< Richter 11 >

1 Nun war Jephtah, der Gileaditer, ein streitbarer Held, aber der Sohn einer Dirne; und zwar hatte Gilead den Jephtah gezeugt.
गिलआदवासी यिफ्ताह एक बहादुर योद्धा था; किंतु वह एक वेश्या का पुत्र था. उसके पिता का नाम गिलआद था.
2 Als aber das Weib Gileads ihm Söhne gebar und die Söhne dieses Weibes groß wurden, stießen sie den Jephtah aus und sprachen zu ihm: Du sollst nicht erben in unsres Vaters Haus; denn du bist der Sohn eines andern Weibes!
गिलआद की पत्नी से भी पुत्र पैदा हुए. जब ये पुत्र बड़े हुए, तब उन्होंने उसे यह कहते हुए घर से निकाल दिया: “तुम तो पराई स्त्री से जन्मे हो, इस कारण हमारे पिता की मीरास में तुम्हारा कोई भाग न होगा.”
3 Da floh Jephtah vor seinen Brüdern und wohnte im Lande Tob. Und es versammelten sich zu ihm müßige Männer und zogen mit ihm aus.
तब यिफ्ताह अपने भाइयों से दूर भागकर तोब देश में रहने लगा. वहां निकम्मे, खराब लोग उसके साथी बनते चले गए, जो उसके साथ साथ रहते थे.
4 Und es geschah nach Jahren, daß die Kinder Ammon mit Israel stritten.
कुछ समय बाद अम्मोन वंशजों ने इस्राएलियों से युद्ध छेड़ दिया.
5 Als nun die Kinder Ammon mit Israel stritten, gingen die Ältesten von Gilead hin, um Jephtah aus dem Lande Tob zu holen.
जब अम्मोन वंशज इस्राएल से युद्ध कर रहे थे, गिलआद के अगुए लोग तोब देश से यिफ्ताह को लेने जा पहुंचे.
6 Und sie sprachen zu Jephtah: Komm und sei unser Hauptmann, wir wollen die Kinder Ammon bekämpfen!
उन्होंने यिफ्ताह से विनती की, “आकर हमारे सेनापति का कार्यभार संभाल लो, कि हम अम्मोनियों से युद्ध कर सकें.”
7 Aber Jephtah sprach zu den Ältesten von Gilead: Habt ihr mich nicht einst gehaßt und aus meines Vaters Hause gestoßen? Warum kommt ihr jetzt zu mir, da ihr in Not seid?
गिलआद के अगुओं को यिफ्ताह ने उत्तर दिया, “क्या आप ही नहीं थे, जिन्होंने घृणा करके मुझे मेरे पिता के घर से बाहर निकाल दिया था? अब, जब आप पर संकट आ पड़ा है, तो आप लोग मेरे पास क्यों आए हैं?”
8 Die Ältesten von Gilead sprachen zu Jephtah: Darum haben wir uns nun an dich gewandt, daß du mit uns gehest und wider die Kinder Ammon streitest und unser Haupt seiest, über alle, die in Gilead wohnen.
गिलआद के अगुओं ने यिफ्ताह को उत्तर दिया, “तुम्हारे पास हमारे लौटने का कारण सिर्फ यह है कि तुम हमारे साथ चलो और अम्मोन वंशजों से युद्ध कर सारे गिलआद वासियों के प्रधान बन जाओ.”
9 Jephtah sprach zu den Ältesten von Gilead: Wenn ihr mich zum Kampfe wider die Kinder Ammon zurückverlanget und der HERR sie vor mir preisgibt, so will ich euer Haupt sein.
इस पर यिफ्ताह ने गिलआद के अगुओं से प्रश्न किया, “अर्थात् यदि आप मुझे अम्मोन वंशजों से युद्ध करने के उद्देश्य से वापस ले जाते हैं, और याहवेह उन्हें मेरे अधीन कर देते हैं, तो मैं आपका प्रधान बन जाऊंगा?”
10 Die Ältesten von Gilead sprachen zu Jephtah: Der HERR sei Zeuge zwischen uns, wenn wir nicht also tun, wie du gesagt hast!
गिलआद के पुरनियों ने यिफ्ताह को उत्तर दिया, “स्वयं याहवेह हमारे बीच गवाह हैं, निश्चय ही हम ठीक वैसा ही करेंगे जैसा तुमने अभी कहा है.”
11 Da ging Jephtah mit den Ältesten von Gilead, und das Volk setzte ihn zum Haupt und Fürsten über sich. Und Jephtah redete solches alles vor dem HERRN zu Mizpa.
सो यिफ्ताह गिलआद के पुरनियों के साथ चला गया. प्रजाजनों ने उसे अपने ऊपर अधिनायक एवं प्रधान नियुक्त कर दिया. यिफ्ताह ने मिज़पाह में याहवेह के सामने पूरी वाचा दोहरा दी.
12 Da sandte Jephtah Botschaft zu dem König der Kinder Ammon und ließ ihm sagen: Was hast du mit mir zu schaffen, daß du zu mir kommst, wider mein Land zu streiten?
यिफ्ताह ने तब अम्मोन वंशजों के राजा को इस संदेश के साथ दूत भेज दिए: “मैंने आपकी ऐसी क्या हानि कर दी है, जिसके निमित्त आप हमारे देश से युद्ध करने आ गए हैं?”
13 Der König der Kinder Ammon antwortete den Boten Jephtahs: Weil Israel mein Land genommen hat, als es aus Ägypten zog, vom Arnon bis an den Jabbok und bis an den Jordan. So gib es mir nun in Frieden wieder zurück!
अम्मोन वंशजों के राजा ने यिफ्ताह के दूतों को उत्तर दिया, “मिस्र से निकलकर आते हुए इस्राएल ने आरनोन से लेकर यब्बोक तथा यरदन तक की भूमि पर कब्जा कर लिया था. इसलिये अब सही होगा कि शांतिपूर्वक यह भूमि हमें लौटा दी जाए.”
14 Jephtah aber sandte nochmals Boten zu dem Könige der Kinder Ammon.
यिफ्ताह ने अम्मोन वंशजों के राजा के लिए दोबारा दूत भेजे.
15 Die sprachen zu ihm: So spricht Jephtah: Israel hat kein Land genommen, weder den Moabitern, noch den Kindern Ammon.
उन्होंने राजा से यों कहने को आदेश दिया, “यिफ्ताह का संदेश यह है: इस्राएल ने न तो मोआब की भूमि पर कब्जा किया है, और न ही अम्मोन वंशजों की.
16 Denn als sie aus Ägypten zogen, wandelte Israel durch die Wüste bis an das Schilfmeer und kam gen Kadesch.
क्योंकि जब इस्राएल मिस्र देश से निकला, वह निर्जन प्रदेश में से लाल सागर पहुंचा और वहां से कादेश को.
17 Da sandte Israel Boten zum König der Edomiter und sprach: Laß mich doch durch dein Land ziehen! Aber der König der Edomiter erhörte sie nicht. Auch zum König der Moabiter sandten sie; der wollte auch nicht.
वहां पहुंचकर इस्राएल ने एदोम के राजा के लिए दूतों से यह संदेश भेजा था: ‘कृपा कर हमें आपके देश में से होकर आगे जाने की आज्ञा दीजिए!’ किंतु एदोम के राजा ने इस विनती की ओर तनिक भी ध्यान न दिया. उन्होंने यही विनती मोआब के राजा से भी की, किंतु वह भी इसके लिए राज़ी न हुआ. इस कारण इस्राएल कादेश में ही रुक गया.
18 Also verblieb Israel in Kadesch und wandelte in der Wüste und umzog das Land der Edomiter und das Land der Moabiter und kam vom Aufgang der Sonne an das Land der Moabiter und lagerte sich jenseits des Arnon und kam nicht ins Gebiet der Moabiter; denn der Arnon ist die Grenze der Moabiter.
“तब उन्होंने निर्जन प्रदेश में से यात्रा की. इसके लिए उन्हें एदोम और मोआब देशों में प्रवेश न करते हुए, घूमकर आगे बढ़ना पड़ा, और वे मोआब देश के पूर्व में पहुंच गए. उन्होंने आरनोन के दूसरी ओर छावनी डाल दी और मोआब की सीमा में प्रवेश किया ही नहीं. आरनोन मोआब की सीमा पर था.
19 Und Israel sandte Boten zu Sihon, dem König der Amoriter, dem König zu Hesbon, und Israel ließ ihm sagen: Laß uns doch durch dein Land bis zu meinem Ort ziehen!
“इसके बाद इस्राएल ने अमोरियों के राजा सीहोन को, जो हेशबोन से शासन कर रहे थे, दूतों द्वारा यह संदेश भेजा, ‘कृपया हमें अपने देश में से होकर हमारे देश में पहुंचने की आज्ञा दीजिए.’
20 Aber Sihon getraute sich nicht, Israel durch sein Gebiet ziehen zu lassen, sondern versammelte all sein Volk und lagerte sich zu Jahza und stritt mit Israel.
किंतु सीहोन ने इस्राएल पर भरोसा ही न किया, कि वह उसके देश की सीमा से होकर निकल जाएगा. इस कारण सीहोन ने अपनी सेना तैयार की, यहत्स में छावनी ड़ाल दी और इस्राएल से युद्ध करने लगा.
21 Der HERR aber, der Gott Israels, gab den Sihon mit allem seinem Volk in die Hand Israels, so daß sie dieselben schlugen. Also nahm Israel das ganze Land der Amoriter ein, die in jenem Lande wohnten.
“याहवेह, इस्राएल के परमेश्वर ने सीहोन तथा उसकी सारी सेना को इस्राएल के अधीन कर दिया; उन्होंने उन्हें हरा दिया. फलस्वरूप उस देश के निवासी तथा सारे अमोरी देश इस्राएल के अधिकार में आ गए.
22 Und sie nahmen das ganze Gebiet der Amoriter ein, vom Arnon bis an den Jabbok, und von der Wüste bis an den Jordan.
आरनोन से लेकर यब्बोक तक तथा निर्जन प्रदेश से लेकर यरदन तक का सारा क्षेत्र उनका हो गया.
23 So hat nun der HERR, der Gott Israels, die Amoriter vor seinem Volk Israel vertrieben; und du willst es vertreiben?
“अब आप ही बताइए, जब याहवेह, इस्राएल के परमेश्वर ने ही अमोरियों को अपनी प्रजा इस्राएल के सामने से हटा दिया है, क्या आपका इस पर कोई अधिकार रह जाता है?
24 Ist es nicht also: wenn dein Gott Kamos dir etwas einzunehmen gäbe, du nähmest es ein? Was nun der HERR, unser Gott, uns gegeben hat, daß wir es einnehmen, das werden wir behalten!
क्या आप स्वयं उस पर अधिकार नहीं किए हुए हैं, जो आपने अपने देवता खेमोश से पाया है? इसलिये, इसी प्रकार जो जगह याहवेह, हमारे परमेश्वर द्वारा हमारे सामने खाली करवाई गई है, हम उस पर अधिकार बनाए रखेंगे.
25 Oder bist du etwa besser als Balak, der Sohn Zippors, der König der Moabiter? Hat derselbe auch je mit Israel gerechtet oder gestritten?
क्या आप ज़ीप्पोर के पुत्र मोआब के राजा बालाक से बढ़कर हैं? क्या उसने कभी भी इस्राएल का सामना करने का साहस किया था अथवा क्या उसने कभी भी इस्राएल से युद्ध किया?
26 Da nun Israel dreihundert Jahre lang in Hesbon und seinen Dörfern, in Aroer und seinen Dörfern und in allen Städten, die am Arnon liegen, gewohnt hat, warum nahmet ihr sie ihnen nicht weg während dieser Zeit?
जब इस्राएल तीन सौ वर्षों से हेशबोन और उसके गांवों में, अरोअर तथा उसके गांवों में तथा आरनोन के तटवर्ती नगरों में रहता रहा, आपने उन्हें उसी समय वापस कब्जा करने की कोशिश क्यों नहीं की?
27 Ich habe nicht gegen dich gesündigt; und du tust so übel an mir, daß du wider mich streitest? Möge der HERR, der Richter, heute ein Urteil fällen zwischen den Kindern Israel und den Kindern Ammon!
इन बातों के प्रकाश में मैंने आपके विरुद्ध कोई पाप नहीं किया है, बल्कि आप ही मुझसे युद्ध करने की भूल कर रहे हैं. याहवेह, जो न्यायाध्यक्ष हैं, वही आज इस्राएल वंशजों तथा अम्मोन वंशजों के बीच न्याय करें.”
28 Aber der König der Kinder Ammon hörte nicht auf die Worte Jephtahs, die er ihm sagen ließ.
किंतु अम्मोन वंशजों के राजा ने यिफ्ताह द्वारा भेजे संदेश को न माना.
29 Da kam der Geist des HERRN auf Jephtah; der zog durch Gilead und Manasse und durch Mizpa, das in Gilead liegt; und von Mizpa, das in Gilead liegt, zog er gegen die Kinder Ammon.
इसी समय याहवेह का आत्मा यिफ्ताह पर उतरी. वह गिलआद एवं मनश्शेह में से होता हुआ आगे बढ़ा. इसके बाद वह मिज़पाह के गिलआद में से होता हुआ, वह अम्मोन वंशजों के क्षेत्र में जा पहुंचा.
30 Und Jephtah tat dem HERRN ein Gelübde und sprach: Gibst du die Kinder Ammon in meine Hand,
यिफ्ताह ने याहवेह के सामने यह शपथ ली, “यदि आप वास्तव में अम्मोन वंशजों को मेरे अधीन कर देंगे,
31 so soll das, was zu meiner Haustür heraus mir entgegenkommt, wenn ich in Frieden von den Kindern Ammon wiederkehre, dem HERRN gehören, und ich will es zum Brandopfer darbringen.
जब मैं अम्मोन वंशजों से सुरक्षित लौट आऊंगा, तब मेरे निवास के द्वारों में से जो कोई मुझसे भेंटकरने बाहर आएगा, वह याहवेह का हो जाएगा-मैं उसे होमबलि के रूप में चढ़ा दूंगा.”
32 Also zog Jephtah gegen die Kinder Ammon, um wider sie zu streiten. Und der HERR gab sie in seine Hand.
यिफ्ताह ने आगे बढ़कर अम्मोन वंशजों पर हमला कर दिया. याहवेह ने उन्हें उसके अधीन कर दिया.
33 Und er schlug sie von Aroer an, bis man gen Minnit kommt, zwanzig Städte, und bis gen Abel-Keramin, in einer sehr großen Schlacht. Also wurden die Kinder Ammon von den Kindern Israel gedemütigt.
अरोअर से लेकर मिन्‍निथ के प्रवेश तक बीस नगरों में तथा आबेल-केरामिन तक उसने घोर संहार किया. इस प्रकार अम्मोन वंशज, इस्राएल वंशजों के सामने हार गए.
34 Als nun Jephtah nach Mizpa zu seinem Hause kam, siehe, da trat seine Tochter heraus, ihm entgegen, mit Handpauken und Reigen; sie war aber sein einziges Kind, und er hatte sonst weder Sohn noch Tochter.
जब यिफ्ताह अपने आवास मिज़पाह लौटा, उसने देखा, कि उसकी पुत्री डफ बजाती नाचती हुई उससे भेंटकरने आ रही थी. वह यिफ्ताह की एकलौती संतान थी. उसके अलावा उसके न तो कोई पुत्र था, न कोई पुत्री.
35 Und als er sie sah, zerriß er seine Kleider und sprach: Ach, meine Tochter, wie tief beugst du mich nieder und betrübst du mich! Denn ich habe meinen Mund dem HERRN gegenüber aufgetan und kann es nicht widerrufen!
जैसे ही उसकी नज़र अपनी पुत्री पर पड़ी, उसने अपने वस्त्र फाड़ डाले और कहा, “हाय, मेरी पुत्री! तुमने तो मुझे खत्म ही कर दिया. तुम मेरे शोक का कारण हो गई हो. मैंने याहवेह को वचन दिया है, जिसे मैं मना नहीं कर सकता.”
36 Sie aber sprach zu ihm: Mein Vater, hast du deinen Mund dem HERRN gegenüber aufgetan, so tue an mir, wie es aus deinem Munde gegangen ist, nachdem der HERR dich an deinen Feinden, den Kindern Ammon, gerächt hat!
यह सुन उसकी पुत्री ने यिफ्ताह को उत्तर दिया, “पिताजी, आपने शपथ याहवेह से की है. मेरे साथ आप वही कीजिए, जैसा आपने कहा है; क्योंकि याहवेह ने आपके द्वारा अम्मोन वंशजों, आपके शत्रुओं से बदला लिया है.”
37 Und sie sprach zu ihrem Vater: Das werde mir gestattet, daß du mich zwei Monate lang verschonest, damit ich auf die Berge steigen und über meine Ehelosigkeit mit meinen Freundinnen weinen kann.
उसने अपने पिता से यह भी कहा, “जैसा आपने कहा है, मेरे साथ वैसा ही किया जाए; सिर्फ मुझे दो महीने के लिए अकेली छोड़ दिया जाए, कि मैं अपनी सहेलियों के साथ पहाड़ों पर जाकर अपने कुंवारी ही रह जाने के लिए रोऊंगी.”
38 Er sprach: Gehe hin! Und er ließ sie zwei Monate lang frei. Da ging sie hin mit ihren Gespielen und weinte auf den Bergen über ihre Ehelosigkeit.
“जाओ,” यिफ्ताह ने कहा और उसने दो महीने के लिए अपनी पुत्री को विदा कर दिया. वह चली गई और पहाड़ों पर अपने कुंवारी रह जाने के लिए रोती रही.
39 Und nach zwei Monaten kam sie wieder zu ihrem Vater. Und er tat ihr, wie er gelobt hatte. Und sie war noch mit keinem Mann bekannt gewesen.
दो महीने पूरे होने पर वह लौटी और यिफ्ताह ने उसके विषय में अपनी शपथ पूरी की, किसी पुरुष से उसका संबंध न हुआ था. इस्राएल में इसकी याद में एक प्रथा प्रचलित हो गई:
40 Daher ward es Brauch in Israel, daß die Töchter Israels jährlich hingehen, um die Tochter Jephtahs, des Gileaditers, zu besingen, vier Tage im Jahre.
इस्राएली कन्याएं हर साल गिलआदवासी यिफ्ताह की पुत्री की याद में चार दिन विलाप करती हैं.

< Richter 11 >