< שופטים 19 >

וַֽיְהִי בַּיָּמִים הָהֵם וּמֶלֶךְ אֵין בְּיִשְׂרָאֵל וַיְהִי ׀ אִישׁ לֵוִי גָּר בְּיַרְכְּתֵי הַר־אֶפְרַיִם וַיִּֽקַּֽח־לוֹ אִשָּׁה פִילֶגֶשׁ מִבֵּית לֶחֶם יְהוּדָֽה׃ 1
उन दिनों में जब इस्राएलियों का कोई राजा न था, तब एक लेवीय पुरुष एप्रैम के पहाड़ी देश की परली ओर परदेशी होकर रहता था, जिसने यहूदा के बैतलहम में की एक रखैल रख ली थी।
וַתִּזְנֶה עָלָיו פִּֽילַגְשׁוֹ וַתֵּלֶךְ מֵֽאִתּוֹ אֶל־בֵּית אָבִיהָ אֶל־בֵּית לֶחֶם יְהוּדָה וַתְּהִי־שָׁם יָמִים אַרְבָּעָה חֳדָשִֽׁים׃ 2
उसकी रखैल व्यभिचार करके यहूदा के बैतलहम को अपने पिता के घर चली गई, और चार महीने वहीं रही।
וַיָּקׇם אִישָׁהּ וַיֵּלֶךְ אַחֲרֶיהָ לְדַבֵּר עַל־לִבָּהּ (להשיבו) [לַהֲשִׁיבָהּ] וְנַעֲרוֹ עִמּוֹ וְצֶמֶד חֲמֹרִים וַתְּבִיאֵהוּ בֵּית אָבִיהָ וַיִּרְאֵהוּ אֲבִי הַֽנַּעֲרָה וַיִּשְׂמַח לִקְרָאתֽוֹ׃ 3
तब उसका पति अपने साथ एक सेवक और दो गदहे लेकर चला, और उसके यहाँ गया, कि उसे समझा बुझाकर ले आए। वह उसे अपने पिता के घर ले गई, और उस जवान स्त्री का पिता उसे देखकर उसकी भेंट से आनन्दित हुआ।
וַיַּחֲזֶק־בּוֹ חֹתְנוֹ אֲבִי הַֽנַּעֲרָה וַיֵּשֶׁב אִתּוֹ שְׁלֹשֶׁת יָמִים וַיֹּאכְלוּ וַיִּשְׁתּוּ וַיָּלִינוּ שָֽׁם׃ 4
तब उसके ससुर अर्थात् उस स्त्री के पिता ने विनती करके उसे रोक लिया, और वह तीन दिन तक उसके पास रहा; इसलिए वे वहाँ खाते पीते टिके रहे।
וַֽיְהִי בַּיּוֹם הָרְבִיעִי וַיַּשְׁכִּימוּ בַבֹּקֶר וַיָּקׇם לָלֶכֶת וַיֹּאמֶר אֲבִי הַֽנַּעֲרָה אֶל־חֲתָנוֹ סְעָד לִבְּךָ פַּת־לֶחֶם וְאַחַר תֵּלֵֽכוּ׃ 5
चौथे दिन जब वे भोर को सवेरे उठे, और वह चलने को हुआ; तब स्त्री के पिता ने अपने दामाद से कहा, “एक टुकड़ा रोटी खाकर अपना जी ठंडा कर, तब तुम लोग चले जाना।”
וַיֵּשְׁבוּ וַיֹּאכְלוּ שְׁנֵיהֶם יַחְדָּו וַיִּשְׁתּוּ וַיֹּאמֶר אֲבִי הַֽנַּעֲרָה אֶל־הָאִישׁ הוֹאֶל־נָא וְלִין וְיִיטַב לִבֶּֽךָ׃ 6
तब उन दोनों ने बैठकर संग-संग खाया पिया; फिर स्त्री के पिता ने उस पुरुष से कहा, “और एक रात टिके रहने को प्रसन्न हो और आनन्द कर।”
וַיָּקׇם הָאִישׁ לָלֶכֶת וַיִּפְצַר־בּוֹ חֹֽתְנוֹ וַיָּשׇׁב וַיָּלֶן שָֽׁם׃ 7
वह पुरुष विदा होने को उठा, परन्तु उसके ससुर ने विनती करके उसे दबाया, इसलिए उसने फिर उसके यहाँ रात बिताई।
וַיַּשְׁכֵּם בַּבֹּקֶר בַּיּוֹם הַחֲמִישִׁי לָלֶכֶת וַיֹּאמֶר ׀ אֲבִי הַֽנַּעֲרָה סְעׇד־נָא לְבָבְךָ וְהִֽתְמַהְמְהוּ עַד־נְטוֹת הַיּוֹם וַיֹּאכְלוּ שְׁנֵיהֶֽם׃ 8
पाँचवें दिन भोर को वह तो विदा होने को सवेरे उठा; परन्तु स्त्री के पिता ने कहा, “अपना जी ठंडा कर, और तुम दोनों दिन ढलने तक रुके रहो।” तब उन दोनों ने रोटी खाई।
וַיָּקׇם הָאִישׁ לָלֶכֶת הוּא וּפִילַגְשׁוֹ וְנַעֲרוֹ וַיֹּאמֶר לוֹ חֹתְנוֹ אֲבִי הַֽנַּעֲרָה הִנֵּה נָא רָפָה הַיּוֹם לַעֲרוֹב לִֽינוּ־נָא הִנֵּה חֲנוֹת הַיּוֹם לִין פֹּה וְיִיטַב לְבָבֶךָ וְהִשְׁכַּמְתֶּם מָחָר לְדַרְכְּכֶם וְהָלַכְתָּ לְאֹהָלֶֽךָ׃ 9
जब वह पुरुष अपनी रखैल और सेवक समेत विदा होने को उठा, तब उसके ससुर अर्थात् स्त्री के पिता ने उससे कहा, “देख दिन तो ढल चला है, और साँझ होने पर है; इसलिए तुम लोग रात भर टिके रहो। देख, दिन तो डूबने पर है; इसलिए यहीं आनन्द करता हुआ रात बिता, और सवेरे को उठकर अपना मार्ग लेना, और अपने डेरे को चले जाना।”
וְלֹֽא־אָבָה הָאִישׁ לָלוּן וַיָּקׇם וַיֵּלֶךְ וַיָּבֹא עַד־נֹכַח יְבוּס הִיא יְרוּשָׁלָ͏ִם וְעִמּוֹ צֶמֶד חֲמוֹרִים חֲבוּשִׁים וּפִילַגְשׁוֹ עִמּֽוֹ׃ 10
१०परन्तु उस पुरुष ने उस रात को टिकना न चाहा, इसलिए वह उठकर विदा हुआ, और काठी बाँधे हुए दो गदहे और अपनी रखैल संग लिए हुए यबूस के सामने तक (जो यरूशलेम कहलाता है) पहुँचा।
הֵם עִם־יְבוּס וְהַיּוֹם רַד מְאֹד וַיֹּאמֶר הַנַּעַר אֶל־אֲדֹנָיו לְכָה־נָּא וְנָסוּרָה אֶל־עִֽיר־הַיְבוּסִי הַזֹּאת וְנָלִין בָּֽהּ׃ 11
११वे यबूस के पास थे, और दिन बहुत ढल गया था, कि सेवक ने अपने स्वामी से कहा, “आ, हम यबूसियों के इस नगर में मुड़कर टिकें।”
וַיֹּאמֶר אֵלָיו אֲדֹנָיו לֹא נָסוּר אֶל־עִיר נׇכְרִי אֲשֶׁר לֹא־מִבְּנֵי יִשְׂרָאֵל הֵנָּה וְעָבַרְנוּ עַד־גִּבְעָֽה׃ 12
१२उसके स्वामी ने उससे कहा, “हम पराए नगर में जहाँ कोई इस्राएली नहीं रहता, न उतरेंगे; गिबा तक बढ़ जाएँगे।”
וַיֹּאמֶר לְנַֽעֲרוֹ לְךָ וְנִקְרְבָה בְּאַחַד הַמְּקֹמוֹת וְלַנּוּ בַגִּבְעָה אוֹ בָרָמָֽה׃ 13
१३फिर उसने अपने सेवक से कहा, “आ, हम उधर के स्थानों में से किसी के पास जाएँ, हम गिबा या रामाह में रात बिताएँ।”
וַיַּעַבְרוּ וַיֵּלֵכוּ וַתָּבֹא לָהֶם הַשֶּׁמֶשׁ אֵצֶל הַגִּבְעָה אֲשֶׁר לְבִנְיָמִֽן׃ 14
१४और वे आगे की ओर चले; और उनके बिन्यामीन के गिबा के निकट पहुँचते-पहुँचते सूर्य अस्त हो गया,
וַיָּסֻרוּ שָׁם לָבוֹא לָלוּן בַּגִּבְעָה וַיָּבֹא וַיֵּשֶׁב בִּרְחוֹב הָעִיר וְאֵין אִישׁ מְאַסֵּֽף־אוֹתָם הַבַּיְתָה לָלֽוּן׃ 15
१५इसलिए वे गिबा में टिकने के लिये उसकी ओर मुड़ गए। और वह भीतर जाकर उस नगर के चौक में बैठ गया, क्योंकि किसी ने उनको अपने घर में न टिकाया।
וְהִנֵּה ׀ אִישׁ זָקֵן בָּא מִֽן־מַעֲשֵׂהוּ מִן־הַשָּׂדֶה בָּעֶרֶב וְהָאִישׁ מֵהַר אֶפְרַיִם וְהוּא־גָר בַּגִּבְעָה וְאַנְשֵׁי הַמָּקוֹם בְּנֵי יְמִינִֽי׃ 16
१६तब एक बूढ़ा अपने खेत के काम को निपटाकर साँझ को चला आया; वह तो एप्रैम के पहाड़ी देश का था, और गिबा में परदेशी होकर रहता था; परन्तु उस स्थान के लोग बिन्यामीनी थे।
וַיִּשָּׂא עֵינָיו וַיַּרְא אֶת־הָאִישׁ הָאֹרֵחַ בִּרְחֹב הָעִיר וַיֹּאמֶר הָאִישׁ הַזָּקֵן אָנָה תֵלֵךְ וּמֵאַיִן תָּבֽוֹא׃ 17
१७उसने आँखें उठाकर उस यात्री को नगर के चौक में बैठे देखा; और उस बूढ़े ने पूछा, “तू किधर जाता, और कहाँ से आता है?”
וַיֹּאמֶר אֵלָיו עֹבְרִים אֲנַחְנוּ מִבֵּֽית־לֶחֶם יְהוּדָה עַד־יַרְכְּתֵי הַר־אֶפְרַיִם מִשָּׁם אָנֹכִי וָאֵלֵךְ עַד־בֵּית לֶחֶם יְהוּדָה וְאֶת־בֵּית יְהֹוָה אֲנִי הֹלֵךְ וְאֵין אִישׁ מְאַסֵּף אוֹתִי הַבָּֽיְתָה׃ 18
१८उसने उससे कहा, “हम लोग तो यहूदा के बैतलहम से आकर एप्रैम के पहाड़ी देश की परली ओर जाते हैं, मैं तो वहीं का हूँ; और यहूदा के बैतलहम तक गया था, और अब यहोवा के भवन को जाता हूँ, परन्तु कोई मुझे अपने घर में नहीं टिकाता।
וְגַם־תֶּבֶן גַּם־מִסְפּוֹא יֵשׁ לַחֲמוֹרֵינוּ וְגַם לֶחֶם וָיַיִן יֶשׁ־לִי וְלַאֲמָתֶךָ וְלַנַּעַר עִם־עֲבָדֶיךָ אֵין מַחְסוֹר כׇּל־דָּבָֽר׃ 19
१९हमारे पास तो गदहों के लिये पुआल और चारा भी है, और मेरे और तेरी इस दासी और इस जवान के लिये भी जो तेरे दासों के संग है रोटी और दाखमधु भी है; हमें किसी वस्तु की घटी नहीं है।”
וַיֹּאמֶר הָאִישׁ הַזָּקֵן שָׁלוֹם לָךְ רַק כׇּל־מַחְסוֹרְךָ עָלָי רַק בָּרְחוֹב אַל־תָּלַֽן׃ 20
२०बूढ़े ने कहा, “तेरा कल्याण हो; तेरे प्रयोजन की सब वस्तुएँ मेरे सिर हों; परन्तु रात को चौक में न बिता।”
וַיְבִיאֵהוּ לְבֵיתוֹ (ויבול) [וַיָּבׇל] לַחֲמוֹרִים וַֽיִּרְחֲצוּ רַגְלֵיהֶם וַיֹּאכְלוּ וַיִּשְׁתּֽוּ׃ 21
२१तब वह उसको अपने घर ले चला, और गदहों को चारा दिया; तब वे पाँव धोकर खाने-पीने लगे।
הֵמָּה מֵיטִיבִים אֶת־לִבָּם וְהִנֵּה אַנְשֵׁי הָעִיר אַנְשֵׁי בְנֵי־בְלִיַּעַל נָסַבּוּ אֶת־הַבַּיִת מִֽתְדַּפְּקִים עַל־הַדָּלֶת וַיֹּאמְרוּ אֶל־הָאִישׁ בַּעַל הַבַּיִת הַזָּקֵן לֵאמֹר הוֹצֵא אֶת־הָאִישׁ אֲשֶׁר־בָּא אֶל־בֵּיתְךָ וְנֵדָעֶֽנּוּ׃ 22
२२वे आनन्द कर रहे थे, कि नगर के लुच्चों ने घर को घेर लिया, और द्वार को खटखटा-खटखटाकर घर के उस बूढ़े स्वामी से कहने लगे, “जो पुरुष तेरे घर में आया, उसे बाहर ले आ, कि हम उससे भोग करें।”
וַיֵּצֵא אֲלֵיהֶם הָאִישׁ בַּעַל הַבַּיִת וַיֹּאמֶר אֲלֵהֶם אַל־אַחַי אַל־תָּרֵעוּ נָא אַחֲרֵי אֲשֶׁר־בָּא הָאִישׁ הַזֶּה אֶל־בֵּיתִי אַֽל־תַּעֲשׂוּ אֶת־הַנְּבָלָה הַזֹּֽאת׃ 23
२३घर का स्वामी उनके पास बाहर जाकर उनसे कहने लगा, “नहीं, नहीं, हे मेरे भाइयों, ऐसी बुराई न करो; यह पुरुष जो मेरे घर पर आया है, इससे ऐसी मूर्खता का काम मत करो।
הִנֵּה בִתִּי הַבְּתוּלָה וּפִילַגְשֵׁהוּ אֽוֹצִיאָה־נָּא אוֹתָם וְעַנּוּ אוֹתָם וַעֲשׂוּ לָהֶם הַטּוֹב בְּעֵינֵיכֶם וְלָאִישׁ הַזֶּה לֹא תַֽעֲשׂוּ דְּבַר הַנְּבָלָה הַזֹּֽאת׃ 24
२४देखो, यहाँ मेरी कुँवारी बेटी है, और उस पुरुष की रखैल भी है; उनको मैं बाहर ले आऊँगा। और उनका पत-पानी लो तो लो, और उनसे तो जो चाहो सो करो; परन्तु इस पुरुष से ऐसी मूर्खता का काम मत करो।”
וְלֹֽא־אָבוּ הָֽאֲנָשִׁים לִשְׁמֹעַֽ לוֹ וַיַּחֲזֵק הָאִישׁ בְּפִילַגְשׁוֹ וַיֹּצֵא אֲלֵיהֶם הַחוּץ וַיֵּדְעוּ אוֹתָהּ וַיִּֽתְעַלְּלוּ־בָהּ כׇּל־הַלַּיְלָה עַד־הַבֹּקֶר וַֽיְשַׁלְּחוּהָ (בעלות) [כַּעֲלוֹת] הַשָּֽׁחַר׃ 25
२५परन्तु उन मनुष्यों ने उसकी न मानी। तब उस पुरुष ने अपनी रखैल को पकड़कर उनके पास बाहर कर दिया; और उन्होंने उससे कुकर्म किया, और रात भर क्या भोर तक उससे लीलाक्रीड़ा करते रहे। और पौ फटते ही उसे छोड़ दिया।
וַתָּבֹא הָאִשָּׁה לִפְנוֹת הַבֹּקֶר וַתִּפֹּל פֶּתַח בֵּית־הָאִישׁ אֲשֶׁר־אֲדוֹנֶיהָ שָּׁם עַד־הָאֽוֹר׃ 26
२६तब वह स्त्री पौ फटते ही जा के उस मनुष्य के घर के द्वार पर जिसमें उसका पति था गिर गई, और उजियाले के होने तक वहीं पड़ी रही।
וַיָּקׇם אֲדֹנֶיהָ בַּבֹּקֶר וַיִּפְתַּח דַּלְתוֹת הַבַּיִת וַיֵּצֵא לָלֶכֶת לְדַרְכּוֹ וְהִנֵּה הָאִשָּׁה פִֽילַגְשׁוֹ נֹפֶלֶת פֶּתַח הַבַּיִת וְיָדֶיהָ עַל־הַסַּֽף׃ 27
२७सवेरे जब उसका पति उठ, घर का द्वार खोल, अपना मार्ग लेने को बाहर गया, तो क्या देखा, कि उसकी रखैल घर के द्वार के पास डेवढ़ी पर हाथ फैलाए हुए पड़ी है।
וַיֹּאמֶר אֵלֶיהָ קוּמִי וְנֵלֵכָה וְאֵין עֹנֶה וַיִּקָּחֶהָ עַֽל־הַחֲמוֹר וַיָּקׇם הָאִישׁ וַיֵּלֶךְ לִמְקֹמֽוֹ׃ 28
२८उसने उससे कहा, “उठ हम चलें।” जब कोई उत्तर न मिला, तब वह उसको गदहे पर लादकर अपने स्थान को गया।
וַיָּבֹא אֶל־בֵּיתוֹ וַיִּקַּח אֶת־הַֽמַּאֲכֶלֶת וַיַּחֲזֵק בְּפִֽילַגְשׁוֹ וַֽיְנַתְּחֶהָ לַעֲצָמֶיהָ לִשְׁנֵים עָשָׂר נְתָחִים וַֽיְשַׁלְּחֶהָ בְּכֹל גְּבוּל יִשְׂרָאֵֽל׃ 29
२९जब वह अपने घर पहुँचा, तब छूरी ले रखैल को अंग-अंग करके काटा; और उसे बारह टुकड़े करके इस्राएल के देश में भेज दिया।
וְהָיָה כׇל־הָרֹאֶה וְאָמַר לֹֽא־נִהְיְתָה וְלֹֽא־נִרְאֲתָה כָּזֹאת לְמִיּוֹם עֲלוֹת בְּנֵֽי־יִשְׂרָאֵל מֵאֶרֶץ מִצְרַיִם עַד הַיּוֹם הַזֶּה שִׂימוּ־לָכֶם עָלֶיהָ עֻצוּ וְדַבֵּֽרוּ׃ 30
३०जितनों ने उसे देखा, वे सब आपस में कहने लगे, “इस्राएलियों के मिस्र देश से चले आने के समय से लेकर आज के दिन तक ऐसा कुछ कभी नहीं हुआ, और न देखा गया; अतः इस पर सोचकर सम्मति करो, और बताओ।”

< שופטים 19 >