< Jeremia 24 >
1 Der HERR ließ mich schauen, und siehe, da standen zwei Körbe mit Feigen vor dem Tempel des HERRN (nachdem der babylonische König Nebukadnezar den Jechonja, den Sohn Jojakims, den König von Juda, gefangen weggeführt und ihn samt den Fürsten Judas und den Schmieden und den Schlossern gen Babel gebracht hatte):
जब बाबेल का राजा नबूकदनेज्ज़र यहोइयाकिम के पुत्र यहूदिया के राजा यकोनियाह को, यहूदिया के उच्चाधिकारियों को, येरूशलेम के शिल्पकारों तथा धातुकर्मियों को अपने साथ बाबेल ले गया, याहवेह ने मुझे यह प्रदर्शित किया: याहवेह के मंदिर के समक्ष अंजीर की दो टोकरियां रखी गई हैं, इन्हें देखो.
2 der eine Korb enthielt sehr gute Feigen, wie die Frühfeigen sind; im andern Korb aber waren sehr schlechte Feigen, die man vor Schlechtigkeit nicht genießen konnte.
एक टोकरी में अत्यंत उत्कृष्ट अंजीर रखे हुए थे, जैसे पहली उपज के पके फल; दूसरी टोकरी में अत्यंत निकृष्ट कोटि के गले हुए, सेवन के लिए सर्वथा अयोग्य अंजीर रखे हुए थे.
3 Da sprach der HERR zu mir: Jeremia, was siehst du? Feigen, antwortete ich; die guten Feigen sind sehr gut, und die schlechten Feigen sind sehr schlecht, daß man sie vor Schlechtigkeit nicht genießen kann.
तब याहवेह ने मुझसे पूछा, “क्या दिखाई दे रहा है तुम्हें, येरेमियाह?” मैंने उत्तर दिया, “अंजीर, उत्तम कोटि के अंजीर उत्कृष्ट हैं, तथा तुच्छ अंजीर अत्यंत निकृष्ट, सेवन के लिए अयोग्य क्योंकि वे गल चुके हैं.”
4 Da erging das Wort des HERRN an mich also:
तब मेरे लिए याहवेह का यह संदेश प्राप्त हुआ:
5 So spricht der HERR, der Gott Israels: Wie diese guten Feigen hier, so will ich die Gefangenen Judas, welche ich von diesem Orte weg ins Land der Chaldäer geschickt habe, für gut erkennen,
“याहवेह इस्राएल के परमेश्वर का वचन यह है: ‘इन उत्तम अंजीरों के सदृश, मैं यहूदिया के बंदियों को उत्तम मान लूंगा, जिन्हें मैंने इस स्थान से कसदियों के देश में कृपादृष्टि में भेज दिया है.
6 und ich will mein Auge auf sie richten zum Guten und will sie wieder in dieses Land zurückbringen und will sie bauen und nicht niederreißen, pflanzen und nicht ausreuten;
क्योंकि मैं उन पर अपनी कृपादृष्टि बनाए रखूंगा तथा मैं उन्हें इसी देश में लौटा ले आऊंगा. मैं उन्हें उभारूंगा, ध्वस्त नहीं; मैं उन्हें रोपित करूंगा; नहीं उखाड़ूंगा.
7 und ich will ihnen ein Herz geben, daß sie mich erkennen sollen, daß ich der HERR bin, und sie sollen mein Volk sein, und ich will ihr Gott sein; denn sie werden sich von ganzem Herzen zu mir bekehren.
मैं उन्हें ऐसा हृदय दूंगा जिससे उन्हें यह ज्ञान हो जाएगा, कि याहवेह मैं हूं. वे मेरी प्रजा होंगे, तथा मैं उनका परमेश्वर, क्योंकि वे अपने संपूर्ण हृदय से मेरे निकट लौट आएंगे.
8 Aber wie die schlechten Feigen so schlecht sind, daß man sie nicht genießen kann, so will ich, spricht der HERR, Zedekia, den König von Juda, behandeln und seine Fürsten und den Überrest von Jerusalem, sowohl die, welche in diesem Lande übriggeblieben sind, als auch die, welche in Ägyptenland wohnen.
“‘किंतु उन निकृष्ट अंजीरों के सदृश, जो खाने के लिए अयोग्य हैं क्योंकि वे गल चुके हैं, वस्तुतः याहवेह का कहना यह है, इसी प्रकार मैं यहूदिया के राजा सीदकियाहू, उसके अधिकारियों तथा येरूशलेम के लोगों का, जो इस देश में रह जाएंगे तथा उन्हें जो मिस्र देश में निवास करते हैं और सभी का परित्याग कर दूंगा.
9 Und ich will sie zum abschreckenden Beispiel des Unglücks machen für alle Königreiche der Erde, zum Schimpfwort und zum Sprichwort, zum Stichelwort und zum Fluch an allen Orten, dahin ich sie verstoßen werde;
मैं उन्हें पृथ्वी के सारे देशों के लिए आतंक, संकट, एक निंदा, एक लोकोक्ति, एक व्यंग्य सदृश तथा उन सभी स्थानों में जहां मैं उन्हें बिखरा दूंगा, एक शाप बना छोड़ूंगा.
10 und will gegen sie das Schwert, die Hungersnot und die Pest loslassen, bis sie gänzlich aus dem Lande vertilgt sind, das ich ihnen und ihren Vätern gegeben habe!
मैं उनके ऊपर तब तक तलवार, अकाल तथा महामारी का प्रहार करता रहूंगा, जब तक वे उस देश में से जो मैंने उन्हें तथा उनके पूर्वजों को प्रदान किया है, नष्ट न हो जाएं.’”