< Psalm 39 >
1 [Dem Vorsänger, dem Jeduthun. [Vergl. 1. Chr. 16,41. 42;25,1. 3] Ein Psalm von David.] Ich sprach: Ich will meine Wege bewahren, daß ich nicht sündige mit meiner Zunge; ich will meinen Mund mit einem Maulkorbe verwahren, solange der Gesetzlose vor mir ist.
संगीत निर्देशक के लिये. यदूथून के लिए. दावीद का एक स्तोत्र. मैंने निश्चय किया, “मैं पाप करने से अपने आचरण एवं जीभ से अपने बोलने की चौकसी करूंगा; यदि मैं दुष्टों की उपस्थिति में हूं, मैं अपने वचनों पर नियंत्रण रखूंगा.”
2 Ich verstummte in Stille, ich schwieg vom Guten, [Eig. vom Guten weg; daher viell.: fern vom Guten] und mein Schmerz ward erregt.
तब मैंने मौन धारण कर लिया, यहां तक कि मैंने भली बातों पर भी नियंत्रण लगा दिया, तब मेरी व्याकुलता बढ़ती चली गई;
3 Mein Herz brannte in meinem Innern, bei meinem Nachsinnen entzündete sich Feuer; ich sprach mit meiner Zunge:
भीतर ही भीतर मेरा हृदय जलता गया और इस विषय पर अधिक विचार करने पर मेरे भीतर अग्नि भड़कने लगी; तब मैंने अपना मौन तोड़ दिया और जीभ से बोल उठा:
4 Tue mir kund, Jehova, mein Ende, und das Maß meiner Tage, welches es ist, daß ich wisse, wie vergänglich ich bin!
“याहवेह, मुझ पर मेरे जीवन का अंत प्रकट कर दीजिए. मुझे बताइए कि कितने दिन शेष हैं मेरे जीवन के; मुझ पर स्पष्ट कीजिए कि कितना है मेरा क्षणभंगुर जीवन.
5 Siehe, Handbreiten gleich hast du meine Tage gemacht, und meine Lebensdauer ist wie nichts vor dir; ja, eitel Hauch ist jeder Mensch, der dasteht. [O. feststeht] (Sela)
आपने मेरी आयु क्षणिक मात्र ही निर्धारित की है; आपकी तुलना में मेरी आयु के वर्ष नगण्य हैं. वैसे भी मनुष्य का जीवन-श्वास मात्र ही होता है, वह शक्तिशाली व्यक्ति का भी.
6 Ja, als ein Schattenbild wandelt der Mensch einher; ja, vergebens ist er [Eig. sind sie] voll Unruhe; er häuft auf und weiß nicht, wer es einsammeln wird.
“एक छाया के समान, जो चलती-फिरती रहती है; उसकी सारी भाग दौड़ निरर्थक ही होती है. वह धन संचित करता जाता है, किंतु उसे यह ज्ञात ही नहीं होता, कि उसका उपभोग कौन करेगा.
7 Und nun, auf was harre ich, Herr? Meine Hoffnung ist auf dich!
“तो प्रभु, अब मैं किस बात की प्रतीक्षा करूं? मेरी एकमात्र आशा आप ही हैं.
8 Errette mich von allen meinen Übertretungen, mache mich nicht zum Hohne des Toren! [S. die Anm. zu Ps. 14,1]
मुझे मेरे समस्त अपराधों से उद्धार प्रदान कीजिए; मुझे मूर्खों की घृणा का पात्र होने से बचाइए.
9 Ich bin verstummt, ich tue meinen Mund nicht auf; denn du, du hast es getan.
मैं मूक बन गया; मैंने कुछ भी न कहना उपयुक्त समझा, क्योंकि आप उठे थे.
10 Entferne von mir deine Plage! Durch die Schläge [Eig. die Befehdung, den Angriff] deiner Hand vergehe ich.
अब मुझ पर प्रहार करना रोक दीजिए; आपके प्रहार से मैं टूट चुका हूं.
11 Strafst du einen Mann mit Züchtigungen für die Ungerechtigkeit, so machst du, gleich der Motte, seine Schönheit zergehen; ja, ein Hauch sind alle Menschen. (Sela)
मनुष्यों द्वारा किए गए अपराध के लिए आप उन्हें ताड़ना के साथ दंड देते हैं, आप उनकी अमूल्य संपत्ति ऐसे नष्ट कर देते हैं, मानो उसे कीड़ा खा गया. निश्चयतः मनुष्य मात्र एक श्वास है.
12 Höre mein Gebet, Jehova, und nimm zu Ohren mein Schreien; schweige nicht zu meinen Tränen! Denn ein Fremdling bin ich bei dir, ein Beisasse wie alle meine Väter.
“याहवेह, मेरी प्रार्थना सुनिए, मेरी सहायता की पुकार पर ध्यान दीजिए; मेरे आंसुओं की अनसुनी न कीजिए. मैं अल्पकाल के लिए आपका परदेशी हूं, ठीक जिस प्रकार मेरे समस्त पूर्वज प्रवासी थे.
13 Blicke von mir ab, daß ich mich erquicke, [Eig. erheitere] bevor ich dahingehe und nicht mehr bin!
इसके पूर्व कि मैं चला जाऊं, अपनी कोपदृष्टि मुझ पर से हटा लीजिए, कि कुछ समय के लिए ही मुझे आनंद का सुख प्राप्त हो सके.”