से बाहर लाया हूं, उसी दिन से मैंने इस्राएल के सभी गोत्रों में से ऐसे किसी भी नगर को नहीं चुना, जहां एक ऐसा भवन बनाया जाए जहां मेरी महिमा का वास हो; वैसे ही मैंने अपनी प्रजा इस्राएल का प्रधान होने के लिए किसी व्यक्ति को भी नहीं चुना;
וָאֶבְחַר֙ בִּיר֣וּשָׁלַ֔͏ִם לִהְיֹ֥ות שְׁמִ֖י שָׁ֑ם וָאֶבְחַ֣ר בְּדָוִ֔יד לִהְיֹ֖ות עַל־עַמִּ֥י יִשְׂרָאֵֽל׃ | 6 |
हां, मैंने येरूशलेम को चुना कि वहां मेरी महिमा ठहरे और मैंने दावीद को चुना कि वह मेरी प्रजा इस्राएल का राजा हो.’
וַיְהִ֕י עִם־לְבַ֖ב דָּוִ֣יד אָבִ֑י לִבְנֹ֣ות בַּ֔יִת לְשֵׁ֥ם יְהוָ֖ה אֱלֹהֵ֥י יִשְׂרָאֵֽל׃ | 7 |
“मेरे पिता दावीद की इच्छा थी कि वह याहवेह, इस्राएल के परमेश्वर की महिमा के लिए भवन बनवाएं.
וַיֹּ֤אמֶר יְהוָה֙ אֶל־דָּוִ֣יד אָבִ֔י יַ֗עַן אֲשֶׁ֤ר הָיָה֙ עִם־לְבָ֣בְךָ֔ לִבְנֹ֥ות בַּ֖יִת לִשְׁמִ֑י הֱֽטִיבֹ֔ותָ כִּ֥י הָיָ֖ה עִם־לְבָבֶֽךָ׃ | 8 |
किंतु याहवेह ने मेरे पिता दावीद से कहा, ‘तुम्हारे मन में मेरे लिए भवन के निर्माण का आना एक उत्तम विचार है,
רַ֣ק אַתָּ֔ה לֹ֥א תִבְנֶ֖ה הַבָּ֑יִת כִּ֤י בִנְךָ֙ הַיֹּוצֵ֣א מֵֽחֲלָצֶ֔יךָ הֽוּא־יִבְנֶ֥ה הַבַּ֖יִת לִשְׁמִֽי׃ | 9 |
फिर भी, इस भवन को तुम नहीं, बल्कि वह पुत्र, जो तुमसे पैदा होगा, मेरी महिमा के लिए भवन बनाएगा.’
וַיָּ֣קֶם יְהוָ֔ה אֶת־דְּבָרֹ֖ו אֲשֶׁ֣ר דִּבֵּ֑ר וָאָק֡וּם תַּחַת֩ דָּוִ֨יד אָבִ֜י וָאֵשֵׁ֣ב ׀ עַל־כִּסֵּ֣א יִשְׂרָאֵ֗ל כַּאֲשֶׁר֙ דִּבֶּ֣ר יְהוָ֔ה וָאֶבְנֶ֣ה הַבַּ֔יִת לְשֵׁ֥ם יְהוָ֖ה אֱלֹהֵ֥י יִשְׂרָאֵֽל׃ | 10 |
“आज याहवेह ने अपनी प्रतिज्ञा पूरी की है. क्योंकि अब, जैसी याहवेह ने प्रतिज्ञा की थी, मैं दावीद मेरे पिता का उत्तराधिकारी बनकर इस्राएल के राज सिंहासन पर बैठा हूं, और मैंने याहवेह इस्राएल के परमेश्वर की महिमा के लिए इस भवन को बनवाया है.
וָאָשִׂ֥ים שָׁם֙ אֶת־הָ֣אָרֹ֔ון אֲשֶׁר־שָׁ֖ם בְּרִ֣ית יְהוָ֑ה אֲשֶׁ֥ר כָּרַ֖ת עִם־בְּנֵ֥י יִשְׂרָאֵֽל׃ | 11 |
मैंने इस भवन में वह संदूक स्थापित कर दिया है, जिसमें याहवेह की वह वाचा है, जो उन्होंने इस्राएल के वंश से स्थापित की थी.”
וַֽיַּעֲמֹ֗ד לִפְנֵי֙ מִזְבַּ֣ח יְהוָ֔ה נֶ֖גֶד כָּל־קְהַ֣ל יִשְׂרָאֵ֑ל וַיִּפְרֹ֖שׂ כַּפָּֽיו׃ | 12 |
इसके बाद शलोमोन सारी इस्राएल की सभा के देखते हाथों को फैलाकर याहवेह की वेदी के सामने खड़े हो गए.
כִּֽי־עָשָׂ֨ה שְׁלֹמֹ֜ה כִּיֹּ֣ור נְחֹ֗שֶׁת וַֽיִּתְּנֵהוּ֮ בְּתֹ֣וךְ הָעֲזָרָה֒ חָמֵ֨שׁ אַמֹּ֜ות אָרְכֹּ֗ו וְחָמֵ֤שׁ אַמֹּות֙ רָחְבֹּ֔ו וְאַמֹּ֥ות שָׁלֹ֖ושׁ קֹומָתֹ֑ו וַיַּעֲמֹ֣ד עָלָ֗יו וַיִּבְרַ֤ךְ עַל־בִּרְכָּיו֙ נֶ֚גֶד כָּל־קְהַ֣ל יִשְׂרָאֵ֔ל וַיִּפְרֹ֥שׂ כַּפָּ֖יו הַשָּׁמָֽיְמָה׃ | 13 |
शलोमोन ने सवा दो मीटर लंबा, सवा दो मीटर चौड़ा और एक मीटर पैंतीस सेंटीमीटर ऊंचा कांसे का एक मंच बनाया था, जिसे उन्होंने आंगन के बीच में स्थापित कर रखा था. वह इसी पर जा खड़े हुए, उन्होंने इस्राएल की सारी प्रजा के सामने इस पर घुटने टेक अपने हाथ स्वर्ग की दिशा में फैला दिए.
וַיֹּאמַ֗ר יְהוָ֞ה אֱלֹהֵ֤י יִשְׂרָאֵל֙ אֵין־כָּמֹ֣וךָ אֱלֹהִ֔ים בַּשָּׁמַ֖יִם וּבָאָ֑רֶץ שֹׁמֵ֤ר הַבְּרִית֙ וְֽהַחֶ֔סֶד לַעֲבָדֶ֕יךָ הַהֹלְכִ֥ים לְפָנֶ֖יךָ בְּכָל־לִבָּֽם׃ | 14 |
तब शलोमोन ने विनती की: “याहवेह इस्राएल के परमेश्वर, आपके तुल्य परमेश्वर न तो कोई ऊपर स्वर्ग में है और न यहां नीचे धरती पर, जो अपने उन सेवकों पर अपना अपार प्रेम दिखाते हुए अपनी वाचा को पूर्ण करता है, जिनका जीवन आपके प्रति पूरी तरह समर्पित है.
אֲשֶׁ֣ר שָׁמַ֗רְתָּ לְעַבְדְּךָ֙ דָּוִ֣יד אָבִ֔י אֵ֥ת אֲשֶׁר־דִּבַּ֖רְתָּ לֹ֑ו וַתְּדַבֵּ֥ר בְּפִ֛יךָ וּבְיָדְךָ֥ מִלֵּ֖אתָ כַּיֹּ֥ום הַזֶּֽה׃ | 15 |
आपने अपने सेवक, मेरे पिता दावीद को जो वचन दिया था, उसे पूरा किया है. वस्तुतः आज आपने अपने शब्द को सच्चाई में बदल दिया है. आपके सेवक दावीद से की गई अपनी वह प्रतिज्ञा पूरी करें, जो आपने उनसे इन शब्दों में की थी.
וְעַתָּ֞ה יְהוָ֣ה ׀ אֱלֹהֵ֣י יִשְׂרָאֵ֗ל שְׁ֠מֹר לְעַבְדְּךָ֙ דָוִ֤יד אָבִי֙ אֵת֩ אֲשֶׁ֨ר דִּבַּ֤רְתָּ לֹּו֙ לֵאמֹ֔ר לֹא־יִכָּרֵ֨ת לְךָ֥ אִישׁ֙ מִלְּפָנַ֔י יֹושֵׁ֖ב עַל־כִּסֵּ֣א יִשְׂרָאֵ֑ל רַ֠ק אִם־יִשְׁמְר֨וּ בָנֶ֜יךָ אֶת־דַּרְכָּ֗ם לָלֶ֙כֶת֙ בְּתֹ֣ורָתִ֔י כַּאֲשֶׁ֥ר הָלַ֖כְתָּ לְפָנָֽי׃ | 16 |
“तब अब इस्राएल के परमेश्वर, याहवेह, आपके सेवक मेरे पिता दावीद के लिए अपनी यह प्रतिज्ञा पूरी कीजिए. ‘मेरे सामने इस्राएल के सिंहासन पर तुम्हारे उत्तराधिकारी की कोई कमी न होगी, सिर्फ यदि तुम्हारे पुत्र सावधानीपूर्वक मेरे सामने अपने आचरण के विषय में सच्चे रहें—ठीक जिस प्रकार तुम्हारा आचरण मेरे सामने सच्चा रहा है.’
וְעַתָּ֕ה יְהוָ֖ה אֱלֹהֵ֣י יִשְׂרָאֵ֑ל יֵֽאָמֵן֙ דְּבָ֣רְךָ֔ אֲשֶׁ֥ר דִּבַּ֖רְתָּ לְעַבְדְּךָ֥ לְדָוִֽיד׃ | 17 |
इसलिये अब, याहवेह, इस्राएल के परमेश्वर आपकी प्रतिज्ञा पूरी हो जाए, जो आपने अपने सेवक दावीद से की है.
כִּ֚י הַֽאֻמְנָ֔ם יֵשֵׁ֧ב אֱלֹהִ֛ים אֶת־הָאָדָ֖ם עַל־הָאָ֑רֶץ הִ֠נֵּה שָׁמַ֜יִם וּשְׁמֵ֤י הַשָּׁמַ֙יִם֙ לֹ֣א יְכַלְכְּל֔וּךָ אַ֕ף כִּֽי־הַבַּ֥יִת הַזֶּ֖ה אֲשֶׁ֥ר בָּנִֽיתִי׃ | 18 |
“मगर क्या यह संभव है कि परमेश्वर पृथ्वी पर मनुष्यों के बीच निवास करें? देखिए, आकाश और ऊंचे स्वर्ग तक आपको अपने में समा नहीं सकते; तो फिर यह भवन क्या है, जिसको मैंने बनवाया है?
וּפָנִ֜יתָ אֶל־תְּפִלַּ֧ת עַבְדְּךָ֛ וְאֶל־תְּחִנָּתֹ֖ו יְהוָ֣ה אֱלֹהָ֑י לִשְׁמֹ֤עַ אֶל־הָרִנָּה֙ וְאֶל־הַתְּפִלָּ֔ה אֲשֶׁ֥ר עַבְדְּךָ֖ מִתְפַּלֵּ֥ל לְפָנֶֽיךָ׃ | 19 |
फिर भी अपने सेवक की विनती और प्रार्थना का ध्यान रखिए. याहवेह, मेरे परमेश्वर, इस दोहाई को, इस गिड़गिड़ाहट को सुन लीजिए जो आज आपका सेवक आपके सामने प्रस्तुत कर रहा है.
לִהְיֹות֩ עֵינֶ֨יךָ פְתֻחֹ֜ות אֶל־הַבַּ֤יִת הַזֶּה֙ יֹומָ֣ם וָלַ֔יְלָה אֶל־הַ֨מָּקֹ֔ום אֲשֶׁ֣ר אָמַ֔רְתָּ לָשׂ֥וּם שִׁמְךָ֖ שָׁ֑ם לִשְׁמֹ֙ועַ֙ אֶל־הַתְּפִלָּ֔ה אֲשֶׁ֣ר יִתְפַּלֵּ֣ל עַבְדְּךָ֔ אֶל־הַמָּקֹ֖ום הַזֶּֽה׃ | 20 |
कि यह भवन दिन-रात हमेशा आपकी दृष्टि में बना रहे, उस स्थान पर, जिसके बारे में आपने कहा था कि आप वहां अपनी महिमा की स्थापना करेंगे, कि आप उस प्रार्थना पर ध्यान दें, जो आपका सेवक इसकी ओर फिरकर करेगा.
וְשָׁ֨מַעְתָּ֜ אֶל־תַּחֲנוּנֵ֤י עַבְדְּךָ֙ וְעַמְּךָ֣ יִשְׂרָאֵ֔ל אֲשֶׁ֥ר יִֽתְפַּֽלְל֖וּ אֶל־הַמָּקֹ֣ום הַזֶּ֑ה וְ֠אַתָּה תִּשְׁמַ֞ע מִמְּקֹ֤ום שִׁבְתְּךָ֙ מִן־הַשָּׁמַ֔יִם וְשָׁמַעְתָּ֖ וְסָלָֽחְתָּ׃ | 21 |
अपने सेवक और अपनी प्रजा इस्राएल की विनतियों को सुन लीजिए जब वे इस स्थान की ओर मुंह कर आपसे करते हैं, और स्वर्ग, अपने घर से इसे सुनें और जब आप यह सुनें, आप उन्हें क्षमा प्रदान करें.
אִם־יֶחֱטָ֥א אִישׁ֙ לְרֵעֵ֔הוּ וְנָֽשָׁא־בֹ֥ו אָלָ֖ה לְהַֽאֲלֹתֹ֑ו וּבָ֗א אָלָ֛ה לִפְנֵ֥י מִֽזְבַּחֲךָ֖ בַּבַּ֥יִת הַזֶּֽה׃ | 22 |
“यदि कोई व्यक्ति अपने पड़ोसी के विरुद्ध पाप करता है, और उसे शपथ लेने के लिए विवश किया जाता है और वह आकर इस भवन में आपकी वेदी के सामने शपथ लेता है,
וְאַתָּ֣ה ׀ תִּשְׁמַ֣ע מִן־הַשָּׁמַ֗יִם וְעָשִׂ֙יתָ֙ וְשָׁפַטְתָּ֣ אֶת־עֲבָדֶ֔יךָ לְהָשִׁ֣יב לְרָשָׁ֔ע לָתֵ֥ת דַּרְכֹּ֖ו בְּרֹאשֹׁ֑ו וּלְהַצְדִּ֣יק צַדִּ֔יק לָ֥תֶת לֹ֖ו כְּצִדְקָתֹֽו׃ ס | 23 |
तब आप स्वर्ग से सुनें, और अपने सेवकों का न्याय करें, दुराचारी का दंड उसके दुराचार को उसी पर प्रभावी करने के द्वारा दें और सदाचारी को उसके सदाचार का प्रतिफल देने के द्वारा.
וְֽאִם־יִנָּגֵ֞ף עַמְּךָ֧ יִשְׂרָאֵ֛ל לִפְנֵ֥י אֹויֵ֖ב כִּ֣י יֶֽחֶטְאוּ־לָ֑ךְ וְשָׁ֙בוּ֙ וְהֹוד֣וּ אֶת־שְׁמֶ֔ךָ וְהִתְפַּֽלְל֧וּ וְהִֽתְחַנְּנ֛וּ לְפָנֶ֖יךָ בַּבַּ֥יִת הַזֶּֽה׃ | 24 |
“यदि आपकी प्रजा इस्राएल शत्रुओं द्वारा इसलिये हार जाए, कि उन्होंने आपके विरुद्ध पाप किया है और तब वे लौटकर आपकी ओर फिरते हैं, आपके प्रति दोबारा सच्चे होकर इस भवन में आपके सामने आकर विनती और प्रार्थना करते हैं,
וְאַתָּה֙ תִּשְׁמַ֣ע מִן־הַשָּׁמַ֔יִם וְסָ֣לַחְתָּ֔ לְחַטַּ֖את עַמְּךָ֣ יִשְׂרָאֵ֑ל וַהֲשֵׁיבֹותָם֙ אֶל־הָ֣אֲדָמָ֔ה אֲשֶׁר־נָתַ֥תָּה לָהֶ֖ם וְלַאֲבֹתֵיהֶֽם׃ פ | 25 |
तब स्वर्ग से यह सुनकर अपनी प्रजा इस्राएल का पाप क्षमा कर दीजिए और उन्हें उस देश में लौटा ले आइए, जो आपने उन्हें और उनके पूर्वजों को दिया है.
בְּהֵעָצֵ֧ר הַשָּׁמַ֛יִם וְלֹֽא־יִהְיֶ֥ה מָטָ֖ר כִּ֣י יֶֽחֶטְאוּ־לָ֑ךְ וְהִֽתְפַּלְל֞וּ אֶל־הַמָּקֹ֤ום הַזֶּה֙ וְהֹוד֣וּ אֶת־שְׁמֶ֔ךָ מֵחַטָּאתָ֥ם יְשׁוּב֖וּן כִּ֥י תַעֲנֵֽם׃ | 26 |
“जब आप बारिश इसलिये रोक दें कि आपकी प्रजा ने आपके विरुद्ध पाप किया है और फिर, जब वे इस स्थान की ओर फिरकर प्रार्थना करें और आपके प्रति सच्चे हो, जब आप उन्हें सताएं, और वे पाप से फिर जाएं;
וְאַתָּ֣ה ׀ תִּשְׁמַ֣ע הַשָּׁמַ֗יִם וְסָ֨לַחְתָּ֜ לְחַטַּ֤את עֲבָדֶ֙יךָ֙ וְעַמְּךָ֣ יִשְׂרָאֵ֔ל כִּ֥י תֹורֵ֛ם אֶל־הַדֶּ֥רֶךְ הַטֹּובָ֖ה אֲשֶׁ֣ר יֵֽלְכוּ־בָ֑הּ וְנָתַתָּ֤ה מָטָר֙ עַֽל־אַרְצְךָ֔ אֲשֶׁר־נָתַ֥תָּה לְעַמְּךָ֖ לְנַחֲלָֽה׃ ס | 27 |
तब स्वर्ग में अपने सेवकों और अपनी प्रजा इस्राएल की दोहाई सुनकर उनका पाप क्षमा कर दें. वस्तुतः आप उन्हें उन अच्छे मार्ग पर चलने की शिक्षा दें. फिर अपनी भूमि पर बारिश भेजें—उस भूमि पर जिसे आपने उत्तराधिकार के रूप में अपनी प्रजा को प्रदान किया है.
רָעָ֞ב כִּֽי־יִהְיֶ֣ה בָאָ֗רֶץ דֶּ֣בֶר כִּֽי־יִֽ֠הְיֶה שִׁדָּפֹ֨ון וְיֵרָקֹ֜ון אַרְבֶּ֤ה וְחָסִיל֙ כִּ֣י יִהְיֶ֔ה כִּ֧י יָֽצַר־לֹ֛ו אֹויְבָ֖יו בְּאֶ֣רֶץ שְׁעָרָ֑יו כָּל־נֶ֖גַע וְכָֽל־מַחֲלָֽה׃ | 28 |
“यदि देश में अकाल आता है, यदि यहां महामारी फैली हुई हो, यदि यहां उपज में गेरुआ अथवा फफूंदी लगे, यदि यहां टिड्डियों अथवा टिड्डों का हमला हो जाए, यदि उनके शत्रु उन्हें उन्हीं के देश में उन्हीं के नगरों में घेर लें, यहां कोई भी महामारी या रोग का हमला हो,
כָּל־תְּפִלָּ֣ה כָל־תְּחִנָּ֗ה אֲשֶׁ֤ר יִהְיֶה֙ לְכָל־הָ֣אָדָ֔ם וּלְכֹ֖ל עַמְּךָ֣ יִשְׂרָאֵ֑ל אֲשֶׁ֣ר יֵדְע֗וּ אִ֤ישׁ נִגְעֹו֙ וּמַכְאֹבֹ֔ו וּפָרַ֥שׂ כַּפָּ֖יו אֶל־הַבַּ֥יִת הַזֶּֽה׃ | 29 |
किसी व्यक्ति या आपकी प्रजा इस्राएल के द्वारा उनके दुःख और पीड़ा की स्थिति में इस भवन की ओर हाथ फैलाकर कैसी भी प्रार्थना या विनती की जाए,
וְ֠אַתָּה תִּשְׁמַ֨ע מִן־הַשָּׁמַ֜יִם מְכֹ֤ון שִׁבְתֶּ֙ךָ֙ וְסָ֣לַחְתָּ֔ וְנָתַתָּ֤ה לָאִישׁ֙ כְּכָל־דְּרָכָ֔יו אֲשֶׁ֥ר תֵּדַ֖ע אֶת־לְבָבֹ֑ו כִּ֤י אַתָּה֙ לְבַדְּךָ֣ יָדַ֔עְתָּ אֶת־לְבַ֖ב בְּנֵ֥י הָאָדָֽם׃ | 30 |
आप अपने घर, स्वर्ग से इसे सुनिए और क्षमा दीजिए और हर एक को, जिसके मन को आप भली-भांति जानते हैं, क्योंकि सिर्फ आपके ही सामने मानव का मन उघाड़ा रहता है, उसके आचरण के अनुसार प्रतिफल दीजिए,
לְמַ֣עַן יִֽירָא֗וּךָ לָלֶ֙כֶת֙ בִּדְרָכֶ֔יךָ כָּל־הַ֨יָּמִ֔ים אֲשֶׁר־הֵ֥ם חַיִּ֖ים עַל־פְּנֵ֣י הָאֲדָמָ֑ה אֲשֶׁ֥ר נָתַ֖תָּה לַאֲבֹתֵֽינוּ׃ ס | 31 |
कि वे आपके प्रति इस देश में रहते हुए जो आपने उनके पूर्वजों को प्रदान किया है, आजीवन श्रद्धा बनाए रखें, और अपने जीवन भर आपकी नीतियों का पालन करते रहें.
וְגַ֣ם אֶל־הַנָּכְרִ֗י אֲ֠שֶׁר לֹ֥א מֵעַמְּךָ֣ יִשְׂרָאֵל֮ הוּא֒ וּבָ֣א ׀ מֵאֶ֣רֶץ רְחֹוקָ֗ה לְמַ֨עַן שִׁמְךָ֤ הַגָּדֹול֙ וְיָדְךָ֣ הַחֲזָקָ֔ה וּֽזְרֹֽועֲךָ֖ הַנְּטוּיָ֑ה וּבָ֥אוּ וְהִֽתְפַּלְל֖וּ אֶל־הַבַּ֥יִת הַזֶּֽה׃ | 32 |
“इसी प्रकार जब कोई परदेशी, जो आपकी प्रजा इस्राएल में से नहीं है, आपकी महिमा आपके महाकार्य और आपकी महाशक्ति के विषय में सुनकर वे यहां ज़रूर आएंगे; तब, जब वह विदेशी यहां आकर इस भवन की ओर होकर प्रार्थना करे,
וְאַתָּ֞ה תִּשְׁמַ֤ע מִן־הַשָּׁמַ֙יִם֙ מִמְּכֹ֣ון שִׁבְתֶּ֔ךָ וְעָשִׂ֕יתָ כְּכֹ֛ל אֲשֶׁר־יִקְרָ֥א אֵלֶ֖יךָ הַנָּכְרִ֑י לְמַ֣עַן יֵדְעוּ֩ כָל־עַמֵּ֨י הָאָ֜רֶץ אֶת־שְׁמֶ֗ךָ וּלְיִרְאָ֤ה אֹֽתְךָ֙ כְּעַמְּךָ֣ יִשְׂרָאֵ֔ל וְלָדַ֕עַת כִּֽי־שִׁמְךָ֣ נִקְרָ֔א עַל־הַבַּ֥יִת הַזֶּ֖ה אֲשֶׁ֥ר בָּנִֽיתִי׃ | 33 |
तब अपने आवास स्वर्ग में सुनकर उन सभी विनतियों को पूरा करें, जिसकी याचना उस परदेशी ने की है, कि पृथ्वी के सभी मनुष्यों को आपकी महिमा का ज्ञान हो जाए, उनमें आपके प्रति भय जाग जाए—जैसा आपकी प्रजा इस्राएल में है और उन्हें यह अहसास हो जाए कि यह आपकी महिमा में मेरे द्वारा बनाया गया भवन है.
כִּֽי־יֵצֵ֨א עַמְּךָ֤ לַמִּלְחָמָה֙ עַל־אֹ֣ויְבָ֔יו בַּדֶּ֖רֶךְ אֲשֶׁ֣ר תִּשְׁלָחֵ֑ם וְהִתְפַּֽלְל֣וּ אֵלֶ֗יךָ דֶּ֣רֶךְ הָעִ֤יר הַזֹּאת֙ אֲשֶׁ֣ר בָּחַ֣רְתָּ בָּ֔הּ וְהַבַּ֖יִת אֲשֶׁר־בָּנִ֥יתִי לִשְׁמֶֽךָ׃ | 34 |
“जब आपकी प्रजा उनके शत्रुओं से युद्ध के लिए आपके द्वारा भेजी जाए-आप उन्हें चाहे कहीं भी भेजें-वे आपके ही द्वारा चुने इस नगर और इस भवन की ओर, जिसको मैंने बनवाया है, मुख करके प्रार्थना करें,
וְשָׁמַעְתָּ֙ מִן־הַשָּׁמַ֔יִם אֶת־תְּפִלָּתָ֖ם וְאֶת־תְּחִנָּתָ֑ם וְעָשִׂ֖יתָ מִשְׁפָּטָֽם׃ | 35 |
तब स्वर्ग में उनकी प्रार्थना और अनुरोध सुनकर उनके पक्ष में निर्णय करें.
כִּ֣י יֶחֶטְאוּ־לָ֗ךְ כִּ֣י אֵ֤ין אָדָם֙ אֲשֶׁ֣ר לֹא־יֶחֱטָ֔א וְאָנַפְתָּ֣ בָ֔ם וּנְתַתָּ֖ם לִפְנֵ֣י אֹויֵ֑ב וְשָׁב֧וּם שֹׁובֵיהֶ֛ם אֶל־אֶ֥רֶץ רְחֹוקָ֖ה אֹ֥ו קְרֹובָֽה׃ | 36 |
“जब वे आपके विरुद्ध पाप करें-वास्तव में तो कोई भी मनुष्य ऐसा नहीं जिसने पाप किया ही न हो और आप उन पर क्रोधित हो जाएं और उन्हें किसी शत्रु के अधीन कर दें, कि शत्रु उन्हें बंदी बनाकर किसी दूर या पास के देश में ले जाए;
וְהֵשִׁ֙יבוּ֙ אֶל־לְבָבָ֔ם בָּאָ֖רֶץ אֲשֶׁ֣ר נִשְׁבּוּ־שָׁ֑ם וְשָׁ֣בוּ ׀ וְהִֽתְחַנְּנ֣וּ אֵלֶ֗יךָ בְּאֶ֤רֶץ שִׁבְיָם֙ לֵאמֹ֔ר חָטָ֥אנוּ הֶעֱוִ֖ינוּ וְרָשָֽׁעְנוּ׃ | 37 |
फिर भी यदि वे उस बंदिता के देश में चेत कर पश्चाताप करें, और अपने बंधुआई के देश में यह कहते हुए दोहाई दें, ‘हमने पाप किया है, हमने कुटिलता और दुष्टता भरे काम किए हैं’;
וְשָׁ֣בוּ אֵלֶ֗יךָ בְּכָל־לִבָּם֙ וּבְכָל־נַפְשָׁ֔ם בְּאֶ֥רֶץ שִׁבְיָ֖ם אֲשֶׁר־שָׁב֣וּ אֹתָ֑ם וְהִֽתְפַּֽלְל֗וּ דֶּ֤רֶךְ אַרְצָם֙ אֲשֶׁ֣ר נָתַ֣תָּה לַאֲבֹותָ֔ם וְהָעִיר֙ אֲשֶׁ֣ר בָּחַ֔רְתָּ וְלַבַּ֖יִת אֲשֶׁר־בָּנִ֥יתִי לִשְׁמֶֽךָ׃ | 38 |
यदि वे बंधुआई के उस देश में, जहां उन्हें ले जाया गया है, सच्चे हृदय और संपूर्ण प्राणों से इस देश की ओर, जिसे आपने उनके पूर्वजों को दिया है, उस नगर की ओर जिसे आपने चुना है और इस भवन की ओर, जिसको मैंने आपके लिए बनवाया है, मुंह करके प्रार्थना करें;
וְשָׁמַעְתָּ֙ מִן־הַשָּׁמַ֜יִם מִמְּכֹ֣ון שִׁבְתְּךָ֗ אֶת־תְּפִלָּתָם֙ וְאֶת־תְּחִנֹּ֣תֵיהֶ֔ם וְעָשִׂ֖יתָ מִשְׁפָּטָ֑ם וְסָלַחְתָּ֥ לְעַמְּךָ֖ אֲשֶׁ֥ר חָֽטְאוּ־לָֽךְ׃ | 39 |
तब अपने घर स्वर्ग से उनकी प्रार्थना और विनती सुनिए और वही होने दीजिए, जो सही है और अपनी प्रजा को, जिसने आपके विरुद्ध पाप किया है, क्षमा कर दीजिए.
עַתָּ֣ה אֱלֹהַ֗י יִֽהְיוּ־נָ֤א עֵינֶ֙יךָ֙ פְּתֻחֹ֔ות וְאָזְנֶ֖יךָ קַשֻּׁבֹ֑ות לִתְפִלַּ֖ת הַמָּקֹ֥ום הַזֶּֽה׃ ס | 40 |
“अब, मेरे परमेश्वर, मेरी विनती है कि इस स्थान में की गई प्रार्थना के प्रति आपकी आंखें खुली और आपके कान सचेत बने रहें.
וְעַתָּ֗ה קוּמָ֞ה יְהוָ֤ה אֱלֹהִים֙ לְֽנוּחֶ֔ךָ אַתָּ֖ה וַאֲרֹ֣ון עֻזֶּ֑ךָ כֹּהֲנֶ֜יךָ יְהוָ֤ה אֱלֹהִים֙ יִלְבְּשׁ֣וּ תְשׁוּעָ֔ה וַחֲסִידֶ֖יךָ יִשְׂמְח֥וּ בַטֹּֽוב׃ | 41 |
“इसलिये अब, याहवेह परमेश्वर, खुद आप और आपकी शक्ति संदूक,
יְהוָ֣ה אֱלֹהִ֔ים אַל־תָּשֵׁ֖ב פְּנֵ֣י מְשִׁיחֶ֑יךָ זָכְרָ֕ה לְחַֽסְדֵ֖י דָּוִ֥יד עַבְדֶּֽךָ׃ פ | 42 |
याहवेह परमेश्वर अपने अभिषिक्त की प्रार्थना अनसुनी न कीजिए.