< Sprueche 24 >

1 Verlange nicht nach Boshaften! Trag kein Gelüst, mit ihnen zu verkehren!
बुरे लोगों के विषय में डाह न करना, और न उसकी संगति की चाह रखना;
2 Denn nur Gewalttat sinnt ihr Herz, und Unheil reden ihre Lippen.
क्योंकि वे उपद्रव सोचते रहते हैं, और उनके मुँह से दुष्टता की बात निकलती है।
3 Durch Weisheit wird allein ein Haus erbaut, und durch verständig Wesen wird es fest gegründet.
घर बुद्धि से बनता है, और समझ के द्वारा स्थिर होता है।
4 Durch Einsicht füllen sich die Kammern mit seltener und wohlverdienter Habe.
ज्ञान के द्वारा कोठरियाँ सब प्रकार की बहुमूल्य और मनोहर वस्तुओं से भर जाती हैं।
5 Ein weiser Mann ist mächtig, ein Kluger voller Kraft.
वीर पुरुष बलवान होता है, परन्तु ज्ञानी व्यक्ति बलवान पुरुष से बेहतर है।
6 Mit Kunst fuhrst glücklich du den Krieg; der Sieg ist da, wo viele Ratgeber.
इसलिए जब तू युद्ध करे, तब युक्ति के साथ करना, विजय बहुत से मंत्रियों के द्वारा प्राप्त होती है।
7 Dem Toren ist die Weisheit unerreichbar; er fragt nicht auf dem Markt danach.
बुद्धि इतने ऊँचे पर है कि मूर्ख उसे पा नहीं सकता; वह सभा में अपना मुँह खोल नहीं सकता।
8 Wer Schlechtigkeit zu tun sich vornimmt, den heißt man einen abgefeimten Schurken.
जो सोच विचार के बुराई करता है, उसको लोग दुष्ट कहते हैं।
9 Das Dichten und das Trachten eines Toren ist das Laster, und das des Spötters sind Abscheulichkeiten.
मूर्खता का विचार भी पाप है, और ठट्ठा करनेवाले से मनुष्य घृणा करते हैं।
10 Wenn du dich schlaff an schlimmen Tagen zeigst, wird deine Kraft sich mindern.
१०यदि तू विपत्ति के समय साहस छोड़ दे, तो तेरी शक्ति बहुत कम है।
11 Die man zum Tode führt, die suche zu befreien; verlaß nicht, die man führt zur Hinrichtung hinaus!
११जो मार डाले जाने के लिये घसीटे जाते हैं उनको छुड़ा; और जो घात किए जाने को हैं उन्हें रोक।
12 Denn, wenn du sagst: "Wir haben's nicht gekonnt", durchschaut's nicht der, der alle Herzen wägt, und wird's nicht inne, der auf deine Seele achtet? Wird nicht dem Mann nach seinem Tun vergolten?
१२यदि तू कहे, कि देख मैं इसको जानता न था, तो क्या मन का जाँचनेवाला इसे नहीं समझता? और क्या तेरे प्राणों का रक्षक इसे नहीं जानता? और क्या वह हर एक मनुष्य के काम का फल उसे न देगा?
13 Mein Sohn iß Honig! Er ist gut. Und Honigseim! Süß ist er deinem Gaumen.
१३हे मेरे पुत्र तू मधु खा, क्योंकि वह अच्छा है, और मधु का छत्ता भी, क्योंकि वह तेरे मुँह में मीठा लगेगा।
14 So schätze auch die Weisheit ein für deine Seele! Wenn du sie findest, gibt es eine Zukunft, und deine Hoffnung wird nicht mehr zuschanden.
१४इसी रीति बुद्धि भी तुझे वैसी ही मीठी लगेगी; यदि तू उसे पा जाए तो अन्त में उसका फल भी मिलेगा, और तेरी आशा न टूटेगी।
15 Belaure, Frevler, nicht des Frommen Ruhestätte! Dir soll es nicht gelingen, seine Lagerstätte zu zerstören.
१५तू दुष्ट के समान धर्मी के निवास को नष्ट करने के लिये घात में न बैठ; और उसके विश्रामस्थान को मत उजाड़;
16 Denn fällt auch siebenmal der Fromme, steht er doch immer wieder auf; die Frevler aber sinken in das Unglück.
१६क्योंकि धर्मी चाहे सात बार गिरे तो भी उठ खड़ा होता है; परन्तु दुष्ट लोग विपत्ति में गिरकर पड़े ही रहते हैं।
17 Nicht juble über deines Feindes Fall, und über seinen Sturz frohlocke nicht dein Herz!
१७जब तेरा शत्रु गिर जाए तब तू आनन्दित न हो, और जब वह ठोकर खाए, तब तेरा मन मगन न हो।
18 Sonst sieht mit Mißbehagen es der Herr und wendet seinen Zorn von jenem.
१८कहीं ऐसा न हो कि यहोवा यह देखकर अप्रसन्न हो और अपना क्रोध उस पर से हटा ले।
19 Erhitze dich nicht über Bösewichte! Ereifere dich nicht über Frevler!
१९कुकर्मियों के कारण मत कुढ़, दुष्ट लोगों के कारण डाह न कर;
20 Denn keine Zukunft hat der Böse; des Bösewichtes Leuchte wird erlöschen.
२०क्योंकि बुरे मनुष्य को अन्त में कुछ फल न मिलेगा, दुष्टों का दीपक बुझा दिया जाएगा।
21 Mein Sohn! Fürchte den Herrn und fürcht den König! Mit Aufrührern verkehre nicht!
२१हे मेरे पुत्र, यहोवा और राजा दोनों का भय मानना; और उनके विरुद्ध बलवा करनेवालों के साथ न मिलना;
22 Denn plötzlich kommt ihr Unheil, und dem Mißgeschicke, das von beiden kommt, wer weiß ihm zu begegnen?
२२क्योंकि उन पर विपत्ति अचानक आ पड़ेगी, और दोनों की ओर से आनेवाली विपत्ति को कौन जानता है?
23 Auch das sind Aussprüche von Weisen: Bei Gericht Parteilichkeit: ein übel Ding.
२३बुद्धिमानों के वचन यह भी हैं। न्याय में पक्षपात करना, किसी भी रीति से अच्छा नहीं।
24 Wer zu dem Schuldigen spricht: "Du bist im Recht", ja, den verwünschen Völker und verfluchen Nationen.
२४जो दुष्ट से कहता है कि तू निर्दोष है, उसको तो हर समाज के लोग श्राप देते और जाति-जाति के लोग धमकी देते हैं;
25 Doch denen, die gebührend strafen, ergeht es wohl, und über sie kommt Glück und Segen.
२५परन्तु जो लोग दुष्ट को डाँटते हैं उनका भला होता है, और उत्तम से उत्तम आशीर्वाद उन पर आता है।
26 Die Lippen schließt, wer immer rechte Antwort gibt.
२६जो सीधा उत्तर देता है, वह होठों को चूमता है।
27 Besorge draußen dein Geschäft! Bestell den Acker dir! Setz dein Gebäude gut instand!
२७अपना बाहर का काम-काज ठीक करना, और अपने लिए खेत को भी तैयार कर लेना; उसके बाद अपना घर बनाना।
28 Sei gegen deinen Nächsten niemals Zeuge ohne Grund! Täusch mit den Lippen nicht!
२८व्यर्थ अपने पड़ोसी के विरुद्ध साक्षी न देना, और न उसको फुसलाना।
29 Sprich nicht: "So wie er mir getan, so will auch ich ihm tun; ich will dem Mann nach seinem Tun vergelten!"
२९मत कह, “जैसा उसने मेरे साथ किया वैसा ही मैं भी उसके साथ करूँगा; और उसको उसके काम के अनुसार पलटा दूँगा।”
30 Den Acker eines faulen Mannes habe ich betrachtet, den Weinberg eines unverständigen Menschen.
३०मैं आलसी के खेत के पास से और निर्बुद्धि मनुष्य की दाख की बारी के पास होकर जाता था,
31 Da war er ganz in Wicken aufgegangen; das Unkraut deckte seine Fläche, und seine Steinmauer war eingerissen.
३१तो क्या देखा, कि वहाँ सब कहीं कटीले पेड़ भर गए हैं; और वह बिच्छू पौधों से ढँक गई है, और उसके पत्थर का बाड़ा गिर गया है।
32 Ich habe hingeschaut und es beherzigt; ich habe hingeblickt und eine Warnung mir daraus genommen.
३२तब मैंने देखा और उस पर ध्यानपूर्वक विचार किया; हाँ मैंने देखकर शिक्षा प्राप्त की।
33 "Ach noch ein wenig Schlaf, ein wenig Schlummer, ein wenig noch die Hände ineinander legen, um zu ruhen!"
३३छोटी सी नींद, एक और झपकी, थोड़ी देर हाथ पर हाथ रख के लेटे रहना,
34 Schon kommt die Armut über dich gleich der des Strolches, und Mangel gleich dem eines Bettlers.
३४तब तेरा कंगालपन डाकू के समान, और तेरी घटी हथियार-बन्द के समान आ पड़ेगी।

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