< Psaumes 10 >

1 Pourquoi, ô Eternel! te tiens-tu loin, [et] te caches-tu au temps [que nous sommes] dans la détresse?
हे यहोवा तू क्यों दूर खड़ा रहता है? संकट के समय में क्यों छिपा रहता है?
2 Le méchant par son orgueil poursuit ardemment l'affligé; [mais] ils seront pris par les machinations qu'ils ont préméditées.
दुष्टों के अहंकार के कारण दीन पर अत्याचार होते है; वे अपनी ही निकाली हुई युक्तियों में फँस जाएँ।
3 Car le méchant se glorifie du souhait de son âme, il estime heureux l'avare, et il irrite l'Eternel.
क्योंकि दुष्ट अपनी अभिलाषा पर घमण्ड करता है, और लोभी यहोवा को त्याग देता है और उसका तिरस्कार करता है।
4 Le méchant marchant avec fierté ne fait conscience [de rien]; toutes ses pensées sont, qu'il n'y a point de Dieu.
दुष्ट अपने अहंकार में परमेश्वर को नहीं खोजता; उसका पूरा विचार यही है कि कोई परमेश्वर है ही नहीं।
5 Son train prospère en tout temps; tes jugements sont éloignés de devant lui; il souffle contre tous ses adversaires.
वह अपने मार्ग पर दृढ़ता से बना रहता है; तेरे धार्मिकता के नियम उसकी दृष्टि से बहुत दूर ऊँचाई पर हैं, जितने उसके विरोधी हैं उन पर वह फुँकारता है।
6 Il dit en son cœur: je ne serai jamais ébranlé; car je ne puis avoir de mal.
वह अपने मन में कहता है कि “मैं कभी टलने का नहीं; मैं पीढ़ी से पीढ़ी तक दुःख से बचा रहूँगा।”
7 Sa bouche est pleine de malédictions, de tromperies, et de fraude; il n'y a sous sa langue qu'oppression et qu'outrage.
उसका मुँह श्राप और छल और धमकियों से भरा है; उत्पात और अनर्थ की बातें उसके मुँह में हैं।
8 Il se tient aux embûches dans des villages; il tue l'innocent dans des lieux cachés; ses yeux épient le troupeau des désolés.
वह गाँवों में घात में बैठा करता है, और गुप्त स्थानों में निर्दोष को घात करता है, उसकी आँखें लाचार की घात में लगी रहती है।
9 Il se tient aux embûches en un lieu caché, comme un lion dans son fort; il se tient aux embûches pour attraper l'affligé; il attrape l'affligé, l'attirant en son filet.
वह सिंह के समान झाड़ी में छिपकर घात में बैठाता है; वह दीन को पकड़ने के लिये घात लगाता है, वह दीन को जाल में फँसाकर पकड़ लेता है।
10 Il se tapit, et se baisse, et puis le troupeau des désolés tombe entre ses bras.
१०लाचार लोगों को कुचला और पीटा जाता है, वह उसके मजबूत जाल में गिर जाते हैं।
11 Il dit en son cœur: le [Dieu] Fort l'a oublié, il a caché sa face, il ne le verra jamais.
११वह अपने मन में सोचता है, “परमेश्वर भूल गया, वह अपना मुँह छिपाता है; वह कभी नहीं देखेगा।”
12 Eternel, lève-toi, ô [Dieu] Fort! hausse ta main, et n'oublie point les débonnaires.
१२उठ, हे यहोवा; हे परमेश्वर, अपना हाथ बढ़ा और न्याय कर; और दीनों को न भूल।
13 Pourquoi le méchant irriterait-il Dieu? Il a dit en son cœur que tu n'en feras aucune recherche.
१३परमेश्वर को दुष्ट क्यों तुच्छ जानता है, और अपने मन में कहता है “तू लेखा न लेगा?”
14 Tu l'as vu; car lorsqu'on afflige ou qu'on maltraite quelqu'un, tu regardes pour le mettre entre tes mains, le troupeau des désolés se réfugie auprès de toi; tu as aidé l'orphelin.
१४तूने देख लिया है, क्योंकि तू उत्पात और उत्पीड़न पर दृष्टि रखता है, ताकि उसका पलटा अपने हाथ में रखे; लाचार अपने आपको तुझे सौंपता है; अनाथों का तू ही सहायक रहा है।
15 Casse le bras du méchant, et recherche la méchanceté de l'injuste, jusqu'à ce que tu n'en trouves plus rien.
१५दुर्जन और दुष्ट की भुजा को तोड़ डाल; उनकी दुष्टता का लेखा ले, जब तक कि सब उसमें से दूर न हो जाए।
16 L'Eternel est Roi à toujours, et à perpétuité; les nations ont été exterminées de dessus sa terre.
१६यहोवा अनन्तकाल के लिये महाराज है; उसके देश में से जाति-जाति लोग नाश हो गए हैं।
17 Eternel, tu exauces le souhait des débonnaires, affermis leur cœur, [et] que ton oreille les écoute attentivement;
१७हे यहोवा, तूने नम्र लोगों की अभिलाषा सुनी है; तू उनका मन दृढ़ करेगा, तू कान लगाकर सुनेगा
18 Pour faire droit à l'orphelin et à celui qui est foulé, afin que l'homme [mortel], qui est de terre, ne continue plus à donner de l'effroi.
१८कि अनाथ और पिसे हुए का न्याय करे, ताकि मनुष्य जो मिट्टी से बना है फिर भय दिखाने न पाए।

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