< Philippiens 1 >
1 Paul et Timothée, serviteurs de Jésus-Christ, à tous les saints dans le Christ Jésus, qui sont à Philippes, et aussi aux évêques et aux diacres.
१मसीह यीशु के दास पौलुस और तीमुथियुस की ओर से सब पवित्र लोगों के नाम, जो मसीह यीशु में होकर फिलिप्पी में रहते हैं, अध्यक्षों और सेवकों समेत,
2 Grâce à vous et paix par Dieu notre Père et par Notre Seigneur Jésus-Christ.
२हमारे पिता परमेश्वर और प्रभु यीशु मसीह की ओर से तुम्हें अनुग्रह और शान्ति मिलती रहे।
3 Je rends grâces à mon Dieu en plein souvenir de vous
३मैं जब जब तुम्हें स्मरण करता हूँ, तब-तब अपने परमेश्वर का धन्यवाद करता हूँ,
4 (Priant toujours avec joie pour vous tous en toutes mes prières),
४और जब कभी तुम सब के लिये विनती करता हूँ, तो सदा आनन्द के साथ विनती करता हूँ
5 De votre participation à l’Evangile du Christ, depuis le premier jour jusqu’à présent;
५इसलिए कि तुम पहले दिन से लेकर आज तक सुसमाचार के फैलाने में मेरे सहभागी रहे हो।
6 Ayant cette confiance, que celui qui a commencé en vous la bonne œuvre, la perfectionnera jusqu’au jour du Christ Jésus;
६मुझे इस बात का भरोसा है कि जिसने तुम में अच्छा काम आरम्भ किया है, वही उसे यीशु मसीह के दिन तक पूरा करेगा।
7 Et il est juste que j’aie ce sentiment pour vous tous, parce que je sens dans mon cœur que, soit dans mes liens, soit dans la défense et l’affermissement de l’Evangile, vous êtes tous participants de ma joie.
७उचित है कि मैं तुम सब के लिये ऐसा ही विचार करूँ, क्योंकि तुम मेरे मन में आ बसे हो, और मेरी कैद में और सुसमाचार के लिये उत्तर और प्रमाण देने में तुम सब मेरे साथ अनुग्रह में सहभागी हो।
8 Car Dieu m’est témoin combien je soupire après vous dans les entrailles de Jésus-Christ.
८इसमें परमेश्वर मेरा गवाह है कि मैं मसीह यीशु के समान प्रेम करके तुम सब की लालसा करता हूँ।
9 Et ce que je demande, c’est que votre charité de plus en plus abonde en science et en toute intelligence;
९और मैं यह प्रार्थना करता हूँ, कि तुम्हारा प्रेम, ज्ञान और सब प्रकार के विवेक सहित और भी बढ़ता जाए,
10 Pour que vous choisissiez les meilleures choses, pour que vous soyez purs et sans reproche jusqu’au jour du Christ,
१०यहाँ तक कि तुम उत्तम से उत्तम बातों को प्रिय जानो, और मसीह के दिन तक सच्चे बने रहो, और ठोकर न खाओ;
11 Remplis des fruits de justice par Jésus-Christ, pour la gloire et la louange de Dieu.
११और उस धार्मिकता के फल से जो यीशु मसीह के द्वारा होते हैं, भरपूर होते जाओ जिससे परमेश्वर की महिमा और स्तुति होती रहे।
12 Or je veux que vous sachiez, mes frères, que ce qui m’est arrivé a servi à un plus grand progrès de l’Evangile,
१२हे भाइयों, मैं चाहता हूँ, कि तुम यह जान लो कि मुझ पर जो बीता है, उससे सुसमाचार ही की उन्नति हुई है।
13 En sorte que mes liens sont devenus célèbres par le Christ dans tout le prétoire et partout ailleurs;
१३यहाँ तक कि कैसर के राजभवन की सारे सैन्य-दल और शेष सब लोगों में यह प्रगट हो गया है कि मैं मसीह के लिये कैद हूँ,
14 Et que plusieurs de nos frères dans le Seigneur, encouragés par mes liens, ont beaucoup plus osé annoncer sans crainte la parole de Dieu.
१४और प्रभु में जो भाई हैं, उनमें से अधिकांश मेरे कैद होने के कारण, साहस बाँधकर, परमेश्वर का वचन बेधड़क सुनाने का और भी साहस करते हैं।
15 Quelques-uns toutefois prêchent le Christ par envie et par esprit de contention, d’autres par une bonne volonté;
१५कुछ तो डाह और झगड़े के कारण मसीह का प्रचार करते हैं और कुछ भली मनसा से।
16 Les uns par charité, sachant que j’ai été établi pour la défense de l’Evangile;
१६कई एक तो यह जानकर कि मैं सुसमाचार के लिये उत्तर देने को ठहराया गया हूँ प्रेम से प्रचार करते हैं।
17 Les autres annoncent le Christ par esprit de contention et non sincèrement, croyant me susciter des tribulations dans mes liens.
१७और कई एक तो सिधाई से नहीं पर विरोध से मसीह की कथा सुनाते हैं, यह समझकर कि मेरी कैद में मेरे लिये क्लेश उत्पन्न करें।
18 Mais qu’importe? Pourvu que le Christ soit annoncé de quelque manière que ce puisse être, ou par occasion, ou par un vrai zèle, je m’en réjouis et je continuerai à m’en réjouir.
१८तो क्या हुआ? केवल यह, कि हर प्रकार से चाहे बहाने से, चाहे सच्चाई से, मसीह की कथा सुनाई जाती है, और मैं इससे आनन्दित हूँ, और आनन्दित रहूँगा भी।
19 Car je sais que ceci tournera à mon salut par vos prières et par le secours de l’Esprit de Jésus-Christ,
१९क्योंकि मैं जानता हूँ कि तुम्हारी विनती के द्वारा, और यीशु मसीह की आत्मा के दान के द्वारा, इसका प्रतिफल, मेरा उद्धार होगा।
20 Selon mon attente et mon espérance que je ne serai confondu en rien; mais que parlant avec toute liberté, le Christ, maintenant comme toujours, sera glorifié en mon corps, soit par ma vie, soit par ma mort.
२०मैं तो यही हार्दिक लालसा और आशा रखता हूँ कि मैं किसी बात में लज्जित न होऊँ, पर जैसे मेरे प्रबल साहस के कारण मसीह की बड़ाई मेरी देह के द्वारा सदा होती रही है, वैसा ही अब भी हो चाहे मैं जीवित रहूँ या मर जाऊँ।
21 Car pour moi, vivre c’est le Christ, et mourir un gain.
२१क्योंकि मेरे लिये जीवित रहना मसीह है, और मर जाना लाभ है।
22 Que si je vis dans la chair, j’ai le fruit de mon travail; et ainsi je ne sais que choisir.
२२पर यदि शरीर में जीवित रहना ही मेरे काम के लिये लाभदायक है तो मैं नहीं जानता कि किसको चुनूँ।
23 Car je me sens pressé des deux côtés, désirant d’être dissous et d’être avec Jésus-Christ, chose bien meilleure pour moi;
२३क्योंकि मैं दोनों के बीच असमंजस में हूँ; जी तो चाहता है कि देह-त्याग के मसीह के पास जा रहूँ, क्योंकि यह बहुत ही अच्छा है,
24 Et de demeurer dans la chair, chose nécessaire pour vous.
२४परन्तु शरीर में रहना तुम्हारे कारण और भी आवश्यक है।
25 Aussi, confiant en cela, je sais que je resterai et que je demeurerai encore avec vous tous, pour votre avancement et pour la satisfaction de votre foi,
२५और इसलिए कि मुझे इसका भरोसा है। अतः मैं जानता हूँ कि मैं जीवित रहूँगा, वरन् तुम सब के साथ रहूँगा, जिससे तुम विश्वास में दृढ़ होते जाओ और उसमें आनन्दित रहो;
26 Afin que vos félicitations à mon sujet abondent dans le Christ Jésus par mon retour chez vous.
२६और जो घमण्ड तुम मेरे विषय में करते हो, वह मेरे फिर तुम्हारे पास आने से मसीह यीशु में अधिक बढ़ जाए।
27 Seulement vivez d’une manière digne de l’Evangile du Christ, afin que, soit que je vienne et vous voie, soit qu’absent, j’entende dire que vous demeurez animés d’un même esprit, travaillant de concert pour la foi de l’Evangile,
२७केवल इतना करो कि तुम्हारा चाल-चलन मसीह के सुसमाचार के योग्य हो कि चाहे मैं आकर तुम्हें देखूँ, चाहे न भी आऊँ, तुम्हारे विषय में यह सुनूँ कि तुम एक ही आत्मा में स्थिर हो, और एक चित्त होकर सुसमाचार के विश्वास के लिये परिश्रम करते रहते हो।
28 Et sans que vous soyez effrayés en rie par nos adversaires, ce qui est une cause de perdition pour eux et de salut pour vous; or cela vient de Dieu,
२८और किसी बात में विरोधियों से भय नहीं खाते। यह उनके लिये विनाश का स्पष्ट चिन्ह है, परन्तु तुम्हारे लिये उद्धार का, और यह परमेश्वर की ओर से है।
29 Puisqu’il vous a donné touchant le Christ, non-seulement de croire en lui, mais aussi de souffrir pour lui.
२९क्योंकि मसीह के कारण तुम पर यह अनुग्रह हुआ कि न केवल उस पर विश्वास करो पर उसके लिये दुःख भी उठाओ,
30 Soutenant le même combat que vous avez vu en moi, et que maintenant vous entendez de moi.
३०और तुम्हें वैसा ही परिश्रम करना है, जैसा तुम ने मुझे करते देखा है, और अब भी सुनते हो कि मैं वैसा ही करता हूँ।