< 2 Chronik 6 >
1 Damals [1. Kön. 8. 12] sprach Salomo: Jehova hat gesagt, daß er im Dunkel wohnen wolle.
तब शलोमोन ने यह कहा: “याहवेह ने यह प्रकट किया है कि वह घने बादल में रहना सही समझते हैं.
2 Ich aber habe dir ein Haus gebaut zur Wohnung, und eine Stätte zu deinem Sitze für Ewigkeiten.
आपके लिए मैंने एक ऐसा भव्य भवन बनवाया है कि आप उसमें हमेशा रहें.”
3 Und der König wandte sein Angesicht und segnete die ganze Versammlung Israels; und die ganze Versammlung Israels stand.
यह कहकर राजा ने सारी इस्राएली प्रजा की ओर होकर उनको आशीर्वाद दिया, इस अवसर पर सारी इस्राएली सभा खड़ी हुई थी.
4 Und er sprach: Gepriesen sei Jehova, der Gott Israels, der mit seinem Munde zu meinem Vater David geredet und mit seiner Hand es erfüllt hat, indem er sprach:
राजा ने यह कहा: “धन्य हैं याहवेह, इस्राएल के परमेश्वर! उन्होंने मेरे पिता दावीद से अपने मुख से कहे गए इस वचन को अपने हाथों से पूरा कर दिया है
5 Von dem Tage an, da ich mein Volk aus dem Lande Ägypten herausführte, habe ich keine Stadt aus allen Stämmen Israels erwählt, um ein Haus zu bauen, damit mein Name daselbst wäre; und ich habe keinen Mann erwählt, um Fürst zu sein über mein Volk Israel.
‘जिस दिन मैं अपनी प्रजा इस्राएल को मिस्र देश से बाहर लाया हूं, उसी दिन से मैंने इस्राएल के सभी गोत्रों में से ऐसे किसी भी नगर को नहीं चुना, जहां एक ऐसा भवन बनाया जाए जहां मेरी महिमा का वास हो; वैसे ही मैंने अपनी प्रजा इस्राएल का प्रधान होने के लिए किसी व्यक्ति को भी नहीं चुना;
6 Aber ich habe Jerusalem erwählt, daß mein Name daselbst wäre; und ich habe David erwählt, daß er über mein Volk Israel wäre.
हां, मैंने येरूशलेम को चुना कि वहां मेरी महिमा ठहरे और मैंने दावीद को चुना कि वह मेरी प्रजा इस्राएल का राजा हो.’
7 Und es war in dem Herzen meines Vaters David, dem Namen Jehovas, des Gottes Israels, ein Haus zu bauen.
“मेरे पिता दावीद की इच्छा थी कि वह याहवेह, इस्राएल के परमेश्वर की महिमा के लिए भवन बनवाएं.
8 Und Jehova sprach zu meinem Vater David: Weil es in deinem Herzen gewesen ist, meinem Namen ein Haus zu bauen, so hast du wohlgetan, daß es in deinem Herzen gewesen ist.
किंतु याहवेह ने मेरे पिता दावीद से कहा, ‘तुम्हारे मन में मेरे लिए भवन के निर्माण का आना एक उत्तम विचार है,
9 Nur sollst du nicht das Haus bauen; sondern dein Sohn, der aus deinen Lenden hervorkommen wird, er soll meinem Namen das Haus bauen.
फिर भी, इस भवन को तुम नहीं, बल्कि वह पुत्र, जो तुमसे पैदा होगा, मेरी महिमा के लिए भवन बनाएगा.’
10 Und Jehova hat sein Wort aufrecht gehalten, das er geredet hat; und ich bin aufgestanden an meines Vaters David Statt und habe mich auf den Thron Israels gesetzt, so wie Jehova geredet hat, und habe dem Namen Jehovas, des Gottes Israels, das Haus gebaut;
“आज याहवेह ने अपनी प्रतिज्ञा पूरी की है. क्योंकि अब, जैसी याहवेह ने प्रतिज्ञा की थी, मैं दावीद मेरे पिता का उत्तराधिकारी बनकर इस्राएल के राज सिंहासन पर बैठा हूं, और मैंने याहवेह इस्राएल के परमेश्वर की महिमा के लिए इस भवन को बनवाया है.
11 und ich habe daselbst die Lade hingestellt, in welcher der Bund Jehovas ist, den er mit den Kindern Israel gemacht hat.
मैंने इस भवन में वह संदूक स्थापित कर दिया है, जिसमें याहवेह की वह वाचा है, जो उन्होंने इस्राएल के वंश से स्थापित की थी.”
12 Und er trat vor den Altar Jehovas, angesichts der ganzen Versammlung Israels, und er breitete seine Hände aus.
इसके बाद शलोमोन सारी इस्राएल की सभा के देखते हाथों को फैलाकर याहवेह की वेदी के सामने खड़े हो गए.
13 Denn Salomo hatte ein Gestell von Erz gemacht und es mitten in den Vorhof gestellt: fünf Ellen seine Länge, und fünf Ellen seine Breite, und drei Ellen seine Höhe; und er trat darauf und kniete, angesichts der ganzen Versammlung Israels, auf seine Knie nieder und breitete seine Hände aus gen Himmel
शलोमोन ने सवा दो मीटर लंबा, सवा दो मीटर चौड़ा और एक मीटर पैंतीस सेंटीमीटर ऊंचा कांसे का एक मंच बनाया था, जिसे उन्होंने आंगन के बीच में स्थापित कर रखा था. वह इसी पर जा खड़े हुए, उन्होंने इस्राएल की सारी प्रजा के सामने इस पर घुटने टेक अपने हाथ स्वर्ग की दिशा में फैला दिए.
14 und sprach: Jehova, Gott Israels! kein Gott ist dir gleich im Himmel und auf der Erde, der du den Bund und die Güte deinen Knechten bewahrst, die vor dir wandeln mit ihrem ganzen Herzen;
तब शलोमोन ने विनती की: “याहवेह इस्राएल के परमेश्वर, आपके तुल्य परमेश्वर न तो कोई ऊपर स्वर्ग में है और न यहां नीचे धरती पर, जो अपने उन सेवकों पर अपना अपार प्रेम दिखाते हुए अपनी वाचा को पूर्ण करता है, जिनका जीवन आपके प्रति पूरी तरह समर्पित है.
15 der du deinem Knechte David, meinem Vater, gehalten, was du zu ihm geredet hast: du hast es mit deinem Munde geredet, und mit deiner Hand hast du es erfüllt, wie es an diesem Tage ist.
आपने अपने सेवक, मेरे पिता दावीद को जो वचन दिया था, उसे पूरा किया है. वस्तुतः आज आपने अपने शब्द को सच्चाई में बदल दिया है. आपके सेवक दावीद से की गई अपनी वह प्रतिज्ञा पूरी करें, जो आपने उनसे इन शब्दों में की थी.
16 Und nun, Jehova, Gott Israels, halte deinem Knechte David, meinem Vater, was du zu ihm geredet hast, indem du sprachst: Es soll dir nicht fehlen an einem Manne vor meinem Angesicht, der da sitze auf dem Throne Israels, wenn nur deine Söhne auf ihren Weg achthaben, daß sie in meinem Gesetze wandeln, so wie du vor mir gewandelt hast.
“तब अब इस्राएल के परमेश्वर, याहवेह, आपके सेवक मेरे पिता दावीद के लिए अपनी यह प्रतिज्ञा पूरी कीजिए. ‘मेरे सामने इस्राएल के सिंहासन पर तुम्हारे उत्तराधिकारी की कोई कमी न होगी, सिर्फ यदि तुम्हारे पुत्र सावधानीपूर्वक मेरे सामने अपने आचरण के विषय में सच्चे रहें—ठीक जिस प्रकार तुम्हारा आचरण मेरे सामने सच्चा रहा है.’
17 Und nun, Jehova, Gott Israels, möge sich dein Wort bewähren, das du zu deinem Knechte David geredet hast! -
इसलिये अब, याहवेह, इस्राएल के परमेश्वर आपकी प्रतिज्ञा पूरी हो जाए, जो आपने अपने सेवक दावीद से की है.
18 Aber sollte Gott wirklich bei dem Menschen auf der Erde wohnen? Siehe, die Himmel und der Himmel Himmel können dich nicht fassen; wieviel weniger dieses Haus, das ich gebaut habe!
“मगर क्या यह संभव है कि परमेश्वर पृथ्वी पर मनुष्यों के बीच निवास करें? देखिए, आकाश और ऊंचे स्वर्ग तक आपको अपने में समा नहीं सकते; तो फिर यह भवन क्या है, जिसको मैंने बनवाया है?
19 Doch wende dich zu dem Gebet deines Knechtes und zu seinem Flehen, Jehova, mein Gott, daß du hörest auf das Rufen und auf das Gebet, welches dein Knecht vor dir betet:
फिर भी अपने सेवक की विनती और प्रार्थना का ध्यान रखिए. याहवेह, मेरे परमेश्वर, इस दोहाई को, इस गिड़गिड़ाहट को सुन लीजिए जो आज आपका सेवक आपके सामने प्रस्तुत कर रहा है.
20 daß deine Augen Tag und Nacht offen seien über dieses Haus, über den Ort, von dem du gesagt hast, daß du deinen Namen dahin setzen wollest; daß du hörest auf das Gebet, welches dein Knecht gegen diesen Ort hin beten wird.
कि यह भवन दिन-रात हमेशा आपकी दृष्टि में बना रहे, उस स्थान पर, जिसके बारे में आपने कहा था कि आप वहां अपनी महिमा की स्थापना करेंगे, कि आप उस प्रार्थना पर ध्यान दें, जो आपका सेवक इसकी ओर फिरकर करेगा.
21 Und höre auf das Flehen deines Knechtes und deines Volkes Israel, das sie gegen diesen Ort hin richten werden; und höre du von der Stätte deiner Wohnung, vom Himmel her, ja, höre und vergib!
अपने सेवक और अपनी प्रजा इस्राएल की विनतियों को सुन लीजिए जब वे इस स्थान की ओर मुंह कर आपसे करते हैं, और स्वर्ग, अपने घर से इसे सुनें और जब आप यह सुनें, आप उन्हें क्षमा प्रदान करें.
22 Wenn jemand wider seinen Nächsten sündigt, und man ihm einen Eid auflegt, um ihn schwören zu lassen, und er kommt und schwört vor deinem Altar in diesem Hause:
“यदि कोई व्यक्ति अपने पड़ोसी के विरुद्ध पाप करता है, और उसे शपथ लेने के लिए विवश किया जाता है और वह आकर इस भवन में आपकी वेदी के सामने शपथ लेता है,
23 so höre du vom Himmel, und handle und richte deine Knechte, indem du dem Schuldigen vergiltst, daß du seinen Weg auf seinen Kopf bringst; und indem du den Gerechten gerecht sprichst, daß du ihm gibst nach seiner Gerechtigkeit.
तब आप स्वर्ग से सुनें, और अपने सेवकों का न्याय करें, दुराचारी का दंड उसके दुराचार को उसी पर प्रभावी करने के द्वारा दें और सदाचारी को उसके सदाचार का प्रतिफल देने के द्वारा.
24 Und wenn dein Volk Israel vor dem Feinde geschlagen wird, weil sie wider dich gesündigt haben, und sie kehren um und bekennen deinen Namen und beten und flehen zu dir in diesem Hause:
“यदि आपकी प्रजा इस्राएल शत्रुओं द्वारा इसलिये हार जाए, कि उन्होंने आपके विरुद्ध पाप किया है और तब वे लौटकर आपकी ओर फिरते हैं, आपके प्रति दोबारा सच्चे होकर इस भवन में आपके सामने आकर विनती और प्रार्थना करते हैं,
25 so höre du vom Himmel her und vergib die Sünde deines Volkes Israel; und bringe sie in das Land zurück, das du ihnen und ihren Vätern gegeben hast.
तब स्वर्ग से यह सुनकर अपनी प्रजा इस्राएल का पाप क्षमा कर दीजिए और उन्हें उस देश में लौटा ले आइए, जो आपने उन्हें और उनके पूर्वजों को दिया है.
26 Wenn der Himmel verschlossen, und kein Regen sein wird, weil sie wider dich gesündigt haben, und sie beten gegen diesen Ort hin und bekennen deinen Namen und kehren um von ihrer Sünde, weil du sie demütigst:
“जब आप बारिश इसलिये रोक दें कि आपकी प्रजा ने आपके विरुद्ध पाप किया है और फिर, जब वे इस स्थान की ओर फिरकर प्रार्थना करें और आपके प्रति सच्चे हो, जब आप उन्हें सताएं, और वे पाप से फिर जाएं;
27 so höre du im Himmel und vergib die Sünde deiner Knechte und deines Volkes Israel, daß [O. indem] du ihnen den guten Weg zeigest, auf welchem sie wandeln sollen; und gib Regen auf dein Land, das du deinem Volke zum Erbteil gegeben hast.
तब स्वर्ग में अपने सेवकों और अपनी प्रजा इस्राएल की दोहाई सुनकर उनका पाप क्षमा कर दें. वस्तुतः आप उन्हें उन अच्छे मार्ग पर चलने की शिक्षा दें. फिर अपनी भूमि पर बारिश भेजें—उस भूमि पर जिसे आपने उत्तराधिकार के रूप में अपनी प्रजा को प्रदान किया है.
28 Wenn eine Hungersnot im Lande sein wird, wenn Pest sein wird, wenn Kornbrand und Vergilben des Getreides, Heuschrecken oder Grillen [Eig. Vertilger; eine Heuschreckenart] sein werden; wenn seine Feinde es belagern im Lande seiner Tore, wenn irgend eine Plage und irgend eine Krankheit sein wird:
“यदि देश में अकाल आता है, यदि यहां महामारी फैली हुई हो, यदि यहां उपज में गेरुआ अथवा फफूंदी लगे, यदि यहां टिड्डियों अथवा टिड्डों का हमला हो जाए, यदि उनके शत्रु उन्हें उन्हीं के देश में उन्हीं के नगरों में घेर लें, यहां कोई भी महामारी या रोग का हमला हो,
29 welches Gebet, welches Flehen irgend geschehen wird von irgend einem Menschen und von deinem ganzen Volke Israel, wenn sie erkennen werden ein jeder seine Plage und seinen Schmerz, und er seine Hände ausbreitet gegen dieses Haus hin:
किसी व्यक्ति या आपकी प्रजा इस्राएल के द्वारा उनके दुःख और पीड़ा की स्थिति में इस भवन की ओर हाथ फैलाकर कैसी भी प्रार्थना या विनती की जाए,
30 so höre du vom Himmel her, der Stätte deiner Wohnung, und vergib, und gib einem jeden nach allen seinen Wegen, wie du sein Herz kennst, -denn du, du allein kennst das Herz der Menschenkinder; -
आप अपने घर, स्वर्ग से इसे सुनिए और क्षमा दीजिए और हर एक को, जिसके मन को आप भली-भांति जानते हैं, क्योंकि सिर्फ आपके ही सामने मानव का मन उघाड़ा रहता है, उसके आचरण के अनुसार प्रतिफल दीजिए,
31 auf daß sie dich fürchten, um auf deinen Wegen zu wandeln, alle die Tage, die sie in dem Lande leben werden, das du unseren Vätern gegeben hast.
कि वे आपके प्रति इस देश में रहते हुए जो आपने उनके पूर्वजों को प्रदान किया है, आजीवन श्रद्धा बनाए रखें, और अपने जीवन भर आपकी नीतियों का पालन करते रहें.
32 Und auch auf den Fremden, der nicht von deinem Volke Israel ist, -kommt er aus fernem Lande, um deines großen Namens und deiner starken Hand und deines ausgestreckten Armes willen, kommen sie und beten gegen dieses Haus hin:
“इसी प्रकार जब कोई परदेशी, जो आपकी प्रजा इस्राएल में से नहीं है, आपकी महिमा आपके महाकार्य और आपकी महाशक्ति के विषय में सुनकर वे यहां ज़रूर आएंगे; तब, जब वह विदेशी यहां आकर इस भवन की ओर होकर प्रार्थना करे,
33 so höre du vom Himmel her, der Stätte deiner Wohnung, und tue nach allem, um was der Fremde zu dir rufen wird; auf daß alle Völker der Erde deinen Namen erkennen, und damit sie dich fürchten, wie dein Volk Israel, und damit sie erkennen, daß dieses Haus, welches ich gebaut habe, nach deinem Namen genannt wird. [O. daß dein Name über diesem Hause angerufen wird. [Vergl. 1. Chron. 13,6]]
तब अपने आवास स्वर्ग में सुनकर उन सभी विनतियों को पूरा करें, जिसकी याचना उस परदेशी ने की है, कि पृथ्वी के सभी मनुष्यों को आपकी महिमा का ज्ञान हो जाए, उनमें आपके प्रति भय जाग जाए—जैसा आपकी प्रजा इस्राएल में है और उन्हें यह अहसास हो जाए कि यह आपकी महिमा में मेरे द्वारा बनाया गया भवन है.
34 Wenn dein Volk ausziehen wird zum Streit wider seine Feinde, auf dem Wege, den du sie senden wirst, und sie zu dir beten nach dieser Stadt hin, die du erwählt hast, und dem Hause, das ich deinem Namen gebaut habe:
“जब आपकी प्रजा उनके शत्रुओं से युद्ध के लिए आपके द्वारा भेजी जाए-आप उन्हें चाहे कहीं भी भेजें-वे आपके ही द्वारा चुने इस नगर और इस भवन की ओर, जिसको मैंने बनवाया है, मुख करके प्रार्थना करें,
35 so höre vom Himmel her ihr Gebet und ihr Flehen, und führe ihr Recht aus.
तब स्वर्ग में उनकी प्रार्थना और अनुरोध सुनकर उनके पक्ष में निर्णय करें.
36 Wenn sie wider dich sündigen, -denn da ist kein Mensch, der nicht sündigte und du über sie erzürnst und sie vor dem Feinde dahingibst und ihre Besieger [S. die Anm. zu 1. Kön. 8,46] sie gefangen wegführen in ein fernes oder in ein nahes Land;
“जब वे आपके विरुद्ध पाप करें-वास्तव में तो कोई भी मनुष्य ऐसा नहीं जिसने पाप किया ही न हो और आप उन पर क्रोधित हो जाएं और उन्हें किसी शत्रु के अधीन कर दें, कि शत्रु उन्हें बंदी बनाकर किसी दूर या पास के देश में ले जाए;
37 und sie nehmen es zu Herzen in dem Lande, wohin sie gefangen weggeführt sind, und kehren um und flehen zu dir in dem Lande ihrer Gefangenschaft, und sprechen: Wir haben gesündigt, wir haben verkehrt gehandelt und haben gesetzlos gehandelt;
फिर भी यदि वे उस बंदिता के देश में चेत कर पश्चाताप करें, और अपने बंधुआई के देश में यह कहते हुए दोहाई दें, ‘हमने पाप किया है, हमने कुटिलता और दुष्टता भरे काम किए हैं’;
38 und sie kehren zu dir um mit ihrem ganzen Herzen und mit ihrer ganzen Seele in dem Lande ihrer Gefangenschaft, wohin man sie gefangen weggeführt hat, und sie beten nach ihrem Lande hin, das du ihren Vätern gegeben, und der Stadt, die du erwählt hast, und nach dem Hause hin, das ich deinem Namen gebaut habe:
यदि वे बंधुआई के उस देश में, जहां उन्हें ले जाया गया है, सच्चे हृदय और संपूर्ण प्राणों से इस देश की ओर, जिसे आपने उनके पूर्वजों को दिया है, उस नगर की ओर जिसे आपने चुना है और इस भवन की ओर, जिसको मैंने आपके लिए बनवाया है, मुंह करके प्रार्थना करें;
39 so höre vom Himmel her, der Stätte deiner Wohnung, ihr Gebet und ihr Flehen, und führe ihr Recht aus; und vergib deinem Volke, was sie gegen dich gesündigt haben.
तब अपने घर स्वर्ग से उनकी प्रार्थना और विनती सुनिए और वही होने दीजिए, जो सही है और अपनी प्रजा को, जिसने आपके विरुद्ध पाप किया है, क्षमा कर दीजिए.
40 Nun, mein Gott, laß doch deine Augen offen und deine Ohren aufmerksam sein auf das Gebet an diesem Orte!
“अब, मेरे परमेश्वर, मेरी विनती है कि इस स्थान में की गई प्रार्थना के प्रति आपकी आंखें खुली और आपके कान सचेत बने रहें.
41 Und nun, stehe auf, [Vergl. Ps. 132,8-10] Jehova Gott, zu deiner Ruhe, du und die Lade deiner Stärke! Laß deine Priester, Jehova Gott, bekleidet sein mit Rettung, und deine Frommen sich freuen des Guten!
“इसलिये अब, याहवेह परमेश्वर, खुद आप और आपकी शक्ति संदूक,
42 Jehova Gott! weise nicht ab das Angesicht deines Gesalbten; gedenke der Gütigkeiten gegen David, deinen Knecht!
याहवेह परमेश्वर अपने अभिषिक्त की प्रार्थना अनसुनी न कीजिए.