< Jona 1 >

1 Und das Wort Jehovas geschah zu Jona, dem Sohne Amittais [S. 2. Kön. 14,25,] also:
याहवेह का यह वचन अमितै के पुत्र योनाह के पास पहुंचा:
2 Mache dich auf, gehe nach Ninive, der großen Stadt, und predige wider sie; denn ihre Bosheit ist vor mich heraufgestiegen.
“उठो और उस महानगर नीनवेह को जाओ और उसके निवासियों के विरुद्ध घोषणा करो, क्योंकि उनकी दुष्टता मेरी दृष्टि में आ गई है.”
3 Aber Jona machte sich auf, um von dem Angesicht Jehovas hinweg nach Tarsis [Eine phönizische Andiedlung in Spanien] zu fliehen; und er ging nach Japho [Joppe] hinab und fand ein Schiff, das nach Tarsis fuhr; und er gab sein Fährgeld und stieg in dasselbe hinab, um mit ihnen nach Tarsis zu fahren von dem Angesicht Jehovas hinweg.
पर योनाह याहवेह की उपस्थिति से भागने के उद्देश्य से तरशीश जाने के लिए योप्पा जा पहुंचा. वहां उसे एक पानी जहाज़ मिला, जो तरशीश जाने पर था. किराया देने के बाद, वह पानी जहाज़ में चढ़ गया कि वह याहवेह की उपस्थिति से भागकर वह दूसरे यात्रियों के साथ तर्शीश पहुंच सके.
4 Da warf Jehova einen heftigen Wind auf das Meer, und es entstand ein großer Sturm auf dem Meere, so daß das Schiff zu zerbrechen drohte.
तब याहवेह ने समुद्र पर एक प्रचंड आंधी चलाई, और सतह पर ऐसा भयंकर तूफान उठा कि पानी जहाज़ के टूटने की स्थिति उत्पन्‍न हो गई.
5 Und die Seeleute fürchteten sich und schrieen, ein jeder zu seinem Gott; und sie warfen die Geräte, welche im Schiffe waren, ins Meer, um sich zu erleichtern. Jona aber war in den unteren Schiffsraum hinabgestiegen, und hatte sich hingelegt und war in tiefen Schlaf gesunken.
सब नाविक भयभीत हो गए और हर एक अपने-अपने देवता को पुकारने लगा. और वे पानी जहाज़ में लदी हुई सामग्री को समुद्र में फेंकने लगे ताकि जहाज़ का बोझ कम हो जाए. किंतु इस समय योनाह जहाज़ के निचले भाग में जाकर गहरी नींद में पड़ा हुआ था.
6 Und der Obersteuermann trat zu ihm hin und sprach zu ihm: Was ist mit dir, du Schläfer? Stehe auf, rufe deinen Gott an! vielleicht wird der Gott unser gedenken, daß wir nicht umkommen.
जहाज़ का कप्‍तान उसके पास गया और उसे जगाकर कहा, “तुम ऐसी स्थिति में कैसे सो सकते हो? उठो और अपने ईश्वर को पुकारो! संभव है कि तुम्हारा ईश्वर हम पर कृपा करे और हम नाश होने से बच जाएं.”
7 Und sie sprachen einer zum anderen: Kommt und laßt uns Lose werfen, damit wir erfahren, um wessentwillen dieses Unglück uns trifft. Und sie warfen Lose, und das Los fiel auf Jona.
तब नाविकों ने एक दूसरे को कहा, “ऐसा करें, हम चिट्ठी डालकर यह पता करें कि किसके कारण हम पर यह विपत्ति आई है.” तब उन्होंने चिट्ठी डाली और चिट्ठी योनाह के नाम पर निकली.
8 Da sprachen sie zu ihm: Tue uns doch kund, um wessentwillen dieses Unglück uns trifft! Was ist dein Geschäft, und woher kommst du? Welches ist dein Land, und von welchem Volke bist du?
इस पर उन्होंने योनाह से पूछा, “हमें बता कि हम पर यह विपत्ति किसके कारण आई है? तू क्या काम करता है? तू कहां से आ रहा है? तू किस देश और किस जाति का है?”
9 Und er sprach zu ihnen: Ich bin ein Hebräer; und ich fürchte Jehova, den Gott des Himmels, der das Meer und das Trockene gemacht hat.
योनाह ने उन्हें उत्तर दिया, “मैं एक इब्री हूं और मैं उस याहवेह, स्वर्ग के परमेश्वर की आराधना करता हूं, जिन्होंने समुद्र तथा भूमि की सृष्टि की है.”
10 Da fürchteten sich die Männer mit großer Furcht und sprachen zu ihm: Was hast du da getan! Denn die Männer wußten, daß er von dem Angesicht Jehovas hinwegfloh; denn er hatte es ihnen kundgetan.
यह सुनकर वे भयभीत हो गए और उन्होंने योनाह से कहा, “तुमने यह क्या कर डाला?” (क्योंकि योनाह उन्हें यह बता चुका था कि वह याहवेह की उपस्थिति से भाग रहा था.)
11 Und sie sprachen zu ihm: Was sollen wir dir tun, damit das Meer sich gegen uns beruhige? denn das Meer wurde immer stürmischer [O. stürmte fort und fort; so auch v 13.]
इस पर उन्होंने योनाह से पूछा, “अब हम तुम्हारे साथ क्या करें कि हमारे लिये समुद्र शांत हो जाए?” क्योंकि समुद्र की लहरें और भी उग्र होती जा रही थी.
12 Und er sprach zu ihnen: Nehmet mich und werfet mich ins Meer, so wird das Meer sich gegen euch beruhigen; denn ich weiß, daß dieser große Sturm um meinetwillen über euch gekommen ist.
योनाह ने कहा, “मुझे उठाकर समुद्र में फेंक दें. तब समुद्र शांत हो जाएगा. क्योंकि मैं जानता हूं कि तुम्हारे ऊपर यह बड़ा तूफान मेरे ही कारण आया है.”
13 Und die Männer ruderten hart [W. wollten durchbrechen, ] um das Schiff ans Land zurückzuführen; aber sie vermochten es nicht, weil das Meer immer stürmischer gegen sie wurde.
फिर भी, नाविकों ने जहाज़ को तट तक ले जाने की बहुत कोशिश की. पर वे सफल न हुए, क्योंकि समुद्र पहले से और उग्र होता जा रहा था.
14 Da riefen sie zu Jehova und sprachen: Ach, Jehova! laß uns doch nicht umkommen um der Seele dieses Mannes willen, und lege nicht unschuldiges Blut auf uns; denn du, Jehova, hast getan, wie es dir gefallen hat.
तब उन्होंने ऊंचे स्वर में याहवेह को यह कहकर पुकारा, “हे याहवेह, इस व्यक्ति का प्राण लेने के कारण, कृपया हमें नाश न होने दें. हमें एक निर्दोष को मारने का दोषी न ठहराएं, क्योंकि आपने वही किया है, जो आपको अच्छा लगा.”
15 Und sie nahmen Jona und warfen ihn ins Meer. Da ließ das Meer ab [Eig. Da stand das Meer still] von seinem Wüten.
तब उन्होंने योनाह को उठाकर समुद्र में फेंक दिया और उग्र समुद्र शांत हो गया.
16 Und die Männer fürchteten sich vor Jehova mit großer Furcht, und sie schlachteten Schlachtopfer und taten Gelübde dem Jehova.
इससे उन व्यक्तियों ने याहवेह का बहुत भय माना, और उन्होंने याहवेह के लिए एक बलि चढ़ाई और मन्‍नतें मानीं.
17 Und Jehova bestellte einen großen Fisch, um Jona zu verschlingen; und Jona war im Bauche des Fisches drei Tage und drei Nächte.
याहवेह ने एक विशाल मछली ठहरायी थी, जिसने योनाह को निगल लिया, और योनाह उस मछली के पेट में तीन दिन और तीन रात रहा.

< Jona 1 >