< Δανιήλ 4 >
१नबूकदनेस्सर राजा की ओर से देश-देश और जाति-जाति के लोगों, और भिन्न-भिन्न भाषा बोलनेवाले जितने सारी पृथ्वी पर रहते हैं, उन सभी को यह वचन मिला, “तुम्हारा कुशल क्षेम बढ़े!
२मुझे यह अच्छा लगा, कि परमप्रधान परमेश्वर ने मुझे जो-जो चिन्ह और चमत्कार दिखाए हैं, उनको प्रगट करूँ।
३उसके दिखाए हुए चिन्ह क्या ही बड़े, और उसके चमत्कारों में क्या ही बड़ी शक्ति प्रगट होती है! उसका राज्य तो सदा का और उसकी प्रभुता पीढ़ी से पीढ़ी तक बनी रहती है।
4 ἔτους ὀκτωκαιδεκάτου τῆς βασιλείας Ναβουχοδονοσορ εἶπεν εἰρηνεύων ἤμην ἐν τῷ οἴκῳ μου καὶ εὐθηνῶν ἐπὶ τοῦ θρόνου μου
४“मैं नबूकदनेस्सर अपने भवन में चैन से और अपने महल में प्रफुल्लित रहता था।
5 ἐνύπνιον εἶδον καὶ εὐλαβήθην καὶ φόβος μοι ἐπέπεσεν
५मैंने ऐसा स्वप्न देखा जिसके कारण मैं डर गया; और पलंग पर पड़े-पड़े जो विचार मेरे मन में आए और जो बातें मैंने देखीं, उनके कारण मैं घबरा गया था।
६तब मैंने आज्ञा दी कि बाबेल के सब पंडित मेरे स्वप्न का अर्थ मुझे बताने के लिये मेरे सामने हाजिर किए जाएँ।
७तब ज्योतिषी, तांत्रिक, कसदी और भावी बतानेवाले भीतर आए, और मैंने उनको अपना स्वप्न बताया, परन्तु वे उसका अर्थ न बता सके।
८अन्त में दानिय्येल मेरे सम्मुख आया, जिसका नाम मेरे देवता के नाम के कारण बेलतशस्सर रखा गया था, और जिसमें पवित्र ईश्वरों की आत्मा रहती है; और मैंने उसको अपना स्वप्न यह कहकर बता दिया,
९हे बेलतशस्सर तू तो सब ज्योतिषियों का प्रधान है, मैं जानता हूँ कि तुझ में पवित्र ईश्वरों की आत्मा रहती है, और तू किसी भेद के कारण नहीं घबराता; इसलिए जो स्वप्न मैंने देखा है उसे अर्थ समेत मुझे बताकर समझा दे।
10 ἐκάθευδον καὶ ἰδοὺ δένδρον ὑψηλὸν φυόμενον ἐπὶ τῆς γῆς ἡ ὅρασις αὐτοῦ μεγάλη καὶ οὐκ ἦν ἄλλο ὅμοιον αὐτῷ
१०जो दर्शन मैंने पलंग पर पाया वह यह है: मैंने देखा, कि पृथ्वी के बीचोबीच एक वृक्ष लगा है; उसकी ऊँचाई बहुत बड़ी है।
11 καὶ ἡ ὅρασις αὐτοῦ μεγάλη ἡ κορυφὴ αὐτοῦ ἤγγιζεν ἕως τοῦ οὐρανοῦ καὶ τὸ κύτος αὐτοῦ ἕως τῶν νεφελῶν πληροῦν τὰ ὑποκάτω τοῦ οὐρανοῦ ὁ ἥλιος καὶ ἡ σελήνη ἐν αὐτῷ ᾤκουν καὶ ἐφώτιζον πᾶσαν τὴν γῆν
११वह वृक्ष बड़ा होकर दृढ़ हो गया, और उसकी ऊँचाई स्वर्ग तक पहुँची, और वह सारी पृथ्वी की छोर तक दिखाई पड़ता था।
12 οἱ κλάδοι αὐτοῦ τῷ μήκει ὡς σταδίων τριάκοντα καὶ ὑποκάτω αὐτοῦ ἐσκίαζον πάντα τὰ θηρία τῆς γῆς καὶ ἐν αὐτῷ τὰ πετεινὰ τοῦ οὐρανοῦ ἐνόσσευον ὁ καρπὸς αὐτοῦ πολὺς καὶ ἀγαθὸς καὶ ἐχορήγει πᾶσι τοῖς ζῴοις
१२उसके पत्ते सुन्दर, और उसमें बहुत फल थे, यहाँ तक कि उसमें सभी के लिये भोजन था। उसके नीचे मैदान के सब पशुओं को छाया मिलती थी, और उसकी डालियों में आकाश की सब चिड़ियाँ बसेरा करती थीं, और सब प्राणी उससे आहार पाते थे।
13 ἐθεώρουν ἐν τῷ ὕπνῳ μου καὶ ἰδοὺ ἄγγελος ἀπεστάλη ἐν ἰσχύι ἐκ τοῦ οὐρανοῦ
१३“मैंने पलंग पर दर्शन पाते समय क्या देखा, कि एक पवित्र दूत स्वर्ग से उतर आया।
14 καὶ ἐφώνησε καὶ εἶπεν αὐτῷ ἐκκόψατε αὐτὸ καὶ καταφθείρατε αὐτό προστέτακται γὰρ ἀπὸ τοῦ ὑψίστου ἐκριζῶσαι καὶ ἀχρειῶσαι αὐτό
१४उसने ऊँचे शब्द से पुकारकर यह कहा, ‘वृक्ष को काट डालो, उसकी डालियों को छाँट दो, उसके पत्ते झाड़ दो और उसके फल छितरा डालो; पशु उसके नीचे से हट जाएँ, और चिड़ियाँ उसकी डालियों पर से उड़ जाएँ।
15 καὶ οὕτως εἶπε ῥίζαν μίαν ἄφετε αὐτοῦ ἐν τῇ γῇ ὅπως μετὰ τῶν θηρίων τῆς γῆς ἐν τοῖς ὄρεσι χόρτον ὡς βοῦς νέμηται
१५तो भी उसके ठूँठे को जड़ समेत भूमि में छोड़ो, और उसको लोहे और पीतल के बन्धन से बाँधकर मैदान की हरी घास के बीच रहने दो। वह आकाश की ओस से भीगा करे और भूमि की घास खाने में मैदान के पशुओं के संग भागी हो।
16 καὶ ἀπὸ τῆς δρόσου τοῦ οὐρανοῦ τὸ σῶμα αὐτοῦ ἀλλοιωθῇ καὶ ἑπτὰ ἔτη βοσκηθῇ σὺν αὐτοῖς
१६उसका मन बदले और मनुष्य का न रहे, परन्तु पशु का सा बन जाए; और उस पर सात काल बीतें।
17 ἕως ἂν γνῷ τὸν κύριον τοῦ οὐρανοῦ ἐξουσίαν ἔχειν πάντων τῶν ἐν τῷ οὐρανῷ καὶ τῶν ἐπὶ τῆς γῆς καὶ ὅσα ἂν θέλῃ ποιεῖ ἐν αὐτοῖς ἐνώπιόν μου ἐξεκόπη ἐν ἡμέρᾳ μιᾷ καὶ ἡ καταφθορὰ αὐτοῦ ἐν ὥρᾳ μιᾷ τῆς ἡμέρας καὶ οἱ κλάδοι αὐτοῦ ἐδόθησαν εἰς πάντα ἄνεμον καὶ εἱλκύσθη καὶ ἐρρίφη καὶ τὸν χόρτον τῆς γῆς μετὰ τῶν θηρίων τῆς γῆς ἤσθιε καὶ εἰς φυλακὴν παρεδόθη καὶ ἐν πέδαις καὶ ἐν χειροπέδαις χαλκαῖς ἐδέθη ὑπ’ αὐτῶν σφόδρα ἐθαύμασα ἐπὶ πᾶσι τούτοις καὶ ὁ ὕπνος μου ἀπέστη ἀπὸ τῶν ὀφθαλμῶν μου
१७यह आज्ञा उस दूत के निर्णय से, और यह बात पवित्र लोगों के वचन से निकली, कि जो जीवित हैं वे जान लें कि परमप्रधान परमेश्वर मनुष्यों के राज्य में प्रभुता करता है, और उसको जिसे चाहे उसे दे देता है, और वह छोटे से छोटे मनुष्य को भी उस पर नियुक्त कर देता है।’
18 καὶ ἀναστὰς τὸ πρωὶ ἐκ τῆς κοίτης μου ἐκάλεσα τὸν Δανιηλ τὸν ἄρχοντα τῶν σοφιστῶν καὶ τὸν ἡγούμενον τῶν κρινόντων τὰ ἐνύπνια καὶ διηγησάμην αὐτῷ τὸ ἐνύπνιον καὶ ὑπέδειξέ μοι πᾶσαν τὴν σύγκρισιν αὐτοῦ
१८मुझ नबूकदनेस्सर राजा ने यही स्वप्न देखा। इसलिए हे बेलतशस्सर, तू इसका अर्थ बता, क्योंकि मेरे राज्य में और कोई पंडित इसका अर्थ मुझे समझा नहीं सका, परन्तु तुझ में तो पवित्र ईश्वरों की आत्मा रहती है, इस कारण तू उसे समझा सकता है।”
19 μεγάλως δὲ ἐθαύμασεν ὁ Δανιηλ καὶ ὑπόνοια κατέσπευδεν αὐτόν καὶ φοβηθεὶς τρόμου λαβόντος αὐτὸν καὶ ἀλλοιωθείσης τῆς ὁράσεως αὐτοῦ κινήσας τὴν κεφαλὴν ὥραν μίαν ἀποθαυμάσας ἀπεκρίθη μοι φωνῇ πραείᾳ βασιλεῦ τὸ ἐνύπνιον τοῦτο τοῖς μισοῦσί σε καὶ ἡ σύγκρισις αὐτοῦ τοῖς ἐχθροῖς σου ἐπέλθοι
१९तब दानिय्येल जिसका नाम बेलतशस्सर भी था, घड़ी भर घबराता रहा, और सोचते-सोचते व्याकुल हो गया। तब राजा कहने लगा, “हे बेलतशस्सर इस स्वप्न से, या इसके अर्थ से तू व्याकुल मत हो।” बेलतशस्सर ने कहा, “हे मेरे प्रभु, यह स्वप्न तेरे बैरियों पर, और इसका अर्थ तेरे द्रोहियों पर फले!
20 τὸ δένδρον τὸ ἐν τῇ γῇ πεφυτευμένον οὗ ἡ ὅρασις μεγάλη σὺ εἶ βασιλεῦ
२०जिस वृक्ष को तूने देखा, जो बड़ा और दृढ़ हो गया, और जिसकी ऊँचाई स्वर्ग तक पहुँची और जो पृथ्वी के सिरे तक दिखाई देता था;
21 καὶ πάντα τὰ πετεινὰ τοῦ οὐρανοῦ τὰ νοσσεύοντα ἐν αὐτῷ ἡ ἰσχὺς τῆς γῆς καὶ τῶν ἐθνῶν καὶ τῶν γλωσσῶν πασῶν ἕως τῶν περάτων τῆς γῆς καὶ πᾶσαι αἱ χῶραι σοὶ δουλεύουσι
२१जिसके पत्ते सुन्दर और फल बहुत थे, और जिसमें सभी के लिये भोजन था; जिसके नीचे मैदान के सब पशु रहते थे, और जिसकी डालियों में आकाश की चिड़ियाँ बसेरा करती थीं,
22 τὸ δὲ ἀνυψωθῆναι τὸ δένδρον ἐκεῖνο καὶ ἐγγίσαι τῷ οὐρανῷ καὶ τὸ κύτος αὐτοῦ ἅψασθαι τῶν νεφελῶν σύ βασιλεῦ ὑψώθης ὑπὲρ πάντας τοὺς ἀνθρώπους τοὺς ὄντας ἐπὶ προσώπου πάσης τῆς γῆς ὑψώθη σου ἡ καρδία ὑπερηφανίᾳ καὶ ἰσχύι τὰ πρὸς τὸν ἅγιον καὶ τοὺς ἀγγέλους αὐτοῦ τὰ ἔργα σου ὤφθη καθότι ἐξερήμωσας τὸν οἶκον τοῦ θεοῦ τοῦ ζῶντος ἐπὶ ταῖς ἁμαρτίαις τοῦ λαοῦ τοῦ ἡγιασμένου
२२हे राजा, वह तू ही है। तू महान और सामर्थी हो गया, तेरी महिमा बढ़ी और स्वर्ग तक पहुँच गई, और तेरी प्रभुता पृथ्वी की छोर तक फैली है।
23 καὶ ἡ ὅρασις ἣν εἶδες ὅτι ἄγγελος ἐν ἰσχύι ἀπεστάλη παρὰ τοῦ κυρίου καὶ ὅτι εἶπεν ἐξᾶραι τὸ δένδρον καὶ ἐκκόψαι ἡ κρίσις τοῦ θεοῦ τοῦ μεγάλου ἥξει ἐπὶ σέ
२३और हे राजा, तूने जो एक पवित्र दूत को स्वर्ग से उतरते और यह कहते देखा कि वृक्ष को काट डालो और उसका नाश करो, तो भी उसके ठूँठे को जड़ समेत भूमि में छोड़ो, और उसको लोहे और पीतल के बन्धन से बाँधकर मैदान की हरी घास के बीच में रहने दो; वह आकाश की ओस से भीगा करे, और उसको मैदान के पशुओं के संग ही भाग मिले; और जब तक सात युग उस पर बीत न चुकें, तब तक उसकी ऐसी ही दशा रहे।
24 καὶ ὁ ὕψιστος καὶ οἱ ἄγγελοι αὐτοῦ ἐπὶ σὲ κατατρέχουσιν
२४हे राजा, इसका अर्थ जो परमप्रधान ने ठाना है कि राजा पर घटे, वह यह है,
25 εἰς φυλακὴν ἀπάξουσί σε καὶ εἰς τόπον ἔρημον ἀποστελοῦσί σε
२५तू मनुष्यों के बीच से निकाला जाएगा, और मैदान के पशुओं के संग रहेगा; तू बैलों के समान घास चरेगा; और आकाश की ओस से भीगा करेगा और सात युग तुझ पर बीतेंगे, जब तक कि तू न जान ले कि मनुष्यों के राज्य में परमप्रधान ही प्रभुता करता है, और जिसे चाहे वह उसे दे देता है।
26 καὶ ἡ ῥίζα τοῦ δένδρου ἡ ἀφεθεῖσα ἐπεὶ οὐκ ἐξερριζώθη ὁ τόπος τοῦ θρόνου σού σοι συντηρηθήσεται εἰς καιρὸν καὶ ὥραν ἰδοὺ ἐπὶ σὲ ἑτοιμάζονται καὶ μαστιγώσουσί σε καὶ ἐπάξουσι τὰ κεκριμένα ἐπὶ σέ
२६और उस वृक्ष के ठूँठे को जड़ समेत छोड़ने की आज्ञा जो हुई है, इसका अर्थ यह है कि तेरा राज्य तेरे लिये बना रहेगा; और जब तू जान लेगा कि जगत का प्रभु स्वर्ग ही में है, तब तू फिर से राज्य करने पाएगा।
27 κύριος ζῇ ἐν οὐρανῷ καὶ ἡ ἐξουσία αὐτοῦ ἐπὶ πάσῃ τῇ γῇ αὐτοῦ δεήθητι περὶ τῶν ἁμαρτιῶν σου καὶ πάσας τὰς ἀδικίας σου ἐν ἐλεημοσύναις λύτρωσαι ἵνα ἐπιείκεια δοθῇ σοι καὶ πολυήμερος γένῃ ἐπὶ τοῦ θρόνου τῆς βασιλείας σου καὶ μὴ καταφθείρῃ σε τούτους τοὺς λόγους ἀγάπησον ἀκριβὴς γάρ μου ὁ λόγος καὶ πλήρης ὁ χρόνος σου
२७इस कारण, हे राजा, मेरी यह सम्मति स्वीकार कर, कि यदि तू पाप छोड़कर धार्मिकता करने लगे, और अधर्म छोड़कर दीन-हीनों पर दया करने लगे, तो सम्भव है कि ऐसा करने से तेरा चैन बना रहे।”
28 καὶ ἐπὶ συντελείᾳ τῶν λόγων Ναβουχοδονοσορ ὡς ἤκουσε τὴν κρίσιν τοῦ ὁράματος τοὺς λόγους ἐν τῇ καρδίᾳ συνετήρησε
२८यह सब कुछ नबूकदनेस्सर राजा पर घट गया।
29 καὶ μετὰ μῆνας δώδεκα ὁ βασιλεὺς ἐπὶ τῶν τειχῶν τῆς πόλεως μετὰ πάσης τῆς δόξης αὐτοῦ περιεπάτει καὶ ἐπὶ τῶν πύργων αὐτῆς διεπορεύετο
२९बारह महीने बीतने पर जब वह बाबेल के राजभवन की छत पर टहल रहा था, तब वह कहने लगा,
30 καὶ ἀποκριθεὶς εἶπεν αὕτη ἐστὶ Βαβυλὼν ἡ μεγάλη ἣν ἐγὼ ᾠκοδόμησα καὶ οἶκος βασιλείας μου ἐν ἰσχύι κράτους μου κληθήσεται εἰς τιμὴν τῆς δόξης μου
३०“क्या यह बड़ा बाबेल नहीं है, जिसे मैं ही ने अपने बल और सामर्थ्य से राजनिवास होने को और अपने प्रताप की बड़ाई के लिये बसाया है?”
31 καὶ ἐπὶ συντελείας τοῦ λόγου αὐτοῦ φωνὴν ἐκ τοῦ οὐρανοῦ ἤκουσε σοὶ λέγεται Ναβουχοδονοσορ βασιλεῦ ἡ βασιλεία Βαβυλῶνος ἀφῄρηταί σου καὶ ἑτέρῳ δίδοται ἐξουθενημένῳ ἀνθρώπῳ ἐν τῷ οἴκῳ σου ἰδοὺ ἐγὼ καθίστημι αὐτὸν ἐπὶ τῆς βασιλείας σου καὶ τὴν ἐξουσίαν σου καὶ τὴν δόξαν σου καὶ τὴν τρυφήν σου παραλήψεται ὅπως ἐπιγνῷς ὅτι ἐξουσίαν ἔχει ὁ θεὸς τοῦ οὐρανοῦ ἐν τῇ βασιλείᾳ τῶν ἀνθρώπων καὶ ᾧ ἐὰν βούληται δώσει αὐτήν ἕως δὲ ἡλίου ἀνατολῆς βασιλεὺς ἕτερος εὐφρανθήσεται ἐν τῷ οἴκῳ σου καὶ κρατήσει τῆς δόξης σου καὶ τῆς ἰσχύος σου καὶ τῆς ἐξουσίας σου
३१यह वचन राजा के मुँह से निकलने भी न पाया था कि आकाशवाणी हुई, “हे राजा नबूकदनेस्सर तेरे विषय में यह आज्ञा निकलती है कि राज्य तेरे हाथ से निकल गया,
32 καὶ οἱ ἄγγελοι διώξονταί σε ἐπὶ ἔτη ἑπτά καὶ οὐ μὴ ὀφθῇς οὐδ’ οὐ μὴ λαλήσῃς μετὰ παντὸς ἀνθρώπου χόρτον ὡς βοῦν σε ψωμίσουσι καὶ ἀπὸ τῆς χλόης τῆς γῆς ἔσται ἡ νομή σου ἰδοὺ ἀντὶ τῆς δόξης σου δήσουσί σε καὶ τὸν οἶκον τῆς τρυφῆς σου καὶ τὴν βασιλείαν σου ἕτερος ἕξει
३२और तू मनुष्यों के बीच में से निकाला जाएगा, और मैदान के पशुओं के संग रहेगा; और बैलों के समान घास चरेगा और सात काल तुझ पर बीतेंगे, जब तक कि तू न जान ले कि परमप्रधान, मनुष्यों के राज्य में प्रभुता करता है और जिसे चाहे वह उसे दे देता है।”
33 ἕως δὲ πρωὶ πάντα τελεσθήσεται ἐπὶ σέ Ναβουχοδονοσορ βασιλεῦ Βαβυλῶνος καὶ οὐχ ὑστερήσει ἀπὸ πάντων τούτων οὐθέν ἐγὼ Ναβουχοδονοσορ βασιλεὺς Βαβυλῶνος ἑπτὰ ἔτη ἐπεδήθην χόρτον ὡς βοῦν ἐψώμισάν με καὶ ἀπὸ τῆς χλόης τῆς γῆς ἤσθιον καὶ μετὰ ἔτη ἑπτὰ ἔδωκα τὴν ψυχήν μου εἰς δέησιν καὶ ἠξίωσα περὶ τῶν ἁμαρτιῶν μου κατὰ πρόσωπον κυρίου τοῦ θεοῦ τοῦ οὐρανοῦ καὶ περὶ τῶν ἀγνοιῶν μου τοῦ θεοῦ τῶν θεῶν τοῦ μεγάλου ἐδεήθην καὶ αἱ τρίχες μου ἐγένοντο ὡς πτέρυγες ἀετοῦ οἱ ὄνυχές μου ὡσεὶ λέοντος ἠλλοιώθη ἡ σάρξ μου καὶ ἡ καρδία μου γυμνὸς περιεπάτουν μετὰ τῶν θηρίων τῆς γῆς ἐνύπνιον εἶδον καὶ ὑπόνοιαί με εἰλήφασι καὶ διὰ χρόνου ὕπνος με ἔλαβε πολὺς καὶ νυσταγμὸς ἐπέπεσέ μοι
३३उसी घड़ी यह वचन नबूकदनेस्सर के विषय में पूरा हुआ। वह मनुष्यों में से निकाला गया, और बैलों के समान घास चरने लगा, और उसकी देह आकाश की ओस से भीगती थी, यहाँ तक कि उसके बाल उकाब पक्षियों के परों से और उसके नाखून चिड़ियाँ के पंजों के समान बढ़ गए।
34 καὶ ἐπὶ συντελείᾳ τῶν ἑπτὰ ἐτῶν ὁ χρόνος μου τῆς ἀπολυτρώσεως ἦλθε καὶ αἱ ἁμαρτίαι μου καὶ αἱ ἄγνοιαί μου ἐπληρώθησαν ἐναντίον τοῦ θεοῦ τοῦ οὐρανοῦ καὶ ἐδεήθην περὶ τῶν ἀγνοιῶν μου τοῦ θεοῦ τῶν θεῶν τοῦ μεγάλου καὶ ἰδοὺ ἄγγελος εἷς ἐκάλεσέ με ἐκ τοῦ οὐρανοῦ λέγων Ναβουχοδονοσορ δούλευσον τῷ θεῷ τοῦ οὐρανοῦ τῷ ἁγίῳ καὶ δὸς δόξαν τῷ ὑψίστῳ τὸ βασίλειον τοῦ ἔθνους σού σοι ἀποδίδοται
३४उन दिनों के बीतने पर, मुझ नबूकदनेस्सर ने अपनी आँखें स्वर्ग की ओर उठाई, और मेरी बुद्धि फिर ज्यों की त्यों हो गई; तब मैंने परमप्रधान को धन्य कहा, और जो सदा जीवित है उसकी स्तुति और महिमा यह कहकर करने लगा: उसकी प्रभुता सदा की है और उसका राज्य पीढ़ी से पीढ़ी तब बना रहनेवाला है।
३५पृथ्वी के सब रहनेवाले उसके सामने तुच्छ गिने जाते हैं, और वह स्वर्ग की सेना और पृथ्वी के रहनेवालों के बीच अपनी इच्छा के अनुसार काम करता है; और कोई उसको रोककर उससे नहीं कह सकता है, “तूने यह क्या किया है?”
36 ἐν ἐκείνῳ τῷ καιρῷ ἀποκατεστάθη ἡ βασιλεία μου ἐμοί καὶ ἡ δόξα μου ἀπεδόθη μοι
३६उसी समय, मेरी बुद्धि फिर ज्यों की त्यों हो गई; और मेरे राज्य की महिमा के लिये मेरा प्रताप और मुकुट मुझ पर फिर आ गया। और मेरे मंत्री और प्रधान लोग मुझसे भेंट करने के लिये आने लगे, और मैं अपने राज्य में स्थिर हो गया; और मेरी और अधिक प्रशंसा होने लगी।
37 τῷ ὑψίστῳ ἀνθομολογοῦμαι καὶ αἰνῶ τῷ κτίσαντι τὸν οὐρανὸν καὶ τὴν γῆν καὶ τὰς θαλάσσας καὶ τοὺς ποταμοὺς καὶ πάντα τὰ ἐν αὐτοῖς ἐξομολογοῦμαι καὶ αἰνῶ ὅτι αὐτός ἐστι θεὸς τῶν θεῶν καὶ κύριος τῶν κυρίων καὶ βασιλεὺς τῶν βασιλέων
३७अब मैं नबूकदनेस्सर स्वर्ग के राजा को सराहता हूँ, और उसकी स्तुति और महिमा करता हूँ क्योंकि उसके सब काम सच्चे, और उसके सब व्यवहार न्याय के हैं; और जो लोग घमण्ड से चलते हैं, उन्हें वह नीचा कर सकता है।