< Psaumes 95 >
1 Venez, chantons à l'Éternel; jetons des cris de joie au rocher de notre salut.
१आओ हम यहोवा के लिये ऊँचे स्वर से गाएँ, अपने उद्धार की चट्टान का जयजयकार करें!
2 Présentons-nous à lui avec des louanges; offrons-lui nos joyeux cantiques.
२हम धन्यवाद करते हुए उसके सम्मुख आएँ, और भजन गाते हुए उसका जयजयकार करें।
3 Car l'Éternel est un Dieu grand, il est un grand roi au-dessus de tous les dieux.
३क्योंकि यहोवा महान परमेश्वर है, और सब देवताओं के ऊपर महान राजा है।
4 C'est en sa main que sont les abîmes de la terre; à lui sont les sommets des montagnes.
४पृथ्वी के गहरे स्थान उसी के हाथ में हैं; और पहाड़ों की चोटियाँ भी उसी की हैं।
5 A lui appartient la mer, car il l'a faite, et ses mains ont formé la terre.
५समुद्र उसका है, और उसी ने उसको बनाया, और स्थल भी उसी के हाथ का रचा है।
6 Venez, prosternons-nous, inclinons-nous; fléchissons les genoux devant l'Éternel qui nous a faits.
६आओ हम झुककर दण्डवत् करें, और अपने कर्ता यहोवा के सामने घुटने टेकें!
7 Car il est notre Dieu, nous sommes le peuple qu'il fait paître et les brebis qu'il conduit.
७क्योंकि वही हमारा परमेश्वर है, और हम उसकी चराई की प्रजा, और उसके हाथ की भेड़ें हैं। भला होता, कि आज तुम उसकी बात सुनते!
8 Aujourd'hui, si vous entendez sa voix, n'endurcissez pas votre cœur comme à Mériba (Querelle), comme au jour de Massa (Tentation), dans le désert,
८अपना-अपना हृदय ऐसा कठोर मत करो, जैसा मरीबा में, व मस्सा के दिन जंगल में हुआ था,
9 Où vos pères m'ont tenté et m'ont éprouvé, où ils ont aussi vu mes œuvres.
९जब तुम्हारे पुरखाओं ने मुझे परखा, उन्होंने मुझ को जाँचा और मेरे काम को भी देखा।
10 Pendant quarante ans j'eus cette génération en dégoût, et je dis: C'est un peuple dont le cœur s'égare; ils n'ont point connu mes voies.
१०चालीस वर्ष तक मैं उस पीढ़ी के लोगों से रूठा रहा, और मैंने कहा, “ये तो भरमानेवाले मन के हैं, और इन्होंने मेरे मार्गों को नहीं पहचाना।”
11 Aussi je l'ai juré dans ma colère: S'ils entrent dans mon repos!
११इस कारण मैंने क्रोध में आकर शपथ खाई कि ये मेरे विश्रामस्थान में कभी प्रवेश न करने पाएँगे।