< Psaumes 26 >
1 Psaume de David. Eternel, fais-moi droit, car j'ai marché en mon intégrité, et je me suis confié en l'Eternel; je ne chancellerai point.
ऐ ख़ुदावन्द, मेरा इन्साफ़ कर, क्यूँकि मैं रास्ती से चलता रहा हूँ, और मैंने ख़ुदावन्द पर बे लग़ज़िश भरोसा किया है।
2 Eternel, sonde-moi et m'éprouve, examine mes reins et mon cœur.
ऐ ख़ुदावन्द, मुझे जाँच और आज़मा; मेरे दिल — ओ — दिमाग़ को परख।
3 Car ta gratuité est devant mes yeux, et j'ai marché en ta vérité.
क्यूँकि तेरी शफ़क़त मेरी आँखों के सामने है, और मैं तेरी सच्चाई की राह पर चलता रहा हूँ।
4 Je ne me suis point assis avec les hommes vains, et je n'ai point fréquenté les gens couverts.
मैं बेहूदा लोगों के साथ नहीं बैठा, मैं रियाकारों के साथ कहीं नहीं जाऊँगा।
5 J'ai haï la compagnie des méchants, et je ne hante point les impies.
बदकिरदारों की जमा'अत से मुझे नफ़रत है, मैं शरीरों के साथ नहीं बैठूँगा।
6 Je lave mes mains dans l'innocence, et je fais le tour de ton autel, ô Eternel!
मैं बेगुनाही में अपने हाथ धोऊँगा, और ऐ ख़ुदावन्द, मैं तेरे मज़बह का तवाफ़ करूँगा;
7 Pour éclater en voix d'action de grâces, et pour raconter toutes tes merveilles.
ताकि शुक्रगुज़ारी की आवाज़ बुलन्द करूँ, और तेरे सब 'अजीब कामों को बयान करूँ।
8 Eternel, j'aime la demeure de ta maison, et le lieu dans lequel est le pavillon de ta gloire.
ऐ ख़ुदावन्द, मैं तेरी सकूनतगाह, और तेरे जलाल के ख़ेमे को 'अज़ीज़ रखता हूँ।
9 N'assemble point mon âme avec les pécheurs, ni ma vie avec les hommes sanguinaires.
मेरी जान को गुनहगारों के साथ, और मेरी ज़िन्दगी को ख़ूनी आदमियों के साथ न मिला।
10 Dans les mains desquels il y a de la méchanceté préméditée, et dont la main [droite] est pleine de présents.
जिनके हाथों में शरारत है, और जिनका दहना हाथ रिश्वतों से भरा है।
11 Mais moi, je marche en mon intégrité; rachète-moi, et aie pitié de moi.
लेकिन मैं तो रास्ती से चलता रहूँगा। मुझे छुड़ा ले और मुझ पर रहम कर।
12 Mon pied s'est arrêté au chemin uni; je bénirai l'Eternel dans les assemblées.
मेरा पाँव हमवार जगह पर क़ाईम है। मैं जमा'अतों में ख़ुदावन्द को मुबारक कहूँगा।