< Hesekiel 17 >
1 Und das Wort des HERRN erging an mich also:
याहवेह का यह वचन मेरे पास आया:
2 Menschensohn, gib dem Hause Israel ein Rätsel auf und lege ihm ein Gleichnis vor und sage:
“हे मनुष्य के पुत्र, एक पहेली बनाओ और इसे इस्राएलियों को एक दृष्टांत के रूप में सुनाओ.
3 So spricht Gott, der HERR: Ein großer Adler mit großen Flügeln und langen Fittichen voll buntfarbiger Federn kam auf den Libanon und nahm den Wipfel der Zeder hinweg
उनसे कहो, ‘परम प्रधान याहवेह का यह कहना है: एक बड़ा गरुड़ लबानोन में आया, जिसके शक्तिशाली डैने और लंबे पंख थे और उसके पूरे पंख विभिन्न रंगों के थे. उसने देवदार के पेड़ की चोटी के शाखा को पकड़कर.
4 und brach den obersten ihrer Zweige ab und brachte ihn in das Krämerland und setzte ihn in eine Handelsstadt.
उसने सबसे ऊपर की कोमल शाखा को तोड़ लिया और उसे व्यापारियों के एक देश में ले गया, और उसने उसे वहां एक व्यापारियों के शहर में रोप दिया.
5 Er nahm auch von dem Samen des Landes und tat ihn auf ein Saatfeld; er brachte ihn zu reichlichen Wassern und setzte ihn wie einen Weidenbaum.
“‘उसने देश के छोटे पौधों में से एक पौधा लेकर उसे उपजाऊ भूमि में लगा दिया. उसने उसे एक बहुत पानी वाले जगह में एक सरई की तरह लगाया,
6 Da wuchs er und ward ein wuchernder Weinstock, niedrigen Wuchses; seine Ranken bogen sich gegen ihn, und seine Wurzeln waren unter ihm. Also ward ein Weinstock daraus, und er trieb Schosse und streckte Ranken aus.
और वह बढ़ने लगा और फैलकर अंगूर की एक लता हो गया. उसकी डालियां उसकी ओर झुकी, पर उसकी जड़ें उसके नीचे में ही रहीं. वह अंगूर की एक लता हो गई और उसमें से डालियां निकलीं और ये डालियां पत्तियों से भर गईं.
7 Es war aber ein anderer großer Adler, der hatte große Flügel und viele Federn. Und siehe, dieser Weinstock bog seine Wurzeln zu ihm hin und streckte seine Schosse gegen ihn aus, damit er ihn tränke und nicht die Beete, worin er gepflanzt war.
“‘पर वहां एक और बड़ा गरुड़ था जिसके शक्तिशाली डैने थे और वह पंखों से भरा हुआ था. अब अंगूर की लता, जहां वह लगायी गई थी, वहां से उसकी जड़ें उस दूसरे गरुड़ की ओर बढ़ने लगीं और उसकी डालियां पानी के लिये उसकी तरफ फैलने लगीं.
8 Und er war doch auf einem guten Boden bei vielen Wassern gepflanzt und konnte Schosse treiben und Frucht tragen und ein prächtiger Weinstock werden!
उस लता को अच्छी भूमि पर बहुत पानी वाले जगह में लगाया गया था ताकि उसमें डालियां निकलें; उसमें फल लगें और वह एक बहुत बढ़िया अंगूर की लता हो.’
9 Sage: So spricht Gott, der HERR: Wird er geraten? Wird jener nicht seine Wurzeln ausreißen, daß seine Frucht verfault und verdorrt? Alle seine grünen Schosse werden verdorren! Und es braucht dazu keinen großen Arm und nicht viel Volk, um ihn aus seinen Wurzeln herauszuheben.
“उनसे कहो, ‘परम प्रधान याहवेह का यह कहना है: क्या यह बढ़ेगा? क्या इसे उखाड़कर इसके फलों को गिरा दिया नहीं जाएगा ताकि यह सूख जाए? इसकी सब नई अंकुरित पत्तियां सूख जाएंगी. इसे इसके जड़ से उखाड़ने के लिये किसी मजबूत हाथ या बहुत से लोगों की ज़रूरत नहीं होगी.
10 Und siehe, er ist zwar gepflanzt, sollte er aber geraten? Wird er nicht, sobald der Ostwind ihn berührt, gänzlich verdorren? Auf den Beeten, wo er ins Sprossen kam, wird er verdorren.
इसे लगाया गया है, पर क्या यह बढ़ेगा? क्या यह पूरी तरह सूख नहीं जाएगी जब इस पर पूर्वी हवा चलेगी? यह उसी भूमि में ही सूख जाएगी, जहां यह उगी थी.’”
11 Und das Wort des HERRN erging also an mich:
तब याहवेह का वचन मेरे पास आया:
12 Sage doch dem widerspenstigen Hause: Wisset ihr nicht, was das bedeutet? Sage: Seht, der König von Babel ist nach Jerusalem gekommen und hat ihren König und ihre Fürsten genommen und sie zu sich nach Babel gebracht.
“इन विद्रोही लोगों से कहो, ‘क्या तुम इन बातों का अर्थ नहीं समझते?’ उनसे कहो: ‘बाबेल का राजा येरूशलेम गया और उसके राजा और उसके प्रभावशाली लोगों को अपने साथ वापस बाबेल ले आया.
13 Er nahm auch von dem königlichen Samen und schloß einen Vertrag mit ihm und ließ ihn einen Eid schwören; und er nahm die Gewaltigen des Landes mit sich,
तब उसने राजपरिवार के एक सदस्य को लिया और उसे सौगंध दिलाकर उससे एक संधि की. वह अपने साथ देश के मुख्य लोगों को भी ले गया,
14 damit das Königtum gering bliebe und sich nicht erhebe, sondern seinen Vertrag hielte, so daß er Bestand habe.
ताकि वह राज्य कमजोर हो जाए और फिर उन्नति न कर सके, पर सिर्फ उसके द्वारा किए गये संधि पर चलने से बचा रहे.
15 Er aber fiel von ihm ab und sandte seine Boten nach Ägypten, damit man ihm Rosse und viel Volk zusendete. Wird er Glück haben? Wird er, der solches tat, davonkommen, und sollte der Vertragsbrüchige entrinnen?
परंतु उस राज्य के राजा ने अपने दूतों को घोड़े और एक बड़ी सेना लाने के लिये मिस्र देश भेजा और इस प्रकार उसने बाबेल के राजा से विद्रोह किया. क्या वह सफल होगा? क्या वह, जो ऐसा काम करता है, बच निकलेगा? क्या वह संधि को तोड़कर भी बच जाएगा?
16 So wahr ich lebe, spricht Gott, der HERR, er wird an dem Ort, da der König wohnt, der ihn zum König gemacht, dessen Eid er aber verachtet und dessen Vertrag er übertreten hat, mitten in Babel bei ihm sterben müssen!
“‘मेरे जीवन की सौगंध, परम प्रधान याहवेह की घोषणा है, वह उस राजा के देश बाबेल में मरेगा, जिसने उसे सिंहासन पर बैठाया, जिसकी शपथ को उसने तुच्छ जाना और जिसके संधि को उसने तोड़ा.
17 Auch wird ihm der Pharao nicht mit großem Heer und zahlreichem Volk im Krieg beistehen, wenn man einen Wall aufwirft und Bollwerke baut, um viele Seelen umzubringen.
जब ढलानें बनायी जाएंगी और लोगों को मारने के लिये घेराबंदी का काम किया जाएगा, तो फ़रोह, उसकी बड़ी सेना और उसका बड़ा उपद्रवी झुंड भी युद्ध में उसके कोई काम न आएगा.
18 Er hat den Eid so gering geschätzt, daß er den Vertrag brach; und siehe, er hat seine Hand gegeben und doch das alles getan, er wird nicht entrinnen.
उसने वाचा को तोड़ने के द्वारा शपथ को तुच्छ जाना. क्योंकि उसने अपने हाथ को गिरवी रखा और फिर भी ये सब काम किया, इसलिये वह बच नहीं पाएगा.
19 Darum spricht Gott, der HERR, also: So wahr ich lebe, ich will meinen Eid, welchen er verachtet, und den vor mir geschlossenen Vertrag, den er gebrochen hat, auf seinen Kopf bringen.
“‘इसलिये परम प्रधान याहवेह का यह कहना है: मैं अपने जीवन की शपथ खाकर कहता हूं, निश्चयतः, मैं उससे मेरी शपथ को तुच्छ समझने और मेरी वाचा को तोड़ने का बदला लूंगा.
20 Ich will mein Netz über ihn ausspannen, und er soll in meinem Garn gefangen werden. Ich will ihn gen Babel führen; daselbst will ich mit ihm ins Gericht gehen wegen des Treubruchs, den er an mir begangen hat.
मैं उसके लिये अपना जाल फैलाऊंगा, और वह मेरे फंदे में फंसेगा. मैं उसे बाबेल ले जाऊंगा और वहां उसे दंड दूंगा क्योंकि उसने मेरे साथ विश्वासघात किया.
21 Aber alle seine Flüchtlinge unter allen seinen Truppen sollen durchs Schwert fallen, und die Übriggebliebenen sollen nach allen Winden zerstreut werden; so werdet ihr erfahren, daß ich, der HERR, solches geredet habe.
उसके उत्तम सैन्य दल तलवार से मारे जाएंगे, और बचे हुए लोग चारों तरफ तितर-बितर हो जाएंगे. तब तुम जानोगे कि मैं, याहवेह ने यह कहा है.
22 Also spricht Gott, der HERR: Ich will auch ein Ästlein von dem Wipfel des hohen Zedernbaumes nehmen und will es einsetzen. Von dem obersten seiner Schosse will ich ein zartes Reis abbrechen und will es auf einem hohen und erhabenen Berg pflanzen;
“‘परम प्रधान याहवेह का यह कहना है: मैं एक देवदार वृक्ष की सबसे ऊंची डाली के अंकुर को लेकर लगाऊंगा; मैं उसकी सबसे ऊंची शाखाओं में से एक कोमल डाली को तोड़ूंगा और उसे एक ऊंचे पहाड़ पर लगाऊंगा.
23 auf dem hohen Berge Israels will ich es pflanzen, damit es Schosse treibe und Früchte bringe und zu einem prächtigen Zedernbaum werde, daß allerlei Vögel und allerlei Geflügel unter ihm wohnen und unter dem Schatten seiner Äste bleiben können;
मैं उसे इस्राएल के पहाड़ की ऊंचाइयों में लगाऊंगा; इसमें शाखाएं निकलेंगी और फल लगेगा और यह एक शानदार देवदार का पेड़ होगा. हर प्रकार के पक्षी उसमें घोंसला बनाएंगे; वे उसकी शाखाओं की छाया में बसेरा करेंगे.
24 und alle Bäume des Feldes sollen erfahren, daß ich, der HERR, den hohen Baum erniedrigt und den niedrigen Baum erhöht habe; daß ich den grünen Baum dürre und den dürren Baum zum Grünen gebracht habe. Ich, der HERR, habe es gesagt und auch getan.
बंजर भूमि के सब वृक्ष जान लेंगे कि मैं याहवेह ऊंचे वृक्ष को नीचे लाता और छोटे वृक्ष को बढ़ाकर ऊंचा करता हूं. मैं हरे-भरे वृक्ष को सुखा देता और सूखे वृक्ष को हरा-भरा करके बढ़ाता हूं. “‘मैं याहवेह ने कहा है, और मैं इसे पूरा करूंगा.’”