< Psalm 119 >

1 Glückselig, die unsträflich leben und in des Herrn Gesetzen wandeln!
आलेफ क्या ही धन्य हैं वे जो चाल के खरे हैं, और यहोवा की व्यवस्था पर चलते हैं!
2 Glückselig sind, die seine Bräuche achten und ihn von ganzem Herzen suchen,
क्या ही धन्य हैं वे जो उसकी चितौनियों को मानते हैं, और पूर्ण मन से उसके पास आते हैं!
3 die nie ein Unrecht tun und die auf seinen Wegen wandeln!
फिर वे कुटिलता का काम नहीं करते, वे उसके मार्गों में चलते हैं।
4 Du selbst gibst Deine Vorschriften, daß man genau sie halte.
तूने अपने उपदेश इसलिए दिए हैं, कि हम उसे यत्न से माने।
5 Ach, wäre fest mein Wandel in der Befolgung Deiner Ordnungen!
भला होता कि तेरी विधियों को मानने के लिये मेरी चाल चलन दृढ़ हो जाए!
6 Dann werde ich niemals zuschanden, beacht ich alle Deine Satzungen.
तब मैं तेरी सब आज्ञाओं की ओर चित्त लगाए रहूँगा, और मैं लज्जित न होऊँगा।
7 Ich danke Dir von Herzensgrunde, wenn ich erlerne Deine so gerechten Weisungen.
जब मैं तेरे धर्ममय नियमों को सीखूँगा, तब तेरा धन्यवाद सीधे मन से करूँगा।
8 Genau beachten will ich Deine Vorschriften. Verlaß mich nicht dabei!
मैं तेरी विधियों को मानूँगा: मुझे पूरी रीति से न तज! बेथ
9 Wodurch erhält ein Jüngling seinen Wandel rein? Wenn er sich hält an Deine Worte.
जवान अपनी चाल को किस उपाय से शुद्ध रखे? तेरे वचन का पालन करने से।
10 Von ganzem Herzen suche ich Dich auf. Entfremde mich nicht Deinen Satzungen!
१०मैं पूरे मन से तेरी खोज में लगा हूँ; मुझे तेरी आज्ञाओं की बाट से भटकने न दे!
11 In meinem Herzen berge ich Dein Wort, auf daß ich wider Dich nicht sündige.
११मैंने तेरे वचन को अपने हृदय में रख छोड़ा है, कि तेरे विरुद्ध पाप न करूँ।
12 Gepriesen seist Du, Herr! Gewöhne mich an Deine Ordnungen!
१२हे यहोवा, तू धन्य है; मुझे अपनी विधियाँ सिखा!
13 Auswendig sag ich auf all Deine mündlichen Gebote.
१३तेरे सब कहे हुए नियमों का वर्णन, मैंने अपने मुँह से किया है।
14 Ich freue mich des Weges hin zu Deinen Zeugnissen weit mehr als über irgendwelche Schätze.
१४मैं तेरी चितौनियों के मार्ग से, मानो सब प्रकार के धन से हर्षित हुआ हूँ।
15 Was Du befiehlst, dem sinn ich nach und schaue hin auf Deine Pfade.
१५मैं तेरे उपदेशों पर ध्यान करूँगा, और तेरे मार्गों की ओर दृष्टि रखूँगा।
16 Mit Deinen Ordnungen befasse ich mich gern, vergesse nicht Dein Wort.
१६मैं तेरी विधियों से सुख पाऊँगा; और तेरे वचन को न भूलूँगा। गिमेल
17 Gewähre Deinem Knechte, daß ich leben bleibe! Dann halte ich Dein Wort.
१७अपने दास का उपकार कर कि मैं जीवित रहूँ, और तेरे वचन पर चलता रहूँ।
18 Entschleiere mir das Auge, daß ich schaue, was wunderbar an Deiner Lehre!
१८मेरी आँखें खोल दे, कि मैं तेरी व्यवस्था की अद्भुत बातें देख सकूँ।
19 Ein Fremdling bin ich in dem Lande. Verbirg mir nimmer Deine Satzungen!
१९मैं तो पृथ्वी पर परदेशी हूँ; अपनी आज्ञाओं को मुझसे छिपाए न रख!
20 In Sehnsucht meine Seele sich verzehrt nach Deinen Weisungen zu jeder Zeit.
२०मेरा मन तेरे नियमों की अभिलाषा के कारण हर समय खेदित रहता है।
21 Du schiltst die Frechen. Verfluchst, die Deine Satzungen mißachten!
२१तूने अभिमानियों को, जो श्रापित हैं, घुड़का है, वे तेरी आज्ञाओं से भटके हुए हैं।
22 Wend Spott und Hohn von mir; denn Deine Zeugnisse, ich achte sie!
२२मेरी नामधराई और अपमान दूर कर, क्योंकि मैं तेरी चितौनियों को पकड़े हूँ।
23 Ob Fürsten auch sich wider mich beraten, Dein Knecht beherzigt dennoch Deine Ordnungen.
२३हाकिम भी बैठे हुए आपस में मेरे विरुद्ध बातें करते थे, परन्तु तेरा दास तेरी विधियों पर ध्यान करता रहा।
24 Ja, Wonne sind mir Deine Zeugnisse, Wegweiser sind mir Deine Vorschriften.
२४तेरी चितौनियाँ मेरा सुखमूल और मेरे मंत्री हैं। दाल्थ
25 Am Staube klebe ich. Erhalte mich nach Deinem Wort am Leben!
२५मैं धूल में पड़ा हूँ; तू अपने वचन के अनुसार मुझ को जिला!
26 Ich lege meine Wege dar, und Du erhörst mich. Gewöhne mich an Deine Satzungen!
२६मैंने अपनी चाल चलन का तुझ से वर्णन किया है और तूने मेरी बात मान ली है; तू मुझ को अपनी विधियाँ सिखा!
27 Gib Einsicht mir ins Wesen Deiner Vorschriften! Dann will ich Deine Wunder überdenken.
२७अपने उपदेशों का मार्ग मुझे समझा, तब मैं तेरे आश्चर्यकर्मों पर ध्यान करूँगा।
28 Vor Leid weint meine Seele. Richt mich nach Deinem Worte auf!
२८मेरा जीव उदासी के मारे गल चला है; तू अपने वचन के अनुसार मुझे सम्भाल!
29 Halt fern von mir den Pfad der Untreue! Zu eigen gib mir Deine Lehre gnädiglich!
२९मुझ को झूठ के मार्ग से दूर कर; और कृपा करके अपनी व्यवस्था मुझे दे।
30 Den Weg der Treue wähle ich, befolge Deine Weisungen.
३०मैंने सच्चाई का मार्ग चुन लिया है, तेरे नियमों की ओर मैं चित्त लगाए रहता हूँ।
31 Ich hänge fest an Deinen Zeugnissen. Herr, laß mich nicht zuschanden werden!
३१मैं तेरी चितौनियों में लौलीन हूँ, हे यहोवा, मुझे लज्जित न होने दे!
32 Ich laufe auf dem Wege Deiner Ordnungen; Du machst mir weit das Herz.
३२जब तू मेरा हियाव बढ़ाएगा, तब मैं तेरी आज्ञाओं के मार्ग में दौड़ूँगा। हे
33 Zeig mir den Weg zu Deinen Vorschriften, o Herr! Ich will ihn mit Bedacht einhalten.
३३हे यहोवा, मुझे अपनी विधियों का मार्ग सिखा दे; तब मैं उसे अन्त तक पकड़े रहूँगा।
34 Gib Einsicht mir, daß ich befolge Deine Lehre und sie mit ganzem Herzen hüte!
३४मुझे समझ दे, तब मैं तेरी व्यवस्था को पकड़े रहूँगा और पूर्ण मन से उस पर चलूँगा।
35 Laß Deiner Satzung Pfad mich wallen! Denn Freude habe ich daran.
३५अपनी आज्ञाओं के पथ में मुझ को चला, क्योंकि मैं उसी से प्रसन्न हूँ।
36 Zu Deinen Bräuchen lenke hin mein Herz und nicht zur Eigenliebe!
३६मेरे मन को लोभ की ओर नहीं, अपनी चितौनियों ही की ओर फेर दे।
37 Lenk meine Augen ab vom Schielen nach dem Eitlen! Auf Deinen Wegen laß mich Leben finden!
३७मेरी आँखों को व्यर्थ वस्तुओं की ओर से फेर दे; तू अपने मार्ग में मुझे जिला।
38 Bewähr an Deinem Knecht Dein Wort, das zu der Ehrfurcht vor Dir leiten soll!
३८तेरा वादा जो तेरे भय माननेवालों के लिये है, उसको अपने दास के निमित्त भी पूरा कर।
39 Nimm meine Schmach hinweg, daß ich gezweifelt, ob Deine Weisungen auch heilsam seien!
३९जिस नामधराई से मैं डरता हूँ, उसे दूर कर; क्योंकि तेरे नियम उत्तम हैं।
40 Nach Deinen Vorschriften verlangt es mich. In Deiner Liebe laß mich leben!
४०देख, मैं तेरे उपदेशों का अभिलाषी हूँ; अपने धर्म के कारण मुझ को जिला। वाव
41 Herr! Deine Gnade komme über mich, Dein Heil nach Deinem Worte,
४१हे यहोवा, तेरी करुणा और तेरा किया हुआ उद्धार, तेरे वादे के अनुसार, मुझ को भी मिले;
42 daß ich entgegne meinem Schmäher! Denn Deinem Wort vertraue ich.
४२तब मैं अपनी नामधराई करनेवालों को कुछ उत्तर दे सकूँगा, क्योंकि मेरा भरोसा, तेरे वचन पर है।
43 Versag nicht meinem Mund das rechte Wort! Auf Deine Weisung harr ich sehnsuchtsvoll.
४३मुझे अपने सत्य वचन कहने से न रोक क्योंकि मेरी आशा तेरे नियमों पर है।
44 Stets will ich Deiner Lehre folgen, für immer und auf ewig,
४४तब मैं तेरी व्यवस्था पर लगातार, सदा सर्वदा चलता रहूँगा;
45 nach ihr, der überreichen, wandeln. Nach Deinen Vorschriften verlangt es mich.
४५और मैं चौड़े स्थान में चला फिरा करूँगा, क्योंकि मैंने तेरे उपदेशों की सुधि रखी है।
46 Vor Königen selbst rede ich von Deinen Zeugnissen ohn alle Scheu.
४६और मैं तेरी चितौनियों की चर्चा राजाओं के सामने भी करूँगा, और लज्जित न होऊँगा;
47 Ich habe meine Lust an Deinen Satzungen; ich liebe sie.
४७क्योंकि मैं तेरी आज्ञाओं के कारण सुखी हूँ, और मैं उनसे प्रीति रखता हूँ।
48 Ich rege meine Hände eifervoll für Deine so geliebten Satzungen und sinne über Deine Ordnungen.
४८मैं तेरी आज्ञाओं की ओर जिनमें मैं प्रीति रखता हूँ, हाथ फैलाऊँगा और तेरी विधियों पर ध्यान करूँगा। ज़ैन
49 Gedenke Deinem Diener jenes Wort, auf das Du mich fest hoffen lässest!
४९जो वादा तूने अपने दास को दिया है, उसे स्मरण कर, क्योंकि तूने मुझे आशा दी है।
50 Dies ist mein Trost in meinem Leid, daß Lebensmut Dein Wort mir gibt.
५०मेरे दुःख में मुझे शान्ति उसी से हुई है, क्योंकि तेरे वचन के द्वारा मैंने जीवन पाया है।
51 So sehr Vermessene meiner spotten, ich weiche nicht von Deiner Lehre.
५१अहंकारियों ने मुझे अत्यन्त ठट्ठे में उड़ाया है, तो भी मैं तेरी व्यवस्था से नहीं हटा।
52 An Deine Weisungen, die alten, denke ich und fühle mich getröstet, Herr.
५२हे यहोवा, मैंने तेरे प्राचीन नियमों को स्मरण करके शान्ति पाई है।
53 Der Frevler wegen packt mich Zornesglut, die Deine Lehre schnöd verlassen.
५३जो दुष्ट तेरी व्यवस्था को छोड़े हुए हैं, उनके कारण मैं क्रोध से जलता हूँ।
54 Zu Lobesliedern sind mir Deine Ordnungen geworden im Haus, wo ich als Fremdling weile.
५४जहाँ मैं परदेशी होकर रहता हूँ, वहाँ तेरी विधियाँ, मेरे गीत गाने का विषय बनी हैं।
55 Ich denke, Herr, an Deinen Namen in der Nacht, an Deine Lehre selbst in mitternächtiger Stunde.
५५हे यहोवा, मैंने रात को तेरा नाम स्मरण किया, और तेरी व्यवस्था पर चला हूँ।
56 Zum Grundsatz ward mir dies, weil ich um Deine Vorschriften mich kümmere:
५६यह मुझसे इस कारण हुआ, कि मैं तेरे उपदेशों को पकड़े हुए था। हेथ
57 "Mein Alles ist der Herr", das deut ich so: Ich muß die Worte Dein beachten.
५७यहोवा मेरा भाग है; मैंने तेरे वचनों के अनुसार चलने का निश्चय किया है।
58 Von ganzem Herzen werbe ich um Deine Huld. Sei gnädig mir nach Deinem Wort!
५८मैंने पूरे मन से तुझे मनाया है; इसलिए अपने वादे के अनुसार मुझ पर दया कर।
59 Ich überlege meine Wege und lenke meine Füß hin zu Deinen Zeugnissen.
५९मैंने अपनी चाल चलन को सोचा, और तेरी चितौनियों का मार्ग लिया।
60 Ich eile, säume nicht, zu halten Deine Satzungen.
६०मैंने तेरी आज्ञाओं के मानने में विलम्ब नहीं, फुर्ती की है।
61 Der Frevler Stricke wollen mich umfangen; doch ich vergesse nimmer Deine Lehre.
६१मैं दुष्टों की रस्सियों से बन्ध गया हूँ, तो भी मैं तेरी व्यवस्था को नहीं भूला।
62 Um Mitternacht erhebe ich mich schon und danke Dir für Deine Weisungen, die so gerecht,
६२तेरे धर्ममय नियमों के कारण मैं आधी रात को तेरा धन्यवाद करने को उठूँगा।
63 im Wetteifer mit allen, die Dich fürchten, die Deine Vorschriften befolgen.
६३जितने तेरा भय मानते और तेरे उपदेशों पर चलते हैं, उनका मैं संगी हूँ।
64 Voll Deiner Gnade ist die Erde, Herr. Gewöhne mich an Deine Satzungen!
६४हे यहोवा, तेरी करुणा पृथ्वी में भरी हुई है; तू मुझे अपनी विधियाँ सिखा! टेथ
65 Du tust an Deinem Knechte Gutes, nach Deinem Worte, Herr.
६५हे यहोवा, तूने अपने वचन के अनुसार अपने दास के संग भलाई की है।
66 So lehre mich heilsame Sitte und Erkenntnis! Denn Deinen Satzungen vertraue ich.
६६मुझे भली विवेक-शक्ति और समझ दे, क्योंकि मैंने तेरी आज्ञाओं का विश्वास किया है।
67 Bevor ich leiden mußte, irrte ich; nun aber halte ich Dein Wort.
६७उससे पहले कि मैं दुःखित हुआ, मैं भटकता था; परन्तु अब मैं तेरे वचन को मानता हूँ।
68 Du bist so gut und handelst gut. Gewöhne mich an Deine Satzungen!
६८तू भला है, और भला करता भी है; मुझे अपनी विधियाँ सिखा।
69 Mir dichten Freche Falsches an; ich aber halte Deine Vorschriften aus ganzem Herzen.
६९अभिमानियों ने तो मेरे विरुद्ध झूठ बात गढ़ी है, परन्तु मैं तेरे उपदेशों को पूरे मन से पकड़े रहूँगा।
70 Ihr Herz ist stumpf wie Fett; doch ich ergötze mich an Deiner Lehre.
७०उनका मन मोटा हो गया है, परन्तु मैं तेरी व्यवस्था के कारण सुखी हूँ।
71 Mir war es heilsam, daß ich litt, damit ich mich an Deine Ordnungen gewöhnte.
७१मुझे जो दुःख हुआ वह मेरे लिये भला ही हुआ है, जिससे मैं तेरी विधियों को सीख सकूँ।
72 Dein mündliches Gesetz gilt mir weit mehr als tausend Stücke Gold und Silber.
७२तेरी दी हुई व्यवस्था मेरे लिये हजारों रुपयों और मुहरों से भी उत्तम है। योध
73 Von Deiner Hand bin ich geschaffen und gebildet. Verleih mir Einsicht, daß ich mich an Deine Satzungen gewöhne!
७३तेरे हाथों से मैं बनाया और रचा गया हूँ; मुझे समझ दे कि मैं तेरी आज्ञाओं को सीखूँ।
74 Mit Freuden sehen, die Dich fürchten, daß ich mich auf Dein Wort verlasse.
७४तेरे डरवैये मुझे देखकर आनन्दित होंगे, क्योंकि मैंने तेरे वचन पर आशा लगाई है।
75 Ich weiß es, Herr: Gerecht sind Deine Weisungen; in bester Absicht hast Du mich gezüchtigt.
७५हे यहोवा, मैं जान गया कि तेरे नियम धर्ममय हैं, और तूने अपने सच्चाई के अनुसार मुझे दुःख दिया है।
76 Zum Troste sei mir Deine Huld, wie Deinem Knechte Du verheißen
७६मुझे अपनी करुणा से शान्ति दे, क्योंकि तूने अपने दास को ऐसा ही वादा दिया है।
77 Laß Dein Erbarmen mich erquicken! Denn Deine Lehre ist mir Lust.
७७तेरी दया मुझ पर हो, तब मैं जीवित रहूँगा; क्योंकि मैं तेरी व्यवस्था से सुखी हूँ।
78 Schmach über diese Frechen, weil grundlos sie zu Unrecht mich bezichtigen! Ich sinne über Deine Vorschriften.
७८अहंकारी लज्जित किए जाए, क्योंकि उन्होंने मुझे झूठ के द्वारा गिरा दिया है; परन्तु मैं तेरे उपदेशों पर ध्यान करूँगा।
79 Sie mögen sich durch mich in solche wandeln, die fürchten Dich und schätzen lernen Deine Zeugnisse!
७९जो तेरा भय मानते हैं, वह मेरी ओर फिरें, तब वे तेरी चितौनियों को समझ लेंगे।
80 Unfehlbar sei mein Herz in Deinen Ordnungen, damit ich nicht erröten muß!
८०मेरा मन तेरी विधियों के मानने में सिद्ध हो, ऐसा न हो कि मुझे लज्जित होना पड़े। क़ाफ
81 Nach Deinem Heile schmachtet meine Seele, ich harre Deines Wortes.
८१मेरा प्राण तेरे उद्धार के लिये बैचेन है; परन्तु मुझे तेरे वचन पर आशा रहती है।
82 Nach Deinem Worte schmachten meine Augen: "Wann bringt's mir Trost?"
८२मेरी आँखें तेरे वादे के पूरे होने की बाट जोहते-जोहते धुंधली पड़ गईं है; और मैं कहता हूँ कि तू मुझे कब शान्ति देगा?
83 Bin ich auch wie ein Schlauch im Rauche, vergesse ich doch niemals Deine Ordnungen.
८३क्योंकि मैं धुएँ में की कुप्पी के समान हो गया हूँ, तो भी तेरी विधियों को नहीं भूला।
84 Wieviel sind noch der Tage Deines Knechtes? Wann richtest Du, die mich verfolgen?
८४तेरे दास के कितने दिन रह गए हैं? तू मेरे पीछे पड़े हुओं को दण्ड कब देगा?
85 Mir graben Freche Gruben in dem, was Deiner Lehre nicht entspricht.
८५अहंकारी जो तेरी व्यवस्था के अनुसार नहीं चलते, उन्होंने मेरे लिये गड्ढे खोदे हैं।
86 Was Du befiehlst, ist lautre Wahrheit; grundlos verfolgt man mich. Komm mir zu Hilfe!
८६तेरी सब आज्ञाएँ विश्वासयोग्य हैं; वे लोग झूठ बोलते हुए मेरे पीछे पड़े हैं; तू मेरी सहायता कर!
87 Beinah vertilgten sie mich von der Erde; doch laß ich nicht von Deinen Vorschriften.
८७वे मुझ को पृथ्वी पर से मिटा डालने ही पर थे, परन्तु मैंने तेरे उपदेशों को नहीं छोड़ा।
88 Nach Deiner Huld erhalte mich am Leben, daß Deines Mundes Lehre ich befolge!
८८अपनी करुणा के अनुसार मुझ को जिला, तब मैं तेरी दी हुई चितौनी को मानूँगा। लामेध
89 Dein Wort ist für die Ewigkeiten, Herr; dem Himmel gleich, so steht es fest gegründet.
८९हे यहोवा, तेरा वचन, आकाश में सदा तक स्थिर रहता है।
90 Durch alle Zeiten währet Deine Treue, wie Du die Erde für die Dauer hast gegründet.
९०तेरी सच्चाई पीढ़ी से पीढ़ी तक बनी रहती है; तूने पृथ्वी को स्थिर किया, इसलिए वह बनी है।
91 Für Deine Winke steht sie heut bereit; denn alles ist Dir untertan.
९१वे आज के दिन तक तेरे नियमों के अनुसार ठहरे हैं; क्योंकि सारी सृष्टि तेरे अधीन है।
92 Wenn Deine Lehre mir nicht Wonne wäre, vergangen wäre ich in meinem Leid.
९२यदि मैं तेरी व्यवस्था से सुखी न होता, तो मैं दुःख के समय नाश हो जाता।
93 Nie will ich Deine Vorschriften vergessen; denn Du verleihst mir dadurch Lebenskraft.
९३मैं तेरे उपदेशों को कभी न भूलूँगा; क्योंकि उन्हीं के द्वारा तूने मुझे जिलाया है।
94 Dein bin ich. Steh mir bei! Denn ich durchforsche Deine Vorschriften.
९४मैं तेरा ही हूँ, तू मेरा उद्धार कर; क्योंकि मैं तेरे उपदेशों की सुधि रखता हूँ।
95 Mir lauern Frevler auf, mich umzubringen; doch ich vertiefe mich in Deine Zeugnisse.
९५दुष्ट मेरा नाश करने के लिये मेरी घात में लगे हैं; परन्तु मैं तेरी चितौनियों पर ध्यान करता हूँ।
96 Bei allem anderen, was enden soll, ersehe ich ein Ende; doch Dein Gebot ist übergroß.
९६मैंने देखा है कि प्रत्येक पूर्णता की सीमा होती है, परन्तु तेरी आज्ञा का विस्तार बड़ा और सीमा से परे है। मीम
97 Wie lieb ich Deine Lehre! Sie ist mein täglich Sinnen.
९७आहा! मैं तेरी व्यवस्था में कैसी प्रीति रखता हूँ! दिन भर मेरा ध्यान उसी पर लगा रहता है।
98 Mich macht weit klüger Deine Satzung, als meine Feinde sind; denn ich besitze sie für immer.
९८तू अपनी आज्ञाओं के द्वारा मुझे अपने शत्रुओं से अधिक बुद्धिमान करता है, क्योंकि वे सदा मेरे मन में रहती हैं।
99 Verständiger noch werde ich als alle meine Lehrer; denn Deine Zeugnisse sind all mein Sinnen.
९९मैं अपने सब शिक्षकों से भी अधिक समझ रखता हूँ, क्योंकि मेरा ध्यान तेरी चितौनियों पर लगा है।
100 An Einsicht übertreff ich Greise; denn ich beachte Deine Satzungen.
१००मैं पुरनियों से भी समझदार हूँ, क्योंकि मैं तेरे उपदेशों को पकड़े हुए हूँ।
101 Ich wehre meinem Fuße jeden bösen Weg, auf daß ich Deines Wortes pflege.
१०१मैंने अपने पाँवों को हर एक बुरे रास्ते से रोक रखा है, जिससे मैं तेरे वचन के अनुसार चलूँ।
102 Ich weiche nicht von deinen Weisungen; denn Du belehrest mich.
१०२मैं तेरे नियमों से नहीं हटा, क्योंकि तू ही ने मुझे शिक्षा दी है।
103 Wie süß sind meinem Gaumen Deine Worte, weit süßer meinem Mund als Honigseim!
१०३तेरे वचन मुझ को कैसे मीठे लगते हैं, वे मेरे मुँह में मधु से भी मीठे हैं!
104 Verständig werde ich durch Deine Vorschriften; drum hasse ich auch jeden falschen Pfad.
१०४तेरे उपदेशों के कारण मैं समझदार हो जाता हूँ, इसलिए मैं सब मिथ्या मार्गों से बैर रखता हूँ। नून
105 Dein Wort ist meines Fußes Leuchte, ein Licht auf meinem Pfade.
१०५तेरा वचन मेरे पाँव के लिये दीपक, और मेरे मार्ग के लिये उजियाला है।
106 Ich hab's mir eidlich vorgenommen, was Du gerecht befohlen, auch zu halten.
१०६मैंने शपथ खाई, और ठान लिया है कि मैं तेरे धर्ममय नियमों के अनुसार चलूँगा।
107 Ich bin gar tief gebeugt. Nach Deinem Worte, Herr, belebe mich!
१०७मैं अत्यन्त दुःख में पड़ा हूँ; हे यहोवा, अपने वादे के अनुसार मुझे जिला।
108 Laß, Herr, Dir meines Mundes Übungen gefallen! Gewöhne mich an Deine Weisungen!
१०८हे यहोवा, मेरे वचनों को स्वेच्छाबलि जानकर ग्रहण कर, और अपने नियमों को मुझे सिखा।
109 Mein Leben ist beständig in Gefahr; doch ich vergesse Deine Lehre nicht.
१०९मेरा प्राण निरन्तर मेरी हथेली पर रहता है, तो भी मैं तेरी व्यवस्था को भूल नहीं गया।
110 Mir legen Frevler Schlingen; ich irre nimmer ab von Deinen Vorschriften. -
११०दुष्टों ने मेरे लिये फंदा लगाया है, परन्तु मैं तेरे उपदेशों के मार्ग से नहीं भटका।
111 Ein ewig Erbgut sind mir Deine Zeugnisse; ja, Herzenswonne sind sie mir.
१११मैंने तेरी चितौनियों को सदा के लिये अपना निज भागकर लिया है, क्योंकि वे मेरे हृदय के हर्ष का कारण है।
112 Ich neige hin mein Herz, zu tun, was Du befiehlst, für immer auf das eifrigste.
११२मैंने अपने मन को इस बात पर लगाया है, कि अन्त तक तेरी विधियों पर सदा चलता रहूँ। सामेख
113 Ich hasse Zweifler; doch Deine Lehre liebe ich.
११३मैं दुचित्तों से तो बैर रखता हूँ, परन्तु तेरी व्यवस्था से प्रीति रखता हूँ।
114 Mein Schirm und Schild bist Du; ich harre Deines Wortes.
११४तू मेरी आड़ और ढाल है; मेरी आशा तेरे वचन पर है।
115 Hinweg von mir, ihr Übeltäter! Ich will ja meines Gottes Satzungen befolgen.
११५हे कुकर्मियों, मुझसे दूर हो जाओ, कि मैं अपने परमेश्वर की आज्ञाओं को पकड़े रहूँ!
116 Nach Deinem Worte stärke mich, auf daß ich lebe! Beschäme mich in meiner Hoffnung nicht!
११६हे यहोवा, अपने वचन के अनुसार मुझे सम्भाल, कि मैं जीवित रहूँ, और मेरी आशा को न तोड़!
117 Halt Du mich fest, daß ich gerettet werde! Ich schaue stets nach Deinen Ordnungen.
११७मुझे थामे रख, तब मैं बचा रहूँगा, और निरन्तर तेरी विधियों की ओर चित्त लगाए रहूँगा!
118 Die sich vergehn an Deinen Ordnungen, die wirfst Du weg; denn Trug ist all ihr Sinnen.
११८जितने तेरी विधियों के मार्ग से भटक जाते हैं, उन सब को तू तुच्छ जानता है, क्योंकि उनकी चतुराई झूठ है।
119 Die Frevler all auf Erden achtest Du wie Schlacken; drum liebe ich auch Deine Zeugnisse.
११९तूने पृथ्वी के सब दुष्टों को धातु के मैल के समान दूर किया है; इस कारण मैं तेरी चितौनियों से प्रीति रखता हूँ।
120 Aus Furcht vor Dir erschaudert mir die Haut; Ich fürchte mich vor Deinen Strafgerichten.
१२०तेरे भय से मेरा शरीर काँप उठता है, और मैं तेरे नियमों से डरता हूँ। ऐन
121 Das Rechte tu ich und das Gute. Gib meinen Drängern mich nicht preis!
१२१मैंने तो न्याय और धर्म का काम किया है; तू मुझे अत्याचार करनेवालों के हाथ में न छोड़।
122 Vertritt zu seinem Besten Deinen Knecht, daß nicht die Stolzen mir Gewalt antun!
१२२अपने दास की भलाई के लिये जामिन हो, ताकि अहंकारी मुझ पर अत्याचार न करने पाएँ।
123 Nach Deiner Hilfe schmachten meine Augen, nach Deiner Heilsverheißung.
१२३मेरी आँखें तुझ से उद्धार पाने, और तेरे धर्ममय वचन के पूरे होने की बाट जोहते-जोहते धुँधली पड़ गई हैं।
124 Verfahr mit Deinem Knecht nach Deiner Huld! Gewöhne mich an Deine Ordnungen!
१२४अपने दास के संग अपनी करुणा के अनुसार बर्ताव कर, और अपनी विधियाँ मुझे सिखा।
125 Dein Knecht bin ich. Belehre mich, auf daß ich Deine Bräuche wohl verstehe!
१२५मैं तेरा दास हूँ, तू मुझे समझ दे कि मैं तेरी चितौनियों को समझूँ।
126 's ist Zeit, sich für den Herrn zu regen; sie wollen Dein Gesetz abschaffen.
१२६वह समय आया है, कि यहोवा काम करे, क्योंकि लोगों ने तेरी व्यवस्था को तोड़ दिया है।
127 Drum liebe ich auch Deine Satzungen viel mehr als Gold, als selbst das feinste Gold.
१२७इस कारण मैं तेरी आज्ञाओं को सोने से वरन् कुन्दन से भी अधिक प्रिय मानता हूँ।
128 Drum habe ich all Deine Vorschriften mir auserwählt; ich hasse jeden falschen Weg.
१२८इसी कारण मैं तेरे सब उपदेशों को सब विषयों में ठीक जानता हूँ; और सब मिथ्या मार्गों से बैर रखता हूँ। पे
129 Geheimnisvoll sind Deine Zeugnisse drum achtet ihrer meine Seele.
१२९तेरी चितौनियाँ अद्भुत हैं, इस कारण मैं उन्हें अपने जी से पकड़े हुए हूँ।
130 Dein Wort erschließen spendet Licht; es macht die Einfalt klug.
१३०तेरी बातों के खुलने से प्रकाश होता है; उससे निर्बुद्धि लोग समझ प्राप्त करते हैं।
131 Begierig öffne ich den Mund; denn mich verlangt nach Deinen Satzungen.
१३१मैं मुँह खोलकर हाँफने लगा, क्योंकि मैं तेरी आज्ञाओं का प्यासा था।
132 Wend Dich zu mir und sei mir gnädig, wie's Rechtens ist für die, die Deinen Namen lieben!
१३२जैसी तेरी रीति अपने नाम के प्रीति रखनेवालों से है, वैसे ही मेरी ओर भी फिरकर मुझ पर दया कर।
133 In Deinem Wort mach meine Schritte fest! Laß nicht das Böse herrschen über mich!
१३३मेरे पैरों को अपने वचन के मार्ग पर स्थिर कर, और किसी अनर्थ बात को मुझ पर प्रभुता न करने दे।
134 Von Menschendruck befreie mich, damit ich Deine Vorschriften befolge!
१३४मुझे मनुष्यों के अत्याचार से छुड़ा ले, तब मैं तेरे उपदेशों को मानूँगा।
135 Laß Deinem Knecht Dein Antlitz leuchten! Gewöhne mich an Deine Ordnungen!
१३५अपने दास पर अपने मुख का प्रकाश चमका दे, और अपनी विधियाँ मुझे सिखा।
136 Aus meinen Augen strömen Wasserbäche für die, die Deine Lehre nicht befolgen.
१३६मेरी आँखों से आँसुओं की धारा बहती रहती है, क्योंकि लोग तेरी व्यवस्था को नहीं मानते। सांदे
137 Gerecht bist Du, o Herr, und Deine Weisungen sind recht.
१३७हे यहोवा तू धर्मी है, और तेरे नियम सीधे हैं।
138 Ganz recht sind Deine Bräuche, die Du bestimmst, und lauter Wahrheit.
१३८तूने अपनी चितौनियों को धर्म और पूरी सत्यता से कहा है।
139 Mein Eifer zehrt mich auf, daß meine Gegner Deine Worte so vergessen.
१३९मैं तेरी धुन में भस्म हो रहा हूँ, क्योंकि मेरे सतानेवाले तेरे वचनों को भूल गए हैं।
140 Dein Wort ist rein geläutert; Dein Knecht hat's lieb.
१४०तेरा वचन पूरी रीति से ताया हुआ है, इसलिए तेरा दास उसमें प्रीति रखता है।
141 Gering, verachtet bin ich zwar; doch ich vergesse nimmer Deine Vorschriften.
१४१मैं छोटा और तुच्छ हूँ, तो भी मैं तेरे उपदेशों को नहीं भूलता।
142 Dein Recht bleibt ewig Recht; Wahrheit ist Deine Lehre.
१४२तेरा धर्म सदा का धर्म है, और तेरी व्यवस्था सत्य है।
143 Mich treffen Not und Angst; doch Wonne sind mir Deine Satzungen.
१४३मैं संकट और सकेती में फँसा हूँ, परन्तु मैं तेरी आज्ञाओं से सुखी हूँ।
144 Allzeit sind Deine Bräuche richtig. Gib Einsicht mir, daß ich am Leben bleibe!
१४४तेरी चितौनियाँ सदा धर्ममय हैं; तू मुझ को समझ दे कि मैं जीवित रहूँ। क़ाफ़
145 Von ganzem Herzen rufe ich: "Herr, höre mich! Ich möchte Deine Ordnungen befolgen!"
१४५मैंने सारे मन से प्रार्थना की है, हे यहोवा मेरी सुन! मैं तेरी विधियों को पकड़े रहूँगा।
146 "Hilf mir!" so rufe ich zu Dir. "Ich möchte Deine Zeugnisse beachten."
१४६मैंने तुझ से प्रार्थना की है, तू मेरा उद्धार कर, और मैं तेरी चितौनियों को माना करूँगा।
147 Zur Zeit der Dämmerung erheb ich mich und flehe; ich harre Deines Wortes.
१४७मैंने पौ फटने से पहले दुहाई दी; मेरी आशा तेरे वचनों पर थी।
148 Bevor der Morgen graut, sind meine Augen wach, Dein Wort zu überdenken.
१४८मेरी आँखें रात के एक-एक पहर से पहले खुल गईं, कि मैं तेरे वचन पर ध्यान करूँ।
149 Nach Deiner Huld erhöre mein Gebet! Wie's Deine Art ist, laß mich leben!
१४९अपनी करुणा के अनुसार मेरी सुन ले; हे यहोवा, अपनी नियमों के रीति अनुसार मुझे जीवित कर।
150 Die nach dem Laster jagen, kommen diesem immer näher und Deiner Lehre immer ferner.
१५०जो दुष्टता की धुन में हैं, वे निकट आ गए हैं; वे तेरी व्यवस्था से दूर हैं।
151 Jedoch auch Du bist nahe, Herr; all Deine Satzungen sind Wahrheit.
१५१हे यहोवा, तू निकट है, और तेरी सब आज्ञाएँ सत्य हैं।
152 Von Urzeit her, so weiß ich es von Deinen Zeugnissen, Du hast sie eingesetzt für immer.
१५२बहुत काल से मैं तेरी चितौनियों को जानता हूँ, कि तूने उनकी नींव सदा के लिये डाली है। रेश
153 Sieh her auf meine Not und rette mich! Ich habe Deine Lehre nicht vergessen.
१५३मेरे दुःख को देखकर मुझे छुड़ा ले, क्योंकि मैं तेरी व्यवस्था को भूल नहीं गया।
154 Zu meiner Rettung führe meine Sache! Nach Deinem Worte laß mich leben!
१५४मेरा मुकद्दमा लड़, और मुझे छुड़ा ले; अपने वादे के अनुसार मुझ को जिला।
155 Den Frevlern ferne ist das Heil, weil sie nach Deinen Ordnungen nichts fragen.
१५५दुष्टों को उद्धार मिलना कठिन है, क्योंकि वे तेरी विधियों की सुधि नहीं रखते।
156 Gar groß ist Dein Erbarmen, Herr. Laß mich, wie's Deine Art ist, leben!
१५६हे यहोवा, तेरी दया तो बड़ी है; इसलिए अपने नियमों के अनुसार मुझे जिला।
157 Obschon mich viele drängen und verfolgen, so weiche ich doch nicht von Deinen Zeugnissen.
१५७मेरा पीछा करनेवाले और मेरे सतानेवाले बहुत हैं, परन्तु मैं तेरी चितौनियों से नहीं हटता।
158 Erblick ich Treulose, streit ich mit ihnen, dieweil Dein Wort sie nicht beachten.
१५८मैं विश्वासघातियों को देखकर घृणा करता हूँ; क्योंकि वे तेरे वचन को नहीं मानते।
159 Wie gerne hab ich Deine Vorschriften! Erhalte mich nach Deiner Huld am Leben, Herr!
१५९देख, मैं तेरे उपदेशों से कैसी प्रीति रखता हूँ! हे यहोवा, अपनी करुणा के अनुसार मुझ को जिला।
160 Beständigkeit ist Deines Wortes Eigenart; für immer gelten Deine so gerechten Weisungen.
१६०तेरा सारा वचन सत्य ही है; और तेरा एक-एक धर्ममय नियम सदाकाल तक अटल है। शीन
161 Von Fürsten werd ich ohne Grund verfolgt; doch nur vor Deinem Worte bebt mein Herz.
१६१हाकिम व्यर्थ मेरे पीछे पड़े हैं, परन्तु मेरा हृदय तेरे वचनों का भय मानता है।
162 Ich freue mich ob Deines Wortes, wie der, so reiche Beute findet.
१६२जैसे कोई बड़ी लूट पाकर हर्षित होता है, वैसे ही मैं तेरे वचन के कारण हर्षित हूँ।
163 Mit großem Abscheu hasse ich die Falschheit; nur Deine Lehre liebe ich.
१६३झूठ से तो मैं बैर और घृणा रखता हूँ, परन्तु तेरी व्यवस्था से प्रीति रखता हूँ।
164 Ich preise Dich des Tages siebenmal für Deine so gerechten Weisungen.
१६४तेरे धर्ममय नियमों के कारण मैं प्रतिदिन सात बार तेरी स्तुति करता हूँ।
165 Die Deine Lehre lieben, ernten reichen Frieden; für sie gibt's keinen Anstoß mehr.
१६५तेरी व्यवस्था से प्रीति रखनेवालों को बड़ी शान्ति होती है; और उनको कुछ ठोकर नहीं लगती।
166 Ich harre Deines Heiles, Herr, und Deine Satzungen befolge ich.
१६६हे यहोवा, मैं तुझ से उद्धार पाने की आशा रखता हूँ; और तेरी आज्ञाओं पर चलता आया हूँ।
167 Auf Deine Zeugnisse hat meine Seele acht und liebt sie über alle Maßen.
१६७मैं तेरी चितौनियों को जी से मानता हूँ, और उनसे बहुत प्रीति रखता आया हूँ।
168 Ich achte Deine Vorschriften und Bräuche; all meine Wege liegen ja vor Dir.
१६८मैं तेरे उपदेशों और चितौनियों को मानता आया हूँ, क्योंकि मेरी सारी चाल चलन तेरे सम्मुख प्रगट है। ताव
169 Laß vor Dich kommen, Herr, mein Flehen! Nach Deinem Worte gib mir Einsicht!
१६९हे यहोवा, मेरी दुहाई तुझ तक पहुँचे; तू अपने वचन के अनुसार मुझे समझ दे!
170 Mein Flehen komme vor Dein Angesicht! Errette mich nach Deinem Wort!
१७०मेरा गिड़गिड़ाना तुझ तक पहुँचे; तू अपने वचन के अनुसार मुझे छुड़ा ले।
171 Ein Loblied ström von meinen Lippen, gewöhnst Du mich an Deine Ordnungen!
१७१मेरे मुँह से स्तुति निकला करे, क्योंकि तू मुझे अपनी विधियाँ सिखाता है।
172 Dein Wort besinge meine Zunge! Denn alle Deine Satzungen sind Recht.
१७२मैं तेरे वचन का गीत गाऊँगा, क्योंकि तेरी सब आज्ञाएँ धर्ममय हैं।
173 Zum Beistand reiche mir die Hand! Denn Deine Vorschriften hab ich erwählt.
१७३तेरा हाथ मेरी सहायता करने को तैयार रहता है, क्योंकि मैंने तेरे उपदेशों को अपनाया है।
174 Nach Deinem Heil verlangt's mich, Herr, und Wonne ist mir Deine Lehre.
१७४हे यहोवा, मैं तुझ से उद्धार पाने की अभिलाषा करता हूँ, मैं तेरी व्यवस्था से सुखी हूँ।
175 So möge leben meine Seele und Dich preisen, und dazu mögen mir verhelfen Deine Weisungen!
१७५मुझे जिला, और मैं तेरी स्तुति करूँगा, तेरे नियमों से मेरी सहायता हो।
176 Wie ein verloren Schäflein irre ich umher. Such Deinen Knecht! Denn ich vergesse niemals Deine Satzungen.
१७६मैं खोई हुई भेड़ के समान भटका हूँ; तू अपने दास को ढूँढ़ ले, क्योंकि मैं तेरी आज्ञाओं को भूल नहीं गया।

< Psalm 119 >