< Κατα Λουκαν 17 >
1 Εἶπεν δὲ πρὸς τοὺς μαθητὰς ⸀αὐτοῦ Ἀνένδεκτόν ἐστιν τοῦ ⸂τὰ σκάνδαλα μὴ ἐλθεῖν, ⸂πλὴν οὐαὶ διʼ οὗ ἔρχεται·
१फिर उसने अपने चेलों से कहा, “यह निश्चित है कि वे बातें जो पाप का कारण है, आएँगे परन्तु हाय, उस मनुष्य पर जिसके कारण वे आती है!
2 λυσιτελεῖ αὐτῷ εἰ ⸂λίθος μυλικὸς περίκειται περὶ τὸν τράχηλον αὐτοῦ καὶ ἔρριπται εἰς τὴν θάλασσαν ἢ ἵνα σκανδαλίσῃ ⸂τῶν μικρῶν τούτων ἕνα.
२जो इन छोटों में से किसी एक को ठोकर खिलाता है, उसके लिये यह भला होता कि चक्की का पाट उसके गले में लटकाया जाता, और वह समुद्र में डाल दिया जाता।
3 προσέχετε ἑαυτοῖς. ἐὰν ⸀ἁμάρτῃὁ ἀδελφός σου ἐπιτίμησον αὐτῷ, καὶ ἐὰν μετανοήσῃ ἄφες αὐτῷ·
३सचेत रहो; यदि तेरा भाई अपराध करे तो उसे डाँट, और यदि पछताए तो उसे क्षमा कर।
4 καὶ ἐὰν ἑπτάκις τῆς ἡμέρας ⸀ἁμαρτήσῃεἰς σὲ καὶ ⸀ἑπτάκιςἐπιστρέψῃ ⸂πρὸς σὲ λέγων· Μετανοῶ, ἀφήσεις αὐτῷ.
४यदि दिन भर में वह सात बार तेरा अपराध करे और सातों बार तेरे पास फिर आकर कहे, कि मैं पछताता हूँ, तो उसे क्षमा कर।”
5 Καὶ εἶπαν οἱ ἀπόστολοι τῷ κυρίῳ· Πρόσθες ἡμῖν πίστιν.
५तब प्रेरितों ने प्रभु से कहा, “हमारा विश्वास बढ़ा।”
6 εἶπεν δὲ ὁ κύριος· Εἰ ἔχετε πίστιν ὡς κόκκον σινάπεως, ἐλέγετε ἂν τῇ συκαμίνῳ ταύτῃ· Ἐκριζώθητι καὶ φυτεύθητι ἐν τῇ θαλάσσῃ· καὶ ὑπήκουσεν ἂν ὑμῖν.
६प्रभु ने कहा, “यदि तुम को राई के दाने के बराबर भी विश्वास होता, तो तुम इस शहतूत के पेड़ से कहते कि जड़ से उखड़कर समुद्र में लग जा, तो वह तुम्हारी मान लेता।
7 Τίς δὲ ἐξ ὑμῶν δοῦλον ἔχων ἀροτριῶντα ἢ ποιμαίνοντα, ὃς εἰσελθόντι ἐκ τοῦ ἀγροῦ ἐρεῖ ⸀αὐτῷ Εὐθέως παρελθὼν ἀνάπεσε,
७“पर तुम में से ऐसा कौन है, जिसका दास हल जोतता, या भेड़ें चराता हो, और जब वह खेत से आए, तो उससे कहे, ‘तुरन्त आकर भोजन करने बैठ’?
8 ἀλλʼ οὐχὶ ἐρεῖ αὐτῷ· Ἑτοίμασον τί δειπνήσω καὶ περιζωσάμενος διακόνει μοι ἕως φάγω καὶ πίω, καὶ μετὰ ταῦτα φάγεσαι καὶ πίεσαι σύ;
८क्या वह उनसे न कहेगा, कि मेरा खाना तैयार कर: और जब तक मैं खाऊँ-पीऊँ तब तक कमर बाँधकर मेरी सेवा कर; इसके बाद तू भी खा पी लेना?
9 μὴ ⸂ἔχει χάριν τῷ ⸀δούλῳὅτι ἐποίησεν τὰ ⸀διαταχθέντα
९क्या वह उस दास का एहसान मानेगा, कि उसने वे ही काम किए जिसकी आज्ञा दी गई थी?
10 οὕτως καὶ ὑμεῖς, ὅταν ποιήσητε πάντα τὰ διαταχθέντα ὑμῖν, λέγετε ὅτι Δοῦλοι ἀχρεῖοί ἐσμεν, ⸂ὃ ὠφείλομεν ποιῆσαι πεποιήκαμεν.
१०इसी रीति से तुम भी, जब उन सब कामों को कर चुके हो जिसकी आज्ञा तुम्हें दी गई थी, तो कहो, ‘हम निकम्मे दास हैं; कि जो हमें करना चाहिए था वही किया है।’”
11 Καὶ ἐγένετο ἐν τῷ ⸀πορεύεσθαιεἰς Ἰερουσαλὴμ καὶ αὐτὸς διήρχετο διὰ ⸀μέσονΣαμαρείας καὶ Γαλιλαίας.
११और ऐसा हुआ कि वह यरूशलेम को जाते हुए सामरिया और गलील प्रदेश की सीमा से होकर जा रहा था।
12 καὶ εἰσερχομένου αὐτοῦ εἴς τινα κώμην ⸀ἀπήντησανδέκα λεπροὶ ἄνδρες, οἳ ⸀ἔστησανπόρρωθεν,
१२और किसी गाँव में प्रवेश करते समय उसे दस कोढ़ी मिले।
13 καὶ αὐτοὶ ἦραν φωνὴν λέγοντες· Ἰησοῦ ἐπιστάτα, ἐλέησον ἡμᾶς.
१३और उन्होंने दूर खड़े होकर, ऊँचे शब्द से कहा, “हे यीशु, हे स्वामी, हम पर दया कर!”
14 καὶ ἰδὼν εἶπεν αὐτοῖς· Πορευθέντες ἐπιδείξατε ἑαυτοὺς τοῖς ἱερεῦσιν. καὶ ἐγένετο ἐν τῷ ὑπάγειν αὐτοὺς ἐκαθαρίσθησαν.
१४उसने उन्हें देखकर कहा, “जाओ; और अपने आपको याजकों को दिखाओ।” और जाते ही जाते वे शुद्ध हो गए।
15 εἷς δὲ ἐξ αὐτῶν, ἰδὼν ὅτι ἰάθη, ὑπέστρεψεν μετὰ φωνῆς μεγάλης δοξάζων τὸν θεόν,
१५तब उनमें से एक यह देखकर कि मैं चंगा हो गया हूँ, ऊँचे शब्द से परमेश्वर की बड़ाई करता हुआ लौटा;
16 καὶ ἔπεσεν ἐπὶ πρόσωπον παρὰ τοὺς πόδας αὐτοῦ εὐχαριστῶν αὐτῷ· καὶ αὐτὸς ἦν Σαμαρίτης.
१६और यीशु के पाँवों पर मुँह के बल गिरकर उसका धन्यवाद करने लगा; और वह सामरी था।
17 ἀποκριθεὶς δὲ ὁ Ἰησοῦς εἶπεν· ⸀Οὐχὶοἱ δέκα ἐκαθαρίσθησαν; οἱ δὲ ἐννέα ποῦ;
१७इस पर यीशु ने कहा, “क्या दसों शुद्ध न हुए, तो फिर वे नौ कहाँ हैं?
18 οὐχ εὑρέθησαν ὑποστρέψαντες δοῦναι δόξαν τῷ θεῷ εἰ μὴ ὁ ἀλλογενὴς οὗτος;
१८क्या इस परदेशी को छोड़ कोई और न निकला, जो परमेश्वर की बड़ाई करता?”
19 καὶ εἶπεν αὐτῷ· Ἀναστὰς πορεύου· ἡ πίστις σου σέσωκέν σε.
१९तब उसने उससे कहा, “उठकर चला जा; तेरे विश्वास ने तुझे चंगा किया है।”
20 Ἐπερωτηθεὶς δὲ ὑπὸ τῶν Φαρισαίων πότε ἔρχεται ἡ βασιλεία τοῦ θεοῦ ἀπεκρίθη αὐτοῖς καὶ εἶπεν· Οὐκ ἔρχεται ἡ βασιλεία τοῦ θεοῦ μετὰ παρατηρήσεως,
२०जब फरीसियों ने उससे पूछा, कि परमेश्वर का राज्य कब आएगा? तो उसने उनको उत्तर दिया, “परमेश्वर का राज्य प्रगट रूप में नहीं आता।
21 οὐδὲ ἐροῦσιν· Ἰδοὺ ὧδε ἤ· ⸀Ἐκεῖ ἰδοὺ γὰρ ἡ βασιλεία τοῦ θεοῦ ἐντὸς ὑμῶν ἐστιν.
२१और लोग यह न कहेंगे, कि देखो, यहाँ है, या वहाँ है। क्योंकि, परमेश्वर का राज्य तुम्हारे बीच में है।”
22 Εἶπεν δὲ πρὸς τοὺς μαθητάς· Ἐλεύσονται ἡμέραι ὅτε ἐπιθυμήσετε μίαν τῶν ἡμερῶν τοῦ υἱοῦ τοῦ ἀνθρώπου ἰδεῖν καὶ οὐκ ὄψεσθε.
२२और उसने चेलों से कहा, “वे दिन आएँगे, जिनमें तुम मनुष्य के पुत्र के दिनों में से एक दिन को देखना चाहोगे, और नहीं देखने पाओगे।
23 καὶ ἐροῦσιν ὑμῖν· Ἰδοὺ ⸂ἐκεῖ· Ἰδοὺ ὧδε· μὴ ἀπέλθητε μηδὲ διώξητε.
२३लोग तुम से कहेंगे, ‘देखो, वहाँ है!’ या ‘देखो यहाँ है!’ परन्तु तुम चले न जाना और न उनके पीछे हो लेना।
24 ὥσπερ γὰρ ἡ ⸀ἀστραπὴἀστράπτουσα ἐκ τῆς ⸂ὑπὸ τὸν οὐρανὸν εἰς τὴν ὑπʼ οὐρανὸν λάμπει, οὕτως ἔσται ὁ υἱὸς τοῦ ἀνθρώπου ⸂ἐν τῇ ἡμέρᾳ αὐτοῦ.
२४क्योंकि जैसे बिजली आकाश की एक छोर से कौंधकर आकाश की दूसरी छोर तक चमकती है, वैसे ही मनुष्य का पुत्र भी अपने दिन में प्रगट होगा।
25 πρῶτον δὲ δεῖ αὐτὸν πολλὰ παθεῖν καὶ ἀποδοκιμασθῆναι ἀπὸ τῆς γενεᾶς ταύτης.
२५परन्तु पहले अवश्य है, कि वह बहुत दुःख उठाए, और इस युग के लोग उसे तुच्छ ठहराएँ।
26 καὶ καθὼς ἐγένετο ἐν ταῖς ἡμέραις Νῶε, οὕτως ἔσται καὶ ἐν ταῖς ἡμέραις τοῦ υἱοῦ τοῦ ἀνθρώπου·
२६जैसा नूह के दिनों में हुआ था, वैसा ही मनुष्य के पुत्र के दिनों में भी होगा।
27 ἤσθιον, ἔπινον, ἐγάμουν, ⸀ἐγαμίζοντο ἄχρι ἧς ἡμέρας εἰσῆλθεν Νῶε εἰς τὴν κιβωτόν, καὶ ἦλθεν ὁ κατακλυσμὸς καὶ ἀπώλεσεν ⸀πάντας
२७जिस दिन तक नूह जहाज पर न चढ़ा, उस दिन तक लोग खाते-पीते थे, और उनमें विवाह-शादी होती थी; तब जल-प्रलय ने आकर उन सब को नाश किया।
28 ὁμοίως ⸀καθὼςἐγένετο ἐν ταῖς ἡμέραις Λώτ· ἤσθιον, ἔπινον, ἠγόραζον, ἐπώλουν, ἐφύτευον, ᾠκοδόμουν·
२८और जैसा लूत के दिनों में हुआ था, कि लोग खाते-पीते लेन-देन करते, पेड़ लगाते और घर बनाते थे;
29 ᾗ δὲ ἡμέρᾳ ἐξῆλθεν Λὼτ ἀπὸ Σοδόμων, ἔβρεξεν πῦρ καὶ θεῖον ἀπʼ οὐρανοῦ καὶ ἀπώλεσεν ⸀πάντας
२९परन्तु जिस दिन लूत सदोम से निकला, उस दिन आग और गन्धक आकाश से बरसी और सब को नाश कर दिया।
30 κατὰ ⸂τὰ αὐτὰ ἔσται ᾗ ἡμέρᾳ ὁ υἱὸς τοῦ ἀνθρώπου ἀποκαλύπτεται.
३०मनुष्य के पुत्र के प्रगट होने के दिन भी ऐसा ही होगा।
31 ἐνἐκείνῃ τῇ ἡμέρᾳ ὃς ἔσται ἐπὶ τοῦ δώματος καὶ τὰ σκεύη αὐτοῦ ἐν τῇ οἰκίᾳ, μὴ καταβάτω ἆραι αὐτά, καὶ ὁ ⸀ἐν ἀγρῷ ὁμοίως μὴ ἐπιστρεψάτω εἰς τὰ ὀπίσω.
३१“उस दिन जो छत पर हो; और उसका सामान घर में हो, वह उसे लेने को न उतरे, और वैसे ही जो खेत में हो वह पीछे न लौटे।
32 μνημονεύετε τῆς γυναικὸς Λώτ.
३२लूत की पत्नी को स्मरण रखो!
33 ὃς ἐὰν ζητήσῃ τὴν ψυχὴν αὐτοῦ ⸀περιποιήσασθαιἀπολέσει αὐτήν, ⸂ὃς δʼ ἂν ⸀ἀπολέσῃζῳογονήσει αὐτήν.
३३जो कोई अपना प्राण बचाना चाहे वह उसे खोएगा, और जो कोई उसे खोए वह उसे बचाएगा।
34 λέγω ὑμῖν, ταύτῃ τῇ νυκτὶ ἔσονται δύο ἐπὶ κλίνης μιᾶς, ⸀ὁεἷς παραλημφθήσεται καὶ ὁ ἕτερος ἀφεθήσεται·
३४मैं तुम से कहता हूँ, उस रात दो मनुष्य एक खाट पर होंगे, एक ले लिया जाएगा, और दूसरा छोड़ दिया जाएगा।
35 ⸂ἔσονται δύο ἀλήθουσαι ἐπὶ τὸ αὐτό, ⸀ἡμία παραλημφθήσεται ⸂ἡ δὲ ἑτέρα ⸀ἀφεθήσεται
३५दो स्त्रियाँ एक साथ चक्की पीसती होंगी, एक ले ली जाएगी, और दूसरी छोड़ दी जाएगी।
३६[दो जन खेत में होंगे एक ले लिया जाएगा और दूसरा छोड़ा जाएगा।]”
37 καὶ ἀποκριθέντες λέγουσιν αὐτῷ· Ποῦ, κύριε; ὁ δὲ εἶπεν αὐτοῖς· Ὅπου τὸ σῶμα, ἐκεῖ ⸂καὶ οἱ ἀετοὶ ἐπισυναχθήσονται.
३७यह सुन उन्होंने उससे पूछा, “हे प्रभु यह कहाँ होगा?” उसने उनसे कहा, “जहाँ लाश हैं, वहाँ गिद्ध इकट्ठे होंगे।”