< Hesekiel 2 >
1 Sie sprach zu mir: "Du Menschensohn! Stell dich auf deine Füße, damit ich mit dir reden kann!
१उसने मुझसे कहा, “हे मनुष्य के सन्तान, अपने पाँवों के बल खड़ा हो, और मैं तुझ से बातें करूँगा।”
2 Da kam ein Geist in mich, als er zu mir so redete, und er verhalf mir auf die Füße. Nun hörte ich ihn an, der mit mir sprach.
२जैसे ही उसने मुझसे यह कहा, वैसे ही आत्मा ने मुझ में समाकर मुझे पाँवों के बल खड़ा कर दिया; और जो मुझसे बातें करता था मैंने उसकी सुनी।
3 Er sprach zu mir: "Du Menschensohn! Ich send dich zu den Söhnen Israels, zu einem Volke von Rebellen, die von mir abgefallen sind. Sie, wie schon ihre Väter, haben bis auf diesen Tag den Abfall von mir fortgesetzt.
३उसने मुझसे कहा, “हे मनुष्य के सन्तान, मैं तुझे इस्राएलियों के पास अर्थात् बलवा करनेवाली जाति के पास भेजता हूँ, जिन्होंने मेरे विरुद्ध बलवा किया है; उनके पुरखा और वे भी आज के दिन तक मेरे विरुद्ध अपराध करते चले आए हैं।
4 Die Söhne aber sind noch frecher und verstockter. Zu diesen sende ich dich hin; du sollst zu ihnen sagen: 'So spricht der Herr, der Herr',
४इस पीढ़ी के लोग जिनके पास मैं तुझे भेजता हूँ, वे निर्लज्ज और हठीले हैं;
5 sie mögen's hören oder auch es lassen - sie sind ja doch ein Haus der Widerspenstigkeit -, sie sollen aber wissen, daß unter ihnen ein Prophet verweilt.
५और तू उनसे कहना, ‘प्रभु यहोवा यह कहता है,’ इससे वे, जो बलवा करनेवाले घराने के हैं, चाहे वे सुनें या न सुनें, तो भी वे इतना जान लेंगे कि हमारे बीच एक भविष्यद्वक्ता प्रगट हुआ है।
6 Du aber, Menschensohn, sei ohne Furcht vor ihnen und ohne Furcht vor ihren Drohungen, obwohl sie Nesseln für dich sind und Dornen und du bei Skorpionen wohnen mußt! Vor ihren Drohungen sei ohne Furcht; vor ihren Blicken zittre nicht, auch wenn sie schon ein Haus der Widerspenstigkeit!
६हे मनुष्य के सन्तान, तू उनसे न डरना; चाहे तुझे काँटों, ऊँटकटारों और बिच्छुओं के बीच भी रहना पड़े, तो भी उनके वचनों से न डरना; यद्यपि वे विद्रोही घराने के हैं, तो भी न तो उनके वचनों से डरना, और न उनके मुँह देखकर तेरा मन कच्चा हो।
7 Trag ihnen meine Worte vor, sie mögen hören oder nicht! Sie sind der Ungehorsam selbst.
७इसलिए चाहे वे सुनें या न सुनें; तो भी तू मेरे वचन उनसे कहना, वे तो बड़े विद्रोही हैं।
8 Du also, Menschensohn, befolge das, was ich dir sage! Sei doch nicht widerspenstig wie das Haus der Widerspenstigkeit! Tu deinen Mund auf und verzehre, was ich dir jetzt gebe!"
८“परन्तु हे मनुष्य के सन्तान, जो मैं तुझ से कहता हूँ, उसे तू सुन ले, उस विद्रोही घराने के समान तू भी विद्रोही न बनना जो मैं तुझे देता हूँ, उसे मुँह खोलकर खा ले।”
9 Danach sah ich mich um, und eine Hand war zu mir hingestreckt, und sieh, darin lag eine Buchrolle.
९तब मैंने दृष्टि की और क्या देखा, कि मेरी ओर एक हाथ बढ़ा हुआ है और उसमें एक पुस्तक है।
10 Er breitete sie vor mir aus, und sie war in- und auswendig beschrieben, mit der Aufschrift: "Klagrufe, Seufzer, Weheklagen".
१०उसको उसने मेरे सामने खोलकर फैलाया, और वह दोनों ओर लिखी हुई थी; और जो उसमें लिखा था, वे विलाप और शोक और दुःख भरे वचन थे।