< Psalm 66 >

1 [Dem Vorsänger. Ein Lied, ein Psalm. [Eig. Ein Psalm-Lied] ] Jauchzet Gott, ganze Erde!
ऐ सारी ज़मीन ख़ुदा के सामने ख़ुशी का ना'रा मार।
2 Besinget die Herrlichkeit seines Namens, machet herrlich sein Lob!
उसके नाम के जलाल का हम्द गाओ; सिताइश करते हुए उसकी तम्जीद करो।
3 Sprechet zu Gott: Wie furchtbar sind deine Werke! Wegen der Größe deiner Stärke unterwerfen sich dir deine Feinde mit Schmeichelei. [S. die Anm. zu Psalm 18,44]
ख़ुदा से कहो, “तेरे काम क्या ही बड़े हैं! तेरी बड़ी क़ुदरत के ज़रिए' तेरे दुश्मन आजिज़ी करेंगे।
4 Die ganze Erde wird dich anbeten und dir Psalmen singen; sie wird besingen deinen Namen. (Sela)
सारी ज़मीन तुझे सिज्दा करेगी, और तेरे सामने गाएगी; वह तेरे नाम के हम्द गाएँगे।”
5 Kommet und sehet die Großtaten Gottes; furchtbar ist er in seinem Tun gegen die Menschenkinder.
आओ और ख़ुदा के कामों को देखो; बनी आदम के साथ वह अपने सुलूक में बड़ा है।
6 Er wandelte das Meer in trockenes Land, sie gingen zu Fuß durch den Strom; da [O. dort] freuten wir uns in ihm.
उसने समन्दर को खु़श्क ज़मीन बना दिया: वह दरिया में से पैदल गुज़र गए। वहाँ हम ने उसमें ख़ुशी मनाई।
7 Er herrscht durch seine Macht auf ewig; seine Augen beobachten die [Eig. spähen unter den] Nationen. -Daß sich nicht erheben die Widerspenstigen! (Sela)
वह अपनी कु़दरत से हमेशा तक सल्तनत करेगा, उसकी आँखें क़ौमों को देखती रहती हैं। सरकश लोग तकब्बुर न करें।
8 Preiset, ihr Völker, unseren Gott, und lasset hören die Stimme seines Lobes;
ऐ लोगो, हमारे ख़ुदा को मुबारक कहो, और उसकी तारीफ़ में आवाज़ बुलंद करो।
9 der unsere Seele am Leben erhalten [W. ins Leben versetzt] und nicht zugelassen hat, daß unsere Füße wankten!
वही हमारी जान को ज़िन्दा रखता है; और हमारे पाँव को फिसलने नहीं देता
10 Denn du hast uns geprüft, o Gott, du hast uns geläutert, wie man Silber läutert.
क्यूँकि ऐ ख़ुदा, तूने हमें आज़मा लिया है; तूने हमें ऐसा ताया जैसे चाँदी ताई जाती है।
11 Du hast uns ins Netz gebracht, hast eine drückende Last auf unsere Lenden gelegt.
तूने हमें जाल में फँसाया, और हमारी कमर पर भारी बोझ रख्खा।
12 Du hast Menschen reiten lassen auf unserem Haupte; wir sind ins Feuer und ins Wasser gekommen, aber du hast uns herausgeführt zu überströmender Erquickung. [W. zur Überströmung; and. l.: ins Weite]
तूने सवारों को हमारे सिरों पर से गुज़ारा हम आग में से और पानी में से होकर गुज़रे; लेकिन तू हम को अफ़रात की जगह में निकाल लाया।
13 Ich will eingehen in dein Haus mit Brandopfern, will dir bezahlen meine Gelübde,
मैं सोख़्तनी कु़र्बानियाँ लेकर तेरे घर में दाख़िल हूँगा; और अपनी मिन्नतें तेरे सामने अदा करूँगा।
14 Wozu sich weit aufgetan meine Lippen, und die mein Mund ausgesprochen hat in meiner Bedrängnis.
जो मुसीबत के वक़्त मेरे लबों से निकलीं, और मैंने अपने मुँह से मानें।
15 Brandopfer von Mastvieh will ich dir opfern samt Räucherwerk von Widdern; Rinder samt Böcken will ich opfern. (Sela)
मैं मोटे मोटे जानवरों की सोख़्तनी क़ुर्बानियाँ मेंढों की खु़शबू के साथ अदा करूँगा। मैं बैल और बकरे पेश करूँगा।
16 Kommet, höret zu, alle, die ihr Gott fürchtet, und ich will erzählen, was er an meiner Seele getan hat.
ऐ ख़ुदा से डरने वालो, सब आओ, सुनो; और मैं बताऊँगा कि उसने मेरी जान के लिए क्या क्या किया है।
17 Zu ihm rief ich mit meinem Munde, und seine Erhebung war unter meiner Zunge.
मैंने अपने मुँह से उसको पुकारा, उसकी तम्जीद मेरी ज़बान से हुई।
18 Wenn ich es in meinem Herzen auf Frevel abgesehen hätte, so würde der Herr nicht gehört haben.
अगर मैं बदी को अपने दिल में रखता, तो ख़ुदावन्द मेरी न सुनता।
19 Doch Gott hat gehört, er hat gemerkt auf die Stimme meines Gebets.
लेकिन ख़ुदा ने यक़ीनन सुन लिया है; उसने मेरी दुआ की आवाज़ पर कान लगाया है।
20 Gepriesen sei Gott, der nicht abgewiesen hat mein Gebet, noch von mir abgewandt seine Güte!
ख़ुदा मुबारक हो, जिसने न तो मेरी दुआ को रद्द किया, और न अपनी शफ़क़त को मुझ से बाज़ रख्खा!

< Psalm 66 >