< Psalm 78 >

1 [Ein Maskil; [S. die Anm. zu Ps. 32, Überschrift] von Asaph.] Horche, mein Volk, auf mein Gesetz! [O. meine Lehre] neiget euer Ohr zu den Worten meines Mundes!
आसफ का मसकील मेरी प्रजा, मेरी शिक्षा पर ध्यान दो; जो शिक्षा मैं दे रहा हूं उसे ध्यान से सुनो.
2 Ich will meinen Mund auftun zu [W. mit] einem Spruche, will Rätsel [S. die Anm. zu Ps. 49,4] hervorströmen lassen aus der Vorzeit.
मैं अपनी शिक्षा दृष्टान्तों में दूंगा; मैं पूर्वकाल से गोपनीय रखी गई बातों को प्रकाशित करूंगा—
3 Was wir gehört und erfahren und unsere Väter uns erzählt haben,
वे बातें जो हम सुन चुके थे, जो हमें मालूम थीं, वे बातें, जो हमने अपने पूर्वजों से प्राप्‍त की थीं.
4 Wollen wir nicht verhehlen ihren Söhnen, dem künftigen Geschlecht erzählend den Ruhm [O. die Ruhmestaten] Jehovas und seine Stärke, und seine Wunderwerke, die er getan hat.
याहवेह द्वारा किए गए स्तुत्य कार्य, जो उनके सामर्थ्य के अद्भुत कार्य हैं, इन्हें हम इनकी संतानों से गुप्‍त नहीं रखेंगे; उनका लिखा भावी पीढ़ी तक किया जायेगा.
5 Denn er hat ein Zeugnis aufgerichtet in Jakob, und ein Gesetz gestellt in Israel, die er unseren Vätern geboten hat, um sie ihren Söhnen kundzutun;
प्रभु ने याकोब के लिए नियम स्थापित किया तथा इस्राएल में व्यवस्था स्थापित कर दिया, इनके संबंध में परमेश्वर का आदेश था कि हमारे पूर्वज अगली पीढ़ी को इनकी शिक्षा दें,
6 Damit sie kennte das künftige Geschlecht, die Söhne, die geboren werden sollten, und sie aufständen und sie ihren Söhnen erzählten;
कि आगामी पीढ़ी इनसे परिचित हो जाए, यहां तक कि वे बालक भी, जिनका अभी जन्म भी नहीं हुआ है, कि अपने समय में वे भी अपनी अगली पीढ़ी तक इन्हें बताते जाए.
7 Und auf Gott ihr Vertrauen setzten, und die Taten Gottes [El] nicht vergäßen, und seine Gebote bewahrten;
तब वे परमेश्वर में अपना भरोसा स्थापित करेंगे और वे परमेश्वर के महाकार्य भूल न सकेंगे, तथा उनके आदेशों का पालन करेंगे.
8 und nicht würden wie ihre Väter, ein widersetzliches und widerspenstiges Geschlecht, ein Geschlecht, das sein Herz nicht befestigte, [O. richtete, d. h. ihm die rechte Richtung gab] und dessen Geist nicht treu war gegen Gott. [El]
तब उनका आचरण उनके पूर्वजों के समान न रहेगा, जो हठी और हठीली पीढ़ी प्रमाणित हुई, जिनका हृदय परमेश्वर को समर्पित न था, उनकी आत्माएं उनके प्रति सच्ची नहीं थीं.
9 Die Söhne Ephraims, gerüstete Bogenschützen, wandten um am Tage des Kampfes.
एफ्राईम के सैनिक यद्यपि धनुष से सुसज्जित थे, युद्ध के दिन वे फिरकर भाग गए;
10 Sie hielten nicht den Bund Gottes und weigerten sich, in seinem Gesetz zu wandeln;
उन्होंने परमेश्वर से स्थापित वाचा को भंग कर दिया, उन्होंने उनकी व्यवस्था की अधीनता भी अस्वीकार कर दी.
11 Und sie vergaßen seine Taten und seine Wunderwerke, die er sie hatte schauen lassen.
परमेश्वर द्वारा किए गए महाकार्य, वे समस्त आश्चर्य कार्य, जो उन्हें प्रदर्शित किए गए थे, वे भूल गए.
12 Er tat Wunder vor ihren Vätern, im Lande Ägypten, dem Gefilde Zoans. [Eine Stadt in Unter-Ägypten]
ये आश्चर्यकर्म परमेश्वर ने उनके पूर्वजों के देखते उनके सामने किए थे, ये सब मिस्र देश तथा ज़ोअन क्षेत्र में किए गए थे.
13 Er spaltete das Meer und ließ sie hindurchgehen, und ließ die Wasser stehen wie einen Damm.
परमेश्वर ने समुद्र जल को विभक्त कर दिया और इसमें उनके लिए मार्ग निर्मित किया; इसके लिए परमेश्वर ने समुद्र जल को दीवार समान खड़ा कर दिया.
14 Und er leitete sie des Tages mit der Wolke und die ganze Nacht mit dem Lichte eines Feuers.
परमेश्वर दिन के समय उनकी अगुवाई बादल के द्वारा तथा संपूर्ण रात्रि में अग्निप्रकाश के द्वारा करते रहे.
15 Er spaltete Felsen in der Wüste und tränkte sie reichlich wie aus Tiefen. [O. wie mit Fluten]
परमेश्वर ने बंजर भूमि में चट्टानों को फाड़कर उन्हें इतना जल प्रदान किया, जितना जल समुद्र में होता है;
16 Und er ließ Bäche hervorkommen aus dem Felsen und Wasser herablaufen gleich Flüssen.
उन्होंने चट्टान में से जलधाराएं प्रवाहित कर दीं, कि जल नदी समान प्रवाहित हो चला.
17 Doch sie fuhren weiter fort, wider ihn zu sündigen, indem sie gegen den Höchsten widerspenstig waren in der Wüste.
यह सब होने पर भी वे परमेश्वर के विरुद्ध पाप करते ही रहे, बंजर भूमि में उन्होंने सर्वोच्च परमेश्वर के विरुद्ध विद्रोह किया.
18 Und sie versuchten Gott [El] in ihren Herzen, indem sie Speise forderten für ihr Gelüst. [Eig. ihre Gier]
जिस भोजन के लिए वे लालायित थे, उसके लिए हठ करके उन्होंने मन ही मन परमेश्वर की परीक्षा ली.
19 Und sie redeten wider Gott; [El] sie sprachen: Sollte Gott [El] in der Wüste einen Tisch zu bereiten vermögen?
वे यह कहते हुए परमेश्वर की निंदा करते रहे; “क्या परमेश्वर बंजर भूमि में भी हमें भोजन परोस सकते हैं?
20 Siehe, den Felsen hat er geschlagen, und Wasser flossen heraus, und Bäche strömten; wird er auch Brot zu geben vermögen, oder wird er seinem Volke Fleisch verschaffen?
जब उन्होंने चट्टान पर प्रहार किया तो जल-स्रोत फूट पड़े तथा विपुल जलधाराएं बहने लगीं; किंतु क्या वह हमें भोजन भी दे सकते हैं? क्या वह संपूर्ण प्रजा के लिए मांस भोजन का भी प्रबंध कर सकते हैं?”
21 Darum, als Jehova es hörte, ergrimmte er, und Feuer entzündete sich gegen Jakob, und auch Zorn stieg auf gegen Israel;
यह सुन याहवेह अत्यंत उदास हो गए; याकोब के विरुद्ध उनकी अग्नि भड़क उठी, उनका क्रोध इस्राएल के विरुद्ध भड़क उठा,
22 Weil sie Gott nicht glaubten und nicht vertrauten auf seine Rettung.
क्योंकि उन्होंने न तो परमेश्वर में विश्वास किया और न उनके उद्धार पर भरोसा किया.
23 Und doch hatte er den Wolken oben geboten und die Türen des Himmels geöffnet
यह होने पर भी उन्होंने आकाश को आदेश दिया और स्वर्ग के झरोखे खोल दिए;
24 Und Manna auf sie regnen lassen, damit sie äßen, und ihnen Himmelsgetreide gegeben.
उन्होंने उनके भोजन के लिए मन्‍ना वृष्टि की, उन्होंने उन्हें स्वर्गिक अन्‍न प्रदान किया.
25 Der Mensch aß Brot der Starken, Speise sandte er ihnen bis zur Sättigung.
मनुष्य वह भोजन कर रहे थे, जो स्वर्गदूतों के लिए निर्धारित था; परमेश्वर ने उन्हें भरपेट भोजन प्रदान किया.
26 Er führte den Ostwind herbei am Himmel, und durch seine Stärke trieb er herbei den Südwind;
स्वर्ग से उन्होंने पूर्वी हवा प्रवाहित की, अपने सामर्थ्य में उन्होंने दक्षिणी हवा भी प्रवाहित की.
27 Und er ließ Fleisch auf sie regnen wie Staub, und geflügeltes Gevögel wie Sand der Meere,
उन्होंने उनके लिए मांस की ऐसी वृष्टि की, मानो वह धूलि मात्र हो, पक्षी ऐसे उड़ रहे थे, जैसे सागर तट पर रेत कण उड़ते हैं.
28 Und ließ es fallen in ihr Lager, rings um ihre Wohnungen.
परमेश्वर ने पक्षियों को उनके मण्डपों में घुस जाने के लिए बाध्य कर दिया, वे मंडप के चारों ओर छाए हुए थे.
29 Und sie aßen und sättigten sich sehr, und ihr Gelüst führte er ihnen zu.
उन्होंने तृप्‍त होने के बाद भी इन्हें खाया. परमेश्वर ने उन्हें वही प्रदान कर दिया था, जिसकी उन्होंने कामना की थी.
30 Noch hatten sie sich nicht abgewandt von ihrem Gelüst, noch war ihre Speise in ihrem Munde,
किंतु इसके पूर्व कि वे अपने कामना किए भोजन से तृप्‍त होते, जब भोजन उनके मुख में ही था,
31 Da stieg der Zorn Gottes wider sie auf; und er würgte unter ihren Kräftigen, und die Auserlesenen [O. Jünglinge] Israels streckte er nieder.
परमेश्वर का रोष उन पर भड़क उठा; परमेश्वर ने उनके सबसे सशक्तों को मिटा डाला, उन्होंने इस्राएल के युवाओं को मिटा डाला.
32 Bei alledem sündigten sie wiederum und glaubten nicht durch [O. an] seine Wunderwerke.
इतना सब होने पर भी वे पाप से दूर न हुए; समस्त आश्चर्य कार्यों को देखने के बाद भी उन्होंने विश्वास नहीं किया.
33 Da ließ er in Eitelkeit [Eig. im Hauch] hinschwinden ihre Tage, und ihre Jahre in Schrecken.
तब परमेश्वर ने उनके दिन व्यर्थता में तथा उनके वर्ष आतंक में समाप्‍त कर दिए.
34 Wenn er sie tötete, dann fragten sie nach ihm, und kehrten um und suchten Gott [El] eifrig;
जब कभी परमेश्वर ने उनमें से किसी को मारा, वे बाकी परमेश्वर को खोजने लगे; वे दौड़कर परमेश्वर की ओर लौट गये.
35 Und sie gedachten daran, daß Gott ihr Fels sei, und Gott, [El] der Höchste, ihr Erlöser.
उन्हें यह स्मरण आया कि परमेश्वर उनके लिए चट्टान हैं, उन्हें यह स्मरण आया कि सर्वोच्च परमेश्वर उनके उद्धारक हैं.
36 Und sie heuchelten ihm [Eig. betrogen ihn] mit ihrem Munde, und mit ihrer Zunge logen sie ihm;
किंतु उन्होंने अपने मुख से परमेश्वर की चापलूसी की, अपनी जीभ से उन्होंने उनसे झूठाचार किया;
37 Denn ihr Herz war nicht fest gegen ihn, und sie hielten nicht treulich an seinem Bunde.
उनके हृदय में सच्चाई नहीं थी, वे उनके साथ बांधी गई वाचा के प्रतिनिष्ठ न रहे.
38 Er aber war barmherzig, er vergab die Ungerechtigkeit und verderbte [O. ist vergibt verderbt] sie nicht; und oftmals wandte er seinen Zorn ab und ließ nicht erwachen seinen ganzen Grimm.
फिर भी परमेश्वर उनके प्रति कृपालु बने रहे; परमेश्वर ही ने उनके अपराधों को क्षमा कर दिया और उनका विनाश न होने दिया. बार-बार वह अपने कोप पर नियंत्रण करते रहे और उन्होंने अपने समग्र प्रकोप को प्रगट न होने दिया.
39 Und er gedachte daran, daß sie Fleisch seien, ein Hauch, der dahinfährt und nicht wiederkehrt.
परमेश्वर को यह स्मरण रहा कि वे मात्र मनुष्य ही हैं—पवन के समान, जो बहने के बाद लौटकर नहीं आता.
40 Wie oft waren sie widerspenstig gegen ihn in der Wüste, betrübten ihn in der Einöde!
बंजर भूमि में कितनी ही बार उन्होंने परमेश्वर के विरुद्ध विद्रोह किया, कितनी ही बार उन्होंने उजाड़ भूमि में उन्हें उदास किया!
41 Und sie versuchten Gott [El] wiederum und kränkten den Heiligen Israels.
बार-बार वे परीक्षा लेकर परमेश्वर को उकसाते रहे; वे इस्राएल के पवित्र परमेश्वर को क्रोधित करते रहे.
42 Sie gedachten nicht an seine Hand, an den Tag, da er sie von dem Bedränger erlöste,
वे परमेश्वर की सामर्थ्य को भूल गए, जब परमेश्वर ने उन्हें अत्याचारी की अधीनता से छुड़ा लिया था.
43 Als er seine Zeichen tat in Ägypten und seine Wunder in dem Gefilde Zoans:
जब परमेश्वर ने मिस्र देश में चमत्कार चिन्ह प्रदर्शित किए, जब ज़ोअन प्रदेश में आश्चर्य कार्य किए थे.
44 Er verwandelte ihre Ströme in Blut, so daß sie ihre fließenden Wasser nicht trinken konnten.
परमेश्वर ने नदी को रक्त में बदल दिया; वे जलधाराओं से जल पीने में असमर्थ हो गए.
45 Er sandte Hundsfliegen unter sie, welche sie fraßen, und Frösche, die sie verderbten.
परमेश्वर ने उन पर कुटकी के समूह भेजे, जो उन्हें निगल गए. मेंढकों ने वहां विध्वंस कर डाला.
46 Und er gab der Grille [Eig. dem Vertilger; eine Heuschreckenart] ihren Ertrag, und ihre Arbeit der Heuschrecke.
परमेश्वर ने उनकी उपज हासिल टिड्डों को, तथा उनके उत्पाद अरबेह टिड्डियों को सौंप दिए.
47 Ihren Weinstock schlug er nieder mit Hagel, und ihre Maulbeerfeigenbäume mit Schloßen.
उनकी द्राक्षा उपज ओलों से नष्ट कर दी गई, तथा उनके गूलर-अंजीर पाले में नष्ट हो गए.
48 Und er gab ihr Vieh dem Hagel preis, und ihre Herden den Blitzen.
उनका पशु धन भी ओलों द्वारा नष्ट कर दिया गया, तथा उनकी भेड़-बकरियों को बिजलियों द्वारा.
49 Er ließ gegen sie los seines Zornes Glut, Wut und Grimm und Drangsal, eine Schar [Eig. Sendung] von Unglücksengeln.
परमेश्वर का उत्तप्‍त क्रोध, प्रकोप तथा आक्रोश उन पर टूट पड़ा, ये सभी उनके विनाशक दूत थे.
50 Er bahnte seinem Zorne einen Weg, entzog nicht dem Tode ihre Seele und gab ihr Leben der Pest preis.
परमेश्वर ने अपने प्रकोप का पथ तैयार किया था; उन्होंने उन्हें मृत्यु से सुरक्षा प्रदान नहीं की परंतु उन्हें महामारी को सौंप दिया.
51 Und er schlug alle Erstgeburt in Ägypten, die Erstlinge der Kraft in den Zelten Hams.
मिस्र के सभी पहलौठों को परमेश्वर ने हत्या कर दी, हाम के मण्डपों में पौरुष के प्रथम फलों का.
52 Und er ließ sein Volk wegziehen gleich Schafen, und leitete sie gleich einer Herde in der Wüste;
किंतु उन्होंने भेड़ के झुंड के समान अपनी प्रजा को बचाया; बंजर भूमि में वह भेड़ का झुंड के समान उनकी अगुवाई करते रहे.
53 Und er führte sie sicher, so daß sie sich nicht fürchteten; und ihre Feinde bedeckte das Meer.
उनकी अगुवाई ने उन्हें सुरक्षा प्रदान की, फलस्वरूप वे अभय आगे बढ़ते गए; जबकि उनके शत्रुओं को समुद्र ने समेट लिया.
54 Und er brachte sie zu der Grenze seines Heiligtums, [d. h. in sein heiliges Land] zu diesem Berge, den seine Rechte erworben.
यह सब करते हुए परमेश्वर उन्हें अपनी पवित्र भूमि की सीमा तक, उस पर्वतीय भूमि तक ले आए जिस पर उनके दायें हाथ ने अपने अधीन किया था.
55 Und er vertrieb Nationen vor ihnen, und verloste sie als Schnur des Erbteils [d. h. als zugemessenes Erbteil] und ließ in ihren Zelten wohnen die Stämme Israels.
तब उन्होंने जनताओं को वहां से काटकर अलग कर दिया और उनकी भूमि अपनी प्रजा में भाग स्वरूप बाट दिया; इस्राएल के समस्त गोत्रों को उनके आवास प्रदान करके उन्हें वहां बसा दिया.
56 Aber sie versuchten Gott, den Höchsten, und waren widerspenstig gegen ihn, und seine Zeugnisse bewahrten sie nicht.
इतना सब होने के बाद भी उन्होंने परमेश्वर की परीक्षा ली, उन्होंने सर्वोच्च परमेश्वर के विरुद्ध विद्रोह किया; उन्होंने परमेश्वर की आज्ञाओं को भंग कर दिया.
57 Und sie wichen zurück und handelten treulos wie ihre Väter; sie wandten sich um gleich einem trügerischen Bogen.
अपने पूर्वजों के जैसे वे भी अकृतज्ञ तथा विश्वासघाती हो गए; वैसे ही अयोग्य, जैसा एक दोषपूर्ण धनुष होता है.
58 Und sie erbitterten ihn durch ihre Höhen und reizten ihn zur Eifersucht durch ihre geschnitzten Bilder.
उन्होंने देवताओं के लिए निर्मित वेदियों के द्वारा परमेश्वर के क्रोध को भड़काया है; उन प्रतिमाओं ने परमेश्वर में डाह भाव उत्तेजित किया.
59 Gott hörte es und ergrimmte, und er verachtete [O. verwarf] Israel sehr.
उन्हें सुन परमेश्वर को अत्यंत झुंझलाहट सी हो गई; उन्होंने इस्राएल को पूर्णतः छोड़ दिया.
60 Und er verließ [O. gab auf] die Wohnung zu Silo, das Zelt, welches er unter den Menschen aufgeschlagen hatte.
उन्होंने शीलो के निवास-मंडप का परित्याग कर दिया, जिसे उन्होंने मनुष्य के मध्य बसा दिया था.
61 Und er gab in die Gefangenschaft seine Kraft, und seine Herrlichkeit in die Hand des Bedrängers.
परमेश्वर ने अपने सामर्थ्य के संदूक को बन्दीत्व में भेज दिया, उनका वैभव शत्रुओं के वश में हो गया.
62 Und er gab sein Volk dem Schwerte preis, und gegen sein Erbteil ergrimmte er.
उन्होंने अपनी प्रजा तलवार को भेंट कर दी; अपने ही निज भाग पर वह अत्यंत उदास थे.
63 Seine Jünglinge fraß das Feuer, und seine Jungfrauen wurden nicht besungen; [d. h. in Hochzeitsliedern]
अग्नि उनके युवाओं को निगल कर गई, उनकी कन्याओं के लिए कोई भी वैवाहिक गीत-संगीत शेष न रह गया.
64 Seine Priester fielen durch das Schwert, und seine Witwen weinten nicht. [d. h. konnten keine Totenklage halten]
उनके पुरोहितों का तलवार से वध कर दिया गया, उनकी विधवाएं आंसुओं के लिए असमर्थ हो गईं.
65 Da erwachte, gleich einem Schlafenden, der Herr, gleich einem Helden, der da jauchzt vom Wein;
तब मानो प्रभु की नींद भंग हो गई, कुछ वैसे ही, जैसे कोई वीर दाखमधु की होश से बाहर आ गया हो.
66 Und er schlug seine Feinde von hinten, gab ihnen ewige Schmach.
परमेश्वर ने अपने शत्रुओं को ऐसे मार भगाया; कि उनकी लज्जा चिरस्थाई हो गई.
67 Und er verwarf das Zelt Josephs, und den Stamm Ephraim erwählte er nicht;
तब परमेश्वर ने योसेफ़ के मण्डपों को अस्वीकार कर दिया, उन्होंने एफ्राईम के गोत्र को नहीं चुना;
68 Sondern er erwählte den Stamm Juda, den Berg Zion, den er geliebt hat.
किंतु उन्होंने यहूदाह गोत्र को चुन लिया, अपने प्रिय ज़ियोन पर्वत को.
69 Und er baute gleich Höhen sein Heiligtum, gleich der Erde, die er auf ewig gegründet hat.
परमेश्वर ने अपना पवित्र आवास उच्च पर्वत जैसा निर्मित किया, पृथ्वी-सा चिरस्थाई.
70 Und er erwählte David, seinen Knecht, und nahm ihn von den Hürden der Schafe;
उन्होंने अपने सेवक दावीद को चुन लिया, इसके लिए उन्होंने उन्हें भेड़शाला से बाहर निकाल लाया;
71 hinter den Säugenden weg ließ er ihn kommen, um Jakob, sein Volk, zu weiden, und Israel, sein Erbteil.
भेड़ों के चरवाहे से उन्हें लेकर परमेश्वर ने उन्हें अपनी प्रजा याकोब का रखवाला बना दिया, इस्राएल का, जो उनके निज भाग हैं.
72 Und er weidete sie nach der Lauterkeit seines Herzens, und mit der Geschicklichkeit seiner Hände leitete er sie.
दावीद उनकी देखभाल हृदय की सच्चाई में करते रहे; उनके कुशल हाथों ने उनकी अगुवाई की.

< Psalm 78 >