< 1 שְׁמוּאֵל 20 >

וַיִּבְרַ֣ח דָּוִ֔ד מִנֹּוִות (מִנָּיֹ֖ות) בָּרָמָ֑ה וַיָּבֹ֞א וַיֹּ֣אמֶר ׀ לִפְנֵ֣י יְהֹונָתָ֗ן מֶ֤ה עָשִׂ֙יתִי֙ מֶֽה־עֲוֹנִ֤י וּמֶֽה־חַטָּאתִי֙ לִפְנֵ֣י אָבִ֔יךָ כִּ֥י מְבַקֵּ֖שׁ אֶת־נַפְשִֽׁי׃ 1
दावीद रामाह के नाइयोथ से भी भागे. उन्होंने योनातन के पास आकर उनसे पूछा, “क्या किया है मैंने, बताओ? कहां हुई है मुझसे भूल? क्या अपराध किया है मैंने तुम्हारे पिता का, जो वह आज मेरे प्राणों के प्यासे हो गए हैं?”
וַיֹּ֨אמֶר לֹ֣ו חָלִילָה֮ לֹ֣א תָמוּת֒ הִנֵּ֡ה לֹו־עָשָׂה (לֹֽא־יַעֲשֶׂ֨ה) אָבִ֜י דָּבָ֣ר גָּדֹ֗ול אֹ֚ו דָּבָ֣ר קָטֹ֔ן וְלֹ֥א יִגְלֶ֖ה אֶת־אָזְנִ֑י וּמַדּוּעַ֩ יַסְתִּ֨יר אָבִ֥י מִמֶּ֛נִּי אֶת־הַדָּבָ֥ר הַזֶּ֖ה אֵ֥ין זֹֽאת׃ 2
“असंभव!” योनातन ने उनसे कहा. “यह हो ही नहीं सकता कि तुम्हारी हत्या हो! मेरे पिता साधारण असाधारण कोई भी काम बिना मुझे बताए करते ही नहीं. भला इस विषय को वे मुझसे क्यों छिपाएंगे? नहीं. यह असंभव है!”
וַיִּשָּׁבַ֨ע עֹ֜וד דָּוִ֗ד וַיֹּ֙אמֶר֙ יָדֹ֨עַ יָדַ֜ע אָבִ֗יךָ כִּֽי־מָצָ֤אתִי חֵן֙ בְּעֵינֶ֔יךָ וַיֹּ֛אמֶר אַל־יֵֽדַע־זֹ֥את יְהֹונָתָ֖ן פֶּן־יֵֽעָצֵ֑ב וְאוּלָ֗ם חַי־יְהוָה֙ וְחֵ֣י נַפְשֶׁ֔ךָ כִּ֣י כְפֶ֔שַׂע בֵּינִ֖י וּבֵ֥ין הַמָּֽוֶת׃ 3
दावीद ने शपथ लेकर कहा, “तुम्हारे पिता को तुम्हारे और मेरे गहरे संबंधों का पूर्ण पता है, ‘तब उन्होंने यह सही समझा है कि इस विषय में तुम्हें कुछ भी जानकारी न हो, अन्यथा तुम दुःखी विचलित हो जाओगे.’ जीवन्त याहवेह तथा तुम्हारी शपथ, मेरी मृत्यु मुझसे सिर्फ एक पग ही दूर है.”
וַיֹּ֥אמֶר יְהֹונָתָ֖ן אֶל־דָּוִ֑ד מַה־תֹּאמַ֥ר נַפְשְׁךָ֖ וְאֶֽעֱשֶׂה־לָּֽךְ׃ פ 4
योनातन ने इस पर दावीद से पूछा, “तो बताओ, अब मैं तुम्हारे लिए क्या कर सकता हूं?”
וַיֹּ֨אמֶר דָּוִ֜ד אֶל־יְהֹונָתָ֗ן הִֽנֵּה־חֹ֙דֶשׁ֙ מָחָ֔ר וְאָנֹכִ֛י יָשֹׁב־אֵשֵׁ֥ב עִם־הַמֶּ֖לֶךְ לֶאֱכֹ֑ול וְשִׁלַּחְתַּ֙נִי֙ וְנִסְתַּרְתִּ֣י בַשָּׂדֶ֔ה עַ֖ד הָעֶ֥רֶב הַשְּׁלִשִֽׁית׃ 5
तब दावीद ने योनातन को यह सुझाव दिया: “कल नवचंद्र उत्सव है. रीति के अनुसार मेरा राजा के भोज में उपस्थित रहना अपेक्षित है. तुम्हें मुझे अवकाश देना होगा कि मैं आज से तीसरे दिन की शाम तक मैदान में जाकर छिप जाऊं.
אִם־פָּקֹ֥ד יִפְקְדֵ֖נִי אָבִ֑יךָ וְאָמַרְתָּ֗ נִשְׁאֹל֩ נִשְׁאַ֨ל מִמֶּ֤נִּי דָוִד֙ לָרוּץ֙ בֵּֽית־לֶ֣חֶם עִירֹ֔ו כִּ֣י זֶ֧בַח הַיָּמִ֛ים שָׁ֖ם לְכָל־הַמִּשְׁפָּחָֽה׃ 6
यदि तुम्हारे पिता को मेरी अनुपस्थिति का पता हो जाए, तो तुम उनसे कहो, ‘दावीद ने एक बहुत ही ज़रूरी काम के लिए अपने गृहनगर बेथलेहेम जाने की छुट्टी ली है. वहां उसके पूरे परिवार का बलि चढ़ाने का उत्सव है.’
אִם־כֹּ֥ה יֹאמַ֛ר טֹ֖וב שָׁלֹ֣ום לְעַבְדֶּ֑ךָ וְאִם־חָרֹ֤ה יֶֽחֱרֶה֙ לֹ֔ו דַּ֕ע כִּֽי־כָלְתָ֥ה הָרָעָ֖ה מֵעִמֹּֽו׃ 7
यदि तुम्हारे पिता कहें, ‘ठीक है,’ कोई बात नहीं, तब इसका मतलब होगा कि तुम्हारा सेवक सुरक्षित है. मगर यदि यह सुनते ही वह क्रुद्ध हो जाएं, तो यह समझ लेना कि उन्होंने मेरा बुरा करने का निश्चय कर लिया है.
וְעָשִׂ֤יתָ חֶ֙סֶד֙ עַל־עַבְדֶּ֔ךָ כִּ֚י בִּבְרִ֣ית יְהוָ֔ה הֵבֵ֥אתָ אֶֽת־עַבְדְּךָ֖ עִמָּ֑ךְ וְאִם־יֶשׁ־בִּ֤י עָוֹן֙ הֲמִיתֵ֣נִי אַ֔תָּה וְעַד־אָבִ֖יךָ לָמָּה־זֶּ֥ה תְבִיאֵֽנִי׃ פ 8
तब तुम अपने सेवक के प्रति कृपालु रहना, क्योंकि तुमने ही याहवेह के सामने अपने सेवक के साथ वाचा बांधी है. मगर यदि तुम्हारी दृष्टि में मैंने कोई अपराध किया है, तुम स्वयं मेरे प्राण ले लो, क्या आवश्यकता है, इसमें तुम्हारे पिता को शामिल करने की?”
וַיֹּ֥אמֶר יְהֹונָתָ֖ן חָלִ֣ילָה לָּ֑ךְ כִּ֣י ׀ אִם־יָדֹ֣עַ אֵדַ֗ע כִּֽי־כָלְתָ֨ה הָרָעָ֜ה מֵעִ֤ם אָבִי֙ לָבֹ֣וא עָלֶ֔יךָ וְלֹ֥א אֹתָ֖הּ אַגִּ֥יד לָֽךְ׃ ס 9
“कभी नहीं!” योनातन ने कहा. “यदि मुझे लेश मात्र भी यह पता होता कि मेरे पिता तुम्हारा बुरा करने के लिए ठान चुके हैं, क्या मैं तुम्हें न बताता?”
וַיֹּ֤אמֶר דָּוִד֙ אֶל־יְהֹ֣ונָתָ֔ן מִ֖י יַגִּ֣יד לִ֑י אֹ֛ו מַה־יַּעַנְךָ֥ אָבִ֖יךָ קָשָֽׁה׃ ס 10
तब दावीद ने योनातन से कहा, “अब बताओ, तुम्हारे पिता द्वारा दिए गए प्रतिकूल उत्तर के विषय में कौन मुझे सूचित करेगा?”
וַיֹּ֤אמֶר יְהֹֽונָתָן֙ אֶל־דָּוִ֔ד לְכָ֖ה וְנֵצֵ֣א הַשָּׂדֶ֑ה וַיֵּצְא֥וּ שְׁנֵיהֶ֖ם הַשָּׂדֶֽה׃ ס 11
योनातन ने उनसे कहा, “आओ, बाहर मैदान में चलें.” जब वे दोनों मैदान में पहुंच गए.
וַיֹּ֨אמֶר יְהֹונָתָ֜ן אֶל־דָּוִ֗ד יְהוָ֞ה אֱלֹהֵ֤י יִשְׂרָאֵל֙ כִּֽי־אֶחְקֹ֣ר אֶת־אָבִ֗י כָּעֵ֤ת ׀ מָחָר֙ הַשְּׁלִשִׁ֔ית וְהִנֵּה־טֹ֖וב אֶל־דָּוִ֑ד וְלֹֽא־אָז֙ אֶשְׁלַ֣ח אֵלֶ֔יךָ וְגָלִ֖יתִי אֶת־אָזְנֶֽךָ׃ 12
योनातन ने दावीद से कहा, “याहवेह, इस्राएल के परमेश्वर मेरे गवाह हैं. कल या परसों लगभग इसी समय, जब मैं अपने पिता के सामने यह विषय छोड़ूंगा, यदि दावीद के विषय में उनकी मंशा अच्छी दिखाई दे, तो क्या में तुम्हें इसकी सूचना न दूंगा?
כֹּֽה־יַעֲשֶׂה֩ יְהוָ֨ה לִֽיהֹונָתָ֜ן וְכֹ֣ה יֹסִ֗יף כִּֽי־יֵיטִ֨ב אֶל־אָבִ֤י אֶת־הָֽרָעָה֙ עָלֶ֔יךָ וְגָלִ֙יתִי֙ אֶת־אָזְנֶ֔ךָ וְשִׁלַּחְתִּ֖יךָ וְהָלַכְתָּ֣ לְשָׁלֹ֑ום וִיהִ֤י יְהוָה֙ עִמָּ֔ךְ כַּאֲשֶׁ֥ר הָיָ֖ה עִם־אָבִֽי׃ 13
मगर यदि मेरे पिता का संतोष तुम्हारी बुराई में ही है, तब याहवेह यह सब, तथा इससे भी अधिक योनातन के साथ करें, यदि मैं तुम्हें इसके विषय में सूचित न करूं, और तुम्हें इसका समाचार न दूं, कि तुम यहां से सुरक्षा में विदा हो सको. याहवेह की उपस्थिति तुम्हारे साथ इसी प्रकार बनी रहे, जिस प्रकार मेरे पिता के साथ बनी रही थी.
וְלֹ֖א אִם־עֹודֶ֣נִּי חָ֑י וְלֹֽא־תַעֲשֶׂ֧ה עִמָּדִ֛י חֶ֥סֶד יְהוָ֖ה וְלֹ֥א אָמֽוּת׃ 14
जब तक मैं जीवित रहूं, मुझ पर याहवेह का अपार प्रेम प्रकट करते रहना,
וְלֹֽא־תַכְרִ֧ת אֶֽת־חַסְדְּךָ֛ מֵעִ֥ם בֵּיתִ֖י עַד־עֹולָ֑ם וְלֹ֗א בְּהַכְרִ֤ת יְהוָה֙ אֶת־אֹיְבֵ֣י דָוִ֔ד אִ֕ישׁ מֵעַ֖ל פְּנֵ֥י הָאֲדָמָֽה׃ 15
मगर यदि मेरी मृत्यु हो जाए, तो मेरे परिवार के प्रति अपने अपार प्रेम को कभी न भुलाना—हां, उस स्थिति में भी, जब याहवेह दावीद के सारा शत्रुओं का अस्तित्व धरती पर से मिटा देंगे.”
וַיִּכְרֹ֥ת יְהֹונָתָ֖ן עִם־בֵּ֣ית דָּוִ֑ד וּבִקֵּ֣שׁ יְהוָ֔ה מִיַּ֖ד אֹיְבֵ֥י דָוִֽד׃ 16
तब योनातन ने यह कहते हुए दावीद के परिवार से वाचा स्थापित की, “याहवेह दावीद के शत्रुओं से प्रतिशोध लें.”
וַיֹּ֤וסֶף יְהֹֽונָתָן֙ לְהַשְׁבִּ֣יעַ אֶת־דָּוִ֔ד בְּאַהֲבָתֹ֖ו אֹתֹ֑ו כִּֽי־אַהֲבַ֥ת נַפְשֹׁ֖ו אֲהֵבֹֽו׃ ס 17
एक बार फिर योनातन ने दावीद के साथ शपथ ली, क्योंकि दावीद उन्हें बहुत ही प्रिय थे. वस्तुतः योनातन को दावीद अपने ही प्राणों के समान प्रिय थे.
וַיֹּֽאמֶר־לֹ֥ו יְהֹונָתָ֖ן מָחָ֣ר חֹ֑דֶשׁ וְנִפְקַ֕דְתָּ כִּ֥י יִפָּקֵ֖ד מֹושָׁבֶֽךָ׃ 18
योनातन ने उनसे कहा, “कल नवचंद्र उत्सव है और तुम्हारा आसन रिक्त रहेगा तब सभी के सामने तुम्हारी अनुपस्थिति स्पष्ट हो जाएगी.
וְשִׁלַּשְׁתָּ֙ תֵּרֵ֣ד מְאֹ֔ד וּבָאתָ֙ אֶל־הַמָּקֹ֔ום אֲשֶׁר־נִסְתַּ֥רְתָּ שָּׁ֖ם בְּיֹ֣ום הַֽמַּעֲשֶׂ֑ה וְיָ֣שַׁבְתָּ֔ אֵ֖צֶל הָאֶ֥בֶן הָאָֽזֶל׃ 19
परसों शीघ्र ही उस स्थान पर, पत्थरों के ढेर के पीछे छिप जाना, जहां तुम पहले भी छिपे थे. तुम वहीं ठहरे रहना.
וַאֲנִ֕י שְׁלֹ֥שֶׁת הַחִצִּ֖ים צִדָּ֣ה אֹורֶ֑ה לְשַֽׁלַּֽח־לִ֖י לְמַטָּרָֽה׃ 20
मैं इस ढेर के निकट तीन बाण छोड़ूंगा, मानो में किसी लक्ष्य पर तीर छोड़ रहा हूं.
וְהִנֵּה֙ אֶשְׁלַ֣ח אֶת־הַנַּ֔עַר לֵ֖ךְ מְצָ֣א אֶת־הַחִצִּ֑ים אִם־אָמֹר֩ אֹמַ֨ר לַנַּ֜עַר הִנֵּ֥ה הַחִצִּ֣ים ׀ מִמְּךָ֣ וָהֵ֗נָּה קָחֶ֧נּוּ ׀ וָבֹ֛אָה כִּֽי־שָׁלֹ֥ום לְךָ֛ וְאֵ֥ין דָּבָ֖ר חַי־יְהוָֽה׃ 21
जब मैं लड़के को उन बाणों के पीछे भेजूंगा, मैं कहूंगा, ‘जाकर बाण खोज लाओ.’ और तब यदि मैं लड़के से कहूं, ‘वह देखो, बाण तुम्हारे इसी ओर हैं,’ ले आओ उन्हें, तब तुम यहां लौट आना, क्योंकि जीवन्त याहवेह की शपथ, तुम्हारे लिए कोई जोखिम न होगा और तुम पूर्णतः सुरक्षित हो.
וְאִם־כֹּ֤ה אֹמַר֙ לָעֶ֔לֶם הִנֵּ֥ה הַחִצִּ֖ים מִמְּךָ֣ וָהָ֑לְאָה לֵ֕ךְ כִּ֥י שִֽׁלַּחֲךָ֖ יְהוָֽה׃ 22
मगर यदि मैं लड़के से यह कहूं, ‘सुनो! बाण तुम्हारी दूसरी ओर हैं,’ तब तुम्हें भागना होगा, क्योंकि याहवेह ने तुम्हें दूर भेजना चाहा है.
וְהַ֨דָּבָ֔ר אֲשֶׁ֥ר דִּבַּ֖רְנוּ אֲנִ֣י וָאָ֑תָּה הִנֵּ֧ה יְהוָ֛ה בֵּינִ֥י וּבֵינְךָ֖ עַד־עֹולָֽם׃ ס 23
जिस विषय पर हम दोनों के बीच चर्चा हुई है, उसका सदा-सर्वदा के लिए याहवेह हमारे गवाह हैं.”
וַיִּסָּתֵ֥ר דָּוִ֖ד בַּשָּׂדֶ֑ה וַיְהִ֣י הַחֹ֔דֶשׁ וַיֵּ֧שֶׁב הַמֶּ֛לֶךְ עַל־ (אֶל)־הַלֶּ֖חֶם לֶאֱכֹֽול׃ 24
तब दावीद जाकर मैदान में छिप गए. नवचंद्र उत्सव के मौके पर राजा भोज के लिए तैयार हुए.
וַיֵּ֣שֶׁב הַ֠מֶּלֶךְ עַל־מֹ֨ושָׁבֹ֜ו כְּפַ֣עַם ׀ בְּפַ֗עַם אֶל־מֹושַׁב֙ הַקִּ֔יר וַיָּ֙קָם֙ יְהֹ֣ונָתָ֔ן וַיֵּ֥שֶׁב אַבְנֵ֖ר מִצַּ֣ד שָׁא֑וּל וַיִּפָּקֵ֖ד מְקֹ֥ום דָּוִֽד׃ 25
राजा अपने निर्धारित स्थान पर बैठे थे, जो दीवार के निकट था. योनातन का स्थान उनके ठीक सामने था. सेनापति अबनेर शाऊल के निकट बैठे थे. दावीद का आसन खाली था.
וְלֹֽא־דִבֶּ֥ר שָׁא֛וּל מְא֖וּמָה בַּיֹּ֣ום הַה֑וּא כִּ֤י אָמַר֙ מִקְרֶ֣ה ה֔וּא בִּלְתִּ֥י טָהֹ֛ור ה֖וּא כִּֽי־לֹ֥א טָהֹֽור׃ ס 26
शाऊल ने इस विषय में कोई प्रश्न नहीं किया; इस विचार में “उसके साथ अवश्य कुछ हो गया है; वह सांस्कारिक रूप से आज अशुद्ध होगा. हां, वह अशुद्ध ही होगा.”
וַיְהִ֗י מִֽמָּחֳרַ֤ת הַחֹ֙דֶשׁ֙ הַשֵּׁנִ֔י וַיִּפָּקֵ֖ד מְקֹ֣ום דָּוִ֑ד ס וַיֹּ֤אמֶר שָׁאוּל֙ אֶל־יְהֹונָתָ֣ן בְּנֹ֔ו מַדּ֜וּעַ לֹא־בָ֧א בֶן־יִשַׁ֛י גַּם־תְּמֹ֥ול גַּם־הַיֹּ֖ום אֶל־הַלָּֽחֶם׃ 27
मगर जब दूसरे दिन भी, नवचंद्र दिवस के दूसरे दिन भी, दावीद का आसन रिक्त ही था, शाऊल ने योनातन से पूछा, “क्या कारण है यिशै का पुत्र न तो कल भोजन पर आया, न ही आज भी?”
וַיַּ֥עַן יְהֹונָתָ֖ן אֶת־שָׁא֑וּל נִשְׁאֹ֨ל נִשְׁאַ֥ל דָּוִ֛ד מֵעִמָּדִ֖י עַד־בֵּ֥ית לָֽחֶם׃ 28
योनातन ने शाऊल को उत्तर दिया, “दावीद ने एक बहुत ही आवश्यक काम के लिए मुझसे बेथलेहेम जाने की अनुमति ली है.
וַיֹּ֡אמֶר שַׁלְּחֵ֣נִי נָ֡א כִּ֣י זֶבַח֩ מִשְׁפָּחָ֨ה לָ֜נוּ בָּעִ֗יר וְה֤וּא צִוָּֽה־לִי֙ אָחִ֔י וְעַתָּ֗ה אִם־מָצָ֤אתִי חֵן֙ בְּעֵינֶ֔יךָ אִמָּ֥לְטָה נָּ֖א וְאֶרְאֶ֣ה אֶת־אֶחָ֑י עַל־כֵּ֣ן לֹא־בָ֔א אֶל־שֻׁלְחַ֖ן הַמֶּֽלֶךְ׃ ס 29
उसने विनती की, ‘मुझे जाने की अनुमति दो, क्योंकि हम अपने गृहनगर में बलि अर्पण कर रहे हैं. और मेरे भाई ने आग्रह किया है कि मैं वहां आ जाऊं, तब यदि मुझ पर तुम्हारी कृपादृष्टि है, मुझे मेरे भाइयों से भेंटकरने की अनुमति दीजिए.’ इसलिये आज वह इस भोज में शामिल नहीं हो सका है.”
וַיִּֽחַר־אַ֤ף שָׁאוּל֙ בִּיהֹ֣ונָתָ֔ן וַיֹּ֣אמֶר לֹ֔ו בֶּֽן־נַעֲוַ֖ת הַמַּרְדּ֑וּת הֲלֹ֣וא יָדַ֗עְתִּי כִּֽי־בֹחֵ֤ר אַתָּה֙ לְבֶן־יִשַׁ֔י לְבָ֨שְׁתְּךָ֔ וּלְבֹ֖שֶׁת עֶרְוַ֥ת אִמֶּֽךָ׃ 30
यह सुनते ही योनातन पर शाऊल का क्रोध भड़क उठा, वह कहने लगे, “भ्रष्‍ट और विद्रोही स्त्री की संतान! क्या मैं समझ नहीं रहा, कि तूने अपनी लज्जा तथा अपनी मां की लज्जा के लिए यिशै के पुत्र का पक्ष ले रहा है?
כִּ֣י כָל־הַיָּמִ֗ים אֲשֶׁ֤ר בֶּן־יִשַׁי֙ חַ֣י עַל־הָאֲדָמָ֔ה לֹ֥א תִכֹּ֖ון אַתָּ֣ה וּמַלְכוּתֶ֑ךָ וְעַתָּ֗ה שְׁלַ֨ח וְקַ֤ח אֹתֹו֙ אֵלַ֔י כִּ֥י בֶן־מָ֖וֶת הֽוּא׃ ס 31
यह समझ ले, कि जब तक इस पृथ्वी पर यिशै का पुत्र जीवित है, तब तक न तो तू, और न तेरा राज्य प्रतिष्ठित हो सकेगा. अब जा और उसे यहां लेकर आ, क्योंकि उसकी मृत्यु निश्चित है!”
וַיַּ֙עַן֙ יְהֹ֣ונָתָ֔ן אֶת־שָׁא֖וּל אָבִ֑יו וַיֹּ֧אמֶר אֵלָ֛יו לָ֥מָּה יוּמַ֖ת מֶ֥ה עָשָֽׂה׃ 32
योनातन ने अपने पिता शाऊल से प्रश्न किया, “क्यों है उसकी मृत्यु निश्चित? क्या किया है उसने ऐसा?”
וַיָּ֨טֶל שָׁא֧וּל אֶֽת־הַחֲנִ֛ית עָלָ֖יו לְהַכֹּתֹ֑ו וַיֵּ֙דַע֙ יְהֹ֣ונָתָ֔ן כִּֽי־כָ֥לָה הִ֛יא מֵעִ֥ם אָבִ֖יו לְהָמִ֥ית אֶת־דָּוִֽד׃ ס 33
यह सुनते ही शाऊल ने भाला फेंककर योनातन को घात करना चाहा. अब योनातन को यह निश्चय हो गया, कि उसके पिता दावीद की हत्या के लिए दृढ़ संकल्प किया हैं.
וַיָּ֧קָם יְהֹונָתָ֛ן מֵעִ֥ם הַשֻּׁלְחָ֖ן בָּחֳרִי־אָ֑ף וְלֹא־אָכַ֞ל בְּיֹום־הַחֹ֤דֶשׁ הַשֵּׁנִי֙ לֶ֔חֶם כִּ֤י נֶעְצַב֙ אֶל־דָּוִ֔ד כִּ֥י הִכְלִמֹ֖ו אָבִֽיו׃ ס 34
क्रोध से अभिभूत योनातन भोजन छोड़ उठ गए; नवचंद्र के दूसरे दिन भी उन्होंने भोजन न किया, क्योंकि वह अपने पिता के व्यवहार से लज्जित तथा दावीद के लिए शोकाकुल थे.
וַיְהִ֣י בַבֹּ֔קֶר וַיֵּצֵ֧א יְהֹונָתָ֛ן הַשָּׂדֶ֖ה לְמֹועֵ֣ד דָּוִ֑ד וְנַ֥עַר קָטֹ֖ן עִמֹּֽו׃ 35
प्रातःकाल योनातन एक लड़के को लेकर दावीद से भेंटकरने मैदान में नियमित स्थान पर पहुंचे.
וַיֹּ֣אמֶר לְנַעֲרֹ֔ו רֻ֗ץ מְצָ֥א נָא֙ אֶת־הַ֣חִצִּ֔ים אֲשֶׁ֥ר אָנֹכִ֖י מֹורֶ֑ה הַנַּ֣עַר רָ֔ץ וְהֽוּא־יָרָ֥ה הַחֵ֖צִי לְהַעֲבִרֹֽו׃ 36
उन्होंने उस लड़के को आदेश दिया, “दौड़कर उन बाणों को खोज लाओ जो मैं छोड़ने पर हूं.” जैसे ही लड़के ने दौड़ना शुरू किया, योनातन ने एक बाण उसके आगे लक्ष्य करते हुए छोड़ दिया.
וַיָּבֹ֤א הַנַּ֙עַר֙ עַד־מְקֹ֣ום הַחֵ֔צִי אֲשֶׁ֥ר יָרָ֖ה יְהֹונָתָ֑ן וַיִּקְרָ֨א יְהֹונָתָ֜ן אַחֲרֵ֤י הַנַּ֙עַר֙ וַיֹּ֔אמֶר הֲלֹ֥וא הַחֵ֖צִי מִמְּךָ֥ וָהָֽלְאָה׃ 37
जब वह लड़का उस स्थल के निकट पहुंचा, योनातन ने पुकारते हुए उससे कहा, “क्या वह बाण तुमसे आगे नहीं गिरा है?”
וַיִּקְרָ֤א יְהֹֽונָתָן֙ אַחֲרֵ֣י הַנַּ֔עַר מְהֵרָ֥ה ח֖וּשָׁה אַֽל־תַּעֲמֹ֑ד וַיְלַקֵּ֞ט נַ֤עַר יְהֹֽונָתָן֙ אֶת־הַחֵצִי (הַ֣חִצִּ֔ים) וַיָּבֹ֖א אֶל־אֲדֹנָֽיו׃ 38
योनातन ने फिर पुकारा, “जल्दी करो! दौड़ो विलंब न करो!” लड़का बाण उठाकर अपने स्वामी के पास लौट आया.
וְהַנַּ֖עַר לֹֽא־יָדַ֣ע מְא֑וּמָה אַ֤ךְ יְהֹֽונָתָן֙ וְדָוִ֔ד יָדְע֖וּ אֶת־הַדָּבָֽר׃ 39
(यह सब क्या हो रहा था, इसका उस लड़के को लेश मात्र भी पता नहीं था. रहस्य सिर्फ दावीद और योनातन के मध्य सीमित था.)
וַיִּתֵּ֤ן יְהֹֽונָתָן֙ אֶת־כֵּלָ֔יו אֶל־הַנַּ֖עַר אֲשֶׁר־לֹ֑ו וַיֹּ֣אמֶר לֹ֔ו לֵ֖ךְ הָבֵ֥יא הָעִֽיר׃ 40
इसके बाद योनातन ने अपने शस्त्र उस लड़के को इस आदेश के साथ सौंप दिए, “इन्हें लेकर नगर लौट जाओ.”
הַנַּעַר֮ בָּא֒ וְדָוִ֗ד קָ֚ם מֵאֵ֣צֶל הַנֶּ֔גֶב וַיִּפֹּ֨ל לְאַפָּ֥יו אַ֛רְצָה וַיִּשְׁתַּ֖חוּ שָׁלֹ֣שׁ פְּעָמִ֑ים וַֽיִּשְּׁק֣וּ ׀ אִ֣ישׁ אֶת־רֵעֵ֗הוּ וַיִּבְכּוּ֙ אִ֣ישׁ אֶת־רֵעֵ֔הוּ עַד־דָּוִ֖ד הִגְדִּֽיל׃ 41
जब वह लड़का वहां से चला गया, दावीद ने पत्थरों के उस ढेर के पीछे से उठकर योनातन को नमन किया. तब दोनों एक दूसरे का चुंबन करते हुए रोते रहे—दावीद अधिक रो रहे थे.
וַיֹּ֧אמֶר יְהֹונָתָ֛ן לְדָוִ֖ד לֵ֣ךְ לְשָׁלֹ֑ום אֲשֶׁר֩ נִשְׁבַּ֨עְנוּ שְׁנֵ֜ינוּ אֲנַ֗חְנוּ בְּשֵׁ֤ם יְהוָה֙ לֵאמֹ֔ר יְהוָ֞ה יִֽהְיֶ֣ה ׀ בֵּינִ֣י וּבֵינֶ֗ךָ וּבֵ֥ין זַרְעִ֛י וּבֵ֥ין זַרְעֲךָ֖ עַד־עֹולָֽם׃ פ 42
योनातन ने दावीद से कहा, “तुम यहां से शांतिपूर्वक विदा हो जाओ, क्योंकि हमने याहवेह के नाम में यह वाचा बांधी है, ‘मेरे और तुम्हारे बीच तथा मेरे तथा तुम्हारे वंशजों के मध्य याहवेह, हमेशा के गवाह हैं.’” तब दावीद वहां से चले गए और योनातन अपने घर लौट गए.

< 1 שְׁמוּאֵל 20 >