< איוב 3 >
וישבו אתו לארץ שבעת ימים ושבעת לילות ואין דבר אליו דבר--כי ראו כי גדל הכאב מאד | 1 |
इसके बाद अय्यूब ने अपना मुँह खोल कर अपने पैदाइश के दिन पर ला'नत की।
וישבו אתו לארץ שבעת ימים ושבעת לילות ואין דבר אליו דבר--כי ראו כי גדל הכאב מאד | 2 |
और अय्यूब कहने लगा:
וישבו אתו לארץ שבעת ימים ושבעת לילות ואין דבר אליו דבר--כי ראו כי גדל הכאב מאד | 3 |
“मिट जाए वह दिन जिसमें मैं पैदा हुआ, और वह रात भी जिसमें कहा गया, 'कि देखो, बेटा हुआ।”
וישבו אתו לארץ שבעת ימים ושבעת לילות ואין דבר אליו דבר--כי ראו כי גדל הכאב מאד | 4 |
वह दिन अँधेरा हो जाए। ख़ुदा ऊपर से उसका लिहाज़ न करे, और न उस पर रोशनी पड़े।
וישבו אתו לארץ שבעת ימים ושבעת לילות ואין דבר אליו דבר--כי ראו כי גדל הכאב מאד | 5 |
अँधेरा और मौत का साया उस पर क़ाबिज़ हो। बदली उस पर छाई रहे और दिन को तारीक कर देनेवाली चीज़ें उसे दहशत ज़दा करें।
וישבו אתו לארץ שבעת ימים ושבעת לילות ואין דבר אליו דבר--כי ראו כי גדל הכאב מאד | 6 |
गहरी तारीकी उस रात को दबोच ले। वह साल के दिनों के बीच ख़ुशी न करने पाए, और न महीनों की ता'दाद में आए।
וישבו אתו לארץ שבעת ימים ושבעת לילות ואין דבר אליו דבר--כי ראו כי גדל הכאב מאד | 7 |
वह रात बाँझ हो जाए; उसमें ख़ुशी की कोई आवाज़ न आए।
וישבו אתו לארץ שבעת ימים ושבעת לילות ואין דבר אליו דבר--כי ראו כי גדל הכאב מאד | 8 |
दिन पर ला'नत करने वाले उस पर ला'नत करें और वह भी जो अज़दह “को छेड़ने को तैयार हैं।
וישבו אתו לארץ שבעת ימים ושבעת לילות ואין דבר אליו דבר--כי ראו כי גדל הכאב מאד | 9 |
उसकी शाम के तारे तारीक हो जाएँ, वह रोशनी की राह देखे, जबकि वह है नहीं, और न वह सुबह की पलकों को देखे।
וישבו אתו לארץ שבעת ימים ושבעת לילות ואין דבר אליו דבר--כי ראו כי גדל הכאב מאד | 10 |
क्यूँकि उसने मेरी माँ के रहम के दरवाज़ों को बंद न किया और दुख को मेरी आँखों से छिपा न रख्खा।
וישבו אתו לארץ שבעת ימים ושבעת לילות ואין דבר אליו דבר--כי ראו כי גדל הכאב מאד | 11 |
मैं रहम ही में क्यूँ न मर गया? मैंने पेट से निकलते ही जान क्यूँ न दे दी?
וישבו אתו לארץ שבעת ימים ושבעת לילות ואין דבר אליו דבר--כי ראו כי גדל הכאב מאד | 12 |
मुझे क़ुबूल करने को घुटने क्यूँ थे, और छातियाँ कि मैं उनसे पियूँ?
וישבו אתו לארץ שבעת ימים ושבעת לילות ואין דבר אליו דבר--כי ראו כי גדל הכאב מאד | 13 |
नहीं तो इस वक़्त मैं पड़ा होता, और बेख़बर रहता, मैं सो जाता। तब मुझे आराम मिलता।
וישבו אתו לארץ שבעת ימים ושבעת לילות ואין דבר אליו דבר--כי ראו כי גדל הכאב מאד | 14 |
ज़मीन के बादशाहों और सलाहकारों के साथ, जिन्होंने अपने लिए मक़बरे बनाए।
וישבו אתו לארץ שבעת ימים ושבעת לילות ואין דבר אליו דבר--כי ראו כי גדל הכאב מאד | 15 |
या उन शाहज़ादों के साथ होता, जिनके पास सोना था। जिन्होंने अपने घर चाँदी से भर लिए थे;
וישבו אתו לארץ שבעת ימים ושבעת לילות ואין דבר אליו דבר--כי ראו כי גדל הכאב מאד | 16 |
या पोशीदा गिरते हमल की तरह, मैं वजूद में न आता या उन बच्चों की तरह जिन्होंने रोशनी ही न देखी।
וישבו אתו לארץ שבעת ימים ושבעת לילות ואין דבר אליו דבר--כי ראו כי גדל הכאב מאד | 17 |
वहाँ शरीर फ़साद से बाज़ आते हैं, और थके मांदे राहत पाते हैं।
וישבו אתו לארץ שבעת ימים ושבעת לילות ואין דבר אליו דבר--כי ראו כי גדל הכאב מאד | 18 |
वहाँ क़ैदी मिलकर आराम करते हैं, और दरोग़ा की आवाज़ सुनने में नहीं आती।
וישבו אתו לארץ שבעת ימים ושבעת לילות ואין דבר אליו דבר--כי ראו כי גדל הכאב מאד | 19 |
छोटे और बड़े दोनों वहीं हैं, और नौकर अपने मालिक से आज़ाद है।”
וישבו אתו לארץ שבעת ימים ושבעת לילות ואין דבר אליו דבר--כי ראו כי גדל הכאב מאד | 20 |
“दुखियारे को रोशनी, और तल्ख़जान को ज़िन्दगी क्यूँ मिलती है?
וישבו אתו לארץ שבעת ימים ושבעת לילות ואין דבר אליו דבר--כי ראו כי גדל הכאב מאד | 21 |
जो मौत की राह देखते हैं लेकिन वह आती नहीं, और छिपे ख़ज़ाने से ज़्यादा उसकी तलाश करते हैं।
וישבו אתו לארץ שבעת ימים ושבעת לילות ואין דבר אליו דבר--כי ראו כי גדל הכאב מאד | 22 |
जो निहायत शादमान और ख़ुश होते हैं, जब क़ब्र को पा लेते हैं।
וישבו אתו לארץ שבעת ימים ושבעת לילות ואין דבר אליו דבר--כי ראו כי גדל הכאב מאד | 23 |
ऐसे आदमी को रोशनी क्यूँ मिलती है, जिसकी राह छिपी है, और जिसे ख़ुदा ने हर तरफ़ से बंद कर दिया है?
וישבו אתו לארץ שבעת ימים ושבעת לילות ואין דבר אליו דבר--כי ראו כי גדל הכאב מאד | 24 |
क्यूँकि मेरे खाने की जगह मेरी आहें हैं, और मेरा कराहना पानी की तरह जारी है।
וישבו אתו לארץ שבעת ימים ושבעת לילות ואין דבר אליו דבר--כי ראו כי גדל הכאב מאד | 25 |
क्यूँकि जिस बात से मैं डरता हूँ, वही मुझ पर आती है, और जिस बात का मुझे ख़ौफ़ होता है, वही मुझ पर गुज़रती है।
וישבו אתו לארץ שבעת ימים ושבעת לילות ואין דבר אליו דבר--כי ראו כי גדל הכאב מאד | 26 |
क्यूँकि मुझे न चैन है, न आराम है, न मुझे कल पड़ती है; बल्कि मुसीबत ही आती है।”