< Sprueche 9 >

1 Die Weisheit baute ihr Haus, sie hieb ihre sieben Säulen aus.
बुद्धि ने अपना घर बनाया और उसके सातों खम्भे गढ़े हुए हैं।
2 Sie schlachtete ihr Vieh, mischte ihren Wein und deckte ihre Tafel fein.
उसने भोज के लिए अपने पशु काटे, अपने दाखमधु में मसाला मिलाया और अपनी मेज लगाई है।
3 Sie sandte ihre Mägde aus und ließ auf den höchsten Punkten der Stadt ausrufen:
उसने अपनी सेविकाओं को आमन्त्रित करने भेजा है; और वह नगर के सबसे ऊँचे स्थानों से पुकारती है,
4 Wer einfältig ist, der mache sich herzu!
“जो कोई भोला है वह मुड़कर यहीं आए!” और जो निर्बुद्धि है, उससे वह कहती है,
5 Zu den Unweisen spricht sie: Kommt her, esset von meinem Brot und trinkt von dem Wein, den ich gemischt habe!
“आओ, मेरी रोटी खाओ, और मेरे मसाला मिलाए हुए दाखमधु को पीओ।
6 Verlasset die Torheit, auf daß ihr lebet, und geht einher auf dem Wege des Verstandes!
मूर्खों का साथ छोड़ो, और जीवित रहो, समझ के मार्ग में सीधे चलो।”
7 Wer einen Spötter züchtigt, holt sich Beschimpfung, und wer einen Gottlosen bestraft, kriegt sein Teil.
जो ठट्ठा करनेवाले को शिक्षा देता है, अपमानित होता है, और जो दुष्ट जन को डाँटता है वह कलंकित होता है।
8 Bestrafe den Spötter nicht! Er haßt dich; bestrafe den Weisen, der wird dich lieben!
ठट्ठा करनेवाले को न डाँट, ऐसा न हो कि वह तुझ से बैर रखे, बुद्धिमान को डाँट, वह तो तुझ से प्रेम रखेगा।
9 Gib dem Weisen, so wird er noch weiser werden; belehre den Gerechten, so wird er noch mehr lernen!
बुद्धिमान को शिक्षा दे, वह अधिक बुद्धिमान होगा; धर्मी को चिता दे, वह अपनी विद्या बढ़ाएगा।
10 Der Weisheit Anfang ist die Furcht des HERRN, und die Erkenntnis des Heiligen ist Verstand.
१०यहोवा का भय मानना बुद्धि का आरम्भ है, और परमपवित्र परमेश्वर को जानना ही समझ है।
11 Denn durch mich werden deine Tage sich mehren und werden Jahre zu deinem Leben hinzugefügt.
११मेरे द्वारा तो तेरी आयु बढ़ेगी, और तेरे जीवन के वर्ष अधिक होंगे।
12 Bist du weise, so kommt es dir selbst zugute; bist du aber ein Spötter, so hast du's allein zu tragen.
१२यदि तू बुद्धिमान है, तो बुद्धि का फल तू ही भोगेगा; और यदि तू ठट्ठा करे, तो दण्ड केवल तू ही भोगेगा।
13 Frau Torheit ist frech, dabei ein einfältiges Ding, das gar nichts weiß;
१३मूर्खता बक-बक करनेवाली स्त्री के समान है; वह तो निर्बुद्धि है, और कुछ नहीं जानती।
14 und doch sitzt sie bei der Tür ihres Hauses, auf einem Sessel auf den Höhen der Stadt,
१४वह अपने घर के द्वार में, और नगर के ऊँचे स्थानों में अपने आसन पर बैठी हुई
15 daß sie denen, die des Weges gehen, die auf richtigem Pfade wandeln, zurufe:
१५वह उन लोगों को जो अपने मार्गों पर सीधे-सीधे चलते हैं यह कहकर पुकारती है,
16 «Wer einfältig ist, der kehre hier ein!» Und zum Unverständigen spricht sie:
१६“जो कोई भोला है, वह मुड़कर यहीं आए;” जो निर्बुद्धि है, उससे वह कहती है,
17 «Gestohlenes Wasser ist süß und heimliches Brot ist angenehm!»
१७“चोरी का पानी मीठा होता है, और लुके-छिपे की रोटी अच्छी लगती है।”
18 Er weiß aber nicht, daß die Schatten daselbst hausen und ihre Gäste in den Tiefen des Scheols. (Sheol h7585)
१८और वह नहीं जानता है, कि वहाँ मरे हुए पड़े हैं, और उस स्त्री के निमंत्रित अधोलोक के निचले स्थानों में पहुँचे हैं। (Sheol h7585)

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