< Nehemia 1 >

1 Der Bericht des Chakaljasohnes Nehemias. Es war im Monat Kislev im Jahre zwanzig, daß ich zu Susan in der Burg weilte.
नहमियाह बिन हकलियाह का कलाम। बीसवें बरस किसलेव के महीने में, जब मैं क़स्र — ए — सोसन में था तो ऐसा हुआ,
2 Da kam einer meiner Brüder, Chanani, mit Männern aus Judäa. Ich fragte sie nach den Judäern, den Entronnenen, die vor der Gefangenschaft bewahrt worden waren, und nach Jerusalem.
कि हनानी जो मेरे भाइयों में से एक है और चन्द आदमी यहूदाह से आए; और मैंने उनसे उन यहूदियों के बारे में जो बच निकले थे और ग़ुलामों में से बाक़ी रहे थे, और येरूशलेम के बारे में पूछा।
3 Sie gaben mir Bescheid: "Die Zurückgebliebenen, die dort vor der Gefangenschaft in den Landstädten verschont geblieben sind, befinden sich in großer Not und Schmach. Die Mauer von Jerusalem liegt in Trümmern, und seine Tore sind verbrannt."
उन्होंने मुझ से कहा कि वह बाक़ी लोग जो ग़ुलामी से छूट कर उस सूबे में रहते हैं, बहुत मुसीबत और ज़िल्लत में पड़े हैं; और येरूशलेम की फ़सील टूटी हुई, और उसके फाटक आग से जले हुए हैं।
4 Als ich diese Worte hörte, setzte ich mich hin, weinte und trauerte eine Zeitlang. Ich fastete und betete vor dem Himmelsgott.
जब मैंने ये बातें सुनीं तो बैठ कर रोने लगा और कई दिनों तक मातम करता रहा, और रोज़ा रख्खा और आसमान के ख़ुदा के सामने दुआ की,
5 Dann sprach ich: "Herr, Gott des Himmels! Du großer, fürchterlicher Gott! Du hältst den gnadenvollen Bund all denen, die Dich lieben und Dein Geheiß befolgen.
और कहा, “ऐ ख़ुदावन्द, आसमान के ख़ुदा — ए — 'अज़ीम — ओ — मुहीब जो उनके साथ जो तुझसे मुहब्बत रखते और तेरे हुक्मों को मानते है 'अहद — ओ — फ़ज़्ल को क़ाईम रखता है, मैं तेरी मिन्नत करता हूँ,
6 Leih doch Dein Ohr! Laß Deine Augen offen sein, auf daß Du Deines Knechts Gebet erhörst, das ich jetzt Tag und Nacht vor Dir verrichte für Deine Knechte, für die Söhne Israels. Ich beichte die Verschuldungen der Söhne Israels, die wir so gegen Dich gesündigt haben, ich selbst und meines Vaters Haus.
कि तू कान लगा और अपनी आँखें खुली रख ताकि तू अपने बन्दे की उस दुआ को सुने जो मैं अब रत दिन तेरे सामने तेरे बन्दों बनी इस्राईल के लिए करता हूँ और बनी इस्राईल की ख़ताओं को जो हमने तेरे बर ख़िलाफ़ कीं मान लेता हूँ, और मैं और मेरे आबाई ख़ान्दान दोनों ने गुनाह किया है।
7 Wir haben Dich beleidigt und nicht gewahrt Gebote und Gesetze, Rechte, die Du dem Moses, Deinem Diener, aufgetragen.
हमने तेरे ख़िलाफ़ बड़ी बुराई की है और उन हुक्मों और क़ानून और फ़रमानों को जो तूने अपने बन्दे मूसा को दिए नहीं माना
8 Gedenke doch des Wortes, das Du dem Moses, Deinem Knecht, befohlen: 'Begeht ihr Untreue, zerstreu ich euch unter die Nationen.
मैं तेरी मिन्नत करता हूँ कि अपने उस क़ौल को याद कर जो तूने अपने बन्दे मूसा को फ़रमाया अगर तुम नाफ़रमानी करो, मैं तुम को क़ौमों में तितर — बितर करूँगा
9 Bekehrt ihr euch jedoch zu mir und haltet und befolgt, was ich geboten, dann bringe ich zusammen eure Vertriebenen, und wenn sie selbst am Himmelsende wären, und führe sie zur Stätte hin, die ich zum Wohnsitz meines Namens auserkoren.'
लेकिन अगर तुम मेरी तरफ़ फिरकर मेरे हुक्मों को मानों और उन पर 'अमल करो तो गो तुम्हारे आवारागर्द आसमान के किनारों पर भी हो मैं उनको वहाँ से इकट्ठा करके उस मक़ाम में पहुँचाऊँगा जिसे मैंने चुन लिया ताकि अपना नाम वहाँ रखूँ
10 Denn sie sind Deine Knechte und Dein Volk, das Du befreit mit Deiner großen Kraft und Deinem starken Arm.
वह तो तेरे बन्दे और तेरे लोग है जिनको तूने अपनी बड़ी क़ुदरत और क़वी हाथ से छुड़ाया है
11 Ach, Herr! Laß doch Dein Ohr vernehmen das Flehen Deines Dieners und das Flehen Deiner Diener, die begehren, Deinen Namen zu verehren! Laß Deinem Diener heute es gelingen! Und schenke ihm vor diesem Manne Gnade!" - Ich aber war der Mundschenk beim König.
ऐ ख़ुदावन्द मैं तेरी मिन्नत करता हूँ कि अपने बन्दे की दुआ पर, और अपने बन्दों की दुआ पर जो तेरे नाम से डरना पसन्द करते है कान लगा और आज मैं तेरे मिन्नत करता हूँ अपने बन्दे को कामयाब कर और इस शख़्स के सामने उसपर फ़ज़्ल कर।” (मै तो बादशाह का साक़ी था)

< Nehemia 1 >